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Last Modified: शुक्रवार, 26 अक्टूबर 2018 (18:22 IST)

क़र्ज़ में डूबा पाकिस्तान अंतरिक्ष में क्या दे पाएगा भारत को टक्कर?

suparco | क़र्ज़ में डूबा पाकिस्तान अंतरिक्ष में क्या दे पाएगा भारत को टक्कर?
- विकास त्रिवेदी
 
'2022 में पहला पाकिस्तानी अंतरिक्ष जाएगा।' '2022 में इसरो भी किसी भारतीय को अपनी तकनीक से अंतरिक्ष भेजेगा।' 70 दिनों के भीतर अपनी आज़ादी की 75वीं सालगिरह के लिए भारत और पाकिस्तान की सरकारों ने अपने-अपने देशवासियों को ये सपने दिखाए हैं।
 
 
पाकिस्तान के सूचना प्रसारण मंत्री फ़वाद चौधरी ने कहा, ''2022 में पहला पाकिस्तानी अंतरिक्ष जाएगा। चीन की सरकारी एजेंसी चाइना मेरीटाइम सेफ्टी एडमिनिस्ट्रेशन (CMSA) और पाकिस्तान की स्पेस एजेंसी सुपार्को SUPARCO का आपस में समझौता हुआ है। ये स्पेस प्रोग्राम और विज्ञान तकनीक की कामयाबी है।''
 
 
इससे पहले पीएम मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले से ऐलान किया था, ''2022 में आज़ादी के जब 75 साल होंगे, तब या हो सके तो उससे पहले भारत का कोई बेटा या बेटी अंतरिक्ष में जाएगा। हाथ में तिरंगा झंडा लेकर जाएंगे। आज़ादी के 75 साल होने से पहले ये सपना पूरा करना है। अब हम मानव सहित गगनयान लेकर चलेंगे। ये गगनयान जब कोई हिंदुस्तानी लेकर जाएगा, तब विश्व में चौथे देश बन जाएंगे जो मानव को अंतरिक्ष में पहुंचाने वाले बन जाएंगे।'' ये काम इससे पहले सोवियत यूनियन, अमरीका और चीन ने किया है।
 
 
पाकिस्तान के अंतरिक्ष जाने की योजना को 25 अक्टूबर को पीएम इमरान ख़ान की कैबिनेट ने मंज़ूरी दे दी है। पाकिस्तान की चीन से दोस्ती किसी से छिपी नहीं है। इस अंतरिक्ष कार्यक्रम में भी पाकिस्तान की मदद चीन करेगा। ये ऐलान ऐसे वक़्त पर हुआ है, जब इमरान ख़ान तीन नवंबर को चीन के दौरे पर जा रहे हैं।
 
 
ऐसे में ज़मीनी सरहदों पर अकसर कड़वाहट साझा करने वाले भारत-पाकिस्तान के लिए 2022 अहम साल होने वाला है। ख़ासतौर पर तब जब अंतरिक्ष कार्यक्रम में भारत की हालत पाकिस्तान से बेहतर मानी जाती है और पाक की आर्थिक हालत खस्ता है।
 
 
पाकिस्तान की मौजूदा आर्थिक स्थिति कैसी है?
ऐसे वक़्त में जब पाकिस्तान आर्थिक तंगहाली से गुज़र रहा है, तब पाक का अंतरिक्ष कार्यक्रम 2022 में कैसे मुमकिन है? 
 
पहले बात पाकिस्तान की मौजूदा आर्थिक स्थिति की।
 
*पाकिस्तानी रुपया क़रीब 30 फ़ीसदी नीचे गिरा
*पाकिस्तान को डिफॉल्ट होने से बचने के लिए 1200 करोड़ डॉलर की ज़रूरत
*चीन पर पाकिस्तान की काफी ज़्यादा निर्भरता
*आयात बिलों का भुगतान करने में पाकिस्तान सक्षम नहीं
*टैक्स कलेक्शन जीडीपी का लगभग 10 फ़ीसदी
*सरकारी परियोजनाओं के लिए रुपये की कमी
*विदेशी मुद्रा भंडार का खाली होना
*2019 में पाकिस्तान को क़रीब 25 अरब डॉलर की होगी ज़रूरत
*ब्लूमबर्ग के मुताब़िक, पाकिस्तान पर विदेशी क़र्ज़ 91.8 अरब डॉलर
*क़रीब 12 लाख पाकिस्तानी ही फाइल करते हैं टैक्स रिटर्न, इनमें 5 लाख लोग भरते हैं ज़ीरो टैक्स
 
