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Written By BBC Hindi
Last Modified: मंगलवार, 14 जून 2022 (08:06 IST)

किसान आंदोलन से एक आम लड़की के ख़ास बनने की कहानी

किसान आंदोलन से एक आम लड़की के ख़ास बनने की कहानी - story of common girl to become special from farmer protest
दलीप सिंह, बीबीसी पंजाबी
"उस रात जब मैंने उन्हें देखा तो मैं बहुत रोई, क्योंकि मुझे नहीं पता कि उनसे कब मिलना है, मिलना भी है या नहीं।" भारत की राजधानी दिल्ली के नरेला की रहने वाली स्मृति आर्या की आंखों से यह कहते ही आंसू छलक पड़े। केंद्र सरकार की ओर से कृषि क़ानूनों को वापस लिए जाने के बाद किसानों को दिल्ली की सीमाओं से गए हुए छह महीने हो चुके हैं।
 
दिल्ली में किसान आंदोलन में हिस्सा लेने वाली स्मृति किसानों के बीच 'लाडो रानी' के नाम से जानी जाने लगी थीं। हालांकि स्मृति पहले की तरह किसानों से नहीं मिल पातीं, फिर भी वह उनसे संपर्क में रहती हैं, जिनसे वो मिला करती थीं।
 
जब केंद्र सरकार ने तीनों कृषि क़ानूनों को वापस लेने की घोषणा की तो दिल्ली की सीमाओं पर डटे किसान एक साल बाद अपने घरों को जाने लगे।
 
सिंघु बॉर्डर पर पर किसान आंदोलन का हिस्सा रहीं स्मृति से जब बीबीसी पंजाबी ने बात की तो उसके बाद किसान आंदोलन से बाहर के लोग उन्हें 'लाडो रानी' के रूप में जानने लगे।
 
दिसंबर 2021 में बीबीसी पंजाबी के साथ उनके पहले साक्षात्कार के बाद सोशल मीडिया के माध्यम से उनके प्रशंसकों का दायरा बढ़ गया।
 
ऐसे मिला किसानों के साथ नरेला का परिवार
स्मृति की मां समीक्षा हॉकी खेल चुकी हैं और पिता राजिंदर आर्य क्रिकेट के शौकीन हैं। दोनों ने नरेला में एक कपड़े की दुकान खोली लेकिन कुछ समय बाद कोरोना वायरस लॉकडाउन के कारण काम ठप हो गया और दुकान को बंद करना पड़ा।
 
26 जनवरी 2021 को बाद जब प्रदर्शनकारी किसानों की ट्रैक्टर रैली हुई उसके बाद से यह परिवार सिंघु बॉर्डर जाने लगे। उसी दिन कई किसान ट्रैक्टर लेकर तय रूट से इतर दिल्ली के लाल किले पर पहुँच गए। इसके बाद किसानों के आंदोलन को लेकर सवाल भी खड़े किए जाने लगे।
 
गाज़ीपुर बॉर्डर पर बैठे किसान नेता राकेश टिकैत के आंसुओं का ऐसा असर हुआ कि ये परिवार भी किसानों के साथ खड़ा हो गया।
 
अमरीक सिंह मोहाली के चिल्ला गाँव के रहने वाले हैं। सिंघु बॉर्डर पर वह अपने कुछ गाँव वालों और सहयोगियों के साथ कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ आंदोलन में भाग ले रहे थे।
 
बीबीसी पत्रकार अरविंद छाबड़ा से बात करते हुए अमरीक सिंह उस समय को याद करते हैं, जब स्मृति और उनके माता-पिता सिंघु बॉर्डर पर आए थे।
 
वे कहते हैं, ''वे कहने लगे कि हमे लंगर में सेवा करनी है। हमने कहा कि सेवा करिए, जैसे दूसरे लोग सेवा करते हैं, वैसे आप भी कीजिए सेवा। उस वक़्त हालात जो भी हों, परिवार कई किलोमीटर का सफर रोज़ तय करता और रोज़ाना सिंघु बॉर्डर पर आने लगा। हमारा भाई-बहनों जैसा प्यार हो गया।"
 
जब लाल किले की घटना हुई तो किसान आंदोलन का भी विरोध हुआ। अमरीक सिंह का कहना है कि इस समय हमें बाहरी लोगों से ज्यादा सावधान रहने को कहा गया था।
 
वे कहते हैं, ''हमें बताया गया था कि अगर आपके लंगर में किसी भी तरह की गड़बड़ी हुई तो इसके लिए आप ज़िम्मेदार होंगे। हमें अजनबियों से दूर रहने का आग्रह किया गया था। हमने अपने लोगों से कहा कि नए लोगों पर नज़र रखें।"
 
अमरीक सिंह के परिवार से खास रिश्ता
अमरीक सिंह के परिवार से स्मृति और उनके परिवार का ख़ास रिश्ता है। वह अक्सर पंजाब के मोहाली ज़िले में अमरीक सिंह के गाँव चिल्ला जाती हैं। अमरीक सिंह के बेटे और बेटी के साथ स्मृति का भाई-बहन का रिश्ता बन गया है।
 
स्मृति और उनका परिवार अक्सर वीडियो कॉल या फ़ोन कॉल के ज़रिए अमरीक सिंह के परिवार से बातचीत करता है। स्मृति का कहना है कि उनका अपना छोटा भाई तो है लेकिन उसके अलावा भी उनके आंदोलन के दौरान कई भाई बन चुके हैं।
 
उनका कहना है कि न्यूजीलैंड में रहने वाले एक युवक मनप्रीत रंधावा ने कहा कि वह स्मृति की तरह ही अपनी बेटी की परवरिश करना चाहते हैं।
 
