• Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. permanent commission to women officers in Indian Army
Written By BBC Hindi
Last Updated : शनिवार, 25 जुलाई 2020 (07:49 IST)

भारतीय सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन दिए जाने से क्या कुछ बदलेगा

भारतीय सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन दिए जाने से क्या कुछ बदलेगा - permanent commission to women officers in Indian Army
कमलेश, बीबीसी संवाददाता
पांच साल के शॉर्ट सर्विस कमीशन से महिलाओं के लिए स्थायी कमीशन तक का सफ़र अब पूरा हो चुका है। सरकार ने इस पर अपनी मुहर लगा दी है।
 
सेना की पूर्व महिला अधिकारी इसे समानता की ओर एक बड़ा क़दम मानती हैं। साथ ही ये उनके लिए एक नामुमकिन सपने के सच होने जैसा है।
 
“जब 2008 में हमने ये लड़ाई शुरू की थी तो सोचा भी नहीं था कि वाक़ई ये दिन आ जाएगा। इतना आसान नहीं था महिलाओं के लिए स्थायी कमीशन पाना लेकिन आज लगता है कि कोशिश करते रहने से असंभव भी संभव हो सकता है। इससे ना सिर्फ़ महिलाओं का हौसला बढ़ेगा बल्कि उनके सामने अवसरों का आसमान भी खुल जाएगा।”
 
ये कहना है सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट कर्नल डॉ। अनुपमा मुंशी का, जिन्होंने ग्यारह अन्य महिला अधिकारियों के साथ महिलाओं को स्थायी कमीशन दिलाने के लिए याचिका दायर की थी।
 
इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 17 फ़रवरी को भारतीय सेना में महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने का फ़ैसला सुनाया था।
 
अब रक्षा मंत्रालय ने महिलाओं को भारतीय सेना में स्थायी कमीशन प्रदान करने के लिए मंज़ूरी दे दी है। इस संबंध में औपचारिक आदेश जारी कर दिया गया है।
 
क्या है स्थायी कमीशन
शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत महिलाएं केवल 10 या 14 साल तक सेवाएं दे सकती हैं। इसके बाद वो सेवानिवृत्त हो जाती हैं। लेकिन अब उन्हें स्थायी कमीशन के लिए आवेदन करने का भी मौक़ा मिलेगा। जिससे वो सेना में अपनी सेवाएं आगे भी जारी रख पाएंगी और रैंक के हिसाब से सेवानिवृत्त होंगी। साथ ही उन्हें पेंशन और सभी भत्ते भी मिलेंगे।
 
साल 1992 में शॉर्ट सर्विस कमीशन के लिए महिलाओं का पहला बैच भर्ती हुआ था। तब ये पाँच साल के लिए हुआ करता था। इसके बाद इस सर्विस की अवधि को 10 साल के लिए बढ़ाया गया। साल 2006 में सर्विस को 14 साल कर दिया गया।
 
पुरुष अधिकारी शॉर्ट सर्विस कमीशन के 10 साल पूरे होने पर अपनी योग्यता के अनुसार स्थायी कमीशन के लिए आवेदन कर सकते हैं लेकिन महिलाएं ऐसा नहीं कर सकती थीं। वर्तमान में महिलाओं को शॉर्ट सर्विस कमीशन के ज़रिए सेना में भर्ती किया जाता है जबकि पुरुष सीधे स्थायी कमीशन के ज़रिए भी भर्ती हो सकते हैं।
 
स्थायी कमीशन में महिलाओं की सीधी भर्ती की जाएगी या नहीं ये आगे देखना होगा। इसके लिए अलग नियम बनाना होगा।
 
10 शाखाओं में होगा स्थायी कमीशन
भारतीय सेना के प्रवक्ता कर्नल अमन आनंद ने कहा कि सरकार का ये फ़ैसला महिला अधिकारियों को सेना में बड़ी भूमिकाएं निभाने के लिए उनके सशक्तिकरण का रास्ता खोलेगा।
 
कर्नल अमन आनंद ने न्यूज़ एजेंसी पीटीआई को बताया, “आदेश में भारतीय सेना की सभी 10 शाखाओं में शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने की बात कही गई है,”
 
