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Written By BBC Hindi
Last Updated : मंगलवार, 11 जून 2024 (08:27 IST)

बिहार के वे बड़े चेहरे जिन्हें नहीं मिल पाया नई मोदी सरकार में मंत्री का पद

बिहार के वे बड़े चेहरे जिन्हें नहीं मिल पाया नई मोदी सरकार में मंत्री का पद - big faces of bihar politics not in modi cabinet
चंदन कुमार जजवाड़े, बीबीसी संवाददाता
केंद्र की नई सरकार में बिहार राज्य से 8 मंत्री बनाए गए हैं। इनमें एनडीए के सहयोगियों को भी जगह दी गई है। मंत्रियों की सूची स्पष्ट तौर पर एनडीए की सरकार नज़र आती है।
 
रविवार को नरेंद्र मोदी ने लगातार तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर शपथ ली है। लेकिन उनका यह कार्यकाल पिछले दो कार्यकाल से काफ़ी अलग हो सकता है। मोदी मंत्रिमंडल में प्रधानमंत्री के अलावा 71 अन्य मंत्री भी शामिल हैं।
 
केंद्र में नरेंद्र मोदी की पिछली सरकार में बिहार से बीजेपी के सहयोगी दलों से केवल एक मंत्री रह गए थे। उस वक़्त राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के सांसद पशुपति कुमार पारस के अलावा बिहार से बनाए गए सभी मंत्री बीजेपी के थे।
 
जबकि नई सरकार में बिहार से जिन सांसदों को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिली है, उनमें 4 बीजेपी से हैं और 4 उसके अन्य सहयोगी दलों से।
 
4 जून को आए लोकसभा चुनाव के परिणाम से ही यह ज़ाहिर हो गया था कि इस बार केंद्र की सरकार में बिहार को काफ़ी महत्व मिलने वाला है। इसकी सबसे बड़ी वजह थी, 12 सांसदों के साथ ‘किंग मेकर’ की भूमिका में आई नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड।
 
हालाँकि मोदी सरकार में 5 सांसदों की ताक़त रखने वाले चिराग पासवान को भी जगह दी गई है और एकमात्र सांसद वाले जीतन राम मांझी की पार्टी हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा को भी।
 
जिन्हें मिला कैबिनेट मंत्री का पद
राजीव रंजन सिंह (ललन सिंह): जनता दल यूनाइटेड के नेता और मुंगेर से सांसद ललन सिंह को नीतीश कुमार का क़रीबी माना जाता है। हालाँकि पिछले साल के अंत में उनकी जगह नीतीश कुमार ख़ुद पार्टी अध्यक्ष बन गए थे।
 
माना जा रहा था कि पार्टी में ललन सिंह का ग्राफ़ गिरा है। इस बीच जेडीयू ने बीजेपी के क़रीबी माने जाने वाले संजय झा को राज्यसभा भी भेजा था, लेकिन नई केंद्र सरकार में ललन सिंह को मंत्री का पद मिला है।
 
जीतन राम मांझी: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री रहे जीतन राम मांझी पहली बार सांसद बने हैं। हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा(सेक्युलर) के नेता मांझी को भी मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। मांझी बिहार की गया लोकसभा सीट से चुनाव जीते हैं।
 
चिराग पासवान: राम विलास पासवान के निधन के बाद लोक जनशक्ति पार्टी में विभाजन हो गया था। बाद में चिराग अपने चाचा पशुपति पारस के साथ हुए राजनीतिक खींचतान में विजयी हुए। चिराग ने पार्टी के हिस्से में मिली सभी 5 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की। चिराग पासवान पहली बार केंद्र में मंत्री बनाए गए हैं।
 
गिरिराज सिंह: बेगुसराय से चुनाव जीतने वाले गिरिराज सिंह को एक बार फिर से मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। इस बार के लोकसभा चुनावों में कई बार बेगुसराय में गिरिराज सिंह का विरोध हुआ और उसे सोशल मीडिया पर लोगों ने साझा भी किया था। हालाँकि गिरिराज सिंह चुनाव जीतने में सफल रहे।
 
