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Last Modified: बुधवार, 20 दिसंबर 2023 (15:25 IST)

'हॉलीवुड गेट' अफगानिस्तान पर तालिबानी कब्जे के बाद के एक साल का रोजनामचा

'हॉलीवुड गेट' अफगानिस्तान पर तालिबानी कब्जे के बाद के एक साल का रोजनामचा | Hollywood Gate diary of one year after Taliban occupation of Afghanistan
Hollywood Gate Movie: अफगानिस्तान से 30 अगस्त 2021 को अमेरिकी फौज की अंतिम वापसी और 31 अगस्त को तालिबानी शासन की बहाली के बाद के एक साल तक की सैन्य गतिविधियों पर इब्राहीम नाश्त की डाक्यूमेंट्री 'हॉलीवुड गेट' की छठवें अल गूना फिल्म फेस्टिवल (इजिप्ट) में खूब चर्चा है। इजिप्ट में जन्मे इब्राहीम नाश्त अब बर्लिन (जर्मनी) में रहते हैं जहां पर इस फिल्म का पोस्ट प्रोडक्शन हुआ है। 
 
उन्होंने जान की बाजी लगाकर काबूल में नव नियुक्त एयर फोर्स कमांडर मौलवी मंसूर और उनके एक प्रिय कट्टरपंथी लड़ाके एम जे मुख्तार के साथ एक साल बिताकर यह फिल्म बनाई है। पेशे से पत्रकार इब्राहीम नाश्त को तालिबान ने यह सोचकर फिल्म बनाने के लिए आमंत्रित किया कि वे उनके लिए एक प्रोपेगैंडा फिल्म बनाएंगे। पर जैसे जैसे फिल्म बनती गई वैसे वैसे यह कई दिशाओं में फैलती चली गई। 
 
फिल्म के कुछ फुटेज अद्भुत है जो पहली बार दुनिया के सामने आए हैं। इसी साल वेनिस अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में इस डाक्यूमेंट्री का वर्ल्ड प्रीमियर हुआ था। हॉलीवुड गेट दरअसल काबूल के बाहरी इलाके में अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के ठिकाने का नाम था जो एक तरह से अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना का मुख्यालय बन गया था। जब 30 अगस्त को अंतिम रूप से अमेरिकी सेना वहां से चली गई तो पता चला कि करीब सात बिलियन डॉलर का सैन्य साजो सामान छोड़ गई है।
 
हालांकि अधिकतर सामान तोड़ फोड़ कर गए हैं। अब कमांडर मौलवी मंसूर का पहला काम है कि किसी तरह फाइटर जेट विमानों और हाक हेलिकॉप्टरों की मरम्मत कराएं। तालिबान वैसे तो हर पत्रकार को विदेशी जासूस समझते हैं पर इब्राहीम नाश्त को फिल्म बनाने की अनुमति दे देते हैं इस चेतावनी के साथ जैसा कि एक कमांडर कहता भी है कि यदि यह कोई गड़बड़ करे तो बाहर ले जाकर इसे गोली मार देना। उन्होंने यहां दर्शकों से संवाद करते हुए कहा भी कि कई बार उन्हें लगा कि वे यहां से जिंदा वापस नहीं जाएंगे।
 
एयरफोर्स कमांडर मौलवी मंसूर को किसी तरह सारे साजो सामान तालिबान की सत्ता में आने की पहली सालगिरह 31 अगस्त 2022 से पहले पहले ठीक करा लेना है। वे चाहते हैं कि उनके फाइटर जेट विमान स्वतंत्रता दिवस परेड में अफगानिस्तान के नए प्रधानमंत्री हिबतुल्लाह अखूंदजादा को सलामी दे सकें। एयरबेस मे वे एक एविएशन अकादमी खोलते हैं जिनमें कमांडरों को विमान उड़ानें की ट्रेनिंग दी जा सके। उनके लड़ाके पड़ोसी देश ताजिकिस्तान पर हमला कर कब्जा करना चाहते हैं। उन्हें गुमान है कि यदि वे अमेरिका और नाटो को हरा सकते हैं तो एक दिन सारी दुनिया को जीत लेंगे।
 
एक दृश्य में तालिबानी कमांडर पहाड़ी में बनी गुफा दिखाते हैं जहां वे अमेरिकी फौज की बमबारी से छिपते थे। एक कमांडर हथियार लहराते हुए कहता है कि काश यहां कोई अमेरिकी सैन्य टुकड़ी होती जिसको वह मारकर शहीद हो जाता। दरअसल कमांडर मौलवी मंसूर के पिता और भाई अमेरिकी हवाई हमले में मारे गए थे। वे उस जगह पर जाते हैं और अंधाधुंध फायरिंग करके उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं। समस्या यह है कि अब अमेरिकी जा चुके हैं तो वे अपने पिता और भाई की मौत का बदला किससे लेंगे? उधर बगराम एयरबेस पर सैनिक परेड करते आत्मघाती बम दस्ता हताश हैं कि अब उनका क्या होगा। जाहिर है कि अब उनका कोई भविष्य नहीं है।
 
पूरी फिल्म में कहीं भी कोई स्त्री नहीं है क्योंकि तालिबान ने इस्लामी कानून के नाम पर सबसे पहला काम प्रशासन, सेना और सार्वजनिक जीवन से स्त्रियों को बाहर कर दिया। फिल्म एक स्त्री विहीन संसार की भयावह कुरूपता को सामने लाती है सिवाय इसके कि टेलीविजन पर कुछ न्यूज रीडर बुर्क़े में समाचार पढ़ती दिखाई देती है। एक जगह दवाईयों के बंडल का मुआयना करते हुए कमांडर मौलवी मंसूर पाते हैं कि ये सब एक्सपायर हो चुकी है तो उनका एक सिपाही कहता है कि हमारे डॉक्टर आलसी हो गए हैं, उन्हें ठीक करना होगा। 
 
मौलवी मंसूर अफसोस जताते हुए अपनी पत्नी को याद करते हैं जिसे उनसे शादी की शर्त पूरी करने के लिए डॉक्टरी छोड़नी पड़ी थी। वे कहते हैं कि यदि वह डॉक्टरी कर रही होती तो एयरबेस का यह अस्पताल संभाल सकती थी। यह एक खौफनाक मंज़र है जहां हर चीज बंदूक की नोंक पर हो रही है। बर्बर लड़ाके रुसी क्लानिश्कोव मशीन गनों को खिलौनों की तरह लहराते घूम रहे हैं। औरतों के बगैर यह दृश्य दहशत पैदा करता है। 
 
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