 
पाकिस्तान की आर्थिक हालत का अंदाज़ा इस बात से लगाइए कि प्रधानमंत्री इमरान ख़ान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और सऊदी अरब से मदद मांग चुके हैं।
 
 
माना ये भी जा रहा है कि इस संकट से निकलने के लिए पाकिस्तान जल्द कुछ अहम कटौतियां कर सकते हैं। ऐसे में पाकिस्तान की प्राथमिकता में क़र्ज़ से निपटने के बजाय अंतरिक्ष कार्यक्रम कैसे आ गया और क्या पाकिस्तान इस सपने को पूरा कर भी पाएगा?
 
 
पाकिस्तान अंतरिक्ष में कैसे करेगा भारत से मुक़ाबला?
भारत में साल 2017-18 में इसरो का बजट क़रीब 9 हज़ार करोड़ रुपये रहा। रॉयटर्स के मुताबिक़, 2022 मिशन में सौ अरब से कम रुपये खर्च होंगे। डॉन न्यूज़ की रिपोर्ट के मुताबिक़, पाकिस्तान की स्पेस एजेंसी सुपार्को का 2018-19 का कुल बजट 4.7 अरब पाकिस्तानी रुपये है।
 
 
भारत अब न सिर्फ़ खुद के बल्कि दूसरे मुल्क़ों की सेटलाइट भी अंतरिक्ष तक लेकर जाता है। फरवरी 2017 में भारत ने एक साथ 104 उपग्रह अंतरिक्ष में छोड़े थे। साल 2017 में ही इसरो ने एक संचार सैटलाइट GSAT-9 छोड़ा था।
 
 
ये सैटेलाइट भारत और पड़ोसी देशों के लिए थी। इस सैटलाइट के आपदा के मौक़ों पर संचार में अहम होने की बात कही गई लेकिन पाकिस्तान ने इसका हिस्सा होने से इनकार कर दिया था।
 
 
अंतरिक्ष कार्यक्रम: पाकिस्तानी जानकारों ने क्या कहा?
पाकिस्तान के अंतरिक्ष कार्यक्रम पर हमने इस्लामाबाद की क़ायदे-ए-आज़म यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले जाने-माने न्यूक्लियर साइंटिस्ट परवेज़ हुदभाई और इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस टेक्नॉलजी के प्रोफ़ेसर फज़ील महमूद से बात की।
 
 
2022 में पाकिस्तान के अंतरिक्ष कार्यक्रम की बात पर परवेज़ हुदभाई हँसते हुए कहते हैं, ''ऐसा कर रहे हैं तो बहुत अच्छी बात है। अगर पहले पाकिस्तानी को अंतरिक्ष भेजे जाने की बात की जा रही है तो ये मुमकिन है। आप ये देखें कि अंतरिक्ष में जो पहला शख़्स अरब दुनिया से भेजा गया था, उसका कोई अपना कमाल तो नहीं था। ठीक वैसे ही पाकिस्तान से कोई भेजा जा सकता है। ये शौक़ अचानक क्यों हुआ, इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल है। लेकिन इससे कोई तरक़्क़ी ज़ाहिर नहीं होती है।''
 
 
मगर प्रोफ़ेसर फज़ील महमूद, परवेज़ हदुभाई से इत्तेफाक नहीं रखते हैं।
 
 
प्रोफ़ेसर फज़ील कहते हैं, ''पाकिस्तान ने अंतरिक्ष में पैर बढ़ाने शुरू कर दिए हैं। पाकिस्तान की दो सैटलाइट पहले से ही अंतरिक्ष में हैं। विज्ञान में निवेश मुल्क की दिक्कतों से निकलने का बेहतर तरीका हो सकता है। इससे आपको लंबे वक़्त के लिए समाधान मिलते हैं। दूसरे देशों पर निर्भरता भी कम होती है। विज्ञान में निवेश करने से मुझे नहीं लगता कि कोई दिक्कत होगी। विज्ञान हमेशा एक अच्छा निवेश है।''
 
