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Last Modified: बुधवार, 8 अप्रैल 2020 (08:57 IST)

कोरोना वायरस : डर, तनाव और अकेलापन, क्या आप भी इससे गुज़र रहे हैं

कोरोना वायरस : डर, तनाव और अकेलापन, क्या आप भी इससे गुज़र रहे हैं - Corona virus: fear, stress and loneliness, are you going through it too
- कमलेश
कोरोना वायरस (Corona virus) से बचाव के लिए पूरे भारत में 21 दिनों का लॉकडाउन है। लोग घरों में बंद हैं और सब कुछ जैसे रुका हुआ है। भागती-दौड़ती ज़िंदगी में अचानक लगे इस ब्रेक और कोरोना वायरस के डर ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव डालना शुरू कर दिया है। इस बीच चिंता, डर, अकेलेपन और अनिश्चितता का माहौल बन गया है और लोग दिन-रात इससे जूझ रहे हैं। मुंबई की रहने वाली मॉनिका रोज़ कोरोना वायरस, लॉकडाउन और अर्थव्यवस्था की ख़बरें पढ़ती हैं। मॉनिका का अपना रेस्टोरेंट है जो इस वक़्त बंद पड़ा है लेकिन उनके ख़र्चे पहले की तरह ही चालू हैं।

आगे उम्मीद नहीं दिखती
मॉनिका कहती हैं, हमारा बिजनेस तो लॉकडाउन के कारण पहले ही धीमा हो गया था। उसके बाद पूरी तरह बंद हो गया। अब तो एक महीना होने को आ गया है लेकिन आगे क्या होगा पता नहीं। एक बिजनेसवुमन होने के नाते मैं अपने कर्मचारियों को तनख्वाह दूंगी ही लेकिन हमारे ख़र्चे बांटने वाला कोई नहीं है। ये सब सोचकर किसी की भी चिंता बढ़ जाती है। पहले कोरोना और फिर आगे मुंबई की बारिश, मुझे तो पूरा एक साल उम्मीद नहीं दिखती। कई लोग मौजूदा स्थिति में डरा हुआ या अकेला महसूस कर रहे हैं।

दिल्ली की रहने वालीं रिचा जनता कर्फ़्यू के बाद से ही अपने पति और बच्चों के साथ घर में रह रही हैं। वह कहती हैं, शुरू में तो अच्छा लगा कि पूरे परिवार के साथ रह पाएंगे और उस वक़्त कोरोना वायरस का डर भी ज्यादा नहीं था। लेकिन, अब रोज़-रोज़ ख़बरें देखकर डर लगता है कि हमारा क्या होगा। मुझे बार-बार लगता है कि कहीं परिवार में किसी को कोरोना वायरस हो गया तो। अगर सरकार ने लॉकडाउन खोल दिया तो सब लोग क्या करेंगे। कोरोना वायरस जैसे मेरे दिमाग़ पर छाया रहता है।

कई लोग तो इस वक़्त अपने घरों और दोस्तों से भी दूर हैं। अकेले ही हालात से निपट रहे हैं। एक कमरे में बंद अनिश्चित भविष्य के बारे में सोचकर लोगों की मानसिक दिक्कतें बढ़ी हैं। मानसिक स्वास्थ्य पर काम करने वालीं मनोवैज्ञानिक डॉ। पारुल खन्ना पराशर कहती हैं, लोगों के लिए पूरा माहौल बदल गया है। अचानक से स्कूल, ऑफिस, बिजनेस बंद हो गए, बाहर नहीं जाना है और दिनभर कोरोना वायरस की ही ख़बरें देखनी हैं। इसका असर मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ना स्वाभाविक है। लोगों को परेशान करने वालीं तीन वजहें हैं। एक तो कोरोना वायरस से संक्रमित होने का डर, दूसरा नौकरी और कारोबार लेकर अनिश्चितता और तीसरा लॉकडाउन के कारण आया अकेलापन।

