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Written By BBC Hindi
Last Modified: बुधवार, 18 अक्टूबर 2023 (07:59 IST)

ईरान और हमास के बीच कैसे इतने गहरे हुए रिश्ते

hamas
बीबीसी मॉनिटरिंग
गाजा पट्टी के पास इसराइली सैन्य ठिकानों और नागरिकों पर हमास के 'अभूतपूर्व' हमले के बाद से इस अचानक की गई कार्रवाई में ईरान की भूमिका और फिलिस्तीनी समूहों के साथ उसके संबंधों को लेकर अटकलें तेज़ हो गई हैं।
 
मौजूदा संघर्ष 7 अक्टूबर को उस समय शुरू हुआ जब हमास ने सुबह-सुबह इसराइल की सेना और नागरिकों को निशाना बनाकर आक्रमण कर दिया। इस हमले में एक हज़ार से अधिक इसराइलियों की मौत हो चुकी है, और हमास करीब 200 लोगों को बंधक बनाकर ले गया है।
 
जवाब में, इसराइल ने बहुत घनी आबादी वाली गाजा पट्टी पर हवाई हमले शुरू कर दिए। इसमें भी करीब 3000 फिलिस्तीनी अभी तक मारे जा चुके हैं। इसराइल ने गाजा पर पूर्ण बंदी कर दी। अब यहां न तो दवा है, न बिजली और न खाना।
 
हमास और इसराइल के बीच शुरू हो चुकी इस जंग के धीरे-धीरे और भी इलाकों में फैलने की आशंका बढ़ती जा रही है।
 
गोलान पहाड़ी से सटे इलाके में इसराइल डिफ़ेंस फोर्स (IDF) गोलीबारी झेल रहा है। दक्षिणी लेबनान में हिज़बुल्लाह उसकी परेशानी बना हुआ है। साथ ही इराक़ में ईरान समर्थित समूह अमेरिकी ठिकानों के लिए ख़तरा बन रहे हैं और यमन में हूती समूह भी फिलिस्तीनी गुटों को सैन्य सहायता देने का प्रस्ताव दे चुका है।
 
इन सभी गुटों का हितकारी सिर्फ़ एक ही है - ईरान।
 
जहां ईरान के अधिकारियों ने इसराइल पर हमास के हमले को फिलिस्तीन की जीत बताकर इसका जश्न मनाया, तो वहीं उन्होंने इस हमले की योजना में तेहरान का हाथ होने से साफ़ इनकार किया है। उधर, अमेरिका और इसराइल ने भी ऐसा कोई पुख्ता सबूत मिलने से इनकार किया है, जिससे इस हमले में ईरान की भूमिका साबित होती हो।
 
ईरान के फिलिस्तीनी गुटों के साथ गहरे संबंध हैं। ज़मीन और आसमान में इसराइल की घेराबंदी के सामने गाजा में मौजूद गुटों को कायम रखने में ईरान की वित्तीय सहायता और सामग्री महत्वपूर्ण है।
 
वर्तमान युद्ध के बीच ये पूछना लाज़िम हो जाता है कि ईरान कैसे फिलिस्तीनी चरमपंथी गुटों को समर्थन देने वाला सबसे ताकतवर देश बन गया और कैसे ये समर्थन उसके व्यवहार में दिखता है।
 
समर्थन का इतिहास
वर्ष 1979 में ईरान की इस्लामिक क्रांति के समय से ही ये इस्लामिक गणराज्य फिलिस्तीनी के मुद्दे को अपना समर्थन देने में गर्व महसूस करता रहा है।
 
इस क्रांति से पहले ईरान दूसरा मुस्लिम बहुल देश था, जिसने अपने शासक मोहम्मद रज़ा पहलवी के शासन में इसराइल को मान्यता दी थी।
 
लेकिन अब मध्य-पूर्वी देशों में ईरान एकदम अलग राह पर है और वो इसराइल को मान्यता देने से इनकार करता है। वहीं, इस क्षेत्र के अन्य मुस्लिम देशों ने इसराइल के संबंध सामान्य करने शुरू कर दिए हैं।
 
इस्लामिक गणराज्य ईरान के संस्थापक अयोतुल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी ने इसराइल की की तुलना 'कैंसर वाले ट्यूमर' से की थी। उन्होंने फिलिस्तीन के मुद्दे को मुस्लिम वर्ल्ड में अपनी सरकार की वैधता बढ़ाने और शिया-सुन्नी के बीच विभाजन से परे इस्लामी एकता को बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल किया।
 
