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Last Updated : शनिवार, 4 अक्टूबर 2025 (15:19 IST)

बाहुबली आनंद मोहन सिंह बिहार चुनाव में लालू यादव को दे रहे चुनौती, जानें कब आनंद मोहन को काबू में करने के लिए लालू को बुलानी पड़ी थी BSF?

Bahubali of Bihar
"बिहार विधानसभा चुनाव में भूरा बालही तय करेगा कि सत्ता के गद्दी पर कौन बैठेगा"
बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बाहुबली आनंद मोहन सिंह के इस बयान ने सूबे की सियासत में जातिगत राजनीति को फिर हवा दे दी है। बिहार की राजनीति में 90 के दशक में जातीय संघर्ष की आग में तप कर निकले बाहुबली आनंद मोहन सिंह की आज भी बिहार की राजनीति में एक ब्रांड वैल्यू है। यहीं कारण है कि नीतीश सरकार ने गोपालगंज कलेक्टर जी कृष्णैया की हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा काट रहे बाहुबली आनंद मोहन सिंह को नियमों में बदलाव कर जेल से रिहाई का रास्ता साफ किया।
 

बिहार की जातीय संघर्ष में आनंद मोहन का उदय-बाहुबली आनंद मोहन सिंह की जीवन की कहानी किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं है। बिहार में जातीय संघर्ष की आग में तप कर निकलने बाहुबली नेता आनंद मोहन सिंह अस्सी के दशक में राजपूतों के मसीहा बनकर उभरे और आज भी उनकी बिहार की राजनीति में तूती बोलती है।बिहार में राजपूतों की आबादी करीब 5.2 प्रतिशत है और आनंद मोहन की राजपूतों पर अच्छी पकड़ भी है।
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1980 बिहार में शुरु हुए जातीय संघर्ष के सहारे रानजीति की सीढ़ियां चढ़ने वाले आनंद मोहन सिंह राजपूतों के बड़े नेता थे। सियासत में आने से पहले ही आनंद मोहन सिंह अपनी दबंगई के लिए मिथिलाचंल में बड़ा नाम बन गए थे। बिहार का कोसी का इलाका करीबी तीन दशक तक जातीय संघर्ष के खून से लाल होता रहा है। अस्सी के दशक में बिहार में अगड़ों-पिछड़ों के जातीय संघर्ष ने बिहार की राजनीति में कई बाहुबली नेताओं की एंट्री का रास्ता भी बना। 
 

आरक्षण के विरोध से सियासी सफर का आगाज-आनंद मोहन सिंह 1990 के विधानसभा चुनाव में सियासत में दस्तक देते है। शुरु से ही आरक्षण विरोध की सियासत करने वाले आनंद मोहन सिंह 1990 में मंडल कमीशन का खुलकर विरोध करते हैं और 1993 में अपनी अलग पार्टी बिहार पीपुल्स पार्टी का गठन कर लेते हैं। 

जाति की राजनीति के सहारे अपनी सियासी पारी का आगाज करने वाले आनंद मोहन नब्बे के दशक में देखते ही देखते राजनीति के बड़े चेहरे हो गए,लोग उनको लालू यादव के विकल्प के रूप में भी देखने लगे थे। 1996 और 1998 में आनंद मोहन सिंह शिवहर लोकसभा सीट से चुनाव में उतरते हैं और बड़े अंतर से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंच जाते हैं। 

समाजवादी क्रांति सेना बनाने वाले आनंद मोहन सिंह के खौफ के आगे पुलिस नतमस्तक थी। कोसी के कछार में आनंद मोहन सिंह की प्राइवेट आर्मी और बाहुबली पप्पू यादव की सेना की भिड़ंत से 'गृहयुद्ध' जैसे बने हालात को काबू में करने के लिए लालू सरकार को बीएसएफ का सहारा लेना पड़ा था।    
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कलेक्टर की दिनहाहड़े हत्या-1994 में बिहार में गोपालगंज के कलेक्टर दलित आईएएस अधिकारी जी कृष्णैया की हत्या कर दी जाती है। हत्या का आरोप आनंद मोहन सिंह पर लगता हैं और 2007 में कोर्ट आनंद सिंह मोहन को फांसी की सजा सुनाती है हालांकि बाद में फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया जाता है।  साल 2024 में नीतीश सरकार ने नियमों में बदलाव कर आनंद मोहन सिंह की रिहाई का रास्ता साफ कर दिया है और अब बिहार विधानसभा चुनाव में खुलकर सक्रिय है।

