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Last Modified: मंगलवार, 12 दिसंबर 2017 (11:37 IST)

परमाणु परीक्षणों के बाद उत्तर कोरिया में झटके क्यों लग रहे हैं?

परमाणु परीक्षणों के बाद उत्तर कोरिया में झटके क्यों लग रहे हैं? - North Korea  earthquake
सितंबर में उत्तर कोरिया के परमाणु परीक्षण से न केवल कूटनीति की दुनिया में भूचाल आया बल्कि 6.3 तीव्रता के साथ धरती भी डोल गई। इसके बाद से ही उत्तर कोरिया की ज़मीन हिल रही है।
 
धरती के भीतर की गतिविधियों पर नज़र रखने वाली संस्था यूएस जियोलॉजिकल सर्वे का कहना है कि उत्तर कोरिया की ज़मीन के भीतर दो और हलचल दर्ज की गई हैं। इसके साथ ही ये सवाल भी पूछा जाने लगा है कि वहां चल क्या रहा है।
 
परमाणु परीक्षण के दौरान क्या हुआ?
तीन सितंबर को उत्तर कोरिया ने पुंगी-री में परमाणु परीक्षण किया। अब तक किए गए सभी परमाणु परीक्षणों में ये अब तक का सबसे ताकतवर टेस्ट था। उत्तर कोरिया ने दावा किया ये हाइड्रोजन बम का परीक्षण था यानी एक ऐसा बम जो परमाणु बम से सैकड़ों गुना ज़्यादा ताकतवर था। विशेषज्ञों ने चिंता जाहिर की है कि ये विस्फोट इतना ताकतवर था कि इससे आसपास के पर्वतीय इलाके अस्थिर हो सकते थे।
 
झटके अब भी क्यों महसूस हो रहे हैं?
यूएस जियोलॉजिकल सर्वे के अनुसार पिछले हफ्ते दर्ज किए भूकंप के झटकों से ये लगता है कि धरती खुद को स्थिर करने की कोशिश कर रही है। यूएसजीएस ने 3.9 और 2.4 तीव्रता के भूकंप के झटके फिलहाल दर्ज किए हैं।
 
यूएसजीएस के एक अधिकारी ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया, "जब आप बड़े परमाणु परीक्षण करते हैं तो पृथ्वी का क्रस्ट (भू-पर्पटी) इधर-उधर खिसकता है और इसे फिर से अपनी जगह पर आने में थोड़ा वक्त लगता है। छठे परमाणु परीक्षण के बाद हमने ऐसे ही कुछ झटके दर्ज किए हैं।"
 
पृथ्वी के क्रस्ट में हरकत आने का मतलब भूकंप से निकाला जाता है और वैज्ञानिकों का कहना है कि न्यूक्लियर टेस्ट के बाद ये झटके न केवल हफ्तों बल्कि महीनों तक आते रहते हैं। कैलिफोर्निया स्टेट पॉलिटेक्निक यूनिवर्सिटी में जियोफिजिक्स और सिस्मोलॉजी के प्रोफेसर डॉक्टर जैस्का पोलेट उत्तर कोरिया में परमाणु परीक्षण के बाद आ रहे इन झटकों से हैरान नहीं हैं।
 
उनका कहना है कि ज्यादा तीव्रता वाले किसी भी भूकंप के बाद कमजोर होते झटकों का महसूस किया जाना सामान्य बात है क्योंकि धरती के भीतर संतुलन बनाने के लिए गतिविधियां होती हैं।
 
मिका मैककिनोन जियोफिजिस्ट और आपदा पर शोध करती हैं। उन्होंने बीबीसी से कहा, "इस भूकंप का स्रोत एक परमाणु परीक्षण था। इस हकीकत से इसपर कोई फर्क नहीं पड़ता कि धरती अपनी ऊर्जा कैसे इस्तेमाल करेगी।"
 
लेकिन जब उत्तर कोरिया के सितंबर के न्यूक्लियर टेस्ट से जुड़े भूगर्भीय आंकड़ों का अमरीका के नेवाडा के आंकड़ों से तुलना की गई तो नतीज़े कुछ और निकलते हैं।
 
दशक भर पहले अमरीका ने नेवाडा में परमाणु परीक्षण किए थे। वहां ये पाया गया कि भूकंप के बाद के झटकों की तीव्रता और संख्या दोनों ही कम थी। हालांकि इसकी वजह ये भी हो सकती है कि उत्तर कोरिया और नेवाडा की भौगोलिक परिस्थितियां अलग-अलग हों।
 
क्या भूकंप के झटके परीक्षण स्थल को नष्ट कर सकते हैं?
सितंबर के परमाणु परीक्षण के बाद एक आशंका ये जताई गई कि इससे उत्तर कोरिया की सुरंगें बर्बाद हो जाएंगी। मैककिनोन कहती हैं, "क्षेत्र में आप जितनी अधिक ऊर्जा झोकेंगे, ज़मीन उतनी ही अधिक अस्थिर होगी। जिस तरह से वहां परमाणु परीक्षण हो रहे हैं, उससे साफ़ है कि वहाँ चट्टानों को नुकसान पहुँच रहा है।"
 
वो कहती हैं, "भूगर्भीय संकेतों से लग रहा है कि चट्टानें टूट रही हैं और ये और अधिक होगा। लेकिन ये जानने का कोई सटीक तरीका नहीं है कि क्या इससे पूरी सुरंग बर्बाद हो जाएगी। क्योंकि ये भूगर्भीय से ज़्यादा इंजीनियरिंग से जुड़ी हुई दिक्कत है।"
 
क्या भूकंप से ज्वालामुखी भी फूट सकते हैं?
उत्तर कोरिया ने जहाँ परमाणु परीक्षण किया है, उसके पास ही माउंट पाएक्तू पर एक सक्रिय ज्वालामुखी भी है। उत्तर कोरिया में माउंट पाएक्तू को पवित्र पहाड़ माना जाता है। मैककिनोन कहती हैं, "भूगर्भीय तरंगे ज्वालामुखी से टकरा रही हैं, लेकिन ऐसा नहीं लगता कि ये भूगर्भीय ऊर्जा ज्वालामुखी फूटने का कारण बन सकती है।"
 
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