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Last Modified: गुरुवार, 3 अक्टूबर 2019 (08:21 IST)

पटना की बाढ़ आपदा है या सरकारी नींद?

पटना की बाढ़ आपदा है या सरकारी नींद? - Patna flood
दिलनवाज़ पाशा
हेलिकॉप्टर से बरसाए जा रहे राहत पैकेटों को संतोष तरसती निगाहों से देख रहे हैं। वो जानते हैं ये उनके हाथ नहीं लगेंगे। पटना की राजेंद्र नगर कॉलोनी बारिश रुकने के तीन दिन बाद भी जलमग्न है। हर गुज़रते दिन के साथ यहां के हालात बद से बदतर हो रहे हैं।
 
संतोष राजेंद्र नगर के पास ही रहते हैं। उनका घर भी पानी में डूबा है। वो अपनी बूढ़ी मां के लिए दो दिन से खाने का इंतज़ाम नहीं कर सके हैं। संतोष कहते हैं, 'हम खाने-कमाने वाले मज़दूर हैं। अब न रहने की जगह है न खाने को कुछ है। हम कहां जाएं। बड़ी कॉलोनियों पर तो फिर भी ध्यान दिया जा रहा है, हमें कोई नहीं पूछ रहा है।'
 
पटना में तीन दिनों में क़रीब 35 सेंटीमीटर बारिश हुई, जिसकी वजह से शहर का अधिकतर हिस्सा पानी में डूब गया। गंगा पहले ही ख़तरे के निशान पर है और पुनपुन और दूसरी नदियां भी उफ़ान पर हैं।
 
ऐसे में पानी को निकलने का अपना प्राकृतिक रास्ता नहीं मिल सका। जलजमाव ने शहर में अभूतपूर्व हालात पैदा किए। इनसे निबटने के लिए न प्रशासन तैयार था न लोग।
 
कई इलाक़ों का पानी अब उतर चुका है लेकिन राजेंद्र नगर, रामकृष्णनगर, कंकड़बाग, पाटलीपुत्रा जैसे कई इलाक़े अब भी ऐसे हैं जहां बुधवार तक भी घुटने से ऊपर तक पानी भरा रहा। इन इलाक़ों में क़रीब 5 लाख लोग अपने घरों में क़ैद हैं और रोज़मर्रा की ज़रूरत की चीज़ों के लिए मोहताज़ हैं।
 
'ऐसे हालात कभी नहीं हुए'
राजेंद्र नगर की एक पानी से भरी हुई गली से 70 वर्षीय हीरामनी और उनके पति को नाव के ज़रिए बाहर निकाला गया है। वो कहती हैं, 'घर की निचली मंज़िल पानी में डूब गई थी। बेटे ने दवा का काम शुरू किया था। सारी दवाइयां डूब गई हैं। लाखों का नुक़सान हुआ है।'
 
राजेंद्र नगर में पटना शहर के कई बड़े कारोबारी भी रहते हैं। बिहार इंडस्ट्रीज़ असोसिशन के अध्यक्ष राम लाल खेतान भी उनमें से एक हैं। यहां के बाक़ी सभी घरों की तरह उनका घर भी पानी में डूबा है। अपने मोबाइल पर रिकार्ड किया एक वीडियो दिखाते हुए वो कहते हैं, 'मेरी तीनों गाड़ियां पूरी तरह पानी में डूब गईं। देखिए घर में फ़र्नीचर तैर रहा है। बड़ी मुश्किल से परिवार को घर से निकालकर होटल में ठहराया है।'
 
खेतान कहते हैं, 'बारिश पहले भी हुई है। लेकिन ऐसे हालात कभी नहीं हुए। ये पूरी तरह से प्रशासनिक लापरवाही है जिसका ख़ामियाजा हम जैसे लोगों को चुकाना पड़ रहा है। लोग त्राहीमाम त्राहीमाम कर रहे हैं। लेकिन प्रशासन बेपरवाह है।'
 
वो कहते हैं, 'अगर पंप से पानी निकाल दिया जाता तो ये समस्या नहीं होती। प्रशासन की तैयारी होती तो चौबीस घंटे में पानी निकल जाता लेकिन चार दिन बाद भी हालात वैसे ही हैं।'
 
पीने के पानी की समस्या
खेतान और उनके संगठन से जुड़े अन्य लोग अब किराए पर ली गई नावों के ज़रिए पीड़ित लोगों तक राहत सामग्री पहुंचा रहे हैं। वो कहते हैं, 'सबसे ज़्यादा क़िल्लत पीने के पानी की है। चारों तरफ़ पानी ही पानी है लेकिन लोग पीने के पानी की बूंद-बूंद को तरस रहे हैं।'
 
