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Written By BBC Hindi
Last Updated : शुक्रवार, 29 अप्रैल 2022 (07:51 IST)

पीएम मोदी या राज्य? पेट्रोल और डीज़ल के दाम कौन कम नहीं कर रहा है?

पीएम मोदी या राज्य? पेट्रोल और डीज़ल के दाम कौन कम नहीं कर रहा है? - PM Modi or state? Who is not reducing petrol and diesel?
अनंत प्रकाश, बीबीसी संवाददाता
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पेट्रोल और डीज़ल के दाम कम नहीं होने के लिए राज्य सरकारों को ज़िम्मेदार ठहराया है।
 
बीते बुधवार मुख्यमंत्रियों के साथ हुई बैठक के दौरान पीएम मोदी ने कहा कि "केंद्र ने पिछले साल नवंबर महीने में ईंधन की कीमतों पर एक्साइज़ ड्यूटी को कम कर दिया था और राज्यों से भी टैक्स घटाने का अनुरोध किया था। मैं किसी की आलोचना नहीं कर रहा हूं लेकिन महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, केरल और झारखंड एवं तमिलनाडु से आग्रह कर रहा हूं कि वे वैट कम करके लोगों को उसका फायदा पहुंचाएं।"
 
पीएम मोदी की ओर से ये बयान आने के बाद केंद्र और राज्य सरकारों के बीच पेट्रोल-डीज़ल के दामों को लेकर तीखी बयानबाज़ी शुरू हो गई है।
 
केंद्र और राज्यों में बयानबाज़ी शुरू
कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार को घेरते हुए कहा है कि वह पहले बीजेपी शासित प्रदेशों से पेट्रोल-डीज़ल से वैट घटाने को कहे।
 
खड़गे ने बताया है कि पीएम मोदी ने अधिकतम एक्साइज़ ड्यूटी बढ़ाकर 27 लाख करोड़ रुपये हासिल किए हैं, उन्हें सब्सिडी देनी चाहिए, यूपीए के दौर में मनमोहन सिंह ने हर साल 1 लाख करोड़ रुपये की सब्सिडी दी थी।
 
इसके बाद पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मामलों के केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने गुरुवार को इस मुद्दे पर अपना पक्ष रखा है।
 
उन्होंने ट्वीट करके लिखा है, "सच कड़वा होता है लेकिन तथ्य अपनी कहानी खुद बयां करते हैं। महाराष्ट्र सरकार ने साल 2018 के बाद से टैक्स के रूप में 79,412 करोड़ हासिल किए हैं और इस साल 33 हज़ार करोड़ रुपये हासिल करेगी। (ये कुल मिलाकर 1,12,757 करोड़ रुपये होगा) सरकार ने पेट्रोल - डीज़ल पर वैट कम करके लोगों को राहत क्यों नहीं पहुंचाई?
 
बीजेपी शासित राज्यों में पेट्रोल और डीज़ल पर वैट 14।50 रुपये से लेकर 17।50 रुपये प्रति लीटर के आसपास है। लेकिन दूसरे दलों द्वारा शासित राज्य सरकारों में 26 रुपये से 32 रुपये प्रति लीटर के बीच में हैं। अंतर स्पष्ट है। उनका मकसद सिर्फ विरोध करना और आलोचना करना है, लोगों को राहत पहुंचाना नहीं।"
 
इसके साथ ही उन्होंने कुछ राज्यों में शराब की कम कीमतों का ज़िक्र करते हुए राज्य सरकारों को घेरने की कोशिश की।
 
उन्होंने कहा, "अगर विपक्ष शासित राज्य सरकारें आयातित शराब की जगह ईंधन पर लगने वाले टैक्स को कम करें तो पेट्रोल सस्ता हो जाएगा। महाराष्ट्र सरकार ने पेट्रोल पर 32।15 रुपये प्रति लीटर टैक्स लगाया हुआ है, कांग्रेस शासित राजस्थान ने 29।10 रुपये प्रति लीटर टैक्स लगाया हुआ है। वहीं, बीजेपी शासित उत्तराखंड ने 14।51 रुपये प्रति लीटर और उत्तर प्रदेश ने 16।50 रुपये प्रति लीटर टैक्स लगाया हुआ है। विरोध प्रदर्शन तथ्यों को नहीं बदल सकते।"
 
लेकिन सवाल उठता है कि पेट्रोल और डीज़ल के दाम कम करने के लिए राज्य या केंद्र सरकार में से कौन कितना ज़िम्मेदार है।
 
पेट्रोल के दाम कौन कम कर सकता है?
इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए हमें ये समझना होगा कि पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें कैसे तय होती हैं। और अलग-अलग राज्यों में पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों में अंतर क्यों होता है।
 
भारत हर साल अपनी खपत का 80 फीसद से ज़्यादा तेल आयात करता है। इसके बाद राज्यों में पेट्रोल पंपों पर पेट्रोल और डीज़ल की खुदरा बिक्री होती है।
 
अब समझने की बात ये है कि पेट्रोल को जिस बेस प्राइस पर ख़रीदा जाता है, उसके बाद पेट्रोल पंपों तक उसकी बिक्री तक कीमत लगभग दोगुनी हो जाती है।
 
उदाहरण के लिए, बीती 16 अप्रैल को दिल्ली में पेट्रोल का बेस प्राइस 56.32 रुपये था लेकिन खुदरा बिक्री कीमत 105.41 रुपये प्रति लीटर था।
 
