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Written By BBC Hindi
Last Modified: शुक्रवार, 12 जून 2020 (08:04 IST)

कोरोनावायरस संयुक्त परिवारों को किस तरह नुक़सान पहुंचा सकता है?

कोरोनावायरस संयुक्त परिवारों को किस तरह नुक़सान पहुंचा सकता है? - CoronaVirus effect on joint family
कृतिका पथी, बीबीसी न्यूज़
बीती 24 अप्रैल को जब मुकुल गर्ग के 57 वर्षीय चाचा को बुख़ार आया तो उन्हें कोई ख़ास चिंता नहीं हुई। इसके 48 घंटे के अंदर 17 लोगों वाले इस परिवार में दो अन्य लोग भी बीमार पड़ गए। कुछ समय बाद बीमार लोगों के शरीर का तापमान बढ़ने लगा और गले में ख़राश जैसे लक्षण सामने आने लगे।
 
मुकुल गर्ग ने शुरुआत में सोचा कि ये मौसमी बुख़ार हो सकता है क्योंकि वे ये मानने को तैयार ही नहीं थे कि ये कोरोना वायरस हो सकता है।
 
गर्ग ने सोचा कि घर में एक साथ 5 - 6 लोग बीमार पड़ जाते हैं, ऐसे में परेशान नहीं होना चाहिए। इसके कुछ समय बाद घर के 5 अन्य सदस्यों में कोविड-19 जैसे लक्षण दिखने लगे। इस तरह धीरे धीरे गर्ग के मन में एक डर समाने लगा।
 
कुछ दिन बाद 17 लोगों का ये परिवार कोरोना वायरस क्लस्टर में तब्दील हो गया क्योंकि परिवार के 11 लोगों के कोरोना वायरस से संक्रमित होने की पुष्टि हुई।
 
गर्ग ने अपने ब्लॉग में लिखा, "हम किसी बाहरी व्यक्ति से नहीं मिले और कोई भी हमारे घर नहीं आया। लेकिन इसके बावजूद हमारे घर में एक के बाद दूसरा व्यक्ति कोरोना वायरस से संक्रमित हो गया।"
 
गर्ग द्वारा लिखा गया ये ब्लॉग बताता है कि कोरोना के ख़िलाफ़ जंग में संयुक्त परिवार एक ख़ास तरह की चुनौती पेश कर रहे हैं।
 
भारत में कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए जो लॉकडाउन लगाया गया वह 25 मार्च से शुरू होकर पिछले हफ़्ते तक चलता रहा। इसका उद्देश्य लोगों को घरों के अंदर रखकर भीड़ भरी सड़कों और सार्वजनिक जगहों से दूर रखना था।
 
लेकिन भारत में चालीस फ़ीसद घरों में कई पीढ़ियां एक साथ रहती हैं (ऐसे में तीन से चार लोग एक साथ एक ही छत के नीचे रहते हैं।)। ऐसे में घर भी एक भीड़-भाड़ वाली जगह है। ये जोख़िम पूर्ण है क्योंकि अध्ययन बताते हैं कि वायरस के घर के अंदर फैलने की आशंका ज़्यादा रहती है।
 
संक्रामक रोगों के विशेषज्ञ डॉ. जैकब जॉन कहते हैं, "लॉकडाउन के दौरान किसी भी एक व्यक्ति के संक्रमित होने पर उसका परिवार एक क्लस्टर की तरह बन जाता है। क्योंकि एक व्यक्ति के संक्रमित होने के बाद लगभग सभी लोगों के संक्रमित होने की आशंका बन जाती है।"
 
गर्ग के परिवार के रूप में जो सामने आया वो ये है कि संयुक्त (बड़े) परिवारों में सामाजिक दूरी संभव नहीं है, विशेषत: तब जबकि लॉकडाउन की वजह से घर के सारे सदस्य घर पर ही मौजूद हों।
 
'हमने काफ़ी अकेलापन झेला'
मुकुल गर्ग का परिवार दिल्ली के उत्तरी-पश्चिमी हिस्से में बने एक तीन मंज़िल के घर में रहता है। 33 वर्षीय गर्ग अपनी 30 वर्षीय पत्नी और दो साल के दो बच्चों के साथ टॉप फ़्लोर पर रहते हैं।
 