कर्नल आनंद ने जानकारी दी कि महिलाओं को 10 शाखाओं- आर्मी एयर डिफ़ेंस (एएडी), सिग्नल्स, इंजीनियर्स, आर्मी एवियेशन, इलेक्ट्रॉनिक्स एंड मैकेनिकल इंजीनियर्स (ईएमई), आर्मी सर्विस कॉर्प्स (एएससी), आर्मी ऑर्डिनेंस कॉर्प्स (एओसी) और इंटेलीजेंस कॉर्प्स में स्थायी कमीशन (पीसी) देने को मंज़ूरी दी गई है।
 
वर्तमान में महिलाओं को जज एवं एडवोकेट जनरल (जेएजी) और आर्मी एजुकेशनल कोर (एईसी) में स्थायी कमीशन मिलता है।
 
सेना के प्रवक्ता ने कहा, "जैसे ही सभी प्रभावित एसएससी महिला अधिकारी अपने विकल्प का इस्तेमाल करती हैं और आवश्यक दस्तावेज़ पूरे करती हैं, वैसे ही उनका चयन बोर्ड निर्धारित किया जाएगा।"
 
इस विकल्प के साथ ही ना सिर्फ़ भारतीय सेना का हिस्सा बनने की चाह रखने वाली लड़कियों को बल्कि सेना में मौजूद महिलाओं के लिए भी एक नया रास्ता खुल गया है, जिसमें समानता और सम्मान है।
 
एक फ़ैसला और कई बदलाव
स्थायी कमीशन को लेकर पहली याचिका साल 2003 में डाली गई थी। इसके बाद ग्यारह महिला अधिकारियों ने इस संबंध में साल 2008 में फिर से हाई कोर्ट में याचिका डाली। कोर्ट ने महिला अधिकारियों के हक़ में फ़ैसला सुनाया लेकिन फिर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इस फ़ैसले को चुनौती दे दी। फ़रवरी 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने भी महिला अधिकारियों के पक्ष में ही फ़ैसला दिया।
 
याचिकाकर्ताओं में से एक पूर्व सैन्य अधिकारी अंकिता श्रीवास्तव बताती हैं कि ये एक बड़ा फ़ैसला है और ये आने वाले समय पर कई सकारात्मक बदलाव लेकर आएगा। अंकिता श्रीवास्तव ऑर्डिनेंस कोर में एसएससी से 14 साल की सर्विस के बाद सेवानिवृत्त हुई थीं। उन्होंने बताया कि किस तरह इससे महिलाओं को फ़ायदा पहुँचेगा।
 
वह बताती हैं कि पहला बदलाव ये होगा कि महिला अधिकारियों को पदोन्नति मिल सकेगी। शॉर्ट सर्विस कमीशन में वो लेफ्टिनेंट कर्नल से आगे नहीं जा सकती थीं। लेकिन अब महिलाओं को एडवांस लर्निंग के विभागीय कोर्सेज़ में भी भेजा जाएगा। अगर आप इसमें अच्छा प्रदर्शन करते हो तो पदोन्नति में इसका फ़ायदा मिलता है। महिलाएं स्थायी कमीशन के लिए चुने जाने पर फ़ुल कर्नल, ब्रिगेडियर और जनरल भी बन सकती हैं।
 
दूसरा फ़ायदा ये है कि सरकार का आदेश आने पर अब महिलाओं की भर्ती के लिए जो विज्ञापन आएंगे उनमें साफ़तौर पर लिखा जाएगा कि आपको योग्यता के आधार पर स्थायी कमीशन प्रदान किया जाएगा। पहले के विज्ञापनों में सिर्फ़ 14 साल के शॉर्ट सर्विस कमीशन का ज़िक्र होता था।
 
अब नई लड़कियों को पता होगा कि इन सभी 10 शाखाओं में वो स्थायी कमीशन के ज़रिए सेना में उच्चतम पद तक पहुँच सकती हैं। वो इसी के अनुसार अपनी पढ़ाई और अन्य तैयारी कर सकेंगी।
 
तीसरा, ये कि एसएससी के 14 साल पूरे करने पर महिलाएं सेवानिवृत्ति के समय 37-38 साल की हो जाती हैं। अब 38 साल की उम्र में सेना से बाहर आने पर आपके पास जीवनयापन के लिए बहुत काम रास्ते बचते हैं। उन्हें पेंशन भी नहीं मिलती है। लेकिन अब महिलाओं के पास 54 साल की उम्र तक नौकरी करने का मौक़ा होगा।
 
