Modis masterplan for Pakistan: भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों सेना प्रमुखों को खुली छूट देकर एक बार फिर अपनी रणनीतिक दृढ़ता का परिचय दिया है। यह कदम 1971 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ को दी गई स्वायत्तता की याद दिलाता है। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि भारत अब पाकिस्तान पर 'निवारक दंड' (deterrent punishment) और 'लागत व परिणाम' (costs and consequences) थोपने की रणनीति पर काम कर रहा है। क्या यह एक सीमित युद्ध की ओर इशारा करता है, जो पाकिस्तान की पहले से ही कमजोर अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर देगा? क्या सोवियत संघ की तरह पाकिस्तान भी टुकड़ों में बंट सकता है? ये सवाल न केवल भारत, बल्कि वैश्विक मंच पर भी चर्चा का केंद्र बन रहे हैं।
पाकिस्तान की आंतरिक अशांति और बगावत की आग : PoK से लेकर बलूचिस्तान तक पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा स्थिति लगातार खराब हुई है। पाकिस्तान की आंतरिक सुरक्षा स्थिति 2024 में और खराब हुई है। खासकर PoK (जिसे पाकिस्तान 'आजाद कश्मीर' कहता है) में जनता का गुस्सा चरम पर है। मई 2024 में, बिजली की कीमतों में वृद्धि और गेहूं के आटे की बढ़ती कीमतों के खिलाफ जम्मू कश्मीर जॉइंट अवामी एक्शन कमेटी (JAAC) के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए। इन प्रदर्शनों में चार लोगों की मौत हो गई, जिसमें एक पुलिस अधिकारी और तीन नागरिक शामिल थे, जबकि 100 से अधिक लोग घायल हुए। प्रदर्शनकारियों ने इसे 'राज्य आतंकवाद' करार दिया और पुलिस कार्रवाई की न्यायिक जांच की मांग की।
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पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) की राजधानी मुजफ्फराबाद में हजारों लोग सड़कों पर उतरे, जिसके कारण व्यवसाय ठप हो गए और स्कूल बंद कर दिए गए। प्रदर्शनकारियों ने बिजली की कीमतों को क्षेत्र में हाइड्रोपावर उत्पादन लागत के आधार पर निर्धारित करने, गेहूं पर सब्सिडी और कुलीन वर्ग के विशेषाधिकारों को समाप्त करने की मांग की। इन प्रदर्शनों ने न केवल आर्थिक शिकायतों को उजागर किया, बल्कि इस्लामाबाद द्वारा क्षेत्र की अर्ध-स्वायत्तता में हस्तक्षेप के खिलाफ गहरे असंतोष को भी सामने लाया। JAAC के नेता शौकत नवाज मीर ने स्थानीय सरकार को 'अक्षम' करार देते हुए कहा कि यह जनता की सेवा में पूरी तरह विफल रही है।
गिलगित-बाल्टिस्तान में लंबे समय से बिजली कटौती, भूमि और खनिजों पर अवैध कब्जे के खिलाफ जनता का गुस्सा सड़कों पर उतर आया है। शिगर जिले में सैकड़ों लोग 'कब्जे पर कब्जा नामंजूर' के नारे लगाते हुए पाकिस्तानी सेना और सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि उनकी जमीन और प्राकृतिक संसाधनों को बिना सहमति के लूटा जा रहा है।
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बलूचिस्तान में तेज हुई स्वतंत्रता की मांग : बलूचिस्तान में भी स्वतंत्रता की मांग तेज हो रही है। बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) और अन्य उग्रवादी समूहों ने 2024 में हमलों की संख्या बढ़ा दी है, जिसमें चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) से जुड़े प्रोजेक्ट्स को निशाना बनाया गया। खैबर पख्तूनख्वा में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) ने अपनी मौजूदगी मजबूत की है, जिसमें सड़कों पर गश्त और समानांतर अदालतें स्थापित करना शामिल है। 2024 में TTP और BLA ने मिलकर 685 सैन्य कर्मियों और 900 से अधिक नागरिकों की हत्या की, जो एक दशक में सबसे खराब सुरक्षा स्थिति को दर्शाता है।
सिंध और कराची में भी असंतोष की आवाजें उठ रही हैं। पंजाब प्रांत में हाल ही में एक कुख्यात अपराधी को पकड़ने के लिए पुलिस और रेंजर्स की भारी तैनाती करनी पड़ी, जो कानून-व्यवस्था की बदहाल स्थिति को उजागर करता है। इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रोविंस (ISKP) और हाफिज गुल बहादुर ग्रुप जैसे उग्रवादी संगठनों ने भी हमलों में वृद्धि की है, जिससे पाकिस्तान की सुरक्षा स्थिति और जटिल हो गई है।