गर्ग के साथ उनके दादा-दादी और माता-पिता भी रहते हैं। पहली दो मंज़िलों पर गर्ग के चाचा और उनके परिवार रहते हैं। परिवार के सदस्यों में 90 साल के बुज़ुर्ग से लेकर चार महीने का बच्चा शामिल है। सामान्य संयुक्त परिवारों में कई लोग एक ही कमरे और बाथरूम का इस्तेमाल करते हैं।
 
लेकिन गर्ग परिवार का घर काफ़ी बड़ी जगह में बना हुआ है। 250 वर्ग मीटर में बने इस घर में हर मंज़िल पर तीन बेडरूम हैं जिनमें बाथरूम अटैच हैं। इसके साथ ही किचन भी है।
 
लेकिन इतनी जगह होने के बावजूद वायरस एक मंज़िल से होता हुआ दूसरी मंज़िल में लोगों को संक्रमित करता गया।
 
इस परिवार में सबसे पहले संक्रमित होने वाले शख़्स मुकुल गर्ग के चाचा थे लेकिन परिवार को अब तक नहीं पता है कि वह किससे संक्रमित हुए।
 
गर्ग कहते हैं, "हमें लगता है कि वह सब्ज़ी वाले या राशन वाले से संक्रमित हुए होंगे क्योंकि वह ही पहला मौक़ा था जब घर से कोई बाहर गया था।"
 
इस परिवार में वायरस धीरे-धीरे फैल रहा था लेकिन डर और शर्म की वजह से किसी ने टेस्टिंग कराना उचित नहीं समझा।
 
गर्ग कहते हैं, "हम 17 लोग एक साथ थे लेकिन हम काफ़ी अकेलापन महसूस कर रहे थे। हम चिंतित थे कि अगर हमें कुछ हो गया तो क्या कोई कोरोना वायरस के साथ जुड़े स्टिग्मा यानी शर्म की वजह से हमारे यहां अंतिम संस्कार में शामिल होगा?"
 
मई महीने के पहले हफ़्ते में उनकी 54 वर्षीय चाची को सांस लेने में दिक़्क़त हुई तो परिवार उन्हें लेकर अस्पताल पहुंचा। गर्ग कहते हैं कि इसके बाद पूरे परिवार को टेस्टिंग करानी होगी।
 
बीमारी का महीना
मई का पूरा महीना वायरस से लड़ने में बीत गया। गर्ग कहते हैं कि वह घंटों डॉक्टरों से बात करते थे। और परिवार के लोग वॉट्सऐप पर एक दूसरे का हाल लिया करते थे।
 
गर्ग कहते हैं, "हम लक्षणों के आधार पर पारिवारिक सदस्यों की जगह भी बदलते रहे ताकि ज़्यादा बुख़ार वाले दो लोग एक साथ एक जगह पर मौजूद न हों।"
 
संक्रमित होने वाले 11 लोगों में से छह लोगों की को-मॉर्बिडिटी वाली स्थिति थी। इन लोगों को डायबिटीज़, दिल की बीमारी, और हायपरटेंशन था जिसकी वजह से इनकी स्थिति ज़्यादा जोख़िम भरी थी।
 
गर्ग कहते हैं, "रातोंरात, हमारा परिवार कोविड-19 हेल्थकेयर सेंटर बन गया जहां पर हम एक-एक करके नर्स की भूमिका निभा रहे थे।"
 
संक्रामक रोगों के विशेषज्ञ कहते हैं कि बड़े परिवार किसी अन्य भीड़ भरी जगह जैसे ही होते हैं। बस लोगों की उम्र में भारी अंतर होता है।
 
ऐसे ही एक विशेषज्ञ डॉ. पार्थो सारोथी रे कहते हैं, "जब कई उम्र वर्गों के लोग एक ही जगह पर रहते हैं तो सभी लोगों को अलग-अलग स्तर पर जोख़िम होता है। इनमें वृद्ध लोगों को सबसे ज़्यादा जोख़िम होता है।"
 
गर्ग के लिए ये बात एक बड़ी चिंता का विषय थी क्योंकि वह 90 साल की उम्र वाले अपने बाबा को लेकर काफ़ी चिंतित थे। लेकिन दुनिया भर में वैज्ञानिकों को अचरज में डालने वाले इस वायरस ने गर्ग परिवार को भी हैरान कर दिया।
 
ये कोई अचरज की बात नहीं थी कि गर्ग और उनकी पत्नी, जिनकी उम्र चालीस वर्ष से कम है, में किसी तरह के लक्षण नहीं दिखे। लेकिन ये बात अचरज भरी थी कि उनके 90 वर्षीय बाबा में भी किसी तरह के लक्षण नहीं दिखे।
 
