मंगलवार, 19 नवंबर 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. How much india is ready for heat
Written By BBC Hindi
Last Modified: शनिवार, 22 अप्रैल 2023 (08:14 IST)

चिलचिलाती गर्मी से निपटने के लिए क्या कर रहा है भारत?

चिलचिलाती गर्मी से निपटने के लिए क्या कर रहा है भारत? - How much india is ready for heat
सौतिक बिस्वास, बीबीसी संवाददाता
अमेरिकी साइंस फिक्शन लेखक किम स्टेनली रॉबिन्सन ने 2020 में अपने सबसे ज़्यादा बिकने वाले उपन्यास, 'द मिनिस्ट्री फॉर द फ्यूचर' की शुरुआत भारत में घातक हीट वेव (भीषण गर्मी) से करते हैं, जिसकी वजह से लाखों लोग मारे जाते हैं।
 
"आसमान किसी परमाणु बम की तरह आग उगलता है, चेहरे पर इसकी गर्मी थपेड़ों की तरह लगती है, आंखें जलती हैं और हर चीज़, धूसर, धुंधली होती है और बर्दाश्त के बाहर रोशनी का सामना होता है। पानी से भी काम नहीं चलता क्योंकि यह हवा से भी गर्म होता है। लोग बहुत तेज़ी से मरते हैं।"
 
वैश्विक गर्मी (ग्लोबल हीटिंग) के बारे में रॉबिन्सन का ये वर्णन एक डरावनी कल्पना हो सकती है, लेकिन यह एक भयावह चेतावनी भी है।
 
इस सप्ताह की शुरुआत में महाराष्ट्र के नवी मुंबई में चिलचिलाती धूप में एक खुले मैदान में सरकार द्वारा आयोजित कार्यक्रम में भाग लेने के दौरान हीट-स्ट्रोक से 12 लोगों की मौत हो गई और कई अन्य लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया गया।
 
भारत उन देशों में से एक है जो गर्मी से सबसे ज़्यादा प्रभावित और संवेदनशील है। गर्म दिन और रातों की संख्या में काफ़ी वृद्धि हुई है, और 2050 तक इसमें दो से चार गुना बढ़ने का अनुमान है। समय से पहले हीट वेव के आने, लंबे समय तक रहने और इसके बारंबार आने का भी पूर्वानुमान है।
 
मौसम विभाग ने मई के अंत तक औसत से अधिक तापमान और हीट वेव जारी रहने का पूर्वानुमान लगाया है। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से 1901 और 2018 के बीच भारत में औसत तापमान में लगभग 0.7% की वृद्धि हुई है।
 
गर्मियों में सामान्य से ज़्यादा मौतें?
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़, 1992 से 2015 के बीच भीषण गर्मी से 22,000 से ज़्यादा लोगों की जान गई। विशेषज्ञों का मानना ​​है कि असल में ये संख्या इससे बहुत अधिक है।
 
गुजरात स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ पब्लिक हेल्थ के निदेशक दिलीप मावलंकर कहते हैं कि अब तक देश ये नहीं समझ पाया कि गर्मी कितनी ख़तरनाक़ है और इससे मौत हो सकती है, "ये आंकड़े इसलिए आंशिक हैं क्योंकि हम अपने मृत्यु दर के आंकड़ों को ठीक से दर्ज नहीं करते हैं।"
 
प्रोफ़ेसर मावलंकर ने पाया कि मई 2010 में अहमदाबाद में 800 मौतें हुईं जोकि ऐसे ही गर्मी के दिनों वाले पहले के सालों के मुकाबले अधिक थीं। उन्होंने कहा कि ये साफ़ था कि भीषण गर्मी बहुत से लोगों को मार रही है।
 
उन्होंने बताया कि शोधकर्ताओं ने शहर में दिन के अधिकतम तापमान और मरने वालों लोगों की संख्या के बीच तुलनात्मक अध्ययन किया और अलर्ट के तीन कलर कोड बनाए, जिसमें 45 डिग्री सेल्सियस के ऊपर तापमान के लिए लाल चेतावनी निर्धारित की गई।
 
अहमदाबाद के इन नतीजों से प्रेरित होकर प्रोफ़ेसर मावलंकर ने भारत के पहले हीट एक्शन प्लान को बनाने में मदद की।
 
साल 2013 में इस प्लान की शुरुआत हुई और इसमें कुछ सलाह दी गई जैसे घरों के अंदर रहना, बाहर निकलने से पहले अधिक पानी पीना और बीमार पड़ने पर तुरंत अस्पताल जाना।
 
वो कहते हैं कि 2018 तक इस गर्म और शुष्क शहर में मौतों में एक तिहाई की कमी आ गई। लेकिन बुरी ख़बर ये है कि भारत का हीट एक्शन प्लान बहुत अच्छी तरह नहीं अमल में लाया जा रहा है। ये साफ़ नहीं है कि नवी मुंबई के आयोजन में प्रशासन ने कोई हीट एक्शन प्लान को लागू किया था या नहीं, जहां लाखों लोगों को खुले आसमान के नीचे इकट्ठा होना था।
 
