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Written By BBC Hindi
Last Modified: शुक्रवार, 27 अक्टूबर 2023 (08:00 IST)

भारत के लिए हमास को आतंकवादी संगठन घोषित करना कितना जटिल

भारत के लिए हमास को आतंकवादी संगठन घोषित करना कितना जटिल - How complicated is it for India to declare Hamas a terrorist organization?
प्रेरणा, बीबीसी संवाददाता
हमास ने बीते 7 अक्तूबर को इजराइल पर हमला किया और इसे 'ऑपरेशन अल अक़्सा फ्लड' का नाम दिया।
दुनियाभर के नेताओं ने हमास के इस हमले की निंदा की। पश्चिम के देशों ने खुलकर इसे एक आतंकवादी हमला कहा।
 
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हमले की घोर निंदा करते हुए ट्वीट किया था। उन्होंने भी इसे आतंकवादी हमला कहा था। हालांकि पीएम मोदी के ट्वीट में कहीं भी हमास का ज़िक्र नहीं था।
 
हमास को भारत ने औपचारिक रूप से आतंकवादी संगठन घोषित नहीं किया है। ईयू और अमेरिका हमास को इस हमले से पहले ही आतंकवादी संगठन मानते थे।
 
भारत में इजराइल के राजदूत नाओर गिलोन ने बीते बुधवार को मोदी सरकार से हमास को आतंकवादी संगठन घोषित करने की अपील की। इस अपील के बाद से बहस हो रही है कि क्या भारत हमास को आतंकवादी संगठन घोषित कर सकता है?
 
हमास पर दुनिया भर की राय बँटी हुई है। अरब के इस्लामिक देश हमास को लेकर कुछ और सोचते हैं और पश्चिम के देश कुछ और। एशिया में भी हमास को लेकर एक तरह की सोच नहीं है।
 
बुधवार को तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने यहाँ तक कह दिया कि हमास आतंकवादी संगठन नहीं बल्कि अपनी ज़मीन और आवाम के लिए आज़ादी की लड़ाई लड़ रहा है।
 
इजराइल के राजदूत ने क्या कहा?
भारत में इजराइल के राजदूत नाओर गिलोन ने बुधवार को मीडियाकर्मियों से बात करते हुए कहा कि भारत दुनियाभर में एक महत्वपूर्ण "आवाज़" है।
 
गिलोन ने कहा, ''प्रधानमंत्री मोदी उन शुरुआती वैश्विक नेताओं में से एक थे, जिन्होंने आतंकवादी हमले की निंदा की। भारत इजराइल का एक क़रीबी सहयोगी है और जब बात आतंकवाद की आती है, तो भारत ख़ुद इसका पीड़ित है... वो इसकी गंभीरता समझता है। इसलिए यही समय है कि भारत हमास को एक आतंकवादी संगठन घोषित करे।''
 
इजराइली राजदूत ने कहा कि ज़्यादातर लोकतांत्रिक देशों ने हमास को आतंकवादी संगठन घोषित किया हुआ है। उन्होंने कहा, ''हमने इस बारे में संबंधित अधिकारियों से बात की है। ये पहली बार नहीं है, जब हमने इस बारे में बात की है। हम आतंकी ख़तरों की समस्या को समझते हैं... हम (भारत पर) दबाव नहीं डाल रहे हैं; हम बस पूछ रहे हैं।''
 
भारत का जवाब
7 अक्तूबर को इजराइल पर हमास के हुए हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे आतंकवादी हमला बताया था। लेकिन भारत ने अब तक आधिकारिक रूप से हमास को आतंकी संगठन के रूप में नामित नहीं किया है।
 
ऐसे में इजराइली राजदूत की इस अपील के बाद न्यूज़ वेबसाइट 'दी प्रिंट' ने भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची से संपर्क किया।
 
अरिंदम बागची ने 'दी प्रिंट' से बातचीत में कहा कि किसी भी संगठन को आतंकवादी संगठन घोषित करना है एक ''क़ानूनी मामला'' है।
 
उन्होंने कहा, ''भारतीय क़ानूनों के तहत किसी को आतंकवादी संगठन नामित करना एक क़ानूनी मसला है। मैं इस मामले में आपको संबंधित अधिकारियों से बात करने की सलाह दूंगा। मुझे लगता है कि हम बहुत स्पष्ट हैं कि हम इसे एक आतंकवादी हमले के रूप में देखते हैं। लेकिन आतंकवादी संगठन के सवाल पर संबंधित लोग ही प्रतिक्रिया देने के लिए सही विकल्प होंगे।''
 
इससे पहले बीते 12 अक्तूबर को विदेश मंत्रालय की प्रेस वर्ता के दौरान भी बागची से एक पत्रकार ने पूछा, ''क्या हमास को भारत ने आतंकवादी संगठन घोषित किया है?''
 
