रविवार, 1 दिसंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. protest place in farmers protest
Written By BBC Hindi
Last Updated : रविवार, 6 दिसंबर 2020 (08:59 IST)

किसान आंदोलन: वे 5 हस्तियां जिनके नाम पर बने प्रदर्शन स्थल

किसान आंदोलन: वे 5 हस्तियां जिनके नाम पर बने प्रदर्शन स्थल - protest place in farmers protest
केंद्र के तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ हरियाणा-यूपी से लगती दिल्ली की सीमा पर किसानों का विरोध प्रदर्शन जारी है।
 
शनिवार को केंद्र सरकार और किसानों के बीच हुई पाँचवें दौर की बैठक भी बेनतीजा निकली। अब अगले दौर की बातचीत के लिए किसानों को 9 दिसंबर को बुलाया गया है।
 
इस बीच प्रदर्शन स्थलों पर ठंड में भी किसानों का जोश क़ायम है। शनिवार को किसान संगठन भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू एकता-उगराहां) ने सिंघू बॉर्डर पर पांच प्रदर्शन स्थलों का नामकरण किया।
 
सिंघू बॉर्डर और टीकरी बॉर्डर दिल्ली-हरियाणा की सीमा है, जहाँ पर किसानों का प्रदर्शन कई किलोमीटर तक फैल चुका है। इन प्रदर्शन स्थलों को चिह्नित करने के लिए किसान संगठन ने पांच प्रसिद्ध हस्तियों पर इन जगहों के नाम रखे हैं।
 
यह नाम हैं, बाबा बंदा सिंह नगर, चाचा अजीत सिंह नगर, बीबी गुलाब कौर नगर, शहीद भगत सिंह नगर और शहीद साधू सिंह तख़्तुपुरा नगर।
 
बीकेयू (एकता-उगराहां) के महासचिव शिंगारा सिंह मान और हरिंदर कौर बिंदु ने इन नामों के रखने के पीछे की वजह को भी प्रेस के साथ साझा किया। इसके साथ एक प्रेस गैलरी भी बनाई गई है जिसका नाम स्वतंत्रता आंदोलनकारी अशफ़ाक़ उल्लाह ख़ान के नाम पर रखा गया है।
 
बाबा बंदा सिंह बहादुर
बाबा बंदा सिंह बहादुर एक मशहूर योद्धा थे जिन्होंने 1710 में मुग़ल सेना को हराकर सतलज नदी के दक्षिण में सिख राज्य की स्थापना की थी। 1670 में जम्मू के एक हिंदू परिवार में उनका जन्म हुआ था। सिखों के दसवें गुरु और खालसा पंथ की स्थापना करने वाले गुरु गोबिंद सिंह के प्रभाव में आकर उन्होंने सिख धर्म स्वीकार कर लिया था।
 
गुरु गोबिंद सिंह ने ही उन्हें बाबा बंदा सिंह बहादुर नाम दिया था। गुरु गोबिंद सिंह के बच्चों की हत्या के बाद उन्होंने पंजाब में मुग़ल सल्तनत के ख़िलाफ़ कूच किया जिसमें उन्हें कामयाबी मिली।
 
हालांकि, यह शासन ज़्यादा दिन नहीं चल सका और 1715 में मुग़ल बादशाह फ़र्रुख़सियार की फ़ौज ने उन्हें ग़िरफ़्तार कर लिया और 1716 में उन्हें मार दिया गया।
 
बीकेयू (एकता-उगराहां) का कहना है कि बाबा बंदा सिंह बहादुर किसानों के एक महान नायक थे जिन्होंने उन्हें उनका ज़मीन का हक़ दिलवाया। बाबा बंदा सिंह बहादुर ने किसानों को बड़े-बड़े जागीरदारों और ज़मींदारों की ग़ुलामी से मुक्त कराया।
 
चाचा अजीत सिंह
1881 को पंजाब के खटकड़ कलां में जन्मे सरदार अजीत सिंह ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ 'पगड़ी संभाल जट्टा' जैसा आंदोलन चलाने के लिए जाने जाते हैं। वो भगत सिंह के चाचा थे।
 
वो एक राष्ट्रवादी क्रांतिकारी थे जिन्होंने ब्रिटिश सरकार द्वारा लाए गए किसान विरोधी क़ानूनों के ख़िलाफ़ आंदोलन चलाया। उन्होंने पंजाब औपनिवेशिकरण क़ानून और पानी के दाम बढ़ाने के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन किए।
 