क़र्ज़ से छुटकारा पाने की कोशिशों के बीच अंतरिक्ष कार्यक्रम के फ़ैसले पर परवेज़ हदुभाई ने कहा, ''ये महज़ शो बाजी हो सकती है। किसी एक शख़्स को भेजने से क्या हासिल होगा। पहले तो बंदरों को भी भेजा जाता था। मुल्क के जो मौजूदा हालात हैं, उसमें ये अच्छा नहीं रहेगा कि पाकिस्तान ऐसा कोई ख़र्च उठाए। ये शो बाजी के अलावा और कुछ नहीं है। मुल्क में अभी ऐसी बहुत सी चीज़ें हैं, जिन पर रुपये खर्च करने की ज़रूरत है। ऐसे में सिर्फ़ दिखावे के लिए ऐसा करना अफसोस की बात है। अगर आप किसी दूसरे मुल्क की मदद से अंतरिक्ष जा रहे हैं तो इससे कोई हासिल नहीं होगा।''
 
 
लेकिन प्रोफ़ेसर फज़ील चीन से मदद लेने की बात को सही ठहराते हैं।
 
 
वो कहते हैं, ''अभी जो अंतरिक्ष कार्यक्रम की बात हो रही है वो एकदम शुरुआती चरण में है। दोनों देश मिलकर काम कर रहे हैं। आने वाले वक़्त में चीज़ें बेहतर पता चल पाएंगी। अगर आप अभी तक की पाकिस्तानी अंतरिक्ष उपलब्धियों की बात करें तो ये शुरुआती स्तर पर है। चीन इस मामले में अनुभवी है तो इस पूरे कार्यक्रम में काफी कुछ सीखा जा सकता है।''

 
आख़िर वो वजह क्या है कि पाकिस्तान रक्षा क्षेत्र में तो आगे है लेकिन स्पेस कार्यक्रमों में नहीं।
 
 
परवेज़ हुदभाई इसकी वजह बताते हैं, ''अभी पाकिस्तान ने ऐसा कोई रॉकेट नहीं छोड़ा है जो ज़मीन के इर्द-गिर्द गर्दिश करता हो। पाकिस्तान की स्पेस तकनीक में शुरुआत ही है। वक़्त के साथ हर मुल्क इसमें अपना मुकाम हासिल कर लेगा। लेकिन अभी पाकिस्तान इस मामले में काफी पीछे है। भारत से पहले शुरू करने के बाद भी पाकिस्तान का स्पेस प्रोग्राम नाकाम रहा है। मेरी समझ में जिस तरह के लोग भर्ती किए गए। वो तकनीक के बारे में जानते नहीं हैं। बिना मज़बूत बैकग्राउंड के लोगों के अब तक काम हुआ है। डिफेंस के मामले में पाकिस्तान ने तरह तरह की चीज़ें की हैं। लेकिन मिसाइल और रॉकेट अलग चीज़ें हैं। अभी पाकिस्तान चीन पर भरोसा कर रहा है।''
 
 
अगर पाकिस्तान की भारत से तुलना की जाए तो...
अगर पाकिस्तानी सरकार अपने वादे पर खरी उतरती है तो पहला पाकिस्तानी नागरिक अंतरिक्ष में 2022 में जा सकेगा। लेकिन भारत ये कारनामा 1984 में राकेश शर्मा को भेजकर कर चुका है।
 
 
प्रोफ़ेसर फज़ील कहते हैं, ''पाकिस्तान ने जिस विचार के साथ अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत की थी, उस पर कायम नहीं रह सका। लेकिन भारत ने काम लगातार जारी रखा। अपने वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करते रहे। आप देखिए कि 1970 के दौर में शुरू हुआ इसरो लेकिन साल 2010 के क़रीब लोगों ने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को पहचान मिली। 30-40 साल की मेहनत के बाद भारत को नतीजा मिला।''
 
 
परवेज़ हुदभाई ने कहा, ''अगर भारत अपनी तकनीक से 2022 में भारतीय को अंतरिक्ष भेज रहा है तो ये अच्छी बात है। लेकिन भारत को भी ये सोचना चाहिए कि प्राथमिकताएं क्या हैं। दोनों ही मुल्क़ों में साफ पानी, खाना, मौसम जैसी दिक्कतें हैं। जिन पर ध्यान देना चाहिए। भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम में अच्छा करना अच्छी बात है। लेकिन ये सोचना चाहिए कि स्पेस ही नहीं, अपने लोगों का ख़्याल रखना भी अहम बात है।''
 
 
क्या पाकिस्तान को चीन की बजाय खुद आत्मनिर्भर होने की कोशिश करनी चाहिए और पहले पाकिस्तानी को अंतरिक्ष में पाक की ज़मीन से भेजा जाएगा या चीन से?
 
