केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मुंबई में एक प्रेस वार्ता के दौरान एनएसएसओ (राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय) के बेरोज़गारी से जुड़े आंकड़ों को पूरी तरह ग़लत बताया।
उन्होंने अर्थव्यवस्था में मंदी से जुड़े एक सवाल के जवाब में कहा कि वे एनएसएसओ की रिपोर्ट को ग़लत मानते हैं क्योंकि इसमें कई बातों का ध्यान नहीं रखा गया है।
क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि मैं एनएसएसओ की रिपोर्ट को ग़लत कहता हूं और पूरी ज़िम्मेदारी के साथ कहता हूं। उस रिपोर्ट में इलेक्ट्रॉनिक मैन्युफ़ैक्चरिंग, आईटी क्षेत्र, मुद्रा लोन और कॉमन सर्विस सेंटर का ज़िक्र नहीं है। क्यों नहीं है? हमने कभी नहीं कहा था कि हम सबको सरकारी नौकरी देंगे। हम ये अभी भी नहीं कह रहे हैं। कुछ लोगों ने आंकड़ों को योजनाबद्ध तरीके से ग़लत ढंग से पेश किया। मैं ये दिल्ली में भी कह चुका हूं।
इसके अलावा उन्होंने अर्थव्यवस्था में मंदी होने से भी इनकार किया। इसके लिए उन्होंने कहा कि अगर फ़िल्में करोड़ों का कारोबार कर रही हैं तो फिर देश में मंदी कैसे है? उन्होंने पिछले हफ़्ते रिलीज हुई तीन फ़िल्मों की कमाई का ज़िक्र किया।
वहीं, ताजा आंकड़ों के मुताबिक औद्योगिक उत्पादन 1.1 प्रतिशत घट गया है। विनिर्माण, बिजली और खनन क्षेत्रों के खराब प्रदर्शन के कारण ये गिरावट आई है।
सांख्यिकी मंत्रालय के विभाग एनएसएसओ यानी नेशनल सैंपल सर्वे ऑफ़िस की फरवरी में लीक हुई रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में बेरोज़गारी दर 6.1 फीसदी हो गई है जो पैंतालीस साल में सबसे ज़्यादा थी।
रविशंकर प्रसाद के बयान पर कांग्रेस ने प्रतिक्रिया दी है। अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर कांग्रेस ने लिखा है कि अब ख़ुद से पूछना ज़रूरी हो गया कि हमारे मंत्री जो कह रहे हैं क्या उस पर यक़ीन भी करते हैं या ये भाजपा सरकार के मीडिया सर्कस का हिस्सा मात्र है? अगर यह सर्कस है तो क्या ये लोग मंत्री बनाए जाने के योग्य हैं?
ऐसे में रविशंकर प्रसाद के बयान को किस तरह देखा जाए इसे लेकर बीबीसी संवाददाता कुलदीप मिश्र ने बात की अर्थशास्त्री प्रोफेसर अरुण कुमार से बात की। पढ़ें उनका नज़रिया-
एनएसएसओ को गलत कहना बड़ी बात
एनएसएसओ जो भी आंकड़े इकट्ठे करता है वो एक खास पद्धति से जुटाए जाते हैं। एनएसएसओ के रोजगार के आंकड़ों के लिए घर-घर जाकर सर्वे होता है और उसके आधार पर आंकड़े इकट्ठे किए जाते हैं। इसमें सभी को तो नहीं लिया जा सकता लेकिन सैंपल सर्वे बनाया जाता है जो कि पूरी जनसंख्या का प्रतिनिधित्व कर सके।
एनएसएसओ एक ऐसी संस्था है जो सारा समय इस तरह के आंकड़े इकट्ठा करती है। रोजगार के ही नहीं और भी कई तरह के आंकड़े जुटाती है।
