मंगलवार, 26 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. Neeraj Chopra wins gold for India in athletics after 100 yrs
Written By BBC Hindi
Last Modified: रविवार, 8 अगस्त 2021 (12:49 IST)

नीरज चोपड़ा: एथलेटिक्स में ओलंपिक मेडल आने में लगे 100 साल, मिल्खा सिंह और पीटी ऊषा ऐसे चूके थे

नीरज चोपड़ा: एथलेटिक्स में ओलंपिक मेडल आने में लगे 100 साल, मिल्खा सिंह और पीटी ऊषा ऐसे चूके थे - Neeraj Chopra wins gold for India in athletics after 100 yrs
नीरज चोपड़ा ने टोक्यो ओलंपिक में वह कारनामा कर दिखाया है जो भारतीय इतिहास में इससे पहले कभी नहीं हुआ था। वो ओलंपिक खेलों की एथलेटिक्स प्रतियोगिता में मेडल लाने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बन गए हैं।
 
आधुनिक ओलंपिक खेलों का इतिहास भी 125 साल पुराना है। इन सवा सौ सालों में अब तक कोई भारतीय ट्रैक एंड फ़ील्ड प्रतियोगिताओं में कोई मेडल नहीं हासिल कर सका था।
 
वैसे भारत ने 1920 के एंटवर्प ओलंपिक खेलों से अपने खिलाड़ियों को ओलंपिक भेजना शुरू किया था, इसलिए कहा जा रहा है कि नीरज चोपड़ा ने 100 साल से चले आ रहे मेडल के सूनेपन को ख़त्म कर दिया है।
 
नीरज ने जो कामयाबी टोक्यो में हासिल की है, उसकी शुरुआत के बारे में भारतीय एथलेटिक्स संघ के पूर्व सीईओ मनीष कुमार ने बताया, "नीरज ने ऐतिहासिक कामयाबी हासिल की। उनकी कामयाबी में उनका, उनके परिवार का और उनके कोच का तो योगदान है ही। एथलेटिक्स फ़ेडरेशन भी उन्हें हर तरह की सुविधाएं मुहैया करा रहा था।"
 
मनीष कुमार इन दिनों एथलेटिक्स फ़ेडरेशन से नहीं जुड़े हैं लेकिन वे कहते हैं कि ललित भनोत की अगुवाई में 10 साल पहले फ़ेडरेशन ने जैवलीन थ्रो के एथलीटों को तैयार करने की जो मुहिम शुरू की थी, उसका नतीजा अब मिला है।
 
ख़ुद को लगातार माँजते गए नीरज
उन्होंने बताया, "साल 2016 में नीरज जब वर्ल्ड जूनियर इवेंट में चैपियन बने थे तब फ़ेडरेशन ने गैरी कालवर्ट को टीम के कोच के तौर पर हायर किया था। उन्होंने महज़ दो साल में नीरज को निखारा जिसके बाद से वे इंटरनेशनल इवेंट में लगातार कामयाबी हासिल करते रहे। उन्होंने नीरज को एक तरह से परफ़ेक्ट बना दिया।"
 
हालांकि कालवर्ट ने अप्रैल, 2018 में भारतीय दल के कोच से इस्तीफ़ा दे दिया था और महज़ 63 साल की उम्र में उनका निधन जुलाई, 2018 में हो गया था। लेकिन नीरज चोपड़ा ने उनसे जो सबक़ लिए उसे वो संजोते गए और ख़ुद को माँजते गए।
 
नीरज चोपड़ा के चाचा भीम चोपड़ा ने बताया, "नीरज ने जितनी मेहनत की है, उसका परिणाम मिला है। वो खेल के पीछे अपना घर-परिवार सब भुलाकर लगा रहा था। हम लोगों को बेहद खु़शी है कि उसकी मेहनत ने वो कर दिखाया जो अब तक कोई नहीं कर पाया था। पूरा देश उस पर नाज़ कर रहा है।"
 
नीरज चोपड़ा की सबसे बड़ी ख़ासियत के बारे में मनीष कुमार ने बताया कि जैवलीन थ्रो में खिलाड़ियों के कंधे जल्दी चोटिल होते हैं लेकिन नीरज ने ख़ुद को फ़िट बनाए रखा है और यही उनकी कामयाबी का सबसे बड़ा राज़ है।
 
दरअसल नीरज चोपड़ा से पहले ओलंपिक खेलों के इतिहास में दो बार दो भारतीय एथलीट ओलंपिक मेडल हासिल करने के बेहद क़रीब पहुंचे लेकिन सेकेंड के भी सौवें हिस्से से पदक से चूक गए थे।
 
शुरू से आख़िर तक टॉप पर बने रहे नीरज
नीरज के साथ ऐसा कोई जोख़िम नहीं रहा। वे क्वॉलिफाइंग राउंड से ही पहले स्थान पर रहे और आख़िर तक शीर्ष स्थान पर बने रहे।
 
