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Written By WD Feature Desk

19 फरवरी: शिवाजी महाराज की जयंती, जानें उनके जीवन के 10 रहस्य

Chhatrapati Shivaji Jyanati
HIGHLIGHTS
 
* शिवाजी महाराज ने रखी थीं मराठा साम्राज्य की नींव।
* छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती 19 फरवरी को। 
* शिवाजी महाराज एक देशभक्त और साहसी योद्धा थे। 
 
Chhatrapati Shivaji Maharaj Jayanti 2024 : विश्व में 'मराठा गौरव' के नाम से प्रसिद्ध छत्रपति शिवाजी महाराज को हम सभी जानते हैं। मराठा सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती फरवरी के महीने में मनाई जाती है। उन्हें राष्ट्रीयता का जीवंत प्रतीक एवं परिचायक माना जाता है। उन्होंने हिंदू साम्राज्य को स्थापित करने के लिए महज 15 साल की उम्र में पहला आक्रमण किया था। 
 
यहां पढ़ें उनके जीवन से जुड़ी रोचक 10 बातें- 
 
• शिवाजी महाराज का जन्म (तारीख के अनुसार) 19 फरवरी को शिवनेरी दुर्ग में हुआ था। छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम भारत के उन वीर सपूतों में शुमार है जिन्होंने अपनी वीरता और पराक्रम के दम पर मुगलों को घुटने टेकने पर विवश कर दिया था। बहुत से लोग इन्हें 'हिन्दू हृदय सम्राट' कहते हैं, तो कुछ लोग इन्हें 'मराठा गौरव', जबकि वे भारतीय गणराज्य के महानायक थे।
 
• बचपन: बचपन में शिवाजी अपनी आयु के बालक इकट्ठे कर उनके नेता बनकर युद्ध करने और किले जीतने का खेल खेला करते थे। युवावस्था में आते ही उनका खेल, वास्तविक कर्म बनकर शत्रुओं पर आक्रमण कर उनके किले आदि भी जीतने लगा। जैसे ही शिवाजी ने पुरंदर और तोरण जैसे किलों पर अपना अधिकार जमाया, वैसे ही उनके नाम और कर्म की सारे दक्षिण में धूम मच गई। यह खबर आग की तरह आगरा और दिल्ली तक जा पहुंची। अत्याचारी किस्म के तुर्क, यवन और उनके सहायक सभी शासक उनका नाम सुनकर ही मारे डर के चिंतित होने लगे थे।
 
• पत्नी और पुत्र: छत्रपति शिवाजी महाराज का विवाह सन् 14 मई 1640 में सइबाई निम्बालकर के साथ लाल महल, पूना (अब पुणे) में हुआ था। उनके पुत्र का नाम संभाजी था। संभाजी शिवाजी के ज्येष्ठ पुत्र और उत्तराधिकारी थे जिसने 1680 से 1689 ई. तक राज्य किया। संभाजी में अपने पिता की कर्मठता और दृढ़ संकल्प का अभाव था। संभाजी की पत्नी का नाम येसुबाई था। उनके पुत्र और उत्तराधिकारी राजाराम थे।
 
• समर्थ रामदास: 'हिन्दू पद पादशाही' के संस्थापक शिवाजी के गुरु रामदासजी का नाम भारत के साधु-संतों व विद्वत समाज में सुविख्यात है। उन्होंने 'दासबोध' नामक एक ग्रंथ की रचना भी की थी, जो मराठी भाषा में है। संपूर्ण भारत में कश्मीर से कन्याकुमारी तक उन्होंने 1,100 मठ तथा अखाड़े स्थापित कर स्वराज्य स्थापना के लिए जनता को तैयार करने का प्रयत्न किया। उन्हें अखाड़ों की स्थापना का श्रेय जाता है इसीलिए उन्हें भगवान हनुमानजी का अवतर माना गया जबकि वे हनुमानजी के परम भक्त थे। छत्रपति शिवाजी महाराज अपने गुरु से प्रेरणा लेकर ही कोई कार्य करते थे। छत्रपति महाराजा शिवाजी को 'महान शिवाजी' बनाने में समर्थ रामदासजी का बहुत बड़ा योगदान रहा।
 
जब शिवाजी को मारना चाहा: शिवाजी के बढ़ते प्रताप से आतंकित बीजापुर के शासक आदिलशाह जब शिवाजी को बंदी न बना सके तो उन्होंने शिवाजी के पिता शाहजी को गिरफ्तार किया। पता चलने पर शिवाजी आग-बबूला हो गए। उन्होंने नीति और साहस का सहारा लेकर छापामारी कर जल्द ही अपने पिता को इस कैद से आजाद कराया। तब बीजापुर के शासक ने शिवाजी को जीवित अथवा मुर्दा पकड़ लाने का आदेश देकर अपने मक्कार सेनापति अफजल खां को भेजा। उसने भाईचारे व सुलह का झूठा नाटक रचकर शिवाजी को अपनी बांहों के घेरे में लेकर मारना चाहा, पर समझदार शिवाजी के हाथ में छिपे बघनखे का शिकार होकर वह स्वयं मारा गया। इससे उसकी सेनाएं अपने सेनापति को मरा पाकर वहां से दुम दबाकर भाग गईं।
 
