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Written By BBC Hindi
Last Modified: बुधवार, 1 फ़रवरी 2023 (08:54 IST)

बजट 2023: आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया,निर्मला सीतारमण का काम कितना मुश्किल?

बजट 2023: आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया,निर्मला सीतारमण का काम कितना मुश्किल? - nirmala sitharaman budget 2023
निखिल इनामदार, बीबीसी संवाददाता
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एक फ़रवरी को वित्त वर्ष 2023-24 का बजट पेश करेंगी। 2024 में लोकसभा चुनाव से पहले ये मोदी सरकार का आख़िरी पूर्ण बजट होगा। लेकिन माना जा रहा है कि सरकार बजट में लोकलुभावन क़दम उठाने से बचेगी क्योंकि उसके सामने वित्तीय अनुशासन बनाए रखने यानी राजकोषीय घाटे को काबू में रखने की बड़ी चुनौती है।
 
हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि कोविड के बाद इकोनॉमी में अब तक की रिकवरी का रिकॉर्ड ज़्यादा अच्छा नहीं रहा है। लिहाज़ा समाज के कमज़ोर वर्ग को मदद की ज़रूरत है।
 
कोविड के दो साल बाद दुनिया का एक तिहाई हिस्सा मंदी के मुहाने पर खड़ा है। इस माहौल में 2023 में भारत की अर्थव्यवस्था में तुलनात्मक तौर पर रफ़्तार देखने के मिल सकती है। इसे ग्लोबल इकोनॉमी में 'ब्राइट स्पॉट' माना जा रहा है।
 
भारत के इस साल के जीडीपी टारगेट में संशोधन किया गया है फिर भी इसके दुनिया की सबसे तेज़ रफ़्तार वाली अर्थव्यवस्था बने रहने की संभावना है। ऐसा लगातार दूसरा साल होगा। इस साल (2022-23) विकास दर 6 से 6।5 फ़ीसदी रह सकती है, जो हर लिहाज़ से काफ़ी प्रभावी आंकड़ा है।
 
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी ख़बर क्या
पहले अर्थव्यवस्था के चमकदार पहलुओं की बात कर लेते हैं। भारत में पिछले कुछ समय में महंगाई घटी है। पेट्रोल-डीज़ल और गैस के दाम में बढ़ोतरी की रफ़्तार भी थम गई है। विदेशी निवेशकों का निवेश बढ़ा है और उपभोक्ता खर्च में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है।
 
भारत को मैन्युफ़ैक्चरिंग सेक्टर में 'चाइना प्लस वन' स्ट्रैटेजी से फ़ायदा मिलने की उम्मीद है क्योंकि ऐपल जैसी कंपनियां अपनी मैन्युफ़ैक्चरिंग को डाइवर्सिफ़ाई करने की रणनीति के तहत यहां अपनी मैन्युफ़ैक्चरिंग बढ़ा सकती हैं।
 
दरअसल ऐपल अपनी सप्लाई चेन के लिए चीन पर निर्भरता कम करना चाहती है। इसीलिए वो भारत में अपनी मैन्युफ़ैक्चरिंग को रफ़्तार देना चाहती है।
 
लेकिन विशेषज्ञों का मानना है है कि एशिया की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था भारत को अपनी क्षमताओं में और इज़ाफ़ा करना होगा। उसे आर्थिक गतिविधियों का दायरा और बढ़ाने की ज़रूरत है।
 
चिंता क्या है?
स्विट्ज़रलैंड के दावोस में हाल में ख़त्म हुई वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम की बैठकों में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) की चीफ़ इकोनॉमिस्ट गीता गोपीनाथ ने दो टूक कहा, ''राजनेताओं को अपनी राजकोषीय नीति ऐसी बनानी होगी जिससे समाज के सबसे कमज़ोर तबके को मदद मिले।''
 