स्ट्रेस बढ़ने का शरीर पर असर
डॉक्टर पराशर बताती हैं कि इन स्थितियों का असर ये होता है कि स्ट्रेस बढ़ने लगता है। सामान्य स्ट्रेस तो हमारे लिए अच्छा होता है इससे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहन मिलता है लेकिन ज़्यादा स्ट्रेस, डिस्ट्रेस बन जाता है। ये तब होता है जब हमें आगे कोई रास्ता नहीं दिखता। घबराहट होती है, ऊर्जाहीन महसूस होता है। फ़िलहाल महामारी को लेकर इतनी अनिश्चितता और उलझन है कि कब तक सब ठीक होगा, पता नहीं। ऐसे में सभी के तनाव में आने का ख़तरा बना हुआ है। इस तनाव का असर शरीर, दिमाग़, भावनाओं और व्यवहार पर पड़ता है। हर किसी पर इसका अलग-अलग असर होता है।

शरीर पर असर - बार-बार सिरदर्द, रोग प्रतिरोधक क्षमता का कम होना, थकान, और ब्लड प्रेशर में उतार-चढ़ाव।
भावनात्मक असर- चिंता, ग़ुस्सा, डर, चिड़चिड़ापन, उदासी और उलझन हो सकती है।
दिमाग़ पर असर - बार-बार बुरे ख़्याल आना। जैसे मेरी नौकरी चली गई तो क्या होगा, परिवार कैसे चलेगा, मुझे कोरोना वायरस हो गया तो क्या करेंगे। सही और ग़लत समझ ना आना, ध्यान नहीं लगा पाना।
व्यवहार पर असर - ऐसे में लोग शराब, तंबाकू, सिगरेट का सेवन ज़्यादा करने लगते हैं। कोई ज़्यादा टीवी देखने लगता है, कोई चीखने-चिल्लाने ज़्यादा लगता है, तो कोई चुप्पी साध लेता है।

कैसे दूर होगा स्ट्रेस
मानसिक तनाव की स्थिति से बाहर निकलना बहुत ज़रूरी है वरना तनाव अंतहीन हो सकता है। डॉ। पारुल पराशर के मुताबिक़ आप कुछ तरीक़ों से ख़ुद को शांत रख सकते हैं ताकि आप स्वस्थ रहें- ख़ुद को मानसिक रूप से मज़बूत करना ज़रूरी है। आपको ध्यान रखना है कि सबकुछ फिर से ठीक होगा और पूरी दुनिया इस कोशिश में जुटी हुई है। बस धैर्य के साथ इंतज़ार करें। अपने रिश्तों को मज़बूत करें। छोटी-छोटी बातों का बुरा ना मानें। एक-दूसरे से बातें करें और सदस्यों का ख़्याल रखें।

निगेटिव बातों पर चर्चा कम करें। घर से बाहर तो नहीं निकल सकते लेकिन, छत पर, खिड़की पर, बालकनी या घर के बगीचे में आकर खड़े हों। सूरज की रोशनी से भी हमें अच्छा महसूस होता है। अपनी दिनचर्या को बनाए रखें। इससे हमें एक उद्देश्य मिलता है और सामान्य महसूस होता है। हमेशा की तरह समय पर सोना, जागना, खाना-पीना और व्यायाम करें।

एक महत्वपूर्ण तरीक़ा ये है कि इस समय का इस्तेमाल अपनी हॉबी पूरी करने में करें। वो मनपसंद काम जो समय न मिलने के कारण आप ना कर पाए हों। इससे आपको बेहद ख़ुशी मिलेगी जैसे कोई अधूरी इच्छा पूरी हो गई है। अपनी भावनाओं को ज़ाहिर करना। अगर डर, उदासी है तो अपने अंदर छुपाएं नहीं बल्कि परिजनों या दोस्तों के साथ शेयर करें। जिस बात का बुरा लगता है, उसे पहचानें और ज़ाहिर करें, लेकिन वो ग़ुस्सा कहीं और ना निकालें।

