- नितिन श्रीवास्तव
बांग्लादेश के पूर्व चीफ़ जस्टिस एस के सिन्हा का कहना है कि सरकार ने 'उन पर देश से बाहर निकल जाने का दबाव बनाया'। बीबीसी हिंदी से ख़ास बातचीत में बांग्लादेश के पहले हिंदू चीफ़ जस्टिस एसके सिन्हा ने साल 2017 में देश छोड़ने की वजह 'परिवार पर जान का ख़तरा' बताया।
बांग्लादेश में पिछले दोनों चुनावों के बाद प्रधानमंत्री शेख़ हसीना के नेतृत्व वाली आवामी लीग की सरकार बनी और एसके सिन्हा इसी बीच देश के चीफ़ जस्टिस बने थे। साल 2017 में देश से एकाएक ऑस्ट्रेलिया निकल गये पूर्व चीफ़ जस्टिस की हाल ही में आई क़िताब 'ए ब्रोकन ड्रीम: रूल ऑफ़ लॉ, ह्यूमन राइट्स एंड डेमोक्रैसी' में भी इस बात का दावा किया है।
एसके सिन्हा इस वक्त किसी अज्ञात देश में रह रहे हैं। वहीं से उन्होंने ने बीबीसी हिंदी से विस्तार से बात की और कहा कि "उपयुक्त समय पर भारत आकर सारी सच्चाई उजागर'' करेंगे। उन्होंने कहा, "मैं बांग्लादेश में न्यायपालिका की पारदर्शिता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया के हित में बात कर रहा था। लेकिन सरकार और इंटेलिजेंस एजेंसियां मेरे पीछे पड़ गईं। मुझे अपने घर में अनौपचारिक तरीक़े से नज़रबंद सा कर दिया गया"।
'चरमपंथियों की घर बम से उड़ाने की योजना'
उन्होंने कहा, "मुझ पर देश छोड़ने का दबाव बनाया गया और आख़िरकार देश से निकाल भी दिया गया।" भारत से सटे सिलहट प्रांत के रहने वाले पूर्व चीफ़ जस्टिस का दावा है कि उनके "पुश्तैनी घर में जासूसी करने वाले संयंत्र बिछाए गये थे" और क्योंकि वे "बांग्लादेश वॉर ट्राइब्यूनल के मामलों की सुनवाई कर रहे थे तो चरमपंथियों ने उनके घर को बम से उड़ाने की योजना बना ली थी"।
जस्टिस सिन्हा के दावों और किताब में लगाए गए आरोपों के बीच बांग्लादेश की आवामी लीग सरकार ने उनकी सभी बातों को 'बेबुनियाद' बताया है। शेख़ हसीना सरकार के कैबिनेट मंत्री ओबैदुल क़ादिर ने कहा, "जस्टिस सिन्हा ने देश के बाहर बैठकर एक मनगढंत कहानी लिखी है। पावर खोने की जलन के चलते वे ऐसा कह रहे हैं और उन्होंने ये सभी आरोप तब क्यों नहीं लगाए जब वे ख़ुद बांग्लादेश के चीफ़ जस्टिस थे"।
मैंने हज़ारों मील दूर बैठे जस्टिस सिन्हा से यही सवाल पूछा तो उन्होंने कहा, "मुझे जिस तरह से ब्लैकमेल किया गया ये कहानी किसी को पता नहीं।"
उन्होंने कहा, "सरकार को जब लगने लगा कि मैं उनके सत्ता में बने रहने वाले मंसूबों के ख़िलाफ़ हूँ और चाहता हूँ कि देश में निष्पक्षता हो, तभी से मैं उन्हें खटकने लगा। मेरे कुछ दोस्तों और रिश्तेदारों को ख़ुफ़िया तरीक़े से नज़रबंद कर लिया गया और मुझ पर इंटेलिजेंस एजेंसियों ने तुरंत देश छोड़ने का दबाव बनाया। मेरी पत्नी को भी धमकाया गया और मेरे निकलने के तुरंत बाद उन्होंने भी आनन-फ़ानन में देश छोड़ दिया"।
सरकार से जवाब मांगा तो बढ़ी दिक्कत
बीबीसी हिंदी से हुई इस विशेष बातचीत में उन्होंने आरोप लगाया है कि, "देश की प्रधानमंत्री और उनके मंत्रियों को ये बुरा लगा कि मैं देश के क़ानून में 16वें संशोधन के चलते चुनाव प्रणाली में पारदर्शिता लाना चाहता था। साथ ही देश की निचली स्तर की न्यायिक प्रणाली में भ्रष्टाचार ख़त्म करने और जवाबदेही तय करने के मेरे क़दमों का जमकर विरोध हुआ"।
विदेश में छपी अपनी किताब में एस के सिन्हा ने लिखा है, "देश का चीफ़ जस्टिस रहते हुए जब मुझे नज़रबंद किया गया था तब दूसरे जजों या वकीलों को भी मुझसे मिलने की इजाज़त नहीं मिल पाती थी। मीडिया को बता दिया गया था कि मैं बीमार चल रहा हूँ। शेख़ हसीना सरकार का लगभग हर मंत्री यही बयान दे रहा था कि मुझे इलाज के लिए देश से बाहर जाना पड़ेगा।"
इन सनसनीखेज़ आरोपों और प्रत्यारोपों के बीच जानकारों का मानना है कि बांग्लादेश में जो हुआ है उसकी वजह सिर्फ़ एक नहीं है।
बीबीसी बांग्ला सेवा के शुभज्योति घोष के मुताबिक़, "बांग्लादेशी प्रधानमंत्री शेख़ हसीना की धर्म-निरपेक्ष नीतियों के पोस्टर-बॉय रहे हैं चीफ़ जस्टिस एस के सिन्हा। देश के अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय से ताल्लुक रखने के अलावा उनका नाता भारत के मणिपुर राज्य से भी है"।
कुछ विश्लेषकों की राय ये भी है, "एक ज़माने में शेख़ हसीना के क़रीबी रहे एस के सिन्हा ने जब संसद और सरकार से जवाब मांगने शुरू किये, तभी से उनकी दिक्क़तें बढ़ गईं"।
इस बीच बांग्लादेशी इंटेलिजेंस एजेंसी के प्रवक्ता ब्रिगेडियर जनरल तनवीर मज़हर सिद्दीक़ी ने bdnews24.com नाम की समाचार संस्था से बात की है और कहा, "अभी तक उन्होंने इस किताब को नहीं देखा है और पढ़ने के बाद ही वो प्रतिक्रिया देंगे।"