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Written By BBC Hindi
Last Modified: बुधवार, 17 जून 2020 (08:45 IST)

भारत-चीन सीमा विवाद पर क्या अब आगे बातचीत हो पाएगी?

भारत-चीन सीमा विवाद पर क्या अब आगे बातचीत हो पाएगी? - India China face off
जुगल पुरोहित, बीबीसी संवाददाता
लद्दाख में भारत-चीन सीमा पर हिंसक झड़प के बाद दोनों देशों के बीच तनाव और गहराते दिख रहे हैं लेकिन विशेषज्ञों का अनुमान है कि इससे भारत-चीन के बीच बातचीत की गाड़ी पटरी से नहीं उतरेगी।
 
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड (एनएसएबी) के सदस्य और वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर पूर्व कॉर्प्स कमांडर लेफ़्टिनेंट जनरल एसएल नरसिम्हन का कहना है कि हालिया घटना लद्दाख में चीनी सेना के पीछे हटने की प्रक्रिया को धीमा कर देगा लेकिन यह प्रक्रिया अभी भी बरक़रार है।
 
"यह घटना होनी नहीं चाहिए थी लेकिन हमें देखना होगा कि इसे सुलझाया जाए। मुझे लगता है कि बातचीत की प्रक्रिया में गरमा-गर्मी हुई होगी जिसके कारण यह नुक़सान हुआ है। यह भी सुनने को मिल रहा है कि चीनी पक्ष में भी नुक़सान हुआ है लेकिन यह अच्छी बात नहीं है।"
 
"मैं यह समझता हूं कि ज़मीनी स्तर पर स्थानीय कमांडर बातचीत की प्रक्रिया में शामिल होंगे।"
 
कैसे बरक़रार रहेगी बातचीत?
चीन और भारत की ओर से आए बयानों पर वो कहते हैं कि इससे साफ़ लगता है कि वो मामला बढ़ाने को लेकर नहीं बल्कि सुलझाने को लेकर इच्छुक हैं और यह पीछे हटने की प्रक्रिया के दौरान मतभेदों के परिणाम के कारण होता है।
 
वो कहते हैं, "पूरी तस्वीर को अगर देखें तो लगता है कि यह प्रक्रिया शांतिपूर्ण तरीक़े से सुलझा ली जाएगी।"
 
लेफ़्टिनेंट जनरल नरसिम्हन कहते हैं कि यह घटना एलएसी पर अस्थिरता को और नहीं बढ़ाएगी, स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रॉसिजर्स (एसओपीस) का जब पालन नहीं किया जाता है तब ऐसी घटनाएं होती हैं।
 
लेफ़्टिनेंट जनरल नरसिम्हन कहते हैं कि नए समझौतों की आवश्यकता नहीं है लेकिन जो समझौते हैं उनका पालन होना चाहिए।
 
वो कहते हैं कि सीमा निर्धारण के लिए बातचीत के तीन चरण होते हैं और पहला चरण पूरा हो चुका है, दूसरा चरण प्रगति पर है और यह अपने सबसे महत्वपूर्ण बिंदु पर है, आख़िरी चरण बहुत तेज़ होना चाहिए।
 
डिसइंगेजमेंट प्रक्रिया क्या है?
पुरानी स्थिति में लौटने या दोनों देशों के तनाव से छुटकारा दिलाने को डिसइंगेजमेंट प्रक्रिया भी कहा जाता है। यह प्रक्रिया कैसे पूरी होती है? इस सवाल पर लेफ़्टिनेंट जनरल नरसिम्हन कहते हैं कि ऐसा डोकलाम में भी देखा जा चुका है जहां भारतीय और चीनी सेनाएँ आमने सामने आ गई थीं।
 
वो कहते हैं, "इसमें सामने वाली सेना को कहा जाता है कि आप इतनी दूरी पर पीछे हटिए। इस प्रकार की बातचीत करते समय ज़्यादा तनातनी भी हो जाती है। ऐसा लगता है कि इस बार भी यह हुआ होगा तभी ऐसी स्थिति पैदा हो गई है।"
 
लेफ़्टिनेंट जनरल नरसिम्हन दोनों देशों और सेनाओं के बीच इस घटना को बड़े तनावपूर्ण रिश्ते का परिणाम नहीं मानते हैं। वो कहते हैं कि यह हादसा है और इसे सुलझाना चाहिए, साथ ही यह भी सोचना चाहिए कि यह दोनों देशों और सेनाओं के बीच रिश्तों में बाधा न पैदा करे।
 
2013 के बॉर्डर डिफ़ेंस कॉर्पोरेशन एग्रीमेंट (बीडीसीए) के तहत भारत और चीन के बीच बहुत से तंत्र स्थापित नहीं किए गए हैं।
 
क्या समझौतों को लागू करने में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी भी दिख रही है? इस सवाल पर लेफ़्टिनेंट जनरल नरसिम्हन कहते हैं, "भारत और चीन के बीच सीमा विवाद बहुत उलझा हुआ है जिसमें इतिहास, युद्ध सब शामिल हैं। यह समझना या सोचना कि एकदम सब ठीकठाक हो जाएगा, यह असंभव है।"
 
"यह आगे देखना होगा कि बातचीत क्या मोड़ लेती है। दोनों देशों के बीच बातचीत लंबी चलेगी।"
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