उनके प्रदर्शनों से घबराई भारत की ब्रिटिश सरकार ने 1907 में उन्हें लाला लाजपत राय के साथ तत्कालीन बर्मा के मांडले में निर्वासित कर दिया लेकिन बाद में सरकार को इस फ़ैसले को वापस लेना पड़ा। सरकार उन्हें लंबे समय तक जेल में डालने की योजना बना रही थी लेकिन वो 1909 में ईरान चले गए और 1947 तक अलग-अलग देशों में रहे।
 
बीकेयू (एकता-उगराहां) के महासचिव शिंगारा सिंह मान कहते हैं कि चाचा अजीत सिंह एक शानदार साम्राज्यवादी विरोधी आंदोलन 'पगड़ी संभाल जट्टा' के संस्थापक थे जो आंदोलन संघर्षशील जनता के लिए एक प्रेरणा बना हुआ है।
 
बीबी गुलाब कौर
गुलाब कौर ब्रिटिश भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल थीं। 1890 में पंजाब के संगरूर में जन्मीं गुलाब कौर अपने पति के साथ फ़िलीपींस के मनीला में थीं जहां पर वो ग़दर पार्टी में शामिल हुईं। गुलाब कौर को 'ग़दर दी धी' यानी 'ग़दर की बेटी' भी कहा जाता है। मनीला से वो वापस भारत लौट आईं और यहां स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाई। इस दौरान उन्हें दो साल की जेल भी हुई।
 
मान कहते हैं कि 'गदरी गुलाब कौर साम्राज्यवादी विरोधी आंदोलन का हिस्सा थीं और वर्तमान में जारी प्रदर्शनों में शामिल महिला प्रदर्शनकारी उनका प्रतिनिधित्व करती हैं।'
 
शहीद भगत सिंह
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में भगत सिंह का एक अहम स्थान है। 27 सितंबर 1907 को भगत सिंह का जन्म लायलपुर (पंजाब पाकिस्तान) में स्वतंत्रता आंदोलनकारियों के परिवार में हुआ था। उनके पिता किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल थे।
 
एएसपी सैंडर्स की हत्या और दिल्ली की केंद्रीय एसेंबली में बम फेंकने की घटना में वो शामिल थे। इन घटनाओं ने ब्रिटिश हुकूमत को हिलाकर रख दिया था। सैंडर्स हत्या मामले में 23 मार्च 1931 को लाहौर की जेल में उन्हें उनके साथियों राजगुरु और सुखदेव के साथ फांसी दे दी गई।
 
बीकेयू (एकता-उगराहां) की हरिंदर कौर बिंदु कहती हैं कि 'शहीद भगत सिंह ने शोषण और उत्पीड़न से मुक्त एक समाज का सपना देखा था और वो जारी किसान आंदोलन की प्रेरणा हैं, उनकी तस्वीरें किसानों, मज़दूरों, महिलाओं और युवाओं को प्रेरित करती हैं।'
 
शहीद साधू सिंह तख़्तुपुरा
भारतीय किसान यूनियन (एकता) के नेता साधू सिंह तख़्तुपुरा की 2010 में कथित तौर पर हत्या कर दी गई थी। राज्य की तत्कालीन अकाली दल-बीजेपी सरकार एक विवादित ज़मीन से किसानों को हटा रही थी जिसके ख़िलाफ़ वो प्रदर्शन कर रहे थे।
 
कथित तौर पर 16 फ़रवरी 2010 को अमृतसर में 15 लोगों ने लोहे के सरियों और डंडों से पीटकर उनकी हत्या कर दी। 17 मार्च 2010 को पंजाब पुलिस ने कोर्ट में कहा था कि तख़्तुपुरा की मौत हार्ट अटैक से हुई थी।
 
बिंदु कहती हैं कि तख़्तुपुरा संघर्षरत समाज को राह दिखाते थे जिनकी भू-माफ़ियाओं ने हत्या कर दी और उनकी 'शहादत ने संगठन को जनता के मुद्दों पर जनांदोलन करने के लिए प्रेरित किया है।'
 
किसान नेताओं का कहना है कि इन प्रदर्शन स्थलों के नाम इन हस्तियों के नाम पर रखना कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलन के प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष चरित्र को दिखाता है।
 
वे कहते हैं कि संघर्षरत जनता द्वारा बनाए गए गौरवशाली इतिहास के साथ निरंतर आंदोलन जारी है और यह इतिहास किसानों, मज़दूरों, महिलाओं और युवाओं को अन्याय के ख़िलाफ़ संघर्ष करने के लिए प्रेरित करता है।
ये भी पढ़ें
आंध्र में रहस्यमयी बीमारी से एक की मौत, 340 लोग अस्पताल में भर्ती