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Written By BBC Hindi
Last Modified: शुक्रवार, 19 जून 2020 (11:33 IST)

भारत-चीन सीमा विवादः अंतरराष्ट्रीय सीमा, नियंत्रण रेखा और वास्तविक नियंत्रण रेखा क्या हैं?

भारत-चीन सीमा विवादः अंतरराष्ट्रीय सीमा, नियंत्रण रेखा और वास्तविक नियंत्रण रेखा क्या हैं? - India China border dispute :  Internation borer, LAC and LOC
गलवान घाटी, अक्साई चीन, कालापानी, लिपुलेख, नियंत्रण रेखा और वास्तविक नियंत्रण रेखा। ये वो शब्द हैं जिनका ज़िक्र अमूमन भारत-चीन, भारत-नेपाल या फिर भारत-पाकिस्तान सीमा विवाद के साथ अक्सर होता है।
 
पिछले दिनों लिपुलेख और कालापानी को लेकर नेपाल के साथ जारी सीमा विवाद थमा भी नहीं था कि चीन सीमा पर दोनों देशों के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हो गई।
 
जिस जगह पर ये झड़प हुई, उसे भारत और चीन के बीच की वास्तविक नियंत्रण रेखा के नाम से भी जाना जाता है। तो भारत की अंतरराष्ट्रीय सीमा, नियंत्रण रेखा और वास्तविक नियंत्रण रेखा - ये तीनों आख़िर हैं क्या?
 
भारत की सीमा
भारत की थल सीमा (लैंड बॉर्डर) की कुल लंबाई 15,106.7 किलोमीटर है जो कुल सात देशों से लगती है। इसके अलावा 7516.6 किलोमीटर लंबी समुद्री सीमा है।
 
भारत सरकार के मुताबिक़ ये सात देश हैं, बांग्लादेश (4,096.7 किमी), चीन (3,488 किमी), पाकिस्तान (3,323 किमी), नेपाल (1,751 किमी), म्यांमार (1,643 किमी), भूटान (699 किमी) और अफ़ग़ानिस्तान (106 किमी)।
 

भारत-चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा
सबसे पहले तो ये जान लीजिए कि भारत चीन के साथ 3,488 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है। ये सीमा जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुज़रती है।
 
ये तीन सेक्टरों में बंटी हुई है - पश्चिमी सेक्टर यानी जम्मू-कश्मीर, मिडिल सेक्टर यानी हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड और पूर्वी सेक्टर यानी सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश।
 
हालांकि दोनों देशों के बीच अब तक पूरी तरह से सीमांकन नहीं हुआ है। क्योंकि कई इलाक़ों को लेकर दोनों के बीच सीमा विवाद है। भारत पश्चिमी सेक्टर में अक्साई चीन पर अपना दावा करता है, जो फ़िलहाल चीन के नियंत्रण में है। भारत के साथ 1962 के युद्ध के दौरान चीन ने इस पूरे इलाक़े पर क़ब्ज़ा कर लिया था।
 
वहीं पूर्वी सेक्टर में चीन अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता है। चीन कहता है कि ये दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा है। चीन तिब्बत और अरुणाचल प्रदेश के बीच की मैकमोहन रेखा को भी नहीं मानता है। वो अक्साई चीन पर भारत के दावे को भी ख़ारिज करता है।
 
इन विवादों की वजह से दोनों देशों के बीच कभी सीमा निर्धारण नहीं हो सका। हालांकि यथास्थिति बनाए रखने के लिए लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल यानी एलएसी टर्म का इस्तेमाल किया जाने लगा। हालांकि अभी ये भी स्पष्ट नहीं है। दोनों देश अपनी अलग-अलग लाइन ऑफ़ एक्चुअल कंट्रोल बताते हैं।
 
