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Last Modified: रविवार, 31 मार्च 2019 (08:53 IST)

क्या मोदी ने सच में अपने उद्योगपति दोस्तों के कर्ज माफ किए?

क्या मोदी ने सच में अपने उद्योगपति दोस्तों के कर्ज माफ किए? - Did Modi really forgive the debt of his industrialists friends?
ज़ुबैर अहमद
बीबीसी संवाददाता, दिल्ली
कांग्रेस पार्टी प्रमुख राहुल गांधी चुनावी रैलियों में दावा करते रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 शीर्ष उद्योगपतियों के बैंक ऋण माफ किए हैं। राहुल के अनुसार, इस कर्जे की राशि 3.5 लाख करोड़ रुपए है, जो एक उत्तर प्रदेश जैसे एक बड़े राज्य के एक साल के बजट के बराबर है।
 
यह दावा करके राहुल गांधी यह बताना चाहते हैं कि नरेंद्र मोदी इस देश के सबसे अमीर लोगों के मित्र हैं। वो पहले ही मोदी सरकार को 'सूट-बूट की सरकार' बता चुके हैं। वह जानते हैं कि किसान यह सुनना चाहेंगे क्यूंकि वो अपने भाषणों में कहते हैं कि मोदी जी किसानों के कर्ज माफ क्यों नहीं करते।
 
तो सवाल ये है कि राहुल के दावे के अनुसार मोदी के वो मित्र उद्योगपति कौन हैं? दिलचस्प बात यह है कि राहुल गांधी ने मोदी के दोस्त कहे जाने वाले 15 सबसे अमीर व्यक्तियों का कभी नाम नहीं लिया।
 
कौन हैं मोदी के अमीर दोस्त?
कभी वो 15 दोस्त कहते हैं और कभी 20 लेकिन वो नाम नहीं बताते। हालांकि यह व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि सरकारी बैंकों के कर्जदार अधिकतर बड़े उद्योगपति और बड़ी कंपनियां ही हैं। इसलिए डिफॉल्टर्स में उनके नाम ऊपर हैं। इसलिए जब भी कर्ज माफ किये जाएंगे तो बड़े उद्योगपतियों की संख्या अधिक होगी।
 
राहुल गांधी के बयान के विपरीत राज्यसभा में जून 2016 के एक सरकारी बयान के अनुसार, 50 करोड़ रुपए से अधिक राशि के कर्जदारों की संख्या 2,071 थी जो अपना कर्ज न चुका सके।
 
मगर 20 मार्च को कांग्रेस पार्टी ने एक प्रेस कांफ्रेंस में एक नाम साझा किया और वो नाम है जेट एयरवेज के नरेश गोयल। कांग्रेस ने प्रधानमंत्री मोदी पर इलजाम लगाते हुए कहा कि उनकी सरकार नरेश गोयल के 8,500 करोड़ रुपए के कर्ज को खारिज कर रही है।
 
पार्टी के अनुसार जेट में एतिहाद एयरलाइन्स का 24 प्रतिशत हिस्सा है जिसे भारत सरकार खरीदने जा रही है।
 
जेट एयरवेज़ मुसीबत में है इससे किसी को इंकार नहीं। इस कंपनी ने पिछले साल दिसंबर बैंकों के कर्ज अदा नहीं किए ये भी सार्वजनिक है। लेकिन कांग्रेस के इलज़ाम की सरकार ने पुष्टि नहीं की है।
 
कांग्रेस अध्यक्ष कहते हैं कि प्रधानमंत्री ने 3.5 लाख करोड़ रुपए का कर्ज माफ किया। एक सरकारी बयान के मुताबिक 2000 से अधिक उद्योगपति और कंपनियां बैंकों का 3.88 लाख करोड़ रुपए का कर्ज नहीं चुका सकीं। हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब राहुल गांधी ने सार्वजनिक रैलियों में ऐसा दावा किया है। उन्होंने हाल में कई बार ऐसा किया।
 
सबसे पहले दिसंबर 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले एक चुनावी संबोधन के दौरान राहुल गांधी ने इस तरह के आरोप लगाए थे।
 
इसके बाद उन्होंने पिछले साल के अंत में छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों के दौरान रैलियों में इस दावे को दोहराया।
 
