- दिव्या आर्य (मुजफ्फरनगर से)
मुजफ्फरनगर के एक गांव में एक औरत का कहना है कि सऊदी अरब गए उसके पति ने फोन पर तीन तलाक दे दिया। ये आम घटना तब खास हो गई जब औरत के गांव के लोगों ने इस तरह दिए गए तलाक पर सवाल उठाए और बड़ा विवाद खड़ा हो गया।
उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर के इस मुस्लिम बहुल इलाके से मर्दों का नौकरी के लिए मध्य-पूर्व जाना आम बात है। हाल के दिनों में अनेक स्थानीय लोग शिकायत कर रहे हैं कि मध्य-पूर्व गए कई पुरुषों के फोन पर तलाक देने के मामले सामने आ रहे हैं।
बीबीसी ने जिस मामले की पड़ताल की उसमें पाया कि शायद पहली बार ऐसा हुआ कि फोन पर दिए जाने वाले तलाक को स्थानीय लोगों ने चुनौती दी है। लेकिन ये चुनौती तीन तलाक को नहीं, तलाक दिए जाने के तरीके पर है।
महत्वपूर्ण है कि कॉमन सिविल कोड लागू करने की कोशिश के तहत, हाल में भारत के विधि आयोग ने एक प्रश्नावली जारी की है जिसमें तीन तलाक सहित कई और मुद्दों पर समाज से सवाल पूछे गए हैं।
मुसलमानों का कई मामलों में प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने तीन तलाक की वैधता पर उठ रहे सवालों का विरोध किया है। वहीं कई सामाजिक संस्थाओं और राजनीतिक नेताओं ने इस पर अपने-अपने विचार रखे हैं। इस तरह तीन तलाक के मुद्दे पर भारत में बड़ी बहस हो रही है।
बीबीसी ने फोन पर दिए तीन तलाक के ताजा मामले की पड़ताल में पाया कि बीस साल की अस्मा की पास के गांव में रहने वाले शाहनवाज हुसैन से दो साल पहले शादी हुई थी। एक साल पहले दोनों को एक बेटी हुई। अस्मा के मुताबिक तभी सब कुछ बदल गया।
आंसू पोंछते हुए अस्मा ने आरोप लगाया, 'उन्हें बेटा चाहिए था, पर बेटी हुई तो बहुत परेशान करने लगे। मारपीट भी करते थे, कभी हाथों, कभी लातों से तो कभी लकड़ी से।' अस्मा के मुताबिक अचानक डेढ़ महीना पहले, उसे बिना बताए, उसके पति सऊदी अरब चले गए और वहां से फोन किया और तीन बार तलाक कह दिया।
उनका कहना है कि दो साल की शादी एक झटके में टूट गई। लेकिन पास के गांव में रहने वाला अस्मा के पति का परिवार हर आरोप को गलत बताता है। उनके मुताबिक तलाक की वजह मारपीट नहीं, मियां-बीवी के बीच की अनबन है। अस्मा के जेठ, मोहम्मद शाह नजर के मुताबिक बातें छिपाने के लिए झूठे आरोप लगाए जा रहे हैं।
फोन पर तीन तलाक पर उनकी कोई राय नहीं है। वो कहते हैं, 'हम तो अनपढ़ हैं, हम क्या कहें, मौलवी और पढ़े-लिखे लोग बताएं कि ये सही है या नहीं।' गांव में ये बहस वहां के सरपंच लियाक़त प्रधान ने छेड़ी है और आस्मा उनकी भांजी हैं।
सरपंच के सालों से चली आ रही पुरानी समझ पर सवाल उठाने के बाद गांववालों ने भी अपना रुख बदला है। गांव के बुजुर्ग भी अब फोन पर तलाक को औरत के साथ नाइंसाफी बता रहे हैं। गांव के एक बुजुर्ग मोहम्मद इरफान ने ऐसे तलाक दिए जाने को बिरादरी में फैली एक बुराई तक करार दिया।
उन्होंने कहा, 'ऐसी घटनाओं को रोका नहीं गया तो ये बढ़ती जाएंगी और औरतों के लिए परेशानियां बढ़ेंगी।' उनके मुताबिक ऐसे कई मामले हैं जहां एक आदमी के अपनी पत्नी को फोन पर तलाक देने के बाद भी दूसरे परिवार अपनी बेटी की शादी उससे कर देते हैं क्योंकि वो पैसे वाला है।
मोहम्मद इरफान कहते हैं इससे ऐसे आदमियों को बढ़ावा मिलता है और इसे रोकना जरूरी है। यहां तक कि गांववाले देवबंद के इस्लामी केंद्र तक चले गए, ये मालूम करने के लिए कि मारपीट के आरोपों के बीच फोन पर इस तरह दिया गया तलाक जायज है भी या नहीं। लेकिन देवबंद ने इसे जायज ठहराया।
ये समझना जरूरी है कि सुन्नी मत की चार शाखाओं में से एक, हनफी मत है, जिसे देवबंद मानता है। बाकी तीनों सुन्नी शाखाएं एक बार में जबानी तौर पर तलाक देने को अब जायज नहीं मानती हैं।
भारत की अलग-अलग अदालतों ने भी कई मामलों में एक बार में दिए गए तीन तलाक को गलत करार दिया है। लेकिन जब तक ये जानकारी गांव-गांव तक नहीं पहुंचती, मुसलमान औरतें अपने हक की लड़ाई कैसे लड़ेंगी?