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Last Modified: बुधवार, 2 अक्टूबर 2019 (12:10 IST)

पटना: महामारी से लड़ने के लिए कितना तैयार प्रशासन- ग्राउंड रिपोर्ट

पटना: महामारी से लड़ने के लिए कितना तैयार प्रशासन- ग्राउंड रिपोर्ट - How much Patna is prepared for epidemic
नीरज सहाय
तीन दिनों तक बारिश के चलते हुए भारी जलजमाव से बिहार की राजधानी पटना में रोजमर्रा की ज़िंदगी ठहर सी गई। पटना जलमग्न हो गया और बिहार सरकार के शहरी आवास विभाग और पटना नगर निगम निशाने पर आ गया। इस बारिश ने पटना में नाला उड़ाही से लेकर सीवर निर्माण कार्य तक की पोल खोल दी।
 
राजधानी पटना के राजेन्द्र नगर, कंकड़बाग, बाज़ार समिति, पाटलिपुत्र कॉलोनी आदि इलाकों में भीषण जलजमाव की स्थिति बनी हुई है। भारी जलजमाव के बाद सरकार हरकत में आयी। राहत और बचाव के कार्य शुरू किए गए।
 
पटना के तीन मुख्य अस्पतालों में से एक नालंदा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (एनएमसीएच) भी भीषण जलजमाव की चपेट में आया। लगभग 550 बेड वाला यह अस्पताल तीन दिनों तक जलमग्न रहा। कई मरीज़ों को पीएमसीएच रेफर कर दिया गया, कुछ खुद ही चले गए और जो नहीं गए वे अस्पताल की दूसरी मंज़िल पर चले गए हैं।
 
अस्पताल प्रशासन ने अपने प्रयास से मंगलवार को यहाँ से जमा पानी निकाला। फ़िलहाल यहाँ के वार्ड खाली हैं और उनकी सफ़ाई चल रही है। लेकिन, असली समस्या यह है कि जल के जमावड़े वाले इलाकों में गंदे पानी से फ़ैलने वाली बीमारी और महामारी से निबटने के लिए पटना प्रशासन कितना तैयार है, उसकी परीक्षा अब होनी है।
 
एनएमसीएच अस्पताल के मेडिसिन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ अजय कुमार सिन्हा का मानना है कि किसी भी इलाके में जलजमाव की तुलना में उसके बाद की स्थिति ज़्यादा ख़तरनाक होती है।
 
वे कहते हैं, 'अभी सबसे ज़्यादा डर संक्रामक बीमारी से है। विशेषकर पानी से होने वाली बीमारी से बचकर रहना चाहिए। हैजा, डेंगू, टाइफाइड, पेट की बीमारी आदि का ख़तरा ज़्यादा बना रहता है। मच्छरों को जमा न होने दें।'
 
अस्पताल परिसर में स्थित दुकान की कई दवाईयां पानी में डूबने की वजह से ख़राब हो चुकी हैं। प्रधानमंत्री जनऔषधि केंद्र के संचालक जितेंद्र कुमार के अनुसार, 'मरीजों को 90 प्रतिशत सब्सिडी पर मिलने वाली कई दवाएं पानी की वजह से ख़राब हो गई हैं। क़रीब दो लाख रुपये की दवाएं नष्ट हो चुकी हैं।'
 
डॉक्टर कैंटीन के संचालक ललन कुमार केसरी का कहना है कि यहाँ तीन-चार दिनों तक पानी ठेहुना भर था। भयावह स्थिति बनी हुई थी। तीन दिन तक मशीन काम किया और आज पानी ख़त्म हो गया। कुछ मरीज़ सर्जरी विभाग में हैं और कई चले गए हैं। मरीज़ों की सहूलियत के लिए मैंने अपना दुकान खोल रखा था।
 
इन विषम परिस्थितियों के बीच राज्य सरकार ने दावा किया है कि बीमारी और महामारी से बचाव के लिए कई ठोस कदम उठाये जा रहे हैं।
 
स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव संजय कुमार इस संबंध में विस्तार से बताते हैं और कहते हैं, 'पटना के मुख्य अस्पताल एनएमसीएच (नालंदा मेडिकल कॉलेज ऐंड हॉस्पिटल) के ग्राउंड फ्लोर पर पानी आ गया था। अस्पताल को संक्रमण मुक्त कर लिया गया और लोगों का इलाज करने के लिए वह अब तैयार है।'
 
वे कहते हैं, 'शहर के विभिन्न इलाकों में पानी घटने के साथ ही व्यापक तैयारियां की गयी है। ब्लीचिंग पाउडर और चूने का छिड़काव किया जा रहा है। साथ ही जहाँ जलजमाव है वहां मच्छरों को पनपने से रोकने के लिए एंटी लार्वा छिड़काव की तैयारी की गयी है। और जहाँ फूड पैकेट ज़िलाधिकारी की तरफ से बांटे जा रहे हैं उनमें दवाइयां भी हैं। इसके अतिरिक्त 10 ऐसे दल बनाए गए हैं जिनका काम छिड़काव करना है। विभाग किसी भी स्थिति से निबटने के लिए सक्षम है।'
 
वहीं एनएमसीएच के उपाधीक्षक डॉ. गोपाल कृष्ण कहते हैं, 'अस्पताल में अब जलजमाव नहीं है। आपात और मेडिसिन विभाग बुधवार से चालू हो जाएगा। उपकरणों की कितनी क्षति हुई है उसका आकलन किया जा रहा है।'
 
यह राज्य सरकार का दावा है, लेकिन तीन-चार महीने पहले गर्मियों में जब मुज़फ़्फ़रपुर में चमकी बुख़ार का प्रकोप हुआ था तब राज्य सरकार के दावे की धज्जियां उड़ गयी थीं। विभाग के तब के दावे अधूरे रह गए थे, दो सौ से अधिक बच्चों की मौतें हो गई थी और तमाम स्वास्थ्य व्यवस्था हांफती रह गई थीं।
 
विपक्ष यह आरोप लगा रहा है कि इस साल की गरमी में पटना नगर निगम ने नाला उड़ाही अभियान चलाया, लेकिन वह भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया। इन सब का परिणाम यह हुआ कि महज़ तीन दिनों की बारिश में ही पटना का सीवेज ध्वस्त हो गया और राजधानी जलमग्न हो गया।
 
सरकार के दावों पर वरिष्ठ पत्रकार कुमार दिनेश का कहना है, 'नीतीश सरकार में पर्यावरण की पूरी उपेक्षा की गई, भ्रष्टाचार पर कोई अंकुश नहीं रहा। इन सबके बीच जो विकास अब तक दिखाई दे रहा था वह प्रकृति के साथ अन्याय सा था। पटना आज इसी का खामियाजा भुगत रहा है।'
 
उधर वरिष्ठ पत्रकार एसए शाद महामारी की शंका जताते हैं। उनके अनुसार, 'महामारी को लेकर सरकारी तंत्र कितना सक्षम है यह पिछले दिनों मुज़फ़्फ़रपुर में बच्चों की मौत हुई थी। वहां प्रखंड स्तर पर स्वास्थ्य सेवाएं फेल सी रही थीं। बड़ी- बड़ी बातें हो कर रह गईं।'
 
अभी अलर्ट जारी होने के बावजूद संप हाउस बंद रहे। ऐसे में आम आदमी यह भरोसा नहीं कर पा रहा है कि महामारी से निबटने के लिए नगर निगम या स्वास्थ्य विभाग तत्परता से सामने आ पाएगा।
 
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