अगर रविशंकर प्रसाद अधिकारिक रूप से कह रहे हैं कि एनएसएसओ के आंकड़े सही नहीं हैं तो वो एनएसएसओ पर सवाल उठा रहे हैं और अगर वो एनएसएसओ पर सवाल उठा रहे हैं तो उसका मतलब है कि वो कहीं न कहीं उसके सभी आंकड़ों पर भी सवाल उठा रहे हैं।
ये एक बहुत बड़ी बात है कि आखिर सरकार के पास फिर कौन से आंकड़े हैं?। सरकार किस आधार पर नीति बना रही है।
दूसरी बात ये है कि एनएसएसओ और अन्य संस्थाओं के आंकड़ों के आधार पर जीडीपी की गणना होती है। अगर हमारे ये आंकड़े ही गलत हैं तो इसका मतलब हुआ कि जीडीपी के आंकड़े भी गलत हैं। ये तो उन्होंने ऐसी बात कह दी है जिसका बहुत दूरगामी असर होगा।
फ़िल्म और अर्थव्यवस्था
फ़िल्म एक मनोरंजन का साधन है। व्यक्ति अगर परेशानी में भी होता है तो मनोरंजन के लिए पैसा खर्च करता है। अगर हम मानें कि पिछले हफ़्ते 120-130 करोड़ की कमाई हुई है तो ये ऐसी रकम नहीं है जो हमारी इतनी बड़ी अर्थव्यवस्था में खर्च नहीं हो सकती।
अगर मंदी की बात है तो ये आंकड़े सरकार से और उद्योगों से भी सामने आ ही रहे हैं। जैसे ऑटोमोबाइल सेक्टर है उसमें इस साल अगस्त में पिछले साल के मुक़ाबले 30-31 प्रतिशत की गिरावट हुई।
एफएमसीजी सेक्टर बोल रहा है कि उनकी जो वृद्धि दर है वो कम हो गई है। उसी तरह ट्रांसपोटर्स बोल रहे हैं कि हमारे ट्रकों की आवाजाही कम हो गई है।
रेलवे बोल रही है कि उनका फ्रेट मूवमेंट कम हो गया है इससे उनके मुनाफ़े पर असर पड़ रहा है। रिटेल ट्रेड में गिरावट का मतलब हुआ कि खरीदारी कम हो गई है। देखा जाए तो ये सिर्फ़ एक-दो जगह की बात नहीं है, तो सिर्फ़ फ़िल्मों के आधार पर नहीं कह सकते कि देश में मंदी है या नहीं।
इसके अलावा औद्योगिक उत्पादन का जो आंकड़ा आया है उसमें तो दिखाया गया है कि पिछले दो साल में पहली बार वृद्धि दर नकारात्मक है। उसमें गिरावट आ गई है।
असंगठित क्षेत्र का गिरना
सरकार तो कहेगी ही कि सबकुछ ठीक चल रहा है लेकिन मुझे लगता है कि इस समय अर्थव्यवस्था के सामने एक तरह का संकट खड़ा है।
सरकार ने पिछले एक साल में अर्थव्यवस्था को दोबारा पटरी पर लाने के लिए कई कदम उठाए हैं। रिजर्व बैंक ने पांचवीं बार अपनी ब्याज़ दर कम की और सरकार ने पिछले दो महीने में कई तरह की छूट दी है।
सरकार के कदम उठाने के बावजूद ये गिरावट आई है और उसकी वजह है कि पिछले तीन साल में हमारा असंगठित क्षेत्र बड़ी बुरी तरह गिरा है, लेकिन सरकार उससे इनकार करती रही है।
अब असंगठित क्षेत्र से परेशानी संगठित क्षेत्र में भी आ गई है। जब तक असंगठित क्षेत्र से संकट ख़त्म नहीं होगा तो संगठित क्षेत्र उससे अपने आप नहीं निपट सकता।
सरकार ने पिछले दो महीने में जो कदम उठाए हैं वो सारे संगठित क्षेत्र के लिए हैं तो ये सरकार पर कॉरपोरेट सेक्टर का दबाव है। मेरा मानना है कि सरकार ने पिछले तीन साल में वो कदम नहीं उठाए जो उठाने चाहिए थे।
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