भले ही आप परिवार के साथ घर पर रह रहें फिर भी अपने लिए कुछ समय ज़रूर निकालें। आप जो सोच रहे हैं उस पर विचार करें। अपने आप से भी सवाल पूछें। जितना हो पॉजिटिव नतीजे पर पहुंचने की कोशिश करें। सबसे बड़ी बात बुरे वक़्त में भी अच्छे पक्षों पर ग़ौर करना है। जैसे अभी महामारी है, लॉकडाउन है लेकिन इस बीच आपके पास अपने परिवार के साथ बिताने के लिए, अपनी हॉबी पूरी करने के लिए काफ़ी वक़्त है। इस मौक़े पर भी ध्यान दें।

ख़बरों की ओवरडोज़ ना लें। आजकल टीवी और सोशल मीडिया पर चारों तरफ़ कोरोना वायरस से जुड़ी ख़बरें आ रही हैं। हर छोटी-बड़ी, सही-गलत ख़बर लोगों तक पहुंच रही है। डॉक्टर्स के मुताबिक़ इससे भी लोगों की परेशानी बढ़ गई है क्योंकि वो एक ही तरह की बातें सुन, देख व पढ़ रहे हैं और फिर सोच भी वही रहे हैं।

इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड एलाइड साइंसेज (इहबास) के निदेशक डॉक्टर निमेश जी। देसाई कहते हैं, इसके लिए ज़रूरी है कि लोग उतनी ही ख़बरें देखें और पढ़ें जितना ज़रूरी है। उन्हें समझना होगा कि एक ही चीज़ बार-बार देखने से उनके दिमाग़ में वही चलता रहेगा। इसलिए दिनभर का एक समय तय करें और उसी वक़्त न्यूज़ चैनल देखें।

डॉक्टर देसाई सलाह देते हैं कि इस वक़्त अपना ध्यान बंटाना ज़रूरी है। इसके लिए ख़ुद को दूसरे कामों में व्यस्त रखें। दोस्तों और परिजनों से बातचीत करते रहें या अपने मनपसंद काम में ध्यान लगाएं। कुछ लिखना भी इस दौरान सुकून दे सकता है।

सेल्फ आइसोलेशन में हैं तो...
झारखंड की रहने वालीं कोमल सेल्फ आइसोलेशन के दौर से गुज़र चुकी हैं। वो जिस ट्रेन में सफ़र कर रही थीं उसी ट्रेन में एक व्यक्ति ऐसा था जिसके हाथ पर वो स्टैंप लगी थी जो कोरोना वायरस के संदिग्धों के लिए इस्तेमाल की जा रही थी। इसके बाद कोमल को भी सेल्फ आइसोलेशन में रहना पड़ा। उन्होंने अपना टेस्ट भी कराया जो निगेटिव आया।

कोमल बताती हैं, मैंने वीडियो बनाकर ये मुद्दा उठाया था कि कोरोना वायरस का एक संदिग्ध ट्रेन में इस तरह कैसे घूम सकता है। लेकिन, लोगों ने समझ लिया कि मुझे ही संक्रमण हो गया। मेरे पास फ़ोन आने लगे और आसपास के लोग भी मुझे मरीज़ ही समझने लगे। मुझे नहीं पता था कि मेरे टेस्ट के नतीजे क्या आएंगे। थोड़ी खांसी होती या सांस फूलती तो डर लगने लगता कि कहीं संक्रमित तो नहीं हूं।

जब तक नतीजे नहीं आए तब तक ये डर बना रहा। इस सब पर अगर लोग पहले ही नतीजा निकालने लगें तो दिक्कत होती ही है। ऐसे मामलों के लिए डॉक्टर पारुल पराशर कहती हैं कि ये दौर मुश्किल तो होता है लेकिन ख़ुद को संभालना बहुत ज़रूरी है। जब तक टेस्ट के नतीजे नहीं आते तब तक ख़ुद किसी नतीजे पर ना पहुंचे। दिमाग़ को नियंत्रित रखें और कुछ न कुछ करने में व्यस्त रहें।

