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मैंने अर्णब को 'शट अप' क्यों कहा: मीता वशिष्ठ

मैंने अर्णब को 'शट अप' क्यों कहा: मीता वशिष्ठ - Mita Vashishtha, Arnab Goswami
कुछ दिन पहले टीवी  पर बहस के दौरान अर्णब गोस्वामी और अभिनेत्री मीता वशिष्ठ में विवाद हो गया। मीता ने अर्णब को 'शट अप' कहा। ईयरफोन हटाए और कैमरे के सामने से हट गईं। दरअसल मीता कुछ कहना चाहती थीं और अर्णब उन्हें लगाता चुप रहने के लिए कह रहे थे। अर्णब ने मीता के प्रति कड़े शब्दों का उपयोग किया, जो मीता को पसंद नहीं आया। 
 
अर्णब ने मीता को बोलने का अवसर भले ही अपने चैनल पर नहीं दिया हो, लेकिन मीता ने उनके खिलाफ लिख कर अपने मन की बात जाहिर कर दी है। एक वेबसाइट पर उन्होंने लिखा है कि जैसे ही उन्होंने यह शो छोड़ा, थोड़ी देर बाद उनके सेलफोन पर संदेशों की बाढ़ आ गई। सभी ने 'वेल डन' लिखा और कहा कि अर्णब के अक्खड़पन के लिए यही सही जवाब था। 
मीता लिखती हैं- मुझे पता चला कि मेरे शो से हटने के बाद अर्णब ने कहा कि 'शट अप' कह कर मैंने कारगिल युद्ध के एक शहीद के पिता का अपमान किया है। यह अर्णब की बहुत ही खतरनाक चाल है। 
 
मैं यहां बताना चाहूंगी कि मैंने शो में क्या कहा था। वे लिखती हैं- मेरी फवाद खान या अन्य पाकिस्तानी कलाकारों में कोई रूचि नहीं है। बॉलीवुड में उनकी उपस्थिति या अनुपस्थिति मेरे लिए महत्वपूर्ण नहीं है। बॉलीवुड निर्माता उन्हें अपनी फिल्मों में अवसर देते हैं क्योंकि वे ऐसा चाहते हैं, लेकिन अब निर्माताओं की संस्था चीख रही है कि वे हमारे देश के नहीं हैं और उन्हें प्रतिबंधित कर देना चाहिए तो वे ऐसा उड़ी में हुई घटना के प्रति रोष जताने के लिए कर रहे हैं। क्या ये बेहतर नहीं होता कि ये निर्माता अपनी ऊर्जा उड़ी आतंकी हमले में शहीदों के परिवार के कोष जुटाने में लगाते। इससे उन विधवाओं, बच्चों और माता-पिता की मदद हो जाती। उनसे पूछते कि हम उनके लिए क्या कर सकते हैं?  
 
अर्णब लगातार चीख रहे थे। फिर मैंने कहा कि भारत और पाकिस्तान कभी दोस्त नहीं हो सकते। हम हमेशा दुश्मन रहे हैं तो इसमें इतनी हायतौबा क्यों? 1965 और 1971 के दो युद्ध तथा 1999 का कारगिल युद्ध क्या हम भूल सकते हैं। 1999 के बाद ही पाकिस्तानी कलाकारों को भारत में काम करने की अनुमति ही नहीं देनी चाहिए थी यदि उनकी उपस्थिति हमारे लिए मुद्दा है तो। 
 
मेरे यह कहने पर अर्णब चीखने लगे। मैं यह भी स्पष्ट करना चाहूंगी कि मैं केवल अर्णब को ही सुन पा रही थी। इसके अलावा बहुत शोर भी था। मुझे नहीं पता था कि उस शो में और कौन हैं तथा वे क्या कह रहे हैं। मुझे कोई जानकारी नहीं थी कि कारगिल युद्ध के एक शहीद के पिता भी वहां मौजूद थे, इससे उनका अपमान करने का सवाल ही खत्म हो जाता है। 
 
इसके बाद मीता ने जाहिर किया कि उनके पिता सेना में थे और उन्होंने तीनों युद्ध लड़े थे। वे लिखती हैं कि मेरी बहादुर मां ने 1971 में कहा था कि यदि डैडी वापस नहीं आते हैं तो इसका ये मतलब होगा कि वे भगवान के पास चले गए हैं। मैं 1965 नहीं भूली, 1971 नहीं भूली और न ही 1999। क्या इसके बाद भी पाकिस्तानी कलाकारों को भारत आने और प्रदर्शन करने की अनुमति देनी चाहिए। इसी लॉजिक से मैं कहती हूं कि पाकिस्तानी कलाकार बॉलीवुड में काम करते हैं या नहीं, ये मुद्दा ही नहीं है। फवाद खान से पाकिस्तान सरकार के विरोध की उम्मीद सही नहीं है। उनका परिवार पाकिस्तान में हैं जिसकी सुरक्षा की चिंता उन्हें है। इससे क्या वे भारत विरोधी सिद्ध हो जाते हैं। 
 
मीता आगे लिखती हैं- जब कम्युनिस्ट रंगकर्मी सफदर हाशमी को सत्ताधारी पार्टी की युवा शाखा द्वारा दिन-दहाड़े मार दिया जाता है तो एक राष्ट्र के रूप में हमने उसे भुला दिया तो फवाद खान कौन है? अगर बिनायक सेन को जेल भेज दिया जाता है तो पाकिस्तान में फवाद खान का क्या होगा, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। 1984 के दौरान हजारों सिखों को दिल्ली में जिंदा जला दिया गया। मार डाला गया और हम अपने घरों में छिप गए तो क्या हम देशद्रोही हो गए? 
 
मीता ने अर्णब और टाइम्स नाऊ चैनल को जोड़ते हुए शाब्दिक बाण चलाया और लिखा, तथ्य यह है कि यह पूरा शो मिस्टर अर्णब गोस्वामी जैसे व्यक्ति को दिया गया है, जो उस टाइम्स (समय) की बात करते हैं, जिसमें हम अब (नाऊ) रह रहे हैं।
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