इस लाइन ऑफ़ एक्चुएल कंट्रोल पर कई ग्लेशियर, बर्फ़ के रेगिस्तान, पहाड़ और नदियां पड़ते हैं। एलएसी के साथ लगने वाले कई ऐसे इलाक़े हैं जहां अक्सर भारत और चीन के सैनिकों के बीच तनाव की ख़बरें आती रहती हैं।
 
भारत-पाकिस्तान नियंत्रण रेखा
सात दशकों से भी ज़्यादा वक़्त गुजर चुका है, लेकिन जम्मू और कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव का मुख्य मुद्दा बना हुआ है। ये क्षेत्र इस समय एक नियंत्रण रेखा से बँटा हुआ, जिसके एक तरफ़ का हिस्सा भारत के पास है और दूसरा पाकिस्तान के पास।
 
1947-48 में भारत और पाकिस्तान के बीच जम्मू और कश्मीर के मुद्दे पर पहला युद्ध हुआ था जिसके बाद संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में युद्धविराम समझौता हुआ। इसके तहत एक युद्धविराम सीमा रेखा तय हुई, जिसके मुताबिक़ जम्मू और कश्मीर का लगभग एक तिहाई हिस्सा पाकिस्तान के पास रहा जिसे पाकिस्तान 'आज़ाद कश्मीर' कहता है।
 
लगभग दो तिहाई हिस्सा भारत के पास है जिसमें जम्मू, कश्मीर घाटी और लद्दाख शामिल हैं। 1972 के युद्ध के बाद शिमला समझौता हुआ जिसके तहत युद्धविराम रेखा को 'नियंत्रण रेखा' का नाम दिया गया। भारत और पाकिस्तान के बीच ये नियंत्रण रेखा 740 किलोमीटर लंबी है।
 
यह पर्वतों और रिहाइश के लिए प्रतिकूल इलाक़ों से गुजरती है। कुछ जगह पर यह गाँवों को दो हिस्सों में बाँटती है तो कहीं पर्वतों को। वहाँ तैनात भारत और पाकिस्तान के सैनिकों के बीच कुछ जगहों पर दूरी सिर्फ़ सौ मीटर है तो कुछ जगहों पर यह पाँच किलोमीटर भी है। दोनों देशों के बीच नियंत्रण रेखा पिछले पचास साल से विवाद का विषय बनी हुई है।
 
मौजूदा नियंत्रण रेखा, भारत और पाकिस्तान के बीच 1947 में हुए युद्ध के वक़्त जैसी मानी गई थी, क़रीब-क़रीब वैसी ही है। उस वक़्त कश्मीर के कई इलाकों में लड़ाई हुई थी।
 
उत्तरी हिस्से में भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सैनिकों को करगिल शहर से पीछे और श्रीनगर से लेह राजमार्ग तक धकेल दिया था। 1965 में फिर युद्ध छिड़ा। लेकिन तब लड़ाई में बने गतिरोध की वजह से यथास्थिति 1971 तक बहाल रही। 1971 में एक बार फिर युद्ध हुआ।
 
1971 के युद्ध में पूर्वी पाकिस्तान टूट कर बांग्लादेश बन गया। उस वक़्त कश्मीर में कई जगहों पर लड़ाई हुई और नियंत्रण रेखा पर दोनों देशों ने एक-दूसरे की चौकियों पर नियंत्रण किया। भारत को करीब तीन सौ वर्ग मील ज़मीन मिली। यह नियंत्रण रेखा के उत्तरी हिस्से में लद्दाख इलाक़े में थी।
 
1972 के शिमला समझौते और शांति बातचीत के बात नियंत्रण रेखा दोबारा स्थापित हुई। दोनो पक्षों ने ये माना कि जब तक आपसी बातचीत से मसला न सुलझ जाए तब तक यथास्थिति बहाल रखी जाए। यह प्रक्रिया लंबी खिंची। फ़ील्ड कमांडरों ने पांच महीनों में करीब बीस नक्शे एक-दूसरे को दिए। आख़िरकार समझौता हुआ।
 
