विनीत खरे, बीबीसी संवाददाता, दिल्ली
एक वायरल वीडियो में पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने कहा, "मैं क़ौम से ये भी अपील करूंगा कि हम चाय की एक-एक प्याली, दो-दो प्यालियां कम कर दें, क्योंकि हम जो चाय आयात करते हैं वो भी उधार लेकर आयात करते हैं।" एहसन इक़बाल के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया हुई है।
रेहम खान ने ट्विटर पर लिखा, "पहले रोटी आधी, अब चाय भी कम कर दें? चाय पे कोई मज़ाक नहीं है जी।"
Pehle roti adhi Ub chai bhi kum ker dein? Chai ☕️ pey koi mazak nhi hei jee https://t.co/SnHwFHUCUY
— Reham Khan (@RehamKhan1) June 14, 2022
गुलज़ार दोस्त बलोच नाम के एक ट्विटर हैंडल ने आधे कप की चाय की फ़ोटो के साथ लिखा, ये आधा कप आपके लिए।
इस बयान से नाराज़ पाकिस्तानी पत्रकार मायिद अली का कहना था, "ये आम आदमी के साथ मज़ाक है। अगर ये कहा जाए कि आप चाय की प्याली कम कर लें, यहां चाय नसीब किसको हो रही है? यहां पेट्रोल और दूसरी कीमतों की वजह से लोगों का बुरा हाल है। उन्होंने जो कहा है वो शर्मनाक है। ये नेता उतने ही दूर हैं अपने लोगों से जितना हम जानते हैं, हम दूर हैं।"
पाकिस्तान के आर्थिक हालात क्यों हैं ख़राब?
- पाकिस्तान पिछले काफ़ी समय से बुरे आर्थिक संकट से गुज़र रहा है।
- पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा कोष बीती जुलाई में 16 अरब डॉलर था जो इस साल जून के पहले हफ़्ते में घटकर 10 अरब डॉलर रह गया है।
- पाकिस्तान लंबे समय से आईएमएफ़ से कर्ज़ लेने की कोशिश कर रहा है।
- कर्ज़ देने से पहले आईएमएफ़ ने पाकिस्तान सरकार से कठोर नीतिगत क़दम उठाने की मांग की है जिनमें ईंधन पर सरकारी सब्सिडी ख़त्म करना शामिल है।
एहसन इक़बाल ने दिया जवाब
अपने बया की तीखी आलोचना के बीच एहसन इक़बाल ने ट्विटर पर एक स्क्रीनशॉट शेयर किया जिसके मुताबिक़ पाकिस्तान ने साल 2020 में करीब 590 मिलियन डॉलर की चाय आयात की। इस सूची में पाकिस्तान का नाम सबसे ऊपर था।
— Ahsan Iqbal (@betterpakistan) June 15, 2022
इससे पहले पाकिस्तान ने विदेशी मुद्रा बचाने के लिए लग्ज़री सामान के आयात पर रोक लगाई थी।
साल 2020 में इमरान खान के दौर में भी उनकी पार्टी के सदस्य रियाज़ फातियाना ने लोगों से दाम बढ़ने पर चीनी और ब्रेड की ख़रीद कम करने को कहा था।
चाय का सबसे बड़ा आयातक - पाकिस्तान
पाकिस्तान दुनिया भर में चाय का सबसे बड़ा आयातक देश है। पाकिस्तान टी एसोसिएशन के प्रमुख जावेद इक़बाल पराचा के मुताबिक़, पाकिस्तान हर साल 23-24 करोड़ किलो चाय आयात करता है जिस पर पाकिस्तान का सालाना आयात बिल क़रीब 450 मिलियन डॉलर है। वो कहते हैं, "पाकिस्तान के लोगों के लिए चाय लाइफ़लाइन की तरह है।"
