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Last Modified: मंगलवार, 24 जुलाई 2018 (12:16 IST)

उम्र का आपकी सोच पर क्या होता है असर

उम्र का आपकी सोच पर क्या होता है असर | age
डेविड रॉबसन (बीबीसी फ़्यूचर)
 
उम्र का बढ़ना तो दस्तूर-ए-जहां है मगर महसूस न करो तो उम्र कहां बढ़ती है...। कल्पना कीजिए कि आप को आपके जन्म की तारीख़ नहीं मालूम। न बर्थ सर्टिफ़िकेट है, न कुंडली और न ही कोई और दस्तावेज़, जो आप की सही उम्र बता सके। फिर आप को कह दिया जाए कि आप की उम्र वही है, जो आप महसूस करें।
 
 
ऐसे में आप ख़ुद को कितने बरस का महसूस करेंगे?
 
 
जैसे आप के जूतों का नंबर या आप की लंबाई एक उम्र के बाद तय हो जाती है, ठीक वैसे ही आप ने ज़िंदगी के जितने बरस गुज़ार लिए हैं, उन्हें बदला नहीं जा सकता। लेकिन, रोज़मर्रा का तजुर्बा बताता है कि हम जिस रफ़्तार से उम्रदराज़ होते हैं, उसी पैमाने पर उसे महसूस नहीं करते। कुछ लोग ख़ुद को बूढ़ा महसूस करते हैं। तो, कुछ जवां।
 
 
अब, वैज्ञानिक इस मानसिकता पर रिसर्च कर रहे हैं। इस रिसर्च से कुछ दिलचस्प बातें सामने आई हैं। आप अपने आप को जितना उम्रदराज़ महसूस करते हैं, उसका आपकी बेहतर और ख़राब परफॉर्मेंस से गहरा ताल्लुक़ है। इसका आपकी सेहत से भी गहरा नाता है। अब वैज्ञानिक ये पता लगाने में जुटे हैं कि जो उम्र आप महसूस करते हैं, क्या उससे आपके बीमार होने या बेहतर काम करने का कोई रिश्ता है।
 
 
अमेरिका की वर्जिनिया यूनिवर्सिटी के ब्रायन नोसेक ऐसे ही एक वैज्ञानिक हैं। वो कहते हैं कि, ''लोग अपनी उम्र से ख़ुद को कितना कम उम्र महसूस करते हैं, ये बात उनके तमाम फ़ैसलों को प्रभावित करती है। ख़ुद को लोग जितना जवां या उम्रदराज़ महसूस करते हैं, उसी हिसाब से ज़िंदगी के फ़ैसले लेते हैं।''
 
 
उम्र को महसूस करने की अहमियत यहीं ख़त्म नहीं हो जाती है। आप अपने आप को कितना जवां महसूस करते हैं, इसका आपकी सेहत से भी ताल्लुक़ होता है। यहां तक कि आप की मौत से भी इसका नाता है।...तो, आप वाक़ई उतने ही बरस के होते हैं, जितना आप महसूस करते हैं।
 
 
रिसर्च के इन दिलचस्प नतीजों से उत्साहित वैज्ञानिक अब ये पता लगाने में जुट गए हैं कि वो कौन से मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और जैविक कारण होते हैं, जिनसे लोगों को अपने जवां होने या बुज़ुर्ग हो जाने का एहसास होता है। इस जानकारी को जुटाकर हम लंबी उम्र और सेहतमंद रहने का एक और नुस्खा तलाश लेंगे।
 
 
नई नहीं है रिसर्च
वैसे उम्र को लेकर ये रिसर्च नई नहीं है। 1970 से 1980 के दशक के बीच कई ऐसी छुट-पुट रिसर्च हुई थीं। लेकिन, पिछले दस सालों में इनकी बाढ़ सी आ गई है। हाल में हुई ऐसी रिसर्च का एक बड़ा पहलू ये है कि किस तरह उम्र को लेकर हमारी सोच हमारे व्यक्तित्व पर असर डालती है।
 
