शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024
  • Webdunia Deals
  1. सामयिक
  2. बीबीसी हिंदी
  3. बीबीसी समाचार
  4. नागरिकता संशोधन विधेयक : कोर्ट में चुनौती दिए जाने की स्थिति में क्या होगा?
Written By
Last Modified: बुधवार, 11 दिसंबर 2019 (10:18 IST)

नागरिकता संशोधन विधेयक : कोर्ट में चुनौती दिए जाने की स्थिति में क्या होगा?

Citizenship Amendment Bill | नागरिकता संशोधन विधेयक : कोर्ट में चुनौती दिए जाने की स्थिति में क्या होगा?
- फ़ैज़ान मुस्तफ़ा, क़ानूनी मामलों के जानकार
नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 के बारे में ये कहा जा रहा है ये संविधान की धारा 14 और 15 का उल्लंघन है और इस आधार पर इसे कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है, लेकिन अगर कोर्ट में चुनौती दी गई तो क्या होगा?

भारत के संविधान में अनुच्छेद 14 के तहत समानता का अधिकार दिया गया है, उसमें साफ कहा गया है कि राज्य किसी भी व्यक्ति को क़ानून के तहत समान संरक्षण देने से इनकार नहीं करेगा। इसमें नागरिक और गैर नागरिक दोनों शामिल हैं।

हम आज जिनको भारत का नागरिक बनाने की बात कर रहे हैं, उनमें पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के प्रवासी सहित अन्य देशों के प्रवासी भी शामिल हैं। साथ ही इन देशों के मुसलमान लोग भी हैं, उनको भी अनुच्छेद 14 के तहत संरक्षण प्राप्त है।

अनुछेद 14 की ये मांग कभी नहीं रही है कि एक क़ानून बनाया जाए, लेकिन हम सभी इस बात को जानते हैं कि देश में जो सत्तारूढ़ दल है वो एक देश, एक क़ानून, एक धर्म और एक भाषा की बात कहता रहा है। लेकिन अब हम वर्गीकरण करके कुछ लोगों को इसमें शामिल कर रहे हैं और कुछ लोगों को नहीं। जैसे इस्लाम और यहूदी धर्म के लोगों को छोड़ दिया गया है। ये इसकी मूल भावना के ख़िलाफ़ है।

उदाहरण के लिए अगर ऐसा कहा जाए कि जितने भी लोग तेलंगाना में रहते हैं उनके लिए नालसार में आरक्षण दिया जाएगा और बाक़ियों को नहीं दिया जाएगा तो इसका सीधा मतलब है कि ये आपने डोमिसाइल यानी आवास के आधार पर आरक्षण दिया है और इसे कोर्ट स्वीकार भी करता है।

हमें समझना होगा कि अनुच्छेद 14 ये मांग नहीं करता कि लोगों के लिए एक क़ानून हो बल्कि देश में अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग क़ानून हो सकते हैं लेकिन इसके पीछे आधार सही और जायज़ होना चाहिए।

अगर वर्गीकरण हो रहा है तो यह धर्म के आधार पर नहीं होना चाहिए। ये आधुनिक नागरिकता और राष्ट्रीयता के ख़िलाफ़ है। सोचने वाली बात है कि कोई भी देश इन लोगों को जगह क्यों देगा। अगर भारत इस क़ानून को बना रहा है तो उसे ऐसे बनाना चाहिए कि कोई भी देश हमारे ऊपर न हंसे। हमारा संविधान धर्म के आधार पर किसी भी तरह के भेदभाव और वर्गीकरण को गैर क़ानूनी समझता है।

तो यूनिफॉर्म सिविल कोड नहीं बना पाएगी सरकार
अगर सरकार कह रही है कि मुसलमान एक अलग क्लास है तो फिर आप यूनिफॉर्म सिविल कोड नहीं बना पाएंगें, क्योंकि फिर मुसलमान ये कह सकते हैं कि अगर हम अलग क्लास हैं तो हमारे लिए अलग क़ानून भी होना चाहिए।

अगर नागरिकता के लिए अलग क़ानून है तो हमारा पर्सनल लॉ भी होना चाहिए। इस तरह से आप कभी भी क़ानून में बदलाव या सुधार नहीं ला पाएंगे। मैं ये समझता हूं कि यह विधेयक बहुत ख़तरनाक है। आज धर्म के आधार पर भेदभाव को जायज़ ठहराया जा रहा है तो कल जाति के आधार पर भी भेदभाव और वर्गीकरण को जायज़ ठहराया जाएगा।

हम आख़िर देश को किस दिशा में ले जा रहे हैं। संविधान के अनुसार लोगों को इस तरह से बांटने और वर्गीकरण का कोई उद्देश्य होना चाहिए और वो न्यायोचित होना चाहिए। या बात साफ़ है कि हमारा उद्देश्य न्यायोचित नहीं है।

इस बिल को लेकर कोर्ट में तो जाया जा सकता है लेकिन भारत में जो संविधान है उसके अनुसार अगर संसद किसी क़ानून को पारित करती है तो इसका मतलब ये संवैधानिक है तो जो व्यक्ति इसे चुनौती देगा उसी पर ये साबित करने का बोझ होगा कि वो बताए ये कैसे और किस तरह से असंवैधानिक है।

इस तरह के मामले कई बार सांवैधानिक बेंच के पास चले जाते हैं और बेंच के पास बहुत से मामले पहले से ही लंबित हैं जिसकी वजह से इसकी सुनवाई जल्दी नहीं होगी।

कोर्ट में क्या साबित करना होगा?
देश के जो समझदार लोग हैं वो ये देख रहे हैं कि देश ग़लत दिशा में जा रहा है। संविधान का मूलभूत ढांचा नहीं बदला जा सकता है। ये एक मामूली क़ानून है जिसके ज़रिए आप संविधान का ढांचा नहीं बदल सकते इसलिए ये बात कोर्ट में साबित करनी होगी कि किस तरह यह क़ानून संविधान के मूलभूत ढांचे को बदल सकता है।

फिर यदि कोर्ट इस बात को स्वीकार करता है तो ही स्थित कुछ बदल सकती है। अब देश के लोगों की उम्मीदें सर्वोच्च न्यायालय पर ही निर्भर हैं और यह सर्वोच्च न्यायालय की एक परीक्षा होगी कि वो जो मूलभूत ढांचे को जैसे परिभाषित करते आएं हैं वो उसे इस विधेयक पर कैसे लागू करते हैं।

इस पर पूरे देश की ही नहीं पूरे विश्व की नज़रें टिकी होंगी। बहुसंख्यकवाद के कारण कई बार संसद ग़लत क़ानून बना देती हैं और फिर अदालतें न्यायिक समीक्षा की ताक़त का इस्तेमाल करते हुए अंकुश लगाती हैं और संविधान को बचाती हैं। भारत के न्यायालय की क्या प्रतिक्रिया होगी पूरे विश्व की नज़रें इस बात पर टिकी हैं।
ये भी पढ़ें
ओशो थे हिन्दू धर्म के विरोधी और बौद्ध धर्म के समर्थक?