केंद्रीय मंत्री एहसन इक़बाल का बयान ऐसे वक्त पर आया है जब पाकिस्तान मुश्किल आर्थिक हालातों का सामना कर रहा है और, वहां खाने-पीने के सामान और दूसरी चीज़ों के दाम बढ़ने से आम लोगों की तकलीफ़ें बढ़ीं हैं।
फ़रवरी में पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार 16 अरब डॉलर था जो जून के पहले हफ़्ते में घटकर 10 अरब डॉलर पहुंच गया है। ये राशि मात्र दो महीने के आयात बिल को चुका पाएगी।
लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की तरफ़ देख रहा है। पाकिस्तान में तेल पर सब्सिडी घटाने के लिए कुछ ही दिनों में तीन बार तेल के दाम बढ़ाए गए हैं।
26 मई से अभी तक वहां पेट्रोल के दाम में 84 पाकिस्तानी रुपये की वृद्धि की जा चुकी है।
चाय और अर्थव्यवस्था
पाकिस्तान टी एसोसिएशन के प्रमुख जावेद इक़बाल पराचा केंद्रीय मंत्री एहसन इक़बाल के वक्तव्य को राजनैतिक बताते हैं, और उनके मुताबिक़ पाकिस्तान में चाय की ख़पत को घटाना संभव नहीं है।
वो कहते हैं, "हमारे यहां चाय फूड आइटम है। ये बेवरेज (पीने वाली चीज़) नहीं है, ये भोग-विलास का सामान नहीं है। गरीब आदमी एक कप चाय और रोटी से खाना खाता है।"
पाकिस्तान में कई सालों से पर कैपिटा चाय की सालाना खपत एक किलो पर स्थिर है लेकिन हर साल ढाई से तीन फ़ीसदी जनसंख्या बढ़ने से चाय की खपत भी बढ़ी है।
पाकिस्तान में चाय की सालाना पैदावार 10 टन है और मात्र 50 हेक्टेयर में इसकी खेती की जाती है। इस वजह से पाकिस्तान को ज़्यादातर चाय आयात करनी पड़ती है।
पाकिस्तान में ज़्यादातर आयातित चाय कीनिया, तंजानिया, युगांडा, और बुरुंडी जैसे पूर्वी अफ्रीकी देशों से आती है। इन देशों से चाय खरीदने के कम दाम के अलावा यहां से चाय आयात करने की एक और वजह है।
जावेद इक़बाल पराचा कहते हैं, "वहां की चाय बनाते वक़्त कम ख़र्च होती है, जो पाकिस्तानी उपभोक्ताओं को अच्छा लगता है। जैसे छह लोगों के लिए चार टी-स्पून चाय काफ़ी है। अगर आप किसी और इलाके में उगाई गई चाय का इस्तेमाल करेंगे तो चाय का दोगुना इस्तेमाल करना पड़ेगा। (पूर्वी अफ़्रीकी देशों में उगाई गई) चाय कम ख़र्च होती है।"
आप चाय कम ख़र्च करके पैसे बचा सकते हैं लेकिन पाकिस्तान में महंगाई ने चाय को भी नहीं छोड़ा है।
वहां एक किलो चाय की कीमत 850 पाकिस्तानी रुपये है। जावेद इक़बाल पराचा के मुताबिक़, क़रीब चार महीने पहले कीमत 100 रुपये कम थी।
पाकिस्तान का आर्थिक संकट
ऐसे में कम चाय पीने को लेकर मंत्री एहसन इक़बाल का बयान क्या ये संकेत नहीं देता कि पाकिस्तान की आर्थिक दशा कैसी है और उसके लिए आईएमएफ़ की मदद कितनी महत्वपूर्ण है?
