मंगलवार, 5 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. गांधी @ 150 : गांधी डरते थे, कोई उन्हें ईश्वर न बना दे
Written By BBC Hindi

गांधी @ 150 : गांधी डरते थे, कोई उन्हें ईश्वर न बना दे

Mahatma Gandhi | गांधी @ 150 : गांधी डरते थे, कोई उन्हें ईश्वर न बना दे
- मधुकर उपाध्याय
महात्मा गांधी बेखौफ़ इंसान थे, बल्कि उनको तो किसी चीज से डर लगता नहीं था। उनकी कोशिश होती थी कि आसपास जितने लोग हैं उनके दिल से भी डर नाम की चीज निकल जाए। आप में हिम्मत आ जाएगी। आपकी सारी हिम्मत, आपका सारा साहस रुक जाता है जैसे ही आपके जेहन में डर आता है। उन्हें डर नहीं लगता था। लेकिन एक चीज थी जिससे गांधी हमेशा परेशान रहे।

हमेशा डरते रहे और वो ये कि कोई उन्हें ईश्वर न बना दे। भगवान बनाके उनकी मूर्ति न स्थापित कर दे। पूजा न शुरु कर दे। उनको लगता था कि वो ज़िंदगी को, दुनिया को कोई मैसेज देने के काबिल नहीं हैं। गांधी ने अंग्रेज़ी में ये इस्तेमाल किया था फ्रेज़, आई हैव नो मैसेज़ फॉर द वर्ल्ड। बट माई लाइफ़ इज़ माइ मैसेज़। तो ये चीज गांधी के लिए हमेशा डर का सबब रही। उनको लगता रहा कि ये किसी दिन हो जाएगा क्योंकि वो जिस हद तक बात-बात में ईश्वर के हवाले से, सब कुछ ईश्वर की मर्ज़ी पर, सब कुछ उसके कहने पर, जैसी बात करते रहते थे, उससे ही लोगों को ऐसा लगता था।

यहां तक कि जनरल स्मट्स ने साउथ अफ्रीका में कहा था, 'ही इज़ मैन ऑफ गॉड। आम आदमी उसको समझिए मत।' चर्चिल से जब बात की स्मट्स ने और ये बात कही तो चर्चिल आग बबूला हो गए। लेकिन ये डर गांधी को हमेशा बना रहा। अमेरिका से, इंग्लैंड से तमाम लोग उन्हें ख़त लिखते थे। ख़ासतौर पर मांएं, जिनके बच्चे बीमार होते थे। उनसे अनुरोध करती थीं, प्रार्थना करती थीं कि अगर वो उनके बच्चे के लिए दुआ करेंगे तो वो ठीक हो जाएगा क्योंकि उनके अंदर ईश्वर का अंश है।

गांधी ने एक-एक चिट्ठी का जवाब दिया और हर बार एक ही बात लिखी कि मैं कोई चमत्कार नहीं करता। मेरे अंदर ईश्वर का अंश है लेकिन ईश्वरत्व नहीं है। मुझे वो मत दीजिए जो मेरे पास नहीं है। मैं वो लेना ही नहीं चाहता, बल्कि इसका एक बहुत मज़ेदार किस्सा हुआ। गांधी एक बार अपने तमाम सत्याग्रहियों, सहयोगियों के साथ कहीं जा रहे थे। रास्ते में एक गांव पड़ा। एक बड़ा सा पेड़ था और उसके नीचे एक कुआं था।

गांधी को लगा कि यहां थोड़ी देर आराम कर सकते हैं क्योंकि धूप निकल आई थी और पैदल चलना मुमकिन नहीं था। गांधी बैठ गए। लोग गए खाना पकाने के लिए पानी निकालने। नहाने का बंदोबस्त करने तो पता लगा कि कुएं में पानी नहीं है। सूखा हुआ है। अब लोगों ने आकर महात्मा से बहुत हिम्मत जुटाकर कहा कि बापू कुएं में पानी नहीं है। सूखा है।

उन्होंने कहा कि जो भी है, अब मैं बैठ गया हूं। अब पानी का बंदोबस्त यहीं करिए। लोग दूर दूसरे गांव जाकर पानी ले आए। उनके नहाने का इंतजाम किया। खाना बना। जब गांधी शाम को वहां से उठकर चले गए तो अचानक एक सोता फूटा और कुएं में पानी आ गया। गांव के लोग इतने खुश कि उनको लगा कि ये गांधी बाबा का चमत्कार है। वो भगवान हैं हमारे लिए। वो न आए होते तो हमारे सूखे कुएं में पानी न होता। हमारी औरतों को कई कई मील जाकर पानी लाना पड़ता।

उन्होंने सोचा कि इसके लिए महात्मा को धन्यवाद देना चाहिए। तो घर से लोटा, थाली, गिलास जिसके हाथ जो आया, बजाते हुए भजन गाते हुए ये लोग अगले गांव पहुंचे जहां तब तक गांधी पहुंच गए थे। वहीं रुकना था उन्हें। शोर हुआ, उठे। झोपड़ी से बाहर आए और उन्होंने कहा कि पहले तो ये शोर बंद करो और सुनो मैं क्या कह रहा हूं।

उन्होंने कहा कि अगर कोई कौवा बरगद के पेड़ पर बैठ जाए और पेड़ गिर पड़े तो वो कौवे के वजन से नहीं गिरता। कौवे को ये मुगालता हो सकता है कि उसके वजन से पेड़ गिरा लेकिन मुझे ऐसा कोई मुगालता नहीं है। मुझे अपने बारे में कोई ग़लतफ़हमी नहीं है। बेहतर होगा कि तुम लोग ये भजन-कीर्तन बंद करो और अपने गांव वापस जाओ।
ये भी पढ़ें
सऊदी अरब घूमने जाएं तो इन बातों का ख्याल रखें वरना...