कनाडा में रहने वाले दपिंदर सिद्धू के बारे में बात करते हुए स्मृति कहती हैं, ''उनकी कोई बहन नहीं है और वह उन्हें गुड्डी (गुड़िया) कहते हैं।''
 
पंजाबियों ने किया गर्मजोशी से स्वागत
स्मृति और उनके माता-पिता का कहना है कि जब किसान आंदोलन स्थगित कर दिया गया और किसान लौटने लगे तो वे भी पंजाब के लिए रवाना हो गए।
 
उसके बाद उनका पंजाब के कई हिस्सों में जाना हुआ। स्मृति और उनके परिवार का लोगों ने इतना गर्मजोशी से स्वागत किया कि वे इसे कभी नहीं भूल पाएंगे।
 
स्मृति कहती हैं, "जो मैंने कभी नहीं सोचा था वो हो गया, लोगों ने हम पर फूल बरसाए, भांगड़ा डाला। ऐसा स्वागत देख हम दंग रह गए।"
 
न्यूजीलैंड के जतिंदर सिंह भी सिंघु बॉर्डर पर संघर्ष का हिस्सा थे। जहाँ स्मृति और उनका परिवार लंगर परोसता था, वहाँ घास लगाई गई थी और यह घास खुद जतिंदर ने लगाई थी। स्मृति के घर के गमले में भी यह घास है जिसे सिंघु बॉर्डर पर लगाई गई थी।
 
स्मृति ने वही घास संघर्ष के स्मृति चिह्न के रूप में सतिंदर के न्यूज़ीलैंड लौटते समय गमले में लगाकर दी है। स्मृति कहती हैं, ''हमने उस जगह पर वक़्त बिताया, बातें साझी कीं। जब मैंने यह घास वीरे (भाई) को दी तो सभी भावुक हो गए।''
 
सिंघु बॉर्डर पर जाकर देश-विदेश में बैठे लोगों से जुड़ती हैं स्मृति
आंदोलन के चलते एक साल तक सिंघु बॉर्डर बंद रहा। किसान चले गए तो रास्ता खुल गया। वर्तमान समय में यह अनुमान लगाना कठिन है कि यह वही सीमा है, जहाँ बड़ी संख्या में किसान बैठे थे और यह आंदोलन ऐतिहासिक था। स्मृति अक्सर उसी जगह जाती हैं, जहाँ वह अपनी मां समीक्षा के साथ लंगर में सेवा करती थीं।
 
स्मृति इंस्टाग्राम के ज़रिए लाइव होकर भारत और भारत के बाहर के लोगों से जुड़ती हैं। यहाँ आए कई लोग लाइव वीडियो के माध्यम से उन जगहों को देखने की कोशिश करते हैं, जहाँ आंदोलन के दौरान वो रहे।
 
जब स्मृति की शादी को लेकर हुई थी बहस
बातचीत के दौरान स्मृति और उनका परिवार उनकी शादी की बात का ज़िक्र कर हँसता है। स्मृति का कहना है कि उनकी शादी की चर्चा लगभग रोज़ ही होती थी। ज़ोर-ज़ोर से हँसते हुए वह कहती हैं, लंगर में सेवा कर रही कुछ महिलाएं आपस में झगड़ने लगीं। इसका कारण यह था कि उनका आपस में इस बात को लेकर विवाद था कि स्मृति से किसके बेटे की शादी होगी। हालांकि स्मृति अभी अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहती हैं।
 
दिल्ली वालों के लिए स्मृति और पंजाब-हरियाणा की 'लाडो रानी'
परिवार जब सिंघु बॉर्डर पर जाने लगा तो दिल्ली में उनके परिचितों ने इसका कड़ा विरोध किया। परिवार का कहना है कि लोग कहते रहे कि तुम टाइम पास करने जाते हो।
 
लेकिन लोगों का नज़रिया तब बदल गया जब बीबीसी पंजाबी से बातचीत के बाद स्मृति और उनका परिवार दुनिया के सामने आया।
 
स्मृति कहती हैं, "जब बीबीसी पंजाबी पर मेरा इंटरव्यू आया तो लोगों का रवैया अचानक से बदल गया। पहले जो दोस्त मेरा मज़ाक उड़ाते थे, आकर लंगर और आंदोलन के बारे में पूछते थे कि वे किस तरह के लोग हैं, वहाँ क्या होता है, आदि।"
 
पंजाब के लोग जो स्मृति को जानते हैं, उन्हें उनके असली नाम से ज्यादा लाडो रानी कहते हैं। वह कहती हैं, "दिल्ली में मेरे पड़ोसियों के लिए यह कोई मायने नहीं रखता, उनके लिए मैं स्मृति हूँ और पंजाब और हरियाणा के लोगों के लिए मैं लाडो रानी हूँ।"
 
'मैं लिख कर दे सकती हूँ कि पंजाब के लोग मुझे नहीं भूलेंगे'
स्मृति अब उच्च शिक्षा के लिए कनाडा जाने की तैयारी कर रही है। यह पूछे जाने पर कि क्या वह वहाँ जाकर किसान परिवारों से संपर्क कर पाएंगी। वह जवाब देती है, "यह मेरी गारंटी है और मैं लिखित में देने के लिए तैयार हूं कि पंजाब के लोग मुझे नहीं भूल सकते।"
 
अंत में, वह आंदोलन के दौरान दिल्ली वासियों के लिए बनाए गए एक गीत के बोल दोहराती हैं। कई दिल्लीवालयां दा लगणा नहीं दिल, करोगे याद दिलदार आए सी, मुड़ांगे पंजाब जदों जित्त के मैदान, दिल्ली राजधानी दस्सू सरदार आए सी
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