अनुपमा मुंशी भी इससे सहमति जताती हैं। उन्होंने बताया, “उस उम्र में सेना की नौकरी के बाद ख़ाली बैठने से ज़िंदगी रुक सी जाती है। कई महिलाओं को डिप्रेशन भी होने लगता है। आपके पास निजी कंपनियों में जाने या टीचिंग का रास्ता होता है। टीचिंग के लिए भी बीएड या पीएचडी करनी पड़ती है। आपको फिर से वो करना होता है जो कॉलेज के बच्चे करते हैं। निजी कंपनियों में भी आपको शुरू से शुरुआत करनी पड़ती है।”
 
अनुपमा ख़ुद पीएचडी करने के बाद अब टीचिंग के पेशे से जुड़ गई हैं।
 
क्यों हुआ स्थायी कमीशन का विरोध
महिलाएं लंबे समय से भारतीय सेना में स्थायी कमीशन की माँग कर रही हैं। लेकिन, सेना और सरकार के स्तर पर इसका विरोध किया जाता रहा है। कभी शादी, बच्चे तो कभी पुरुषों की असहजता को कारण बताया गया।
 
अंकिता श्रीवास्तव बताती हैं, “महिलाओं को प्रायोगिक तौर पर शॉर्ट सर्विस कमीशन में लिया गया था। लेकिन, महिला अधिकारियों ने अपने आपको साबित किया। हमें सराहा गया कि ये महिलाएं ना तो शारीरिक रूप से कमज़ोर हैं और ना मानसिक रूप से। ये भारतीय सेना को मज़बूती दे सकती हैं। लेकिन, धीरे-धीरे कई पुरुष अधिकारियों के मन में असुरक्षा की भावना आ गई। उन्हें लगने लगा कि महिलाएं उनके वर्चस्व वाले क्षेत्र में अधिकार जता रही हैं।”
 
“उसके बाद महिलाओं की पारिवारिक मजबूरियों को मुद्दा बनाया गया। ये फ़ील्ड में नहीं जा सकतीं, ये शादी करेंगी, बच्चे पैदा करेंगी और उसके लिए छुट्टियां लेंगी। इससे काम पर प्रभाव पड़ेगा इसलिए उन्हें स्थायी कमीशन नहीं दिया जाना चाहिए।”
 
अनुपमा मुंशी ने बताया कि एक कारण ये भी बताया जाता है कि हमारे जवान ग्रामीण इलाक़ों से आते हैं तो वो महिला अधिकारी के तहत काम करने में और उससे आदेश लेने में असहज होते हैं। लेकिन, मुझे लगता है कि शुरुआत में ऐसा होता होगा पर अब ऐसा नहीं है। जब पुरुष सहकर्मियों ने देखा कि महिलाएं भी सेना में उन्हीं की तरह मेहनत कर रही हैं और कोई शॉर्टकट से यहां नहीं आई हैं, तो वो सम्मान करने लगे।
 
वह कहती हैं, “मैंने ख़ुद कई बार पुरुष जवानों से बात की है। उन्होंने बताया कि मैडम हमें तो आदेश मानने हैं फिर चाहे वो पुरुष दें या महिला, कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता। यहां तक कि मेरे तहत काम करने वाले कई जवान आकर मुझसे अपनी परेशानियां कह देते थे लेकिन पुरुष अधिकारी को नहीं बताते थे। उन्हें भरोसा था कि महिला है तो ज़्यादा संवेदनशीलता से सुनेगी।”
 
सेवानिवृत्त दोनों अधिकारी का कहना है कि महिलाओं ने पाँच साल के शॉर्ट सर्विस कमीशन में भी मेहनत और लगन से काम किया था जबकि उनके लिए आगे के रास्ते बंद थे। आने वाली लड़कियां तो कई गुना ज़्यादा मेहनत करेंगी क्योंकि वो जानती हैं कि वो सेना में कितनी ऊंचाइयों तक जा सकती हैं। ये बहुत बड़ी प्रेरणा है।
 
हो सकता है कि आने वाले वक़्त में हम कोई महिला ब्रिगेडियर देखें। भले वो एक ही क्यों ना हो पर उस एक को तो समान मौक़ा मिलेगा।
ये भी पढ़ें
कोरोना काल में कूड़ा बीनने वालों की मुसीबत हुई दोगुनी