• तुलजा भवानी के उपासक: महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले में स्थित है तुलजापुर। एक ऐसा स्थान, जहां छत्रपति शिवाजी की कुलदेवी मां तुलजा भवानी स्थापित हैं, जो आज भी महाराष्ट्र व अन्य राज्यों के कई निवासियों की कुलदेवी के रूप में प्रचलित हैं। वीर छत्रपति शिवाजी महाराज की कुलदेवी मां तुलजा भवानी हैं। शिवाजी महाराज उन्हीं की उपासना करते थे। मान्यता है कि शिवाजी को खुद देवी मां ने प्रकट होकर तलवार प्रदान की थी। छत्रपति शिवाजी महाराज भारत के सच्चे वीर सपूतों में से एक माने जाते हैं। 
 
• शिवाजी के राज्य की सीमा: शिवाजी की पूर्वी सीमा उत्तर में बागलना को छूती थी और फिर दक्षिण की ओर नासिक एवं पूना जिलों के बीच से होती हुई एक अनिश्चित सीमा रेखा के साथ समस्त सतारा और कोल्हापुर जिले के अधिकांश भाग को अपने में समेट लेती थी। पश्चिमी कर्नाटक के क्षेत्र बाद में सम्मिलित हुए। 
 
• स्वराज का यह क्षेत्र 3 मुख्य भागों में विभाजित था- 
 
- पूना से लेकर सल्हर तक का क्षेत्र कोंकण का क्षेत्र, जिसमें उत्तरी कोंकण भी सम्मिलित था, पेशवा मोरोपंत पिंगले के नियंत्रण में था। 
 
- उत्तरी कनारा तक दक्षिणी कोंकण का क्षेत्र अन्नाजी दत्तों के अधीन था। 
 
- दक्षिणी देश के जिले, जिनमें सतारा से लेकर धारवाड़ और कोफाल का क्षेत्र था, दक्षिणी पूर्वी क्षेत्र के अंतर्गत आते थे और दत्ताजी पंत के नियंत्रण में थे। इन 3 सूबों को पुन: परगनों और तालुकों में विभाजित किया गया था। परगनों के अंतर्गत तरफ और मौजे आते थे।
 
• गुरिल्ला युद्ध का आविष्कार: कहते हैं कि छत्रपति शिवाजी ने ही भारत में पहली बार गुरिल्ला युद्ध का आरंभ किया था। उनकी इस युद्ध नीति से प्रेरित होकर ही वियतनामियों ने अमेरिका से जंग जीत ली थी। इस युद्ध का उल्लेख उस काल में रचित 'शिव सूत्र' में मिलता है। गुरिल्ला युद्ध एक प्रकार का छापामार युद्ध है। मोटे तौर पर छापामार युद्ध अर्द्धसैनिकों की टुकड़ियों अथवा अनियमित सैनिकों द्वारा शत्रु सेना के पीछे या पार्श्व में आक्रमण करके लड़े जाते हैं।
 
• शिवाजी के किले: मराठा सैन्य व्यवस्था के विशिष्ट लक्षण थे किले। विवरणकारों के अनुसार शिवाजी के पास 250 किले थे जिनकी मरम्मत पर वे बड़ी रकम खर्च करते थे। शिवाजी ने कई दुर्गों पर अधिकार किया जिनमें से एक था सिंहगढ़ दुर्ग, जिसे जीतने के लिए उन्होंने तानाजी को भेजा था। इस दुर्ग को जीतने के दौरान तानाजी ने वीरगति पाई थी। 'गढ़ आला पण सिंह गेला' (गढ़ तो हमने जीत लिया, पर सिंह हमें छोड़कर चला गया)। बीजापुर के सुल्तान की राज्य सीमाओं के अंतर्गत रायगढ़ (1646) में चाकन, सिंहगढ़ और पुरंदर सरीखे दुर्ग भी शीघ्र उनके अधिकारों में आ गए। 
 
• मुगलों से टक्कर: शिवाजी की बढ़ती हुई शक्ति से चिंतित होकर मुगल बादशाह औरंगजेब ने दक्षिण में नियुक्त अपने सूबेदार को उन पर चढ़ाई करने का आदेश दिया, लेकिन सूबेदार को मुंह की खानी पड़ी। शिवाजी से लड़ाई के दौरान उसने अपना पुत्र खो दिया और खुद उसकी अंगुलियां कट गईं। उसे मैदान छोड़कर भागना पड़ा। 
 
इस घटना के बाद औरंगजेब ने अपने सबसे प्रभावशाली सेनापति मिर्जा राजा जयसिंह के नेतृत्व में लगभग 1,00,000 सैनिकों की फौज भेजी। शिवाजी को कुचलने के लिए राजा जयसिंह ने बीजापुर के सुल्तान से संधि कर पुरंदर के किले को अधिकार में करने की अपने योजना के प्रथम चरण में 24 अप्रैल 1665 ई. को 'व्रजगढ़' के किले पर अधिकार कर लिया। पुरंदर के किले की रक्षा करते हुए शिवाजी का अत्यंत वीर सेनानायक 'मुरारजी बाजी' मारा गया। पुरंदर के किले को बचा पाने में अपने को असमर्थ जानकर शिवाजी ने महाराजा जयसिंह से संधि की पेशकश की। दोनों नेता संधि की शर्तों पर सहमत हो गए और 22 जून 1665 ई. को 'पुरंदर की संधि' संपन्न हुई। 
 
शिवाजी महाराज का निधन 3 अप्रैल 1680 को रायगढ़ फोर्ट में हुआ था। 

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