और घर के एक सदस्य जिसे किसी तरह की बीमारी नहीं थी उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा। परिवार के अन्य सदस्यों में भी आम लक्षण देखने को मिले।
 
गर्ग बताते हैं कि उन्होंने ब्लॉग इसलिए लिखा ताकि वह उन लोगों तक पहुंच सकें जो कि मदद चाहते थे।
 
वह लिखते हैं, "शुरुआत में हमने इस बारे में काफ़ी सोचा कि लोग क्या सोचेंगे। लेकिन हमें कमेंट्स में लोगों की प्रतिक्रियाएं काफ़ी सकारात्मक दिखीं। कमेंट्स में था कि अगर कोरोना वायरस हो गया तो कोई बड़ी बात नहीं है। ये कोई ऐसी बात नहीं है जिसके लिए आपको शर्मिंदा होना पड़े।"
 
मई महीने के दूसरे हफ़्ते में लक्षण दिखना बंद हो गये। और एक के बाद एक परिवार के सदस्यों की कोरोना संक्रमण की रिपोर्ट निगेटिव आने लगी जिससे परिवार को एक बड़ी राहत मिली। इसी दौरान गर्ग की चाची की कोरोना संक्रमण रिपोर्ट निगेटिव आने पर उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।
 
इस समय परिवार को लगा कि ख़राब समय गुज़र गया। लेकिन मई महीने, जिसे गर्ग 'बीमारी का महीना' कहते हैं, के आख़िर तक परिवार के सिर्फ़ तीन सदस्य कोरोना वायरस संक्रमित रह गए। इनमें स्वयं गर्ग भी शामिल थे। एक जून को तीसरी बार की टेस्टिंग में वह कोरोना संक्रमण से आज़ाद पाए गए।
 
'सबसे अच्छा और ख़राब दौर'
भारत के संयुक्त परिवारों में समर्थन और देखभाल हासिल की जा सकती है। लेकिन गतिरोध और संपत्ति विवाद भी देखने को मिल सकते हैं। लेकिन ऐसे समय में परिवार के लोग ही आपकी मदद से लिए पहल कर सकते हैं।
 
डॉ. जॉन कहते हैं, "क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि एक वृद्ध व्यक्ति क्वारंटीन में अकेला रहे जहां पर उनकी मदद के लिए कोई उपलब्ध न हो? तमाम चुनौतियों के बावजूद संयुक्त परिवारों में एक फ़ायदा ये होता है कि युवा वर्ग वृद्धों की मदद करने के लिए उपलब्ध होते हैं।"
 
भारत में कोरोना वायरस से जुड़े मामले 250,000 के पार चले गए हैं। ऐसे में एक नई बहस शुरू हुई है कि क्या ये महामारी संयुक्त परिवारों के लिए जोख़िमभरी साबित हो सकती है क्योंकि युवा लोग इस बारे में चिंतित हैं कि कहीं वे अपने वृद्ध रिश्तेदारों तक इस वायरस को न पहुंचा दें।
 
कानपुर की सीएसजेएम यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र की प्रोफ़ेसर किरण लांबा झा बताती हैं कि संयुक्त परिवार एक ऐसा तंत्र है जो कि पश्चिमी मूल्यों और औपनिवेशीकरण के प्रभाव के बावजूद ज़िंदा रहा है और कोरोना वायरस इसे ख़त्म करने नहीं जा रहा है। गर्ग परिवार इससे सहमत होगा।
 
गर्ग कहते हैं कि वायरस से संक्रमित होने से पहले उनका परिवार समृद्ध था जो कि नब्बे के दौर की किसी फ़िल्म की याद दिलाता है।
 
वह कहते हैं, "एक परिवार के रूप में, हमने कभी भी एक साथ इतना समय नहीं जिया जितना हमने लॉकडाउन के पहले महीने में जिया। और ये हमारे परिवार के सबसे सुखी क्षणों में से एक था।"
 
हालांकि, एक के बाद दूसरे व्यक्ति के कोरोना वायरस से संक्रमित होते देखना परेशान करने वाला था।
 
"हमने एक दूसरे को उनके सर्वश्रेष्ठ और सबसे ख़राब पलों से गुज़रते देखा लेकिन हम इससे मज़बूत होकर बाहर निकले हैं। हम अभी भी दोबारा संक्रमण को लेकर सजग हैं लेकिन हम इस बात को लेकर ख़ुश हैं कि हम इस वायरस को हराने में कामयाब हुए।"
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