 
परवेज़ ने कहा, ''मेरे ख्याल में अगर किसी पाकिस्तानी को अंतरिक्ष भेजा जाएगा तो वो पाकिस्तान नहीं, चीन से भेजा जाएगा। ये काम चीन के किसी लॉन्चपैड से किया जा सकता है। चूंकि चीन इस मामले में आगे है। अगर पाकिस्तान में लॉन्चपैड बनाया जाए, जिसमें काफी खर्चा आता है। लेकिन ये पाकिस्तान के लिए काफी महंगा पड़ेगा। पर मेरा मानना है कि पाकिस्तान में तरज़ीहयात दूसरी होनी चाहिए। अभी कितना खर्च आएगा, इस बारे में कहना मुश्किल है लेकिन वक़्त के साथ ये कम होता जाएगा।''
 
 
प्रोफ़ेसर फज़ील महमूद कहते हैं, ''पाकिस्तान में जल्दी नतीजों की उम्मीद करते हैं मगर तकनीक वक़्त मांगती है। लोगों के बीच जागरुकता बढ़ेगी। युवाओं को भी एक पहलू पता चलेगा कि ये भी एक क्षेत्र है। अच्छे दिमाग के लोग भी इस तरफ बढ़ेंगे।''
 
 
अंतरिक्ष कार्यक्रम: भारत से आगे रहने वाला पाक पिछड़ा कैसे?
आपको जानकार हैरानी होगी कि पाकिस्तान का अंतरिक्ष कार्यक्रम भारत से काफी पहले शुरू हुआ था। स्पेस एंड अपर एटमॉसफेयर रिसर्च कमिशन (SUPARCO) की स्थापना 1961 में हुई थी। जबकि भारत में इसरो की स्थापना 1969 में हुई।
 
 
पाकिस्तान ने 1960 में अमरीका की मदद से स्पेस कार्यक्रम शुरू किया था। परवेज़ हुदभाई बताते हैं, ''बाद के दिनों में सरकारें बदलीं तो प्राथमिकताएं बदल गईं। फंड में कटौती की जाने लगी। दूसरी चीज़ों को अहमियत दी जाने लगी।''
 
 
परवेज़ हुदभाई ने 2017 में भी बीबीसी हिंदी को बताया था, ''मंज़र कुछ ऐसा था कि पाकिस्तान को सुरक्षा की चिंता ज़्यादा सता रही थी और कुछ जंगे भी हो चुकी थीं। बस यहीं से पाकिस्तान का फ़ोकस एटम बम और मिसाइल तकनीक पर जम गया। जो बेहतरीन वैज्ञानिक थे वे एटोमिक परीक्षण के काम में लग गए और दूसरे मिसाइल बनाने में। इस सब में स्पेस कार्यक्रम पीछे छूटता गया।"
 
 
पकिस्तान के पहले सैटलाइट बद्र-1 को 1990 में चीन से अंतरिक्ष में छोड़ा गया था। पूरे एशिया महाद्वीप में पाकिस्तान ऐसा तीसरा देश और दुनिया का 10वां देश था, जिसने अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक रॉकेट छोड़ा था।
 
 
पाकिस्तान ने अंतरिक्ष मेंरेहबर-1 1962 में सोनमियानी रॉकेट रेंज से छोड़ा था। इसी के दो दिन बाद रेहबर-2 को भी सफलतापूर्वक छोड़ा गया था। 1990 में पाकिस्तान ने अपनी पहले एक्सपेरमेंटल सैटलाइट बद्र-1 को लॉन्च किया था। साल 2002 में सुपार्को ने बद्र-2 को लॉन्च किया गया।
 
 
पाकिस्तान ने अंतरिक्ष कार्यक्रम की शुरुआत तो अच्छी की। लेकिन जानकारों के मुताबिक़, वक़्त के साथ अंदरूने मुल्क की दिक्कतों और दूसरी प्राथमिकताओं में पाकिस्तान ऐसा उलझा कि अंतरिक्ष में छाने का सपना पीछे छूटता गया। और अब आलम ये है कि पाकिस्तान के आसमानी सपने पूरे करने के लिए ड्रैगन की ज़रूरत पड़ रही है।
 
 
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