खुमैनी ने हर साल रमज़ान के आख़िरी दिन को फिलिस्तीन के समर्थन में 'कुद्स (यरुशलम) दिवस' के तौर पर मनाने की भी शुरुआत की।
 
फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (पीएलओ) का हित चाहने वालों में से एक ईरान भी था। हालांकि, पीएलओ के साथ ईरान के रिश्ते तब खराब हुए जब इराक़ के साथ जंग में पीएलओ के नेता यासर अराफ़ात ने इराक़ का समर्थन किया।
 
अराफ़ात को वर्ष 1988 में ईरान के सर्वोच्च नेता अयोतुल्लाह अली ख़ुमैनी ने 'ग़द्दार और मूर्ख' बताया था। उस समय यासर अराफ़ात इसराइल के साथ राजनीतिक समझौते की ओर बढ़ते दिख रहे थे, लेकिन ईरान का नेतृत्व इसराइल के साथ किसी भी तरह की शांति वार्ता के ख़िलाफ़ था। अली खुमैनेई अभी भी ईरान के सर्वोच्च नेता हैं।
 
जैसे ही इसराइल को स्वीकार करने के मुद्दे पर फिलिस्तीन के गुट बंटने शुरू हुए, ईरान ने अपना रुख पीएलओ और उसके प्रभावशाली धड़े फ़तह से मोड़कर अधिक कट्टर और प्रतिद्वंद्वी हमास और फिलिस्तीन इस्लामिक जिहाद (पीआईजे) की ओर कर लिया।
 
साल 2007 में चुनाव के बाद से हमास ने गाजा और फ़तह ने वेस्ट बैंक पर नियंत्रण पा लिया। फिलिस्तीनी क्षेत्रों में राजनीतिक ताकतों के बीच इस बंटवारे को देखते हुए ईरान का समर्थन अब मुख्य रूप से गाजा पट्टी पर शासन करने वाले गुट यानी हमास और पीआईजे की ओर चला गया।
 
ये चरमपंथी समूह इस क्षेत्र में इसराइल और अमेरिका के ख़िलाफ़ एकजुट ईरान के अन्य सहयोगी जैसे हिज़बुल्ला और सीरियाई संगठनों से मिल गए।
 
लेकिन इस एकता में भी दरार आई। साल 2011 में जब सीरिया का गृह युद्ध शुरू हुआ तो ईरान राष्ट्रपति बशर अल-असद के समर्थन में खड़ा रहा लेकिन हमास ने विरोध का एलान किया।
 
सीरिया में लंबे समय से रह रहे हमास के नेताओं ने दमिश्क में अपना दफ़्तर बंद कर दिया। इसके बाद विपक्षी गुटों पर सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल असद की हिंसक कार्रवाई की आलोचना को देखते हुए हमास ने वर्ष 2012 में क़तर को अपना नया ठिकाना बनाया।
 
रिश्तों में नरमी के बाद समर्थन
ईरान का फिलिस्तीनी गुटों के साथ रिश्ता, ख़ासतौर पर हमास के साथ, इसलिए भी अहम हुआ क्योंकि अब अंतरराष्ट्रीय मंच पर ये गुट अलग-थलग हो गया।
 
सीरिया में असद की हार लगभग असंभव दिखने लगी। साथ ही मिस्र की सरकार सिनाई और गाजा के बीच महत्वपूर्ण सुरंगों को बंद कर रही थी। इससे हमास वित्तीय तौर पर कमज़ोर पड़ता जा रहा था। यही कारण रहा कि हमास एक बार फिर से ईरान की शरण में पहुंच गया।
 
हमास अब भी ईरान के विस्तृत सहयोगियों में शामिल नहीं है लेकिन ये भी देखना होगा कि हमास का ईरान के सहयोगी सीरिया के साथ रिश्ता सुधरता है या नहीं।
 
मध्य पूर्व क्षेत्र में नई गतिविधियों के बीच हमास के पास अब कुछ संभावित सहयोगी ही बचे हैं। क्योंकि संयुक्त अरब अमीरात, मोरक्को, बहरीन और सूडान जैसे अरब और मुस्लिम देशों ने साल 2020 और 2021 के बीच इसराइल के साथ संबंधों को सुधार लिया है।
 