इसके अलावा भारत पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय सीमा राजस्थान, गुजरात, जम्मू और गुजरात से लगती है।
 
सियाचिन ग्लेशियरः एक्चुअल ग्राउंड पोजिशन लाइन
सियाचिन ग्लेशियर के इलाके में भारत-पाकिस्तान की स्थिति 'एक्चुअल ग्राउंड पोजिशन लाइन' से तय होती है। 126.2 किलोमीटर लंबी 'एक्चुअल ग्राउंड पोजिशन लाइन' की रखवाली भारतीय सेना करती है।
 
80 के दशक से सबसे भीषण संघर्ष सियाचीन ग्लेशियर में चल रहा है। शिमला समझौते के समय न तो भारत ने और न ही पाकिस्तान ने ग्लेशियर की सीमाएँ तय करने के लिए आग्रह किया।
 
कुछ विश्लेषकों का कहना है कि शायद इसकी वजह यह थी कि दोनो ही देशों ने इस भयानक इलाक़े को अपने नियंत्रण लेने की ज़रूरत नहीं समझी। कुछ यह भी कहते हैं कि इसका मतलब यह होता कि कश्मीर के एक हिस्से पर रेखाएँ खींचना जो चीन प्रशासित है मगर भारत उन पर दावा करता है।
 
भारत-भूटान सीमा
भूटान के साथ लगने वाली भारत की अंतरराष्ट्रीय सीमा 699 किलोमीटर लंबी है। सशस्त्र सीमा बल इसकी सुरक्षा करता है। भारत के सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, असम और पश्चिम बंगाल राज्य की सीमा भूटान से लगती है।
 
भारत-नेपाल सीमा
उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और सिक्किम की सीमाएं नेपाल के साथ लगती है। भारत-नेपाल अंतरराष्ट्रीय सीमा की लंबाई 1751 किलोमीटर है और इसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी भी सशस्त्र सीमा बल के पास ही है। दोनों देशों की सरहद ज़्यादातर खुली हुई और आड़ी-तिरछी भी है।
 
हालांकि अब सीमा पर चौकसी के लिए सुरक्षा बलों की तैनाती बढ़ी है। मुश्किल इस बात को लेकर ज़्यादा है कि दोनों देशों की सीमाओं का निर्धारण पूरी तरह से नहीं हो पाया है। महाकाली (शारदा) और गंडक (नारायणी) जैसी नदियां जिन इलाक़ों में सीमांकन तय करती है, वहां मॉनसून के दिनों में आने वाली बाढ़ से तस्वीर बदल जाती है।
 
नदियों का रुख़ भी साल दर साल बदलता रहता है। कई जगहों पर तो सीमा तय करने वाले पुराने खंभे अभी भी खड़े हैं लेकिन स्थानीय लोग भी उनकी कद्र नहीं करते हैं।
 
भारत-म्यांमार सीमा
म्यांमार के साथ भारत की 1643 किलोमीटर लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा लगती है। इसमें 171 किलोमीटर लंबी सीमा की हदबंदी का काम नहीं हुआ है। म्यांमार सीमा की सुरक्षा का ज़िम्मा असम राइफल्स के पास है।
 
भारत-बांग्लादेश सीमा
4096.7 किलोमीटर लंबी भारत-बांग्लादेश सीमा पहाड़ों, मैदानों, जंगलों और नदियों से होकर गुजरती है। ये सरहदी इलाके सघन आबादी वाले हैं और इसकी सुरक्षा का जिम्मा सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ़) के पास है।
 
भारत-बांग्लादेश सीमा पर अंतरराष्ट्रीय सीमा के अंदर केवल एक किलोमीटर तक के इलाके में बीएसएफ़ अपनी कार्रवाई कर सकता है। इसके बाद स्थानीय पुलिस का अधिकार क्षेत्र शुरू हो जाता है।
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