भारत की आर्थिक विकास दर बेहतर रहने की भले ही संभावना जताई जा रही हो, लेकिन देश में बेरोज़गारी दर लगातार ऊंचे स्तर पर बरक़रार है। सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग द इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के दिसंबर 2022 के आंकड़ों के मुताबिक़ शहरों में बेरोज़गारी दर बढ़ कर 10 फ़ीसदी से अधिक हो गई है।
 
K शेप्ड रिकवरी से बढ़ी परेशानी
ब्रिटिश चैरिटी ऑक्सफ़ैम की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के शीर्ष एक फ़ीसदी लोगों के पास देश की संपत्ति का 40 फ़ीसदी है। हालांकि इसके आंकड़ों पर सवाल उठाए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि ऑक्सफ़ैम के गणना करने के तरीकों में ख़ामियां हैं।
 
लेकिन कई ऐसे आंकड़े हैं जिनसे पता चलता है कि सस्ते मकानों की मांग घट रही है। टू-व्हीलर की तुलना में लग्ज़री कारों की बिक्री बढ़ रही है। सस्ते सामानों की तुलना में प्रीमियम कंज़्यूमर सामानों सेल बढ़ी है।
 
ये महामारी के बाद अंग्रेजी के K शेप्ड रिकवरी का संकेत दे रही है। K शेप्ड रिकवरी का मतलब है अमीर और अमीर होते जा रहे हैं और ग़रीब और ग़रीब। देश के विशाल और सुदूर ग्रामीण इलाकों में लोगों का आर्थिक संकट बढ़ता जा रहा है। वे परेशान दिख रहे हैं।
 
सामाजिक सुरक्षा का क्या है हाल
बीबीसी ने हाल में पश्चिम बंगाल के पुरुलिया ज़िले के कई गांवों का दौरा किया था। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक़ यहां केंद्र और राज्य के बीच राजनीतिक झगड़े की वजह से मनरेगा के तहत मिलने वाले काम की मज़दूरी का भुगतान एक साल से भी अधिक वक्त से पीछे चल रहा है।
 
यहां रहने वाली सुंदर और उनके पति आदित्य सरदार ने मनरेगा के तहत चार महीने तक एक तालाब खोदा था। इन लोगों ने बीबीसी को बताया कि खाने-पीने की चीज़ें जुटाने के लिए उन्होंने क़र्ज़ लिया है। मज़दूरी देरी से मिलने का नतीजा ये हुआ कि उन्हें अपने बेटे को स्कूल से निकालना पड़ा। इस इलाके के कई आदिवासी गांवों में हमने परेशानियों की ऐसी ही कहानियां सुनीं।
 
सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे ने बीबीसी से कहा, ''केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल में एक करोड़ कामगारों का मनरेगा का पेमेंट एक साल से रोक रखा है। आर्थिक बदहाली और भारी बेरोज़गारी के इस दौर में ये अमानवीय है। देरी से मज़दूरी का भुगतान करने से जुड़े एक केस में सुप्रीम कोर्ट ने इसे 'बंधुआ मज़दूरी' क़रार दिया है।''
 
मनरेगा की मज़दूरी में ये देरी का मामला सिर्फ़ पश्चिम बंगाल तक ही सीमित नहीं है। पूरे देश में इस तरह की समस्या है। केंद्र सरकार को पूरे देश के मनरेगा मज़दूरों को अभी भी 4100 करोड़ रुपये देने हैं।
 
अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़ कहते हैं कि केंद्र सरकार सामाजिक सुरक्षा की स्कीमों में ख़र्च घटाना चाहती है। लिहाज़ा मनरेगा की मज़दूरी बकाया जैसी समस्याएं पैदा हो रही हैं।
 