वरिष्ठ पत्रकार नचिकेता नारायण कहते हैं, "बीजेपी ने अगड़ी जाति में सबसे ज़्यादा टिकट राजपूतों को दिया लेकिन इस समुदाय से मंत्री किसी को नहीं बनाया गया। वहीं गिरिराज सिंह को फिर से मंत्री बनाने के मतलब है कि भले ही मौजूदा राजनीतिक हालात में बीजेपी हिन्दुत्व की राजनीति से बचे लेकिन हो सकता है भविष्य में उसे इसकी ज़रूरत पड़े और इसके लिए गिरिराज सिंह की भूमिका क्या हो सकती है, यह बताने की ज़रूरत नहीं है।"
 
इन्हें बनाया गया राज्य मंत्री
नित्यानंद राय: बिहार के उजियारपुर सीट से सांसद नित्यानंद राय मोदी की पिछली सरकार में भी मंत्री थे। नीतीश कुमार के महागठबंधन को छोड़कर एनडीए में शामिल होने और बिहार में एनडीए की सरकार बनने में नित्यानंद राय की भी भूमिका मानी जाती है।
 
राजभूषण चौधरी: राजभूषण पहली बार लोकसभा का चुनाव जीते हैं। मल्लाह समाज से आने वाले राजभूषण निषाद कभी बीजेपी तो कभी मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी में रहे हैं।
 
पिछले लोकसभा चुनाव में वो वीआईपी के टिकट पर बीजेपी के अजय निषाद से 4 लाख वोटों के पराजित हुए थे। इस जीत के बाद भी इस बार अजय निषाद का टिकट काटकर बीजेपी ने राजभूषण को टिकट दिया था।
 
सतीष चंद्र दुबे: सतीष चंद्र दुबे साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बिहार के वाल्मीकिनगर सीट से चुनाव जीतकर सांसद बने थे। हालाँकि उसके बाद यह सीट एनडीए के सहयोगी जेडीयू के खाते में चली गई है। सतीष चंद्र फ़िलहाल राज्यसभा सांसद हैं।
 
रामनाथ ठाकुर: बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पुरी ठाकुर के बेटे रामनाथ ठाकुर जनता दल यूनाइटेड के राज्यसभा सांसद हैं। जेडीयू में बीजेपी के क़रीबी माने जाने वाले राज्यसभा सांसद संजय झा की जगह मोदी सरकार में रामनाथ ठाकुर को मंत्री का पद मिला है।
 
वरिष्ठ पत्रकार सुरूर अहमद कहते हैं, "बिहार में 36 फ़ीसदी अति पिछड़ों की आबादी को देखते हुए इस समुदाय से राजभूषण चौधरी और रामनाथ ठाकुर को मंत्री बनाया गया है, क्योंकि तेजस्वी यादव भी इसे अपनी तरफ खींचने में लगे हैं। लेकिन सतीष चंद्र दुबे को मंत्री बनाना थोड़ा हैरान करता है।"
 
जिन्हें नहीं मिला मौका
रविशंकर प्रसाद: बिहार राज्य से ताल्लुक रखने वाले बीजेपी के जिन बड़े चेहरों को केंद्र की नई सरकार में मंत्री का पद नहीं मिल पाया है उनमें रविशंकर प्रसाद का नाम शामिल है। रविशंकर प्रसाद लगातार दूसरी बार पटना साहिब सीट से चुनाव जीतकर सांसद बने हैं। रविशंकर प्रसाद इससे पहले मोदी सरकार में मंत्री रह चुके हैं।
 
राजीव प्रताप रूडी: राजीव प्रताप रूडी बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं में गिने जाते हैं। अटल बिहारी वाजपेयी के ज़माने में केंद्र में मंत्री रहे रूडी को इस बार भी मोदी मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली है।
 
राजीव प्रताप रूडी लगातार तीन बार से सारण सीट पर लालू परिवार को मात दे रहे हैं। रूडी ने इस बार लालू की बेटी रोहिणी आचार्य को चुनावों में शिकस्त दी है। इससे पहले उन्होंने साल 2019 के लोकसभा चुनावों में लालू प्रसाद यादव के समधी चंद्रिका राय को इस सीट से हराया था। जबकि साल 2014 में लालू की पत्नी राबड़ी देवी इस सीट से राजीव प्रताप रूडी से हार गई थीं।
 
राधा मोहन सिंहः पूर्व चंपारण से एक बार जीत दर्ज करने वाले राधा मोहन सिंह को इस बार भी केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली है। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में उन्हें कृषि मंत्रालय का विभाग मिला था। राधामोहन सिंह बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं में गिने जाते हैं।
 