शिवहर मेंं आनंद मोहन को चुनौती नहीं-बाहुबली आनंद मोहन सिंह की पत्नी लवली आनंद नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू से शिवहर से सांसद और उनका बेटा चेतन आनंद विधायक है। चेतन आनंद शिवहर से आरजेडी से विधायक चुने गए थे लेकिन नीतीश ने जब भाजपा के साथ सरकार बनाई तो वह बागी होकर अविश्वास प्रस्ताव पर नीतीश के समर्थन में मतदान किया और आज खुलकर जेडीयू के साथ है। इस बार भी विधानसभा चुनाव में चेतन आनंद NDA के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी है, इसका इशारा खुद बाहुबली आनंद मोहन सिंह करते हुए कहते है कि शिवहर में कोई वैकेंसी नहीं है, मैं पहले भी कह चुका हूं। सरकार बचाने में भी चेतन आनंद की भूमिका रही थी।
 

आनंद मोहन से नीतीश का पुराना याराना-नीतीश कुमार की बाहुबली आनंद मोहन सिंह ने नजदीकियां किसी से छिपी नहीं है। 2010 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कलेक्टर की हत्या के मामले में जेल में बंद आनंद मोहन सिंह के घर जाकर उनकी मां का आशीर्वाद लिया था और आनंद मोहन सिंह पेरोल पर रिहाई के दौरान अक्सर नीतीश कुमार के साथ नजर भी आते रहे।

बाहुबली आनंद मोहन सिंह से दोस्ती का फर्ज निभाते हुए पिछले दिनों सुशासन बाबू की छवि वाले नीतीश कुमार ने अपनी ही सरकार के 12 साल पहले के नियम में अचानक बदलाव कर देते हैं और आनंद मोहन की जेल से रिहाई का रास्ता साफ हो जाता है। नीतीश सरकार ने बिहार जेल नियमावली, 2012 के नियम 481(1) क में संशोधन कर 'काम पर तैनात सरकारी सेवक की हत्या' इस वाक्यांश को ही नियम से हटा दिया। जिसका सीधा फायदा कलेक्टर की हत्या में उम्रकैद की सजा काट रहे आनंद मोहन सिंह को मिला और उनकी जेल से रिहाई का रास्ता साफ हो गया।

'भूरा बाल' के बयान से लालू को चुनौती-बिहार में राजपूतों की आबादी करीब 5.2 प्रतिशत है। आनंद मोहन की सवर्ण खासकर राजपूतों पर अच्छी पकड़ है, ऐसे में विधानसभा चुनाव आते ही अब आनंद मोहन सिंह खुलकर नीतीश के साथ है। खुद आनंद मोहन सिंह कहते है कि बिहार विधानसभा चुनाव में 'भूरा बाल' (भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और लाला) ही तय करेगा कि सत्ता की गद्दी पर कौन बैठेगा। वहीं लालू यादव को निशाने पर लेते हुए उन्होंने कहा कि कभी 'भूरा बाल साफ करो' का नारा देने वाले आज लोकतंत्र की दुहाई दे रहे हैं, जबकि इतिहास गवाह है कि जनता को इमरजेंसी लगाकर कैद करने वाले लोग देश नहीं चला सकते।

बिहार की सियासत में बताया जाता है कि लालू प्रसाद यादव ने 1990 के दशक में बिहार की राजनीति में 'भूरा बाल साफ करो' का नारा दिया था। इस नारे का इस्तेमाल 1990 के दशक में लालू यादव को सवर्ण विरोधी बताने का नैरेटिव खड़ा करने के लिए किया गया था और आनंद मोहन सिंह सवर्णों की राजनीति करते थे।  

 
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