द्रेज़ कहते हैं,'' एक वक़्त था जब मनरेगा में काम देने के लिए जीडीपी के एक फ़ीसदी तक ख़र्च बढ़ाया गया था, लेकिन अब ये घट कर एक फ़ीसदी से भी कम रह गया है। अगर इस बार के बजट में इसे फिर बढ़ा कर एक फ़ीसदी कर दिया जाए तो मुझे बड़ी ख़ुशी होगी। इसके साथ ही इस स्कीम में भ्रष्टाचार के लिए और ज़्यादा कोशिश करनी होगी।''
 
मोदी सरकार ने मनरेगा के तहत गांवों में मिलने वाले रोज़गार के लिए किया जाने वाला ख़र्च घटा दिया है। इसके साथ ही खाद्य और फ़र्टिलाइज़र सब्सिडी में भी ख़र्च का प्रावधान घटाया गया है।
 
हालांकि कोविड के समय शुरू की गई आपात सहायता स्कीमों और ग्लोबल जियोपॉलिटिक्स से लगे झटकों को कम करने के लिए पूरक आवंटन बढ़ाया गया है।
 
बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की चुनौती क्या है
मोदी सरकार के कार्यकाल में राजकोषीय संतुलन बिगड़ा हुआ है। लिहाज़ा निर्मला सीतारमण का काम कठिन हो गया है। उन्हें सामाजिक सुरक्षा स्कीमों को प्राथमिकता देने और आर्थिक विकास की रफ़्तार तेज़ करने वाले पूंजीगत ख़र्चों को बढ़ाने के बीच संतुलन कायम करना होगा। उन्हें राजकोषीय घाटा कम करने की कोशिश करनी होगी।
 
भारत का बजटीय राजकोषीय घाटा 6.4 फ़ीसदी है। पिछले दशक में ये औसतन 4 से 4.5 फ़ीसदी हुआ करता था। पिछले चार साल में मोदी सरकार का क़र्ज़ दोगुना बढ़ा है।
 
रॉयटर्स की इकोनॉमिस्ट पोल में कहा गया है कि सरकार खाद्य और उर्वरक सब्सिडी एक चौथाई घटा सकती है। सरकार ने कोविड में बांटे जाने वाले मुफ़्त राशन को ख़त्म कर दिया है।
 
इसके साथ ही चालू खाते का घाटा भी बढ़ता जा रहा है। यह देश के निर्यात और आयात का अंतर होता है। यानी निर्यात से कमाई की तुलना में आयात का खर्चा बढ़ रहा है। यह भी सरकार के लिए चिंता का विषय बना हुआ है।
 
सरकार क्या कर सकती है?
डीबीएस ग्रुप रिसर्च की एक रिपोर्ट में चीफ़ इकोनॉमिस्ट तैमूर बेग़ और डेटा एनालिस्ट डेजी शर्मा ने कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था इस वक्त बाहरी मांग, विदेशी निवेशक के सेंटिमेंट और क्षेत्रीय व्यापार के बदलते रुख़ से प्रभावित है। चूंकि पश्चिमी देश मंदी के दौर में पहुंच गए हैं इसलिए भारतीय निर्यात पर इसका असर पड़ सकता है।
 
घरेलू मोर्चे पर वित्तीय हालात ज़्यादा अच्छे नहीं हैं। लिहाज़ा घरेलू अर्थव्यवस्था में मांग ज़्यादा बढ़ती नहीं दिखती। आरबीआई फ़रवरी में ब्याज दरें बढ़ा सकता है। हालांकि अगले एक साल तक इस पर रोक लगने की उम्मीद है।
 
मोदी सरकार के सामने इस वक्त कड़ी आर्थिक चुनौतियां हैं। भले ही भारतीय अर्थव्यवस्था ने दुनिया की दूसरी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में बढ़िया प्रदर्शन किया हो। सरकार को भारतीय अर्थव्यवस्था में लगातार ढांचागत सुधारों पर ज़ोर देना होगा। बजट के इतर भी उसे इसके लिए एलान करने होंगे ताकि सरकार के पास लगातार कम हो रहे पैसे का अधिकतम इस्तेमाल हो सके।
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