डॉक्टर पारुल के मुताबिक़ ऐसे मामलों के पीछे एक ख़ास मानसिक स्थिति भी छिपी है। वह बताती हैं, अक्सर कुछ ग़लत होने पर हम अपना ग़ुस्सा, चिढ़ ग़लती करने वाले पर निकालकर शांत कर लेते हैं। उसे बुरा-भला कहकर अपना गुबार निकाल लेते हैं। लेकिन, इस महामारी से लोगों में चिढ़ और डर से पैदा हुआ ग़ुस्सा कहीं निकल नहीं पा रहा है। डर का एक रूप ग़ुस्सा और अस्वीकृति भी है।

पहले घरों में लड़ाई होती थी तो शाम तक सुलझ जाती थी क्योंकि सब लोग घर से बाहर निकल जाते थे, ध्यान बंट जाता था लेकिन अब एक-दूसरे के सामने ही रहना है। झगड़ा भी हो जाता है और ग़ुस्सा अंदर ही कहीं रहता है। साथ ही इस महमारी में के लिए लोग किसी को ज़िम्मेदार भी नहीं ठहरा सकते। इसलिए भी वो कोरोना वायरस के संदिग्धों और मरीज़ों पर ग़ुस्सा निकालने लगते हैं। उन्हें एक निशाना मिल जाता है।

मानसिक रोगियों की समस्या
इस लॉकडाउन के दौरान उन लोगों की समस्या भी बढ़ गई है जो पहले से ही किसी मानसिक रोग से जूझ रहे हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंस की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ उन्हें साइकोलॉजिकल हेल्पलाइन में पहले दिन 1000 फ़ोन और दूसरे दिन 3000 फ़ोन आए। लोगों की मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बढ़ गई हैं। जिन्हें पहले से ही तनाव, निराशा, हताशा जैसी दिक्कते थीं उनमें इजाफ़ा हो गया है।

कोलकाता में मेंटल हॉस्पिटल एंड रीहैबिलिटेशन सेंटर के संस्थापक डॉक्टर तपन कुमार रे मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े कई मरीज़ों का इलाज करते हैं। हॉस्पिटल में कई मरीज़ों को स्थायी तौर पर रखकर भी इलाज होता है। डॉक्टर तपन रे कहते हैं कि उन्होंने भी कोरोना वायरस के दौरान मानसिक रोग के मरीज़ों में कोरोना वायरस की चिंता देखी है।

वह कहते हैं, वो लोग दिनभर इस पर बात करते हैं और हमसे इसके बारे में पूछते भी हैं। ये ऐसा समय है जब उन्हें ठीक से दवाई और काउंसलिंग मिलनी ज़रूरी है। अगर ऐसा नहीं होता तो वो स्टेबल नहीं रह पाएंगे। हम भी यही कोशिश करते हैं कि हमारे मरीज़ों की काउंसलिंग और दवाई में कोई रुकावट ना आए।

डॉक्टर देसाई कहते हैं कि एक हज़ार से तीन हज़ार कॉल में ज़रूरी नहीं सभी कॉल काउंसलिंग के लिए आए हों। कई बार लोग सिर्फ़ जानकारी लेने के लिए फ़ोन करते हैं। हालांकि मानसिक रोगियों के लिए ये वक्त कठिन तो है। इसलिए इहबास भी उन्हें हर तरह से मदद करने की कोशिश कर रहा है।

स्वास्थ्य मंत्रालय ने दिए टिप्स
मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी इस संबंध में कुछ टिप्स बताए हैं। मंत्रालय की वेबसाइट पर वीडियो के ज़रिए बताया गया कि तनाव से बचने के लिए स्टूडेंट्स और माता-पिता क्या करें :

- दुनियाभर में कोरोना वायरस को लेकर जो स्थितियां हैं, उससे बच्चों के दिमाग़ में बहुत कुछ चल रहा है। एकदम से उनका रूटीन भी बदल गया है। स्कूल बंद है और बाहर खेल भी नहीं सकते।

- ऐसे में उन्हें उनके बायलॉजिकल शेड्यूल के अनुसार चलने दें। ज़बरदस्ती उनके लिए नया शेड्यूल और काम तय ना करें। जैसे सुबह जल्दी उठो, योगा करो, ऑनलाइन क्लास लेकर कुछ नया सीख लो। उन्हें भी बदली हुई परिस्थितियों में एडजस्ट होने का समय दें।
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