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विज्ञान ने कैसे 'निर्भया' के दोषियों को फाँसी तक पहुँचाया

विज्ञान ने कैसे 'निर्भया' के दोषियों को फाँसी तक पहुँचाया - Nirbhaya rape case
- सरोज सिंह
निर्भया गैंगरेप मामले को पांच साल हो गए हैं। 5 मई 2017 को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुनाते हुए चारों दोषियों की मौत की सज़ा को बराकरार रखा था।
 
कम लोग जानते हैं कि इस केस के दोषी विनय शर्मा और अक्षय कुमार को फांसी तक पहुंचाने में ऑडोंटोलॉजी नाम की फॉरेंसिक साइंस का बहुत बड़ा योगदान रहा है। पूरे मामले में जांच अधिकारी रहे इंस्पेक्टर अनिल शर्मा से बीबीसी ने पांच साल बाद विस्तार से बात की।
 
ऑडोंटिक्स का मतलब क्या है?
अनिल शर्मा ने बताया, "मैं 15-16 दिसंबर 2012 की रात को वसंत विहार में रात की ड्यूटी पर तैनात था। रात के 1.14 मिनट पर थाने में एक कॉल आई। बताया गया रेप केस है, पीसीआर वैन ने लड़की को सफ़दरजंग अस्पताल में भर्ती कराया है। आप जल्दी आइए।"
 
"मैं अपनी टीम के साथ सफ़दरजंग पहुंचा। मेरे साथ मेरे चार और साथी थे। पहली बार जब मैंने निर्भया के शरीर को देखा तो उसके शरीर पर दांत काटने के इतने निशान थे मानो जानवरों के बीच रही हो वो। मैं एकदम सिहर सा गया। पहली नज़र में, मैं बहुत ज्यादा देर तक उसको देखने की हिम्मत नहीं जुटा सका।"
 
अनिल आगे बताते हैं, "निर्भया से मिलकर आने के बाद मैंने सबसे पहले उसके साथी का कॉल डिटेल निकलवाया और फिर फ़ोन की लोकेशन ट्रेस करने को कहा। इससे ये पता लगाने में सहूलियत मिली की बीती रात बस किस इलाके से गुज़री थी।"
 
"मेरे मन में निर्भया की वो तस्वीर लगातार कौंध रही थी। इसलिए मैंने इसके बारे में डॉक्टरों से पूछा और इंटरनेट पर पढ़ना शुरू किया। बहुत खोजने पर पता चला कि ऑडोंटोलॉजी साइंस इस मामले में मेरी कुछ मदद कर सकता है।"
 
ऑडोंटोलॉजी दांतों के साइंस को कहते हैं। इस साइंस का इस्तेमाल अक्सर लोग अपनी मुस्कुराहट को ठीक करने के लिए या फिर सुंदर दिखने के लिए करते हैं। इसके अलावा मुंह के जबड़े ठीक से न खुलने पर या आड़ा-तिरछा खुलने पर भी इसकी मदद ली जाती है।
 
पहली बार ली ऑडोंटोलॉजी की मदद
लेकिन इसी साइंस में एक ब्रांच फॉरेंसिक डेंटल साइंस का भी होता है जो न्यायिक प्रक्रिया में दांतों और जबड़े की मदद से जु्र्म को सुलझाने में मदद करती है। ऐसा इसलिए मुमकिन हो पाता है क्योंकि किसी भी दो इंसान के दांतों का पैटर्न एक जैसा नहीं होता।
 
अनिल कहते हैं, "अपने पुलिस करियर में उन्होंने किसी अपराध में आरोपी को पकड़वाने के लिए कभी इस साइंस की मदद नहीं ली थी।" उन दिनों को याद करते हुए अनिल का गला एक बार के लिए रुंध-सा गया लेकिन आंखों के निकलने को बेताब पानी को उन्होंने रोके रखा।
 
ऑडोंटिक्स साइंस ने कैसे की मदद?
उन्होंने आगे की बात बताई, "मैंने पता लगाया की कर्नाटक के धारवाड़ में एक वैज्ञानिक हैं जो मेरी मदद कर सकते हैं। मैंने उनसे सम्पर्क साधा। आखिरकार मैंने उन्हें इस जांच में मदद करने के लिए राज़ी कर ही लिया।"
 