तब भी बागची ने इसका साफ़ जवाब नहीं दिया था। उन्होंने कहा था कि इस तरह के फ़ैसले लेना विदेश मंत्रालय की ज़िम्मेदारी नहीं है। 'हमारा फ़ोकस हमारे नागरिकों की मदद' करना है।
 
हमास को आतंकी संगठन क्यों नहीं मानता भारत?
हमास को यूरोपीय संघ, अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा जैसे पश्चिमी देश आतंकवादी संगठन मानते हैं। लेकिन भारत ने हमास को आतंकवादी संगठन घोषित नहीं किया है।
 
ऐसा क्यों है, ये समझने के लिए हमने बात की जामिया यूनिवर्सिटी के 'सेंटर फ़ॉर वेस्ट एशियन स्टडीज़' की प्रोफ़ेसर डॉक्टर सुजाता ऐश्वर्या और इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर्स के सीनियर फ़ेलो के अलावा मध्य-पूर्व के जानकार डॉ. फ़ज़्ज़ुर्रहमान से।
 
सुजाता ऐश्वर्या कहती हैं कि ये सवाल पहले भी उठते रहे हैं और भारत के पूर्व प्रधानमंत्रियों को भी इन सवालों का सामना करना पड़ा है।
 
सुजाता बताती हैं, ''भारत की विदेश नीति में हमास और हिज़बुल्लाह जैसे संगठनों को आतंकवादी संगठन घोषित नहीं किया गया है। इसकी तीन मुख्य वजहें हैं। पहला कि हमास या हिज़बुल्लाह ने कभी भी भारत का सीधे नुक़सान नहीं पहुंचाया है। दूसरे संगठन जिन्होंने भारत की सीमा के अंदर आतंकवादी गतिविधि को अंजाम दिया, उनके ख़िलाफ़ भारत ने संयुक्त राष्ट्र में आवाज़ उठाई और उन्हें आतंकवादी संगठन घोषित करने की अपील की। जैसे- जैश-ए-मोहम्मद।''
 
हमास ने साल 2006 में फिलिस्तीनी प्रशासन के चुनाव में हिस्सा लिया था। सभी विदेशी शक्तियों ने तब उसे एक चुनावी प्रतिद्वंद्वी के रूप में पहचाना था। तो हमास राजनीतिक रूप से सक्रिय होने के साथ फिलिस्तीनी प्रशासन का हिस्सा रहा है।
 
लेकिन चुनाव के परिणामों से पश्चिमी देश नाख़ुश थे। उन्होंने हमास को एक आतंकवादी संगठन के रूप में नामित किया। वहीं इजराइल ने ग़ज़ा पर कई प्रतिबंध लगा दिए। लेकिन ये तथ्य है कि फ़लस्तीनियों ने ही हमास को चुना था।
 
साल 2006 के पहले ग़ज़ा जेरिको प्लान के तहत ग़ज़ा में भारत का वाणिज्यिक दूतावास भी काम कर रहा था। इसलिए भारत हमास को फिलिस्तीनी प्रशासन के एक हिस्से के रूप में देखता है। हालांकि भारत का हमास से कोई आधिकारिक रिश्ता नहीं है।
 
सुजाता कहती हैं कि ऐसा न करने की एक नैतिक वजह भी हो सकती है। भारत ने ख़ुद अपनी स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी है। भारत की आज़ादी के आंदोलन में उसका हिस्सा ऐसी ताक़तें भी थीं, जो हिंसा का सहारा ले रही थीं।''
 
''जिसे ब्रिटेन आतंकवादी संगठन के रूप में नामित करता था, वे अमूमन सभी राष्ट्रीय आंदोलनों में एक चरमपंथी फोर्स रहे ही हैं। यहाँ तक कि यहूदियों के आंदोलन में 1940 के दौरान हिसंक ताक़तें शामिल थीं। जैसे - स्टर्ग गैंग और इर्गुन, ये सभी आतंकवादी संगठन थे। इसलिए भारत के परिप्रेक्ष्य में देखें तो एक नैतिक दबाव भी इसकी वजह हो सकती है।''
 
फ़ज्जुर्र रहमान इसके पीछे भारतीय विदेश नीति के मिजाज़ को भी एक अहम वजह मानते हैं।
 
वो कहते हैं, ''भारतीय विदेश नीति हमेशा से तटस्थ रही है। हम हमेशा मध्य मार्ग चुनते आए हैं। अमेरिका, यूरोपीय संघ, ब्रिटेन की तरह हम आक्रामक नहीं हैं। भारत कभी भी किसी दूसरे देश की आतंरिक राजनीति को डिकटेट नहीं करता है और फ़लस्तीन के साथ उसके संबंध तो इजराइल से भी पुराने हैं। इसलिए एक पुराने साझेदार के तौर पर भारत फ़लस्तीन ही नहीं दूसरे देशों की आतंरिक राजनीति की इज्ज़त करता है और उसमें कोई हस्तक्षेप नहीं करता।''
 