 
सब को पता है कि उम्र बढ़ने के साथ लोग शांत हो जाते हैं। नए तजुर्बे करने से बचते हैं। वहीं युवा ज़्यादा जोख़िम लेने को तैयार रहते हैं। नई जगहें, नए प्रयोग के लिए ज़्यादा उत्साहित होते हैं। लेकिन, उम्र महसूस करने को लेकर हुई रिसर्च बताती है कि जो लोग ख़ुद को जवां महसूस करते हैं, वो भी बढ़ती उम्र के साथ ज़्यादा ईमानदार हो जाते हैं। जज़्बात पर क़ाबू पाना सीख लेते हैं। ये गुण तो वैसे भी उम्र बढ़ने के साथ आते ही हैं। लोग ज़िंदगी के तजुर्बों के साथ शांत होते जाते हैं।
 
 
कहने का मतलब ये कि जो लोग दिल से जवां रहते हैं, ऐसा नहीं है कि वो बचकानी सोच वाले ही रह जाते हैं। लेकिन, बढ़ती अवस्था के बावजूद ख़ुद को युवा महसूस करने वाले लोगों के डिप्रेशन के शिकार होने की आशंका कम होती है। उनकी दिमाग़ी सेहत औरों के मुक़ाबले बेहतर होती है। वो भूल जाने की बीमारी के शिकार कम होते हैं। बीमार कम होते हैं।
 
 
फ्रांस की मोंटपेलियर यूनिवर्सिटी के यान्निक स्टीफ़ेन ने 17 हज़ार से ज़्यादा मध्यम उम्र और बुज़ुर्गों के ऊपर रिसर्च की। इनमें से ज़्यादातर लोग अपनी असल उम्र से ख़ुद को आठ साल कम का महसूस करते थे।
 
 
लेकिन, कुछ लोग ऐसे भी थे, जो अपने आप को असल आयु से ज़्यादा उम्रदराज़ महसूस करते थे। ऐसे लोगों के साथ गंभीर दिक़्क़तें थीं। ख़ुद को असली आयु से 8-13 साल ज़्यादा उम्र का महसूस करने वालों के मरने की आशंका 18-25 प्रतिशत ज़्यादा देखी गई। इस दौरान उनके बीमार होने का सिलसिला भी दूसरों के मुक़ाबले ज़्यादा तेज़ रहा।
 
 
वक्त से पहले बूढ़ा होना
हम ख़ुद को जितनी उम्र का महसूस करते हैं, उसके हिसाब से हमारी सेहत होने की कई वजहें होती हैं। सबसे बड़ी वजह तो ये होती है कि बढ़ती उम्र के साथ लोगों में प्रौढ़ता आती है। लेकिन जो लोग ख़ुद को युवा महसूस करते हैं, वो जवानी के दिनों के तजुर्बे जैसे घूमना या नए शौक़ पालने के तजुर्बे ज़्यादा करते हैं। यानी जो लोग जवां महसूस करते हैं, वो उछल-कूद, वर्ज़िश, टहलने या घूमने जाने में ज़्यादा वक़्त बिताते हैं। इसका उनकी सेहत पर अच्छा असर पड़ता है।
 
 
मगर, इसका उल्टा ताल्लुक़ भी है।
 
अगर लोग डिप्रेशन में होते हैं। दिमाग़ी सुकून नहीं होता। चीज़ें भूलते हैं। चलने-फिरने से कतराते हैं, तो, वो ख़ुद को ज़्यादा उम्र का महसूस करने लगते हैं। अगर ऐसा होता है, तो लोगों की सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ता है। लोग वक़्त से पहले ख़ुद को बूढ़ा मान लेते हैं। जो उनकी सेहत के लिए और नुक़सानदेह होता है।
 
 
कुल मिलाकर, आप जो उम्र महसूस करते हैं, उससे आपकी सेहत का ज़्यादा बेहतर अंदाज़ा लगाया जा सकता है, बनिस्बत आपके बर्थ सर्टिफिकेट के।
 
 
उम्र महसूस करने की वजहें
अब मनोवैज्ञानिक ये पता लगाने में जुट गए हैं कि हम जो उम्र महसूस करते हैं, उसके पीछे की वजह क्या होती है। वर्जिनिया यूनिवर्सिटी के ब्रायन नोसेक और निकोल लिंडनर ने असल उम्र और महसूस होने वाली उम्र के फ़र्क़ को समझने की कोशिश की है।
 