ओलंपिक में पहली बार हिस्सा लेते हुए उन्होंने गोल्ड मेडल पर निशाना साधकर अपना नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज करा लिया है।
 
उन्हें इस बात का भी बख़ूबी एहसास था कि उनकी उपलब्धि कई एथलीटों के सपने को पूरा करने जैसी है। लिहाज़ा, नीरज ने अपनी जीत उन खिलाड़ियों को समपर्ति की, जो मामूली अंतर से मेडल जीतने से चूक गए हैं।
 
नीरज चोपड़ा ने अपनी कामयाबी को भारत के लीजेंड एथलीटों को समर्पित किया है। मिल्खा सिंह के बेटे जीव मिल्खा सिंह ने ट्वीट करके कहा है कि उनके पिता को जिसका इंतज़ार था वह पूरा हो गया।
 
ब्रिटेन में जन्मे नार्मन ने दिलाए थे दो सिल्वर मेडल
वैसे इंटरनेशनल ओलंपिक कमेटी के रिकॉर्ड बुक की नज़रों से देखें तो नीरज चोपड़ा से पहले भी भारत को फ़ील्ड एंड ट्रैक इवेंट में ओलंपिक मेडल मिल चुका है। यह पदक 1900 के पेरिस ओलंपिक में नार्मन प्रिचार्ड ने दिलाया था।
 
नार्मन प्रिचार्ड भारत में जन्मे ब्रिटिश थे लेकिन उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए पेरिस में मेडल जीते थे। प्रिचार्ड ने पेरिस ओलंपिक में दौड़ की पाँच प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया था। इनमें 200 मीटर और 200 मीटर हर्डल में उन्होंने सिल्वर मेडल जीतने का करिश्मा दिखाया था।
 
ओलंपिक में मेडल हासिल करने के बाद प्रिचार्ड दो साल तक भारतीय फुटबॉसल संघ के सचिव रहे और उसके बाद 1905 में ब्रिटेन लौट गए। वो ज़्यादा समय तक वहाँ भी नहीं टिके और अमेरिका जाकर एक्टिंग करने लगे। नार्मन प्रिचार्ड हॉलीवुड की फ़िल्मों में काम करने वाले पहले ओलंपियन थे।
 
वर्ल्ड एथलेटिक्स फेडरेशन के आंकड़ों के मुताबिक पेरिस ओलंपिक में प्रिचार्ड ने ग्रेट ब्रिटेन की ओर से हिस्सेदारी की थी। वैसे भी प्रिचार्ड भारतीय नहीं थे और भारतीय ओलंपिक संघ की शुरुआत भी 1920 में मानी जाती है।
 
हालांकि इसके बाद केवल दो बार ऐसा मौका आया जब ट्रैक एंड फ़ील्ड का कोई भारतीय एथलीट मेडल के क़रीब पहुंचा।
 
ऐसे चूक गए थे मिल्खा सिंह
ऐसा मौका पहली बार साल 1960 के रोम ओलंपिक में देखने को मिला था। तब 'उड़न सिख' के नाम से मशहूर मिल्खा सिंह के सामने मेडल जीतने का मौका था। 400 मीटर फ़ाइनल में उन्हें पदक का दावेदार माना जा रहा था लेकिन वो सेकेंड के दसवें हिस्से से मेडल जीतने से चूक गए थे।
 
मिल्खा सिंह ने वैसे तो तीन ओलंपिक खेलों में हिस्सा लिया लेकिन वो पदक के क़रीब रोम में ही पहुंचे थे और वो पदक उनके हाथों के बदले पैरों से फिसल गया था।
 
इस मेडल के लिए मिल्खा सिंह ने अपना पूरा दमखम झोंक दिया था। फ़ाइनल राउंड की रेस में वे पहले 200 मीटर तक सबसे आगे थे और 250 मीटर के बाद उन्होंने खुद को थोड़ा धीमा किया और इसका मलाल उन्हें ताउम्र रहा।
 
भारत के प्रसिद्ध ओलंपिक खिलाड़ियों के संस्मरण पर आधारित 'माय ओलंपिक जर्नी' में मिल्खा सिंह ने लिखा था, ''पीछे मुड़कर देखता हूं तो लगता है कि जीता हुआ गोल्ड मेडल मैं हार गया।''
 
इस मुक़ाबले में अमेरिका के ओटिस डेविस ने गोल्ड मेडल जीता था और जर्मनी के कार्ल कॉफमैन ने सिल्वर मेडल और इन दोनों ने वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़े थे। मिल्खा सिंह साउथ अफ्ऱीका के मैलकम स्पेंस से फ़ोटो फिनिश में पिछड़ गए थे। उन्होंने 45।6 सेकेंड का समय निकाला था जो 44 सालों तक नेशनल रिकॉर्ड बना रहा था।
 

ये भी पढ़ें
गिलहरियों की उछलकूद में संतुलन कहां से आता है