आतंकवादी संगठन घोषित करने की प्रक्रिया क्या है?
सुजाता ऐश्वर्या कहती हैं कि इसके दो तरीक़े हो सकते हैं। घरेलू स्तर पर आप पॉलिसी बनाकर, तमाम तथ्यों और वजहों को रेखांकित कर किसी ख़ास संगठन को आतंकवादी संगठन घोषित कर सकते हैं।
 
वहीं अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी संगठन को आतंकवादी संगठन घोषित करना है तो इसके लिए संयुक्त राष्ट्र है।
 
संयुक्त राष्ट्र तय कर सकता है कि कोई संगठन आतंकवादी है या नहीं। इस पर बाक़ी सदस्य देश अपनी राय रख सकते हैं, वीटो कर सकते हैं।
 
वहीं रहमान कहते हैं कि व्यक्तिगत तौर पर और जितनी मेरी जानकारी है, उसके मुताबिक़ किसी भी देश के पास ऐसा कोई नियम या मापदंड नहीं है।।।जिससे वो तय कर सके कि कोई ख़ास संगठन आतंकवादी है या नहीं।
 
किसी ख़ास देश के लिए कोई ख़ास संगठन आतंकवादी हो सकता है और किसी ख़ास देश के लिए नहीं हो सकता। इसका कोई ख़ास मापदंड नहीं है।
 
ऐसी स्थिति में वो देश जहां ये संगठन काम करते हैं, या कोई नुक़सान पहुंचाते हैं, उनका हक़ बनता है कि वो उन्हें आतंकवादी संगठन घोषित कर सकते हैं।
 
जैसे- जिस फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन (PLO) को आज इजराइल बहुत सराह रहा है और कह रहा है कि फिलिस्तीनी प्राधिकरण के साथ हम है, उसी संगठन को शुरुआत के दिनों में वो फिलिस्तीनी राष्ट्रीय आतंकी संगठन कहता था।
 
मिस्र, यूएई, सऊदी अरब जैसे देश हमास को आतंकी संगठन मानते हैं लेकिन उसी जीसीसी (गल्फ़ कोऑपरेशन काउंसिल) का हिस्सा होते हुए भी क़तर हमास को आतंकी संगठन नहीं मानता। बल्कि हमास का एक ब्यूरो क़तर में ही है।
 
किसी संगठन को आतंकवादी घोषित करने के बाद क्या होता है?
फ़ज़्जुर्र रहमान कहते हैं कि सबसे पहले उनके वित्त के स्रोतों को चेक किया जाता है। फिर उस संगठन के किस दूसरे संगठन के साथ संपर्क हैं, संबंध हैं, उस पर नज़र रखा जाता है।
 
संगठन के राजनीतिक लक्ष्यों को कौन-कौन से देश समर्थन दे रहे हैं और कौन से देश विरोधी हैं, इसे भी देखा जाता है।
 
जैसे भारत ने जिन ख़ालिस्तान समर्थकों के ख़िलाफ़ मामले दर्ज किए हुए हैं, वो ब्रिटेन में शरण लिए हुए हैं। वो कनाडा में रह रहे हैं। तो इन देशों ने इन्हें अपने यहां जगह दी हुई है, उनसे संपर्क में है। उनको किसी न किसी तरह से फाइनेंस होती है। इन सारी गतिविधियों पर नज़र रखी जाती है।
 
हमास क्या है?
हमास फ़लस्तीन का एक इस्लामिक चरमपंथी समूह है। 1987 में पहले इंतिफादा (वेस्ट बैंक और ग़ज़ा पट्टी में इजराइल की मौजूदगी के ख़िलाफ़ विद्रोह) के बाद समूह अस्तित्व में आया।
 
ये समूह इजराइल के अस्तित्व के अधिकार को नहीं मानता और द्वि-राष्ट्र समाधान का वादा करने वाली ओस्लो प्रक्रिया का विरोध करता है।
 
संगठन का दीर्घकालिक उद्देश्य फ़लस्तीन में इस्लामी राज्य स्थापित करना है।
 
हमास राजनीति में सक्रिय है और चुनाव भी लड़ चुका है।
 
संगठन का एक राजनीतिक और एक मिलिट्री विंग है। इसके दो प्रमुख काम हैं -
 
- वेस्ट बैंक और ग़ज़ा पट्टी में स्कूल, अस्पताल का निर्माण कराना। सामाजिक और धार्मिक तरीकों से समुदाय की मदद करना। इस्माइल हानिया हमास के पॉलिटिकल ब्यूरो के प्रमुख और दसवीं फिलिस्तीनी सरकार के प्रधानमंत्री हैं।
 
- हमास की सैन्य शाखा कासिम ब्रिगेड्स - इसरायली ठिकानों के ख़िलाफ कई ख़ूनी हमलों को अंजाम दिया है। मोहम्मद दीफ़ फिलहाल इस ब्रिगेड के प्रमुख हैं।
 
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