 
हम सब को पता है कि बच्चे और किशोर ख़ुद को असल उम्र से ज़्यादा बड़ा मानते हैं। लेकिन, 25 साल की आयु तक पहुंचते-पहुंचते लोगों को लगने लगता है कि वो उम्र की असल रफ़्तार को पीछे छोड़ आए हैं।
 
 
30 के दशक में पहुंचते ही लोगों को ख़ुद के असल उम्र से जवां होने का एहसास होने लगता है। ऐसा 70 फ़ीसद लोगों के साथ होता है। नोसेक और लिंडनर कहते हैं कि, 'ऐसा लगता है कि जो उम्र महसूस करते हैं, वो मंगल ग्रह की होती है, जबकि असल उम्र धरती वाली होती है। अब धरती का एक दशक मंगल ग्रह के 5।3 साल के बराबर ही होता है'।
 
 
लिंडनर और ब्रायन नोसेक ने लोगों की उम्र को लेकर ख़्वाहिश को भी समझने की कोशिश की। यहां भी लोग मंगल ग्रह की गणना से ही प्रेरित नज़र आए। ज़्यादातर लोग अपनी असल से कम उम्र के महसूस करना चाहते थे। मगर यहां भी उम्र के अलग-अलग पड़ाव पर सोच अलग दिखी।
 
 
जैसे कि 20 साल के 60 प्रतिशत लोग ज़्यादा उम्र के होने का एहसास करना चाहते थे। वहीं 26 साल की आयु वाले 70 फ़ीसद ख़ुद को कम उम्र का महसूस करना चाहते थे। कुछ मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि असल से कम उम्र का एहसास करके इंसान असल में अपनी सुरक्षा करता है। क्योंकि बढ़ती उम्र के साथ कई नेगेटिव चीज़ें होती हैं।
 
 
किस क्षेत्र में कैसी उम्र
जर्मनी की बिएलफेल्ड यूनिवर्सिटी की एना कोर्नाट ने इस बारे में रिसर्च की है। एना बताती हैं कि उम्र का एहसास अलग-अलग क्षेत्रों में अलग तरह का होता है। पेशेवर ज़िंदगी में लोग उम्रदराज महसूस करना चाहते हैं, ताकि उन्हें सीनियर होने के फ़ायदे मिलें। यही बात सेहत और वित्तीय मामलों में भी दिखी।
 
 
वहीं सामाजिक ज़िंदगी में वो कम उम्र का एहसास चाहते हैं। एना ने रिसर्च में ये भी पाया कि जो लोग ख़ुद को अपनी असल उम्र से कम होने का एहसास करते हैं, वो अपने भविष्य को लेकर बेहतर नज़रिया रखते हैं।
 
 
कुल मिलाकर, एना के रिसर्च से साफ़ है कि ख़ुद को जवां महसूस कर के लोग समाज में बुज़ुर्गों को लेकर जो नेगेटिव ख़यालात हैं, उनसे बचाते हैं। कम उम्र का महसूस करने के सेहत को भी फ़ायदे होते हैं। हालांकि, वैज्ञानिक तरक़्क़ी के बावजूद, इस मनोविज्ञान की बारीकियां अभी भी इंसान की पकड़ से दूर हैं।
 
 
लेकिन, शायद वो दिन दूर नहीं, जब हम साइंस की मदद से ख़ुद को और जवां महसूस करेंगे और बढ़ती उम्र की चुनौतियों से लंबे वक़्त तक बचाकर रख सकेंगे। वैसे इन रिसर्च की बुनियाद पर यान्निक स्टीफ़न डॉक्टरों को सलाह देते हैं कि वो मरीज़ों की असल उम्र जानने के बजाय ये पूछें कि वो ख़ुद को कितना जवां या बुज़ुर्ग महसूस करते हैं। इससे डॉक्टरों को लोगों के भविष्य में होने वाली बीमारियों को समझने में मदद मिलेगी।
 
 
अब, आप कितनी भी उम्र के हों, असल बात तो एहसास की है। आप ख़ुद को जवां महसूस करते हैं, तो ज़ाहिर है, वैसा ही बर्ताव करेंगे।
 
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