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कर्ज के बोझ तले दबा पाकिस्तान : पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था 2024-25 में गहरे संकट से जूझ रही है। वित्त वर्ष 2024-25 के लिए 18.877 ट्रिलियन रुपए का बजट पेश किया गया, जिसमें 48% प्रत्यक्ष और 35% अप्रत्यक्ष कर वृद्धि शामिल थी। रक्षा क्षेत्र को सबसे बड़ा हिस्सा मिला, जो सैन्य प्रभाव को दर्शाता है। मध्यम वर्ग पर करों का भारी बोझ पड़ा, जबकि अनौपचारिक अर्थव्यवस्था से राजस्व वसूली की समस्या बरकरार रही।
2024 में IMF से 7 बिलियन डॉलर का बेलआउट पैकेज प्राप्त हुआ, जो पाकिस्तान का 25वां IMF कार्यक्रम था। हालांकि, विदेशी मुद्रा भंडार 12 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया और मुद्रास्फीति जनवरी 2025 तक 3% से नीचे आ गई, लेकिन दीर्घकालिक सुधारों की कमी और कर्ज का बढ़ता बोझ चिंता का विषय है। 1999 में 3.06 ट्रिलियन रुपए से शुरू होकर 2022 तक राष्ट्रीय कर्ज 62.5 ट्रिलियन रुपए तक पहुंच गया, जबकि GDP वृद्धि केवल 3% वार्षिक रही। 2025 में GDP वृद्धि 2.5% और मुद्रास्फीति 6% रहने का अनुमान है।
विदेशी निवेश में 20% वृद्धि और रोशन डिजिटल खाते से 9 बिलियन डॉलर का प्रवाह हुआ, लेकिन CPEC जैसे प्रोजेक्ट्स सुरक्षा और कर्ज जोखिमों से जूझ रहे हैं। 2022 के बाढ़ ने 37% आबादी को खाद्य असुरक्षा में डाला, और 1.3 मिलियन लोग अभी भी विस्थापित हैं। बेरोजगारी, गरीबी और अनौपचारिक क्षेत्र की बड़ी हिस्सेदारी (31.6% GDP) आर्थिक सुधारों में बाधा डाल रही है।
मोदी का रणनीतिक दांव : भारत की रणनीति अब केवल कूटनीतिक जवाब तक सीमित नहीं है। तीनों सेनाओं को एकजुट कार्रवाई का निर्देश मिला है, जो एक "सीमित युद्ध" की संभावना को बल देता है। रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह युद्ध पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर सकता है, जैसा कि 1990 में सोवियत संघ के साथ हुआ था। पाकिस्तान की आंतरिक अशांति—बलूचिस्तान, गिलगित-बाल्टिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में बगावत—इस रणनीति को और प्रभावी बना सकती है।
पाकिस्तान की सैन्य तैनाती का बड़ा हिस्सा अफगान सीमा पर TTP और ISKP के खिलाफ केंद्रित है, जिससे भारत के साथ सीमा पर उसकी स्थिति कमजोर हो सकती है। भारत की वायु प्रभुत्व, ड्रोन युद्ध और सैटेलाइट खुफिया जानकारी उसे रणनीतिक बढ़त देती है। इसके अलावा, पाकिस्तान की जल संकट (30-40% कमी) और इंडस नदी पर निर्भरता भारत को अतिरिक्त दबाव बनाने का मौका देती है।
क्या टूटेगा पाकिस्तान? : पाकिस्तान की क्षेत्रीय अखंडता खतरे में है। बलूचिस्तान में separatist आंदोलन, गिलगित-बाल्टिस्तान में असंतोष, और खैबर पख्तूनख्वा में TTP की समानांतर शासन व्यवस्था ने देश को अस्थिर कर दिया है। अगर भारत ने इस अशांति का रणनीतिक उपयोग किया, तो पाकिस्तान के पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान, गिलगित-बाल्टिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में विभाजन की संभावना बढ़ सकती है। चीन के साथ CPEC पर बढ़ते तनाव, विशेष रूप से बलूचिस्तान में हमलों के बाद, पाकिस्तान की स्थिति को और कमजोर कर रहे हैं। अगर पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और सुरक्षा स्थिति और बिगड़ती है, तो यह देश के लिए एक 'एंडगेम' साबित हो सकता है।
पाकिस्तान की आंतरिक अशांति, बढ़ता उग्रवाद और आर्थिक संकट ने उसे एक कमजोर स्थिति में ला खड़ा किया है। भारत की आक्रामक रणनीति और क्षेत्रीय अस्थिरता का लाभ उठाने की क्षमता इस स्थिति को और गंभीर बना सकती है। क्या मोदी का यह मास्टरप्लान पाकिस्तान को टुकड़ों में बांट देगा? अगले कुछ महीने इस सवाल का जवाब दे सकते हैं। हालांकि, यह ध्यान रखना जरूरी है कि युद्ध और अस्थिरता के परिणाम दोनों देशों के लिए गंभीर हो सकते हैं।