पटना नगर निगम की ओर से बंटवाई जा रही पानी की बोतलों पर लोग टूट पड़ते हैं। किसी के हिस्से दो आ जाती हैं और किसी के दोनों हाथ खाली रह जाते हैं। ऐसे ही एक व्यक्ति कहते हैं, 'घर तक किसी ने मदद नहीं पहुंचाई। मैं यहां बाहर आया कि कुछ मिल जाए। यहां भी मारामारी है।'
 
राजेंद्र नगर से क़रीब दस किलोमीटर दूर पाटलीपुत्र कॉलोनी भी बुधवार तक पानी में डूबी थी। ब्रिगेडियर आसिफ़ हुसैन अपने परिवार के साथ यहां रहते हैं। उनके घर में पानी घुटनों से ऊपर तक है। अपने घर की हालत दिखाते हुए वो कहते हैं, 'ये पटना की पॉश कॉलोनी है। यहां तीन फिट तक पानी था। अब पानी कुछ कम हुआ है। घर में रखा फ़र्नीचर और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण ख़राब हो गए हैं। फ्रिज, वॉशिंग मशीन, डिशवॉशर सब ख़राब हो गए हैं।'
 
हुसैन कहते हैं, 'इससे पहले साल 1970 के दशक में इस घर में पानी घुसा था। तब बाढ़ आई थी। ये दूसरी बार है जब घर में इतना पानी घुसा है।'
 
ड्रेनेज सिस्टम की नाकामी?
राजेंद्र नगर कॉलोनी हो या पाटलीपुत्र, ये पटना को वो पॉश इलाक़े हैं जिन्हें योजना के तहत बसाया गया है। इन इलाक़ों के पानी में डूबने की जिससे भी वजह पूछो जवाब यही मिलता है, "ये नगर निगम की नाकामी है। ड्रेनेज व्यवस्था पूरी तरह ठप हो गई।
 
ब्रिगेडियर हुसैन कहते हैं, 'हमने कभी नहीं सोचा था कि कभी ऐसे हालात होंगे। हम हैरत में हैं। ड्रेनेज सिस्टम ने काम नहीं किया और हमारा इतना नुक़सान हो गया।' वो कहते हैं, 'सबसे दुखद पहलू ये है कि इस सबको रोका जा सकता था। ये प्राकृतिक आपदा नहीं है बल्कि लापरवाही का नतीजा है।'
 
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इन हालातों को प्राकृतिक आपदा कहा है। लेकिन लोग इस तर्क को स्वीकार करने को तैयार नहीं है।
 
राम लाल खेतान कहते हैं, 'ये पहली बार नहीं है जब बारिश हुई है। यहां के लोग प्रकृति की मार नहीं बल्कि प्रशासन की लापरवाही झेल रहे हैं। जब ड्रेनेज सिस्टम ही काम नहीं करेगा तो पानी कहां जाएगा?'
 
राम लाल कहते हैं कि उन्हें घर में पानी भरने से हुए नुक़सान से उबरने में महीनों लग जाएंगे। लेकिन यहां बहुत से लोग ऐसे हैं जो शायद जीवन भर न उबर सकें।
 
कटोरे में भरा पानी
विकास कुमार उदास खड़े हैं। उनका घर भी पानी में डूबा है। वो कहते हैं, 'सब बर्बाद हो गया। कुछ नहीं बचा। इस नुक़सान से हम जीवन भर नहीं उबर पाएंगे। अब तो बस इतना ही सोच रहे हैं कि किसी तरह घरवालों को दो वक़्त का खाना खिला सकें। इससे आगे सोच ही नहीं पा रहे हैं। दिमाग़ चल ही नहीं रहा है।'
 
पटना में ऐसी बारिश पहली बार नहीं हुई है। लेकिन जो हालात यहां पैदा हुए हैं वो लोगों और प्रशासन दोनों के लिए नए हैं। इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस शहर में 5 लाख से अधिक लोग अपने घरों में फंसे हों वहां राहत के लिए 50 से भी कम सरकारी नावें चल रही हैं।
 
पटना के नेशनल इंस्टिट्यूट में प्रोफ़ेसर एनएस मौर्य मानते हैं कि पटना में जलभराव की एक वजह इस शहर की भौगोलिक स्थिति है जबकि बड़ी वजह प्रशासन की लापरवाही है।
 
प्रोफ़ेसर मौर्य कहते हैं, 'पटना कटोरे की तरह है, चारों तरफ़ ऊंची जगह हैं जबकि बीच में निचले इलाक़े हैं। राजेंद्र नगर जैसे इलाक़े निचले हैं। यहां कई कॉलोनी ऐसी जगहों पर बनीं हैं जो पहले प्राकृतिक रूप में जलाशय थे।'
 