पाकिस्तानी अर्थशास्त्री परवेज़ ताहिर मानते हैं कि एहसन इक़बाल को ये बयान नहीं देना चाहिए था।
वे कहते हैं, "इस वक़्त हालात ये हैं कि आपको आईएमएफ़ की हर बात माननी पड़ेगी। आपके पास कोई चारा नहीं है। मेरे जैसे व्यक्ति जिसने कभी भी आईएमएफ़ का समर्थन नहीं किया, अभी कह रहा है कि ये (आईएमएफ़) जो कह रहे हैं वो करना है। क्योंकि फिस्कल डेफिसिट की बात नहीं है, करेंट अकाउंट डेफिसिट की भी बात है। हमें दुनिया को 16-17 अरब वापस करना है, वो कर्ज़ा लेकर ही वापस करना है।"
पाकिस्तान में फ़ेडरल बोर्ड ऑफ़ रेवेन्यू के पूर्व प्रमुख सैयद शब्बार ज़ैदी के मुताबिक़ वो "एहसन इक़बाल को गंभीरता से नहीं लेते, हम इस सरकार को गंभीरता से नहीं लेते।"
पीटीआई प्रमुख इमरान ख़ान की सरकार के बहुमत खो देने के बाद शाहबाज़ शरीफ़ के नेतृत्व में विभिन्न पार्टियों के समर्थन से बनी सरकार देश में शासन कर रही है।
सैयद शब्बार ज़ैदी कहते हैं, "हमारी पहली प्राथमिकता अपने आयात के 70 अरब डॉलर के ख़र्च को 65 अरब डॉलर तक नीचे लाना क्योंकि हम 70 अरब डॉलर का आयात ख़र्च बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। हमें एक-एक डॉलर बचाना है "
शब्बार ज़ैदी के मुताबिक़, "पाकिस्तान का मसला है कि यहां लोग मज़े की ज़िंदगी बिता रहे हैं।"
वो कहते हैं, "आप लोगों को गलतफ़हमी है कि पाकिस्तान में ज़िंदगी ख़राब है। मैंने मुंबई, दिल्ली आगरा देखा है। मेरे पिता आगरा से माइग्रेट करके पाकिस्तान गए थे। हम भारत को बहुत अच्छी तरह जानते हैं। पाकिस्तान में मिडिल क्लास बहुत कंफ़र्टेबल है।"
पाकिस्तानी अर्थशास्त्री परवेज़ ताहिर बताते हैं कि ऐसे वक्त जब पाकिस्तान की कमाई का 80 प्रतिशत कर्ज़ चुकाने में चला जाता है, इसके बावजूद पाकिस्तान डिफ़ॉल्ट नहीं करेगा।
हाल ही में पाकिस्तान के वित्त मंत्री मिफ़्ता इस्माइल ने कहा था कि अगर तेल को बढ़ाने जैसे मुश्किल कदम नहीं लिए गए होते तो पाकिस्तान की स्थिति श्रीलंका जैसी होती।
परवेज़ ताहिर कहते हैं, "पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के आउटपुट में आयात का बहुत बड़ा रोल है, और आयात निर्यात से ज़्यादा तेज़ी से बढ़ता है। पाकिस्तान जब 4-5 प्रतिशत की ग्रोथ से ऊपर जाने की कोशिश करते हैं तो बैलेंस ऑफ़ पेमेंट की समस्या पैदा हो जाती है। इसका मतलब मुल्क में वैल्यू चेन नहीं है।"
FATF फ़ैसले का पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर असर
इधर बर्लिन में जारी फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स या एफ़एटीएफ़ की बैठक 17 जून तक चलने वाली है और पाकिस्तानी मीडिया में कयास लग रहे हैं कि पाकिस्तान टास्क फोर्स की ग्रे लिस्ट से बाहर जा सकता है।
एफ़एटीएफ़ एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है जो मनी लॉन्डरिंग और आतंकवाद को आर्थिक रूप से सुलभ बनाने जैसे ख़तरों से निपटने का काम करती है।
पाकिस्तान साल 2018 से एफ़एटीएफ़ की ग्रे लिस्ट में है और माना जाता है कि इस सूची में रहने से देश में निवेश या आर्थिक गतिविधियों पर असर पड़ता है।
सैयद शब्बार ज़ैदी को उम्मीद है कि पाकिस्तान इस सूची से बाहर निकल जाएगा "क्योंकि हमसे जो कुछ भी कहा गया था, वो हमने कर दिया है।"
अर्थशास्त्री परवेज़ ताहिर की मानें तो एफ़एटीएफ़ का फ़ैसला और आईएमएफ़ का पाकिस्तान की ओर रुख़ आपस में जुड़े हुए हैं।
वो कहते हैं कि अगर पाकिस्तान एफ़एटीएफ़ की ग्रे लस्ट से बाहर जाता है तो ये आईएमएफ़ के लिए इशारा होगा कि पाकिस्तान को ऋण देने जैसे कदमों के साथ आगे बढ़ा जा सकता है।
लेकिन अगर पाकिस्तान इस लिस्ट में बना रहता है तो ये पाकिस्तान के लिए "बहुत मसला होगा"।