राहुल गांधी के दावे का स्रोत क्या है?
ऐसा लगता है कि राहुल गांधी ने पिछले साल अप्रैल में संसद में पेश की गई एक सरकारी रिपोर्ट के आधार पर अपना दावा किया है।
 
मोदी सरकार ने राज्यसभा को बताया था कि सरकारी बैंकों ने अप्रैल 2014 और सितंबर 2017 के बीच 2.41 लाख करोड़ रुपए के नॉन परफार्मिंग एसेट को खाते से बाहर किया था। यह राशि 2018 के अंत तक 3.5 लाख करोड़ रुपए से अधिक हो गई। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कांग्रेस अध्यक्ष के दावे को काल्पनिक कहा है।
 
जेटली ने अपने एक फेसबुक ब्लॉग में गांधी के दावे को खारिज करते हुए कहा, 'गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) का लेखन-बंद बैंकों द्वारा अपनी बैलेंस शीट को साफ़ करने के लिया किया जाता है जो एक आम बात है। इस तरह के ऋण को चुकाने के लिए कर्जदारों से वसूली जारी रखी जाती है।'
 
केंद्रीय सरकार के अनुसार इस तरह के क़र्ज़ों की वसूली पिछले साल 74,000 करोड़ रुपए से अधिक थी।
 
आर्थिक मामलों के वरिष्ठ पत्रकार सुदीप बनर्जी वित्त मंत्री के बयान को सही मानते हैं और वे कहते हैं, 'एनपीए एक पुरानी समस्या है और ऐसे ऋणों को राईट ऑफ करना सामान्य है। विलफुल डिफॉल्टर्स के ऋण भी माफ किए जाते हैं और वो अक्सर बड़े नाम होते हैं।'
 
अर्थव्यवस्था के जानकार प्रियारंजन दास भी अरुण जेटली से सहमत हैं। उनका कहना है, 'वित्त मंत्री यह दावा सही हैं कि बैंक बैलेंस शीट से खराब ऋणों को हटाना ऋण की वसूली का अंत है।'
 
यूपीए में भी रही एनपीए की समस्या
यूपीए के 10 साल (2004 से 2014 तक) के शासन में भी बढ़ते एनपीए की समस्या बनी रही। मनमोहन सिंह सरकार ने कुछ मौकों पर डिफॉल्टरों के स्वामित्व वाले ऋण को माफ किया था।
 
औपचारिक रूप से लोन देने वाले बैंक और आरबीआई फैसला करते हैं कि किसका कर्ज माफ किया जाए लेकिन असल फैसला सरकार का होता है।
 
वास्तव में प्रधानमंत्री ने मौजूदा एनपीए संकट के लिए यूपीए शासन को दोषी ठहराया है। उन्होंने हाल ही में संसद में घोषणा की थी कि उनकी सरकार इस एनपीए संकट के लिए ज़िम्मेदार नहीं है, बल्की कांग्रेस ज़िम्मेदार है।
 
यूपीए सरकार के पहले पांच वर्षों के दौरान अर्थव्यवस्था में जबरदस्त उछाल आया था। इससे कमर्शियल बैंकों द्वारा ऋण देने में बहुत तेज़ी आई। तीन महीने पहले संसद में एक लिखित बयान में, सरकार ने बताया कि 2008 से 2014 में बैंकों ने इस तरह से कर्ज दिए (23.3 लाख करोड़ रुपए मार्च 2008 में, 61 लाख करोड़ रुपए मार्च 2014 में)
 
मोदी सरकार ने साल 2015 में एसेट क्वालिटी रिव्यू (AQR) का तंत्र लागू किया जिससे एनपीए की बड़ी मात्रा का पता चला, जिन्हें अन्यथा ऋण बैंकों द्वारा एनपीए घोषित नहीं किया गया था। यह एक बड़ा कारण है कि मार्च 2014 में एनपीए 2.51 करोड़ रुपए से बढ़कर (मार्च में मोदी के सत्ता में आने से पहले) मार्च 2018 तक 9.62 लाख करोड़ रुपए तक पहुंच गया - यानी कुल ऋण राशि का 11 प्रतिशत।
 
प्रिय रंजन दास के अनुसार राहुल गांधी के इलजाम लगाने का मकसद एक मोदी के विरुद्ध पूंजीपतियों के दोस्त होने और किसानों की चिंता न करने वाले एक प्रधानमंत्री की धारणा बनाना है जिसमें वो कुछ हद तक कामयाब हुए हैं।
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