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Last Modified: शुक्रवार, 6 जुलाई 2018 (10:44 IST)

नज़रियाः अंतरिक्षयात्रियों को सुरक्षित वापस लाने की तकनीक, अब भारत के पास भी

नज़रियाः अंतरिक्षयात्रियों को सुरक्षित वापस लाने की तकनीक, अब भारत के पास भी | ISRO
- पल्लव बागला (विज्ञान मामलों के जानकार)
 
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को अपने मानव मिशन की दिशा में एक बड़ी सफलता मिली है। दरअसल, इसरो ने क्रू एस्केप सिस्टम का सफल परीक्षण किया है जो अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा को लेकर बड़ा क़दम है।
 
 
क्रू एस्केप सिस्टम अंतरिक्ष अभियान को रोके जाने की स्थिति में अंतरिक्ष यात्रियों को वहां से निकलने में मदद करेगा। इससे पहले सिर्फ़ तीन देशों- अमेरिका, रूस और चीन के पास इस तरह की सुविधा है।
 
 
गुरुवार को पांच घंटे चली उल्टी गिनती के बाद श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से डमी क्रू मॉड्यूल के साथ 12.6 टन वज़नी क्रू स्केप सिस्टम का सुबह 7 बजे परीक्षण किया गया। यह परीक्षण 259 सेकेंड में सफलतापूर्वक ख़त्म हो गया। इस दौरान क्रू मॉड्यूल के साथ क्रू एस्केप सिस्टम ऊपर की ओर उड़ा और फिर श्रीहरिकोटा से 2.9 किलोमीटर दूर बंगाल की खाड़ी में पैराशूट की मदद से उतर गया।
 
 
इसरो का यह परीक्षण कितना बड़ा और महत्वपूर्ण है? भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम को इससे क्या उपलब्धि हासिल हुई और मानव मिशन की दिशा में इसे बड़ी सफलता क्यों कहा जा रहा है?

 
पढ़ें पल्लव बागला का नज़रियाः- 
भारत अपनी धरती और अपने रॉकेट के ज़रिए किसी भारतीय को अंतरिक्ष में भेजना चाहता है। इसरो ने क्रू मॉड्यूल के एस्केप सिस्टम का सफल परीक्षण किया है जो एक बड़ा कदम है क्योंकि इसके सफल परीक्षण के बिना भारतीय अंतरिक्ष यात्री को नहीं भेजा जा सकता। अंतरिक्ष में अपने यात्री को भेजने की दिशा में यह परीक्षण बड़ा कदम है।

क्या है क्रू एस्केप सिस्टम?
किसी अंतरिक्ष यात्री को स्पेस में भेजे जाने के दौरान जब रॉकेट लॉन्च पैड से छोड़ा जाता है तब क्रू को सबसे ज़्यादा ख़तरा होता है। लॉन्च पैड पर होने के दौरान अगर फट जाए या रॉकेट में आग लग जाए या कुछ अन्य गड़बड़ी हो जाए तो उस वक्त अंतरिक्ष यात्रियों को कैसे बचा सकते हैं, इसके लिए एक टेस्ट होता है जिसे भारत ने पहली ही बार में पास कर लिया है।
 
 
अभी ह्यूमन स्पेस फ्लाइट (मानव की अंतरिक्ष की यात्रा) सरकार की ओर से पूरी तरह से क्लियर नहीं है और यह कार्यक्रम अब सूक्ष्म तकनीक विकास की ओर बढ़ा है।
 
 
इसरो कर रहा कई परीक्षण
इसके पहले 2007 में सैटेलाइट रीएन्ट्री परीक्षण, 2014 में जब जियोसिंक्रोनस उपग्रह प्रक्षेपण वाहन (जीएसएलवी) मार्क-3 का परीक्षण हुआ था तब भारत ने एक डमी क्रू मॉड्यूल टेस्ट किया था। उसके साथ साथ अंतरिक्ष यात्रियों के स्पेस सूट का टेस्ट भी हुआ है।
 
 
बहुत सारे परीक्षण साथ साथ चल रहे हैं। इसरो छोटे छोटे कदम उठाकर सूक्ष्म तकनीक के विकास में लगा है। वह अंतरिक्ष में भारतीयों को भेजने की तैयारी कर रहा है ताकि जब सरकार से अंतरिक्षयात्रियों को भेजने में की हरी झंडी मिले तो वो आसानी से और जल्दी ऐसा कर सके।
 
 
लो अर्थ ऑरबिट में होगा पहला टेस्ट
जब भारत पहली बार अपने अंतरिक्ष यात्रियों को भेजेगा तो उन्हें धरती की कम दूरी की कक्षा (लो अर्थ ऑरबिट) में भेजा जाएगा ताकि उन्हें सफलतापूर्वक वापस भी लाया जाए।
 
 
ये उपग्रह की तरह नहीं होते हैं जहां रोबोटिक मिशन होते हैं। यहां भेजे गए अंतरिक्ष यात्रियों को हर हालत में सुरक्षित वापस लाने के लिए तकनीक की मजबूती और उसकी गुणवत्ता बहुत अधिक होना ज़रूरी है। भारत अभी उसकी ओर कदम बढ़ा रहा है।
 
 
ह्यूमन स्पेस फ्लाइट
अभी तक "ह्यूमन स्पेस फ्लाइट" करने वाले केवल तीन ही देश हुए हैं। रूस, अमेरिका और चीन। इन तीनों स्पेस में अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने और वापस लाने के मामले में आत्मनिर्भर हैं।
 
 
अगर भारत अंतरिक्ष में यात्री भेजने में कामयाब रहा तो वो ऐसा करने वाला चौथा देश बन जाएगा। अंतरिक्ष के क्षेत्र में इसरो लगातार बहुत अहम छलांग लगा रहा है और "क्रू मॉड्यूल स्केप सिस्टम" का टेस्ट "ह्यूमन स्पेस फ्लाइट" के लिए बहुत अहम था।
 
 
(पल्लव बागला से बातचीत की बीबीसी संवाददाता आदर्श राठौर ने)
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