मौर्य कहते हैं, 'यहां थोड़ी सी भी बारिश होगी तो जलभराव होगा। ये यहां जानी-सुनी बात है। यहां जो कॉलोनियां बन गई हैं वो तो बन गई हैं, ज़रूरत इंतज़ाम करने की थी जिस पर कभी ध्यान नहीं दिया गया।'
 
वो कहते हैं, 'हमें ये देखना था कि इन इलाक़ों से पानी कैसे निकाला जाए। हमें ये तय करना चाहिए कि पटना में कितनी बारिश के लिए हम तैयार हैं। कितनी बारिश से हम निबट सकते हैं इसका हमारे पास कोई लेखा जोखा नहीं है।'
 
'क्या यह प्राकृतिक आपदा है?'
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जितनी बार भी पटना के हालात पर बात की है इसे प्राकृतिक आपदा से जोड़ा है। नीतीश के तर्क पर सवाल करते हुए प्रोफ़ेसर मौर्य कहते हैं, 'धूप में किसी को घंटों तक छोड़ दिया जाए तो वो भी पीड़ित हो जाएगा। यूं तो धूप भी प्राकृतिक है लेकिन किसी को उसमें छोड़ा नहीं जा सकता। जिस तरह हम छाया का इंतज़ाम करते हैं उसी तरह पानी निकालने का भी इंतज़ाम होना ही चाहिए। परिस्थितियों से निबटने के लिए हमने होमवर्क नहीं किया है।'
 
85 साल के कैलाश्वर बांका ने पटना शहर को बढ़ते हुए देखा है। वो मौजूदा हालात के लिए प्रशासन को पूरी तरह ज़िम्मेदार नहीं मानते हैं। बांका कहते हैं, "नगर निगम ने बीते दो-तीन सालों में तेज़ी से काम तो किया है लेकिन जितनी ज़रूरत थी उतना नहीं।
 
वो कहते हैं, 'आप जहां देखिए वहां निर्माण हुआ है, कहीं ख़ाली जगह बाक़ी नहीं रह गई है। जहां कभी तालाब थे अब ऊंची रिहायशी इमारते हैं। हमारे अपार्टमेंट में भी पानी भरा। पानी जाता कहां, कहीं खाली जगह ही नहीं रह गई है।'
 
राजेंद्र नगर में राहत सामग्री लेकर आए निजी संस्था के ट्रेक्टर की ओर लोग टूट पड़ते हैं। किसी के हिस्से ब्रेड का पैकेट आता है और किसी के मायूसी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का नाम लेते ही लोग कहने लगते हैं, 'देख लीजिए, ये सुशासन का असली चेहरा है।'
 
उधर एक होटल में चल रहे मृत्यु भोज में शामिल होने आए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को दिल्ली से आए पत्रकारों ने घेर लिया। मुख्यमंत्री ने अपना वही प्राकृतिक आपदा का बयान दोहराया।
 
अपनी ज़िम्मेदारी लेने के बजाय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा, 'बंबई में पानी आया तो उसके बारे में क्या विचार है, क्या देश और दुनिया के अन्य हिस्सों में पानी नहीं आया। पटना के कुछ हिस्सों में पानी आया क्या सिर्फ़ यही समस्या है।'
 
पत्रकारों ने सवाल करने की कोशिश की तो पटना के स्थानीय पत्रकारों ने रोक दिया। कई कोशिशों के बाद भी मैं मुख्यमंत्री से सवाल नहीं कर सका। मैं उनसे पूछना चाहता था, 'क्या ये हालात प्राकृतिक आपदा से ज़्यादा मानवनिर्मित नहीं हैं और वो ज़िम्मेदारी से बचकर क्या इस समस्या को और जटिल नहीं कर रहे हैं?'
 
ज़िम्मेदारी को स्वीकार करना सुधार की दिशा में पहला क़दम हो सकता है। फ़िलहाल सरकार उससे ही बचती नज़र आ रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार परिस्थितियों की ज़िम्मेदारी हथिया नक्षत्र पर डाल देते हैं।
 
तो इस आपदा का पटना के लिए सबक क्या है? प्रोफ़ेसर मौर्य कहते हैं, 'इस आपदा का सबक सीधा और सरल है। जल निकासी की व्यवस्था के लिए नया इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करना होगा। समस्या पूंजी या मैनपावर की नहीं है। समस्या इच्छाशक्ति की है। और इससे भी बड़ी समस्या ये है कि हम ये मानने को ही तैयार नहीं है कि स्थिति विकट है और हमारी तैयारियां अधूरी हैं।'
 
बहुत मशक़्क़त के बाद संतोष को पानी की एक बोतल मिल सकी। वो कहते हैं, 'पटना की सड़कों से पानी निकल भी जाएगा, लेकिन क्या हमारे दिमाग़ से ये बात निकल पाएगी कि जब हम मुसीबत में फंसे थे तब हमें अकेला छोड़ दिया गया था।'
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