इन देशों का सऊदी अरब के साथ करीबी रिश्ता रहा है। ऐसी भी ख़बरें हैं कि सऊदी अरब भी इसराइल के साथ संबंधों को सामान्य करने के लिए समझौते पर चर्चा कर रहा है।
 
हालांकि, हमास के हालिया हमले और फिर इसराइल के गाजा पट्टी पर जारी आक्रमण से इन चर्चाओं पर विराम लगता दिख रहा है। इस बीच सऊदी अरब की मीडिया ने हमास पर इस क्षेत्र में शांति बनाने की सऊदी अरब की कोशिशों को विफल करने के लिए ईरान के एजेंडा को पूरा करने का आरोप लगाया है।
 
अभी तक के सबूतों से ये लगता है कि हमास ने अकेले चलने का फैसला किया है लेकिन अगर ये संघर्ष बढ़ता है तो इससे फिलिस्तीनी गुट और ईरान के साझा हित ज़रूर पूरे हो सकते हैं, जो इसराइल के साथ संबंधों के सामान्यीकरण के एकदम ख़िलाफ़ खड़े हैं।
 
फिलिस्तीनी गुटों को कैसे समर्थन देता है ईरान?
गाजा और वेस्ट बैंक में फिलिस्तीनी गुटों को ईरानी रिवोल्यूशन गार्ड्स कोर (आईआरजीसी) के हिस्से कुद्स फ़ोर्स के ज़रिए सैन्य सहायता मिलती है। कुद्स फोर्स विदेशों में ईरानी सेना के अभियानों को चलाता है।
 
ये मदद वित्तीय तो होती ही है। इसके साथ छोटे हथियारों और उसके पुर्जों की तस्करी और हथियार बनाने में ईरानी विशेषज्ञता भी साझा की जाती है।
 
सात अक्टूबर के हमले के बाद आईआरजीसी के पूर्व कमांडर हुसैन कनानी मोघद्दम ने हमास को ईरान की मदद की विस्तृत जानकारी दी। इसमें हमास को ऐसी हाई-परफॉर्मेंस मिसाइलें और ड्रोन बनाने में मदद करना भी शामिल है, जो वायु-सुरक्षा प्रणाली से भी बच सकती है।
 
साल 2021 में अल-मॉनिटर ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की। इस रिपोर्ट में गाजा में हथियार तस्करी करने के लिए ईरान के अपनाए कुछ तरीकों के बारे में बताया गया। रिपोर्ट के अनुसार ईरान मिस्र से ज़मीन और समुद्र के रास्ते हथियार भेजता है, जिसे फिलिस्तीनी ग़ोताख़ोर मंज़िल तक पहुंचाते हैं। हाल ही में कुद्स फ़ोर्स ने वेस्ट बैंक और उसके पार हथियारों को पहुंचाने के लिए ड्रोन तक इस्तेमाल किए।
 
ईरान के समर्थन का सही-सही आंकड़ा मौजूद नहीं है। अप्रैल 2023 में इसराइली रक्षा मंत्री गैलंट ने एक अनुमान के आधार पर बताया था कि ईरान सालाना हमास को 10 अरब डॉलर की सहायता भेजता है। इनमें से लाखों-करोड़ों रुपये पीआईजे को भी मिलते हैं।
 
हमास के ताज़ा आक्रमण से पहले, आईआरजीसी के कमांडर-इन-चीफ़ मेजर जनरल हुसैन सलामी ने वर्ष 2022 में ये घोषणा की थी कि इसराइल और फिलिस्तीन के बीच युद्ध में मिसाइल अहम मोड़ नहीं बनेंगे, बल्कि इसराइल के ख़िलाफ़ मुख्य जंग ज़मीन पर होगी।
 
उन्होंने कहा था, "आज फिलिस्तीनियों के पास ज़मीनी स्तर पर जंग लड़ने की क्षमता है। इसराइल की सबसे बड़ी कमज़ोरी ज़मीनी जंग है। मिसाइल हमले युद्ध का अहम मोड़ तय नहीं करेंगे। मिसाइलें किसी को डराने की जंग के लिए बेहतर हैं लेकिन मिसाइलें कोई ज़मीन को आज़ाद नहीं करातीं।"
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