हीट एक्शन प्लान की कमियां
सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के आदित्य वालियाथन पिल्लई और तमन्ना दलाल ने शहर, ज़िले और राज्य स्तर पर बनाए गए 37 हीट एक्शन प्लान का अध्ययन किया और उसमें खामियां पाईं। एक तो यही खामी थी कि अधिकतर योजनाएं स्थानीय हालात को ध्यान में रख कर नहीं बनाई गईं।
 
37 एक्शन प्लान में से केवल 10 में स्थानीय स्तर पर अधिकतम तापमान को निर्धारित किया गया था। हालांकि ये स्पष्ट नहीं है कि हीट वेव घोषित करने के मानकों में उन्होंने ह्यूमिडिटी यानी नमी का ध्यान रखा था या नहीं।
 
पिल्लई ने बताया, "हम ये सलाह देते हैं कि मौसम के पूर्वानुमानों को ध्यान में रखते हुए स्थानीय स्तर पर हीट वेव की परिभाषा को तय किया जाए।"
 
प्रोफ़ेसर मावलंकर के अनुसार, इसके लिए एक रास्ता ये है कि गांव स्तर पर अधिक से अधिक मौसम केंद्र स्थापित किए जाएं।
 
ख़तरे वाले समूहों पर ध्यान नहीं
दूसरा, शोधकर्ताओं ने पाया कि क़रीब क़रीब सभी प्लान ख़तरे वाले समूहों को चिह्नित करने और उनके लिए योजना तैयार करने में फिसड्डी थीं। बाहर काम करने वाले खेतिहर और निर्माण मज़दूर, गर्भवती महिलाएं, बुज़ुर्ग और बच्चे गर्मी के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील हैं। भारत के क़रीब तीन चौथाई कामगार गर्मी वाली जगहों में काम करते हैं जैसे कि निर्माण और खनन मज़दूर।
 
नॉर्थ कैरेलिना के ड्यूक यूनिवर्सिटी में रिसर्चर ल्यूक पारसंस के मुताबिक़, "जैसे जैसे धरती गरम हो रही है, कामगार घर के बाहर सुरक्षित और प्रभावी तरीक़े से काम करने की क्षमता खो रहे हैं। भारी काम करते समय जब शरीर का तापमान बढ़ जाता है तो अत्यधिक गर्मी और नमी के चलते वो खुद को ठंडा नहीं कर पाते।"
 
पिल्लई कहते हैं कि भारत को ऐसे इलाक़ों की पहचान करनी चाहिए जहां भीषण गर्मी में लोग काम करते हैं और ये भी कि क्या वो कूलर ख़रीद सकते हैं या छुट्टी ले सकते हैं।
 
वो कहते हैं, "हो सकता है कि एक शहर के तीन प्रतिशत इलाक़े में ख़तरे वाले समूह के 80 प्रतिशत लोग रहते हों।"
 
'भारत के लोग गर्मी को गंभीरता से नहीं ले रहे'
पिल्लई और दलाल ने पाया कि गर्मी से निपटने के लिए बनी अधिकांश योजनाओं के पास पर्याप्त पैसा नहीं है। उनके क़ानूनी अधिकार भी सीमित हैं। हीट वेव या भीषण गर्मी का समाधान बहुत आसान हो सकता है।
 
जैसे खुले और गर्मी वाले इलाक़ों में अधिक से अधिक पेड़ लगाना या गर्मी को कम करने वाले डिज़ाइन इस्तेमाल करना और इमारतों में गर्मी से बचाव के उपाय करना।
 
कभी कभी कुछ छोटे मोटे उपाय भी बहुत कारगर होते हैं। जैसे अहमदाबाद में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि एक बिना एयरकंडीशन वाले अस्पताल में मरीजों को ऊपरी माले से निचले माले पर लाना उनकी जान बचा सकता है।
 
पार्संस कहते हैं कि ऐसे नियम बनाना जिससे अधिक गर्मी में काम को रोक दिया जाए या धीमा कर दिया जाए ताकि लोगों असुरक्षित हालात में भी काम का दबाव न रहे।
 
गर्मी से अर्थव्यवस्था को भी झटका
मेडिकल जर्नल लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, भारत में साल 2000-2004 और 2017 से 2021 के बीच अत्यधिक गर्मी के कारण मौतों में 55% का इजाफ़ा देखा गया।
 
भीषण गर्मी के कारण 2021 में भारत में 167.2 अरब घंटों के काम का नुकसान हुआ, इसकी वजह से जो नुकसान हुआ वो देश की 5.4% जीडीपी के बराबर है।
 
महाराष्ट्र में जिस रैली के दौरान 12 लोगों की जान गई वहां रविवार को तापमान 38 डिग्री सेल्सियस था। तस्वीरों में दिख रहा है कि चिलचिलाती धूप में लोग बैठे हुए हैं और उनके लिए कोई टेंट भी नहीं है। कुछ ही लोगों ने छाता ले रखा था या सिर को तौलिया या गमछे से ढक रखा था।
 
पिल्लई कहते हैं, "मैं दिल्ली में रहता हूं जहां तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है और मैं देखता हूं कि बहुत कम लोग छाता लेकर बाहर निकलते हैं।"
ये भी पढ़ें
नाटो को भरोसा है यूक्रेन अपनी जमीन वापस ले लेगा