सुरूर अहमद कहते हैं, "बीजेपी को अपनी राजनीतिक ज़रूरत और सहयोगियों को जगह देने के लिहाज से मंत्री बनाने थे। इसलिए बीजेपी के कई बड़े नेताओं को जगह नहीं मिल पाई, बीजेपी यह भी मानती है कि अगड़ी जातियों का वोट उसका अपना है और यह कहीं नहीं जानेवाला है।"
 
कयास यह भी लगाए जा रहे थे बिहार में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर राज्य के कुछ अन्य चेहरों को भी केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है।
 
नचिकेता नारायण का मानना है कि राजीव प्रताप रूडी, राधामोहन सिंह और रविशंकर प्रसाद जैसे नेताओं ने मोदी का भरोसा खो दिया है।
 
नचिकेता नारायण कहते हैं, 'चर्चा तो यहाँ तक चल पड़ी थी कि इस बार रविशंकर प्रसाद को बीजेपी पटना साहिब से टिकट भी नहीं देगी। उन्हें मोदी के पिछले कार्यकाल के बीच में ही अचानक मंत्रिमंडल से हटा दिया गया था। मोदी के पहले कार्यकाल में ऐसे राजीव प्रताप रूडी हटाए गए थे, जबकि राधामोहन सिंह को मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल में भी मंत्री नहीं बनाया था।'
 
सीपीआई(एमएल) ने छीनी कुर्सी
हालाँकि बिहार में अक्सर देखा गया है राष्ट्रीय जनता दल उस वर्ग को अपनी तरफ खींचने की कोशिश करता है, जिसके बारे में माना जाता है कि उसे बीजेपी में उचित स्थान नहीं मिला है। ऐसे में बीजेपी भी इस बात को समझकर भविष्य में मंत्रिमंडल में अगर फेरबदल करती है, तो उसमें बिहार को लेकर भी बदलाव देखने को मिल सकता है।
 
हालाँकि मौजूदा केंद्र सरकार में कई ऐसे बड़े नेता हैं जिनके मंत्री बनने की संभावना को उनकी हार ने फ़िलहाल ख़त्म कर दिया है।
 
उपेंद्र कुशवाहा: मोदी सरकार में जिस तरह से अपनी पार्टी के अकेले सांसद जीतन राम मांझी को मंत्री बनने का अवसर मिला है। माना जाता है कि अगर उपेंद्र कुशवाहा काराकाट से चुनाव जीतने में सफल होते तो उन्हें भी यह अवसर मिल सकता था।
 
उपेंद्र कुशवाहा साल 2014 में मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में मंत्री बनाए गए थे। उस समय उनकी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के तीन सांसद चुनाव जीतने में सफल रहे थे। बाद में कुशवाहा अपनी पार्टी और गठबंधन बदलते रहे।
 
इस साल के चुनावों में उपेंद्र कुशवाहा को काराकाट सीट पर बीजेपी के ही बाग़ी और निर्दलीय उम्मीदवार पवन सिंह की वजह से हार का सामना करना पड़ा। इस सीट से सीपीआई(एमएल) राजा राम सिंह चुनाव जीतने में सफल रहे हैं।
 
आर के सिंह: पूर्व नौकरशाह आर के सिंह मोदी की पिछली दोनों सरकारों में मंत्री रहे थे। आर के सिंह को इस बार आरा लोकसभा सीट से हार का सामना करना पड़ा है। राजकुमार सिंह को सीपीआई(एमएल) के सुदामा प्रसाद ने चुनावों में मात दी है। इस तरह से बिहार में दो संभावित मंत्रियों की कुर्सी सीपीआई(एमएल) ने छीन ली है।
 
इसके अलावा हार की वजह से मंत्री बनने की संभावना गंवाने वालों में रामकृपाल सिंह का नाम भी लिया जा सकता है। राम कृपाल सिंह मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में मंत्री बनाए गए थे। हालाँकि पिछली सरकार में उनको यह मौक़ा नहीं दिया गया था।
 
रामकृपाल सिंह पहले लालू के क़रीब और राष्ट्रीय जनता दल में थे। बाद में उन्होंने अपनी पुरानी पार्टी छोड़ दी थी। उन्होंने साल 2014 और साल 2019 में लालू की बेटी मीसा भारती को पाटलिपुत्र सीट से पराजित किया था। हालाँकि इस बार के चुनावों में जीत मीसा भारती को मिली है।
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