कर्नाटक के धारवाड़ में डॉक्टर असित बी आचार्य से भी बीबीसी ने निर्भया मामले पर बात की। डॉक्टर असित, एसडीएम कॉलेज ऑफ डेंटल साइंस धारवाड़ में फॉरेंसिक ऑडोंटोलॉजी के हेड हैं।
 
डॉक्टर असित के मुताबिक, "17 दिसंबर 2012 को ही दिल्ली पुलिस के कहने पर सफ़दरजंग अस्पताल के डॉक्टर ने मुझ से सम्पर्क किया था। उसी वक्त मैंने उन्हें निर्भया के शरीर के दांतों के निशान की फ़ोटो खींच कर रखने की सलाह दी थी।"
 
वही फोटो पूरी जांच में मील का पत्थर साबित हुई। डॉक्टर असित कहते हैं, "ऑडोंटोलॉजी फॉरेंसिक साइंस तभी मददगार साबित होती है जब पीड़ित के शरीर पर दांतों के निशान के सामने स्केल रख कर उनकी क्लोज़-अप फोटो खींचीं जाए और आरोपी के दांतों के निशान के साथ इसे मैच किया जाए। "
 
इलाज़ और उम्मीद
इलाज के दौरान अनिल निर्भया से भावनात्मक तौर पर जुड़ गए थे। अनिल निर्भया को याद करते हुए एक कहानी सुनाते हैं।
 
"एक लड़की बीमार थी। अस्पताल में अपनी खिड़की से बाहर एक पेड़ को देखती थी। उस पेड़ के पत्ते जैसे जैसे झड़ते थे, वैसे वैसे लड़की को उसकी मौत करीब आते दिख रही थी। फिर एक दिन लड़की ने अपने पिता से कहा, "जिस दिन इस पेड़ के सब पत्ते झड़ जाएंगे उस दिन मैं भी नहीं बचूंगी। लड़की की बात सुन कर पिता ने पेड़ का आखिरी पत्ता पेड़ से ही चिपका दिया। अगली सुबह बीमार लड़की को नया जीवन मिला और उसमें नए सिरे से जीने की इच्छा जाग गई।"
 
निर्भया के जीवन में भी अनिल उस पत्ते को चिपकाना चाहते थे, ताकि वो दोबारा से जीवन जीने की चाहत रखने लगे।
 
देश में जब निर्भया का इलाज चल रहा था तब अनिल रोज निर्भया से अस्पताल में मिलने जाया करते थे। वो अस्पताल के कमरे में निर्भया के लिए एक टीवी लगवाने का वादा कर गए थे लेकिन उनकी ये हसरत दिल में ही रह गई। तब तक सरकार निर्भया को इलाज के लिए सिंगापुर ले जाने का इंतजाम कर चुकी थी। जहां उसकी मौत हो गई। लेकिन अनिल, निर्भया मामले में दोषियों को सज़ा दिलवाना चाहते थे।
 
उन्होंने डॉ. असित के कहने के मुताबिक, "दो जनवरी 2013 को दिल्ली पुलिस के एक सहकर्मी को निर्भया के शरीर पर मौजूद दांतों के निशान की फोटो और पकड़े गए आरोपियों के दांतों के निशान के साथ कर्नाटक के धारवाड़ भेजा।"
 
ऑडोंटोलॉजी फॉरेंसिक साइंस के बारे में डॉ असित बताते हैं कि ये साइंस पेचीदा है। कोई निश्चित समय नहीं होती जिसमें रिपोर्ट आ सके। उनके मुताबिक "ऐसे मामले में जितने ज्यादा दांतों के निशान होंगे और जितने ज्यादा संदिग्ध होंगे, जांच और रिपोर्ट तैयार करने में उतनी ही ज्यादा मुश्किल होती है।"
 
लेकिन निर्भया मामला अलग था। इस मामले में डॉ असित ने रोज 10 से 12 घंटे की मेहनत की। पांच दिन के इंतजार के बाद निर्भया मामले में ऑडोंटोलॉजी रिपोर्ट आई। 
 
रिपोर्ट के मुताबिक, चार आरोपी में से दो आरोपी, विनय शर्मा और अक्षय कुमार सिंह के दांतों के निशान निर्भया के शरीर पर पड़े निशानों से मेल खाते पाए गए। अनिल के मुताबिक "पूरी जांच में ये सबसे महत्वपूर्ण तथ्य था जिसने निर्भया मामले में विनय शर्मा और अक्षय कुमार को फांसी के फंदे तक पहुंचाया।"
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