और पेट्रोल के दाम 56.32 से 105.41 रुपये पहुंचने का फ़ॉर्मूला कुछ इस तरह है - बेस प्राइस + एक्साइज़ ड्यूटी + वैल्यू एडेड टैक्स = पेट्रोल पंप पर मिलने वाले पेट्रोल या डीज़ल की कीमत
 
अब इस तरह एक लीटर पेट्रोल बिकने पर एक्साइज़ ड्यूटी की तरह जो पैसा आता है, वो केंद्र सरकार के पास जाता है, और वैट यानी वैल्यू एडेड टैक्स के ज़रिए आने वाला पैसा राज्य सरकारों को मिलता है।
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बताया है कि चूंकि केंद्र सरकार ने एक्साइज़ ड्यूटी कम कर दी है, ऐसे में राज्य सरकारों को भी वैट कम करना चाहिए ताकि लोगों को जिस दाम पर पेट्रोल और डीज़ल मिलता है, वो कम हो सके।
 
राज्य सरकारें क्यों कम नहीं करती वैट?
अब सवाल ये उठता है कि राज्य सरकारों द्वारा वैट कम क्यों नहीं कर पा रही हैं। इस सवाल का जवाब आपको राज्य सरकारों को मिलने वाले राजस्व की मदों से मिलता है।
 
राज्य सरकारों को मुख्य रूप से राजस्व वैल्यू एडेड टैक्स, संपत्ति कर और शराब आदि पर लगने वाले करों से मिलता है। इसके साथ ही जीएसटी के ज़रिए राज्य सरकारों को राजस्व मिलता है। लेकिन जीएसटी के तहत हासिल होने वाला राजस्व पहले केंद्र सरकार को मिलता है जिसके बाद केंद्र सरकार उसे राज्य सरकारों को देती है। और इस पैसे की वापसी को लेकर राज्य और केंद्र सरकार के बीच लंबे समय से विवाद जारी है।
 
राज्य सरकारों का आरोप रहा है कि केंद्र सरकार की ओर से उन्हें समय पर जीएसटी की राशि नहीं मिलती है। आर्थिक मामलों के जानकार योगेंद्र कपूर ने बीबीसी के साथ बात करते हुए इस पहलू को समझाया है।
 
योगेंद्र कपूर कहते हैं, "पेट्रोल और डीज़ल के दाम कम करने के लिए राज्य और केंद्र एक दूसरे पर निर्भर नहीं हैं। वे अपने स्तर पर एक्साइज़ और वैट ड्यूटी कम कर पेट्रोल एवं डीज़ल के दामों में कमी ला सकते हैं। यहां समझने की बात ये है कि राज्य और केंद्र सरकारों की कमाई का एक बड़ा हिस्सा एक्साइज़ और वैट ड्यूटी से आता है। ये उनके लिए दुधारू गाय जैसी है। वे नहीं चाहते कि ये उनके नियंत्रण से बाहर जाए। राज्य सरकारों ने अक्सर जीएसटी मुआवजे को लेकर केंद्र पर आरोप लगाया है कि अगर उन्हें समय पर जीएसटी मुआवजा नहीं मिलेगा तो वे अपने राज्य में विकास कैसे करवा पाएंगे।"
 
जीएसटी के मुद्दे पर कपूर राज्य सरकारों में जिस असंतोष की बात कर रहे थे, उसकी बानगी महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजीत पवार के ताज़ा बयान में मिलती है।
 
पवार ने ये विवाद खड़ा होने के बाद कहा है कि "केंद्र सरकार से जीएसटी की एक भारी राशि आना शेष है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल पेट्रोल-डीज़ल पर टैक्स कम करने की अपील की थी। हमने इस बजट में टैक्स नहीं बढ़ाया है। हमने सीएनजी पर टैक्स घटाया है जिसकी वजह से राज्य को 1000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है।"
 
आख़िर समाधान क्या है?
केंद्र और राज्यों के बीच जीएसटी बकाए को लेकर विवाद लंबे समय से जारी है। और आने वाले दिनों में भी इसका समाधान निकलता नहीं दिख रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि पेट्रोल और डीज़ल की ऊंची कीमतों वाली समस्या का समाधान निकल सकता है अथवा नहीं।
 
योगेंद्र कपूर इस सवाल का जवाब देते हुए कहते हैं कि सरकारों को लोगों की घटती आमदनी को ध्यान में रखते हुए संवेदनशील होने की ज़रूरत है।
 
वे कहते हैं, "केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकारों को ये समझने की ज़रूरत है कि देश में लोगों की औसत आय में गिरावट दर्ज की गई है। ताजा आंकड़े बताते हैं कि लगभग 4 करोड़ लोगों की आबादी उच्च मध्य वर्ग से निम्न वर्ग में चली गयी है। ऐसे में हमें लोगों के लिए रोजगार और कमाई के रास्ते बनाए जाने चाहिए ताकि लोगों की निर्भरता सरकार की राहत योजनाओं पर कम हो। ताकि वे अपना खर्च वहन करने के साथ-साथ पैसे जमा भी कर सकें। ऐसे में राज्य सरकारों को पेट्रोल-डीज़ल जैसी मदों से राजस्व कमाने की जद्दोजहद करने की जगह अपने स्तर पर जीएसटी के संग्रहण तंत्र को मजबूत करने की ज़रूरत है ताकि उनके राजस्व में बढ़ोतरी हो सके।"
 
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