पाकिस्तान की सरकार ने ईशनिंदा के मामले में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फ़ैसले के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शनों को रोकने के लिए कट्टरवादी इस्लामिक पार्टी के साथ एक नया करार किया है।
पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में बीते आठ सालों से ईशनिंदा केस के चलते जेल में बंद ईसाई महिला आसिया बीबी को दोषमुक्त करार देते हुए रिहा कर दिया है। लेकिन इसके बाद पाकिस्तान के तमाम शहरों में कोर्ट के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन देखे गए।
ऐसे में पाकिस्तान सरकार ने इन विरोध प्रदर्शनों को रोकने के लिए एक समझौता किया है जिसके तहत आसिया बीबी को देश छोड़कर जाने की अनुमति नहीं होगी। हालांकि, ये अब तक साफ नहीं हुआ है कि ये प्रतिबंध कितने समय तक रहेगा।
पाकिस्तान के संचार मंत्री फ़वाद चौधरी ने बीबीसी को बताया है, "हमारे पास दो विकल्प थे। पहला रास्ता ये था कि हम बल का प्रयोग करते लेकिन जब आप बल प्रयोग करते हैं कि लोगों की जान जा सकती है। ये एक ऐसा विकल्प नहीं है जिसे किसी भी राज्य को चुनना चाहिए। हमने समझौता किया और समझौतों में आप किसी चीज़ के बदले में कुछ हासिल करते हैं।"
इसके बाद से पाकिस्तान सरकार पर चरमपंथियों के सामने घुटने टेकने का आरोप लगाया जा रहा है। लेकिन फ़वाद चौधरी अपनी सरकार के इस फैसले के बचाव में कहते हैं, "हमें चरमपंथ के ख़िलाफ़ कदम उठाने की ज़रूरत है। हमें इस तरह हिंसक प्रदर्शनों के ख़िलाफ़ कदम उठाकर एक स्थाई समाधान निकालना है। फिलहाल, ये समाधान नहीं है। ये आग बुझाने जैसा कदम है। लेकिन इसका समाधान असली ज़रूरत है और हमारी सरकार इसके प्रति समर्पित है।"
फ़वाद चौधरी बताते हैं कि आसिया बीबी के पाकिस्तान छोड़ने पर प्रतिबंध अदालत में ही तय होगा और उनकी सरकार आसिया बीबी की सुरक्षा को लेकर हरसंभव प्रयास करेगी।
आख़िर क्या है ये डील
स्थानीय मीडिया के मुताबिक़, पाक सुप्रीम कोर्ट के इस फ़ैसले के बाद पाकिस्तान की तहरीक-ई-लब्बैक पार्टी ने विरोध प्रदर्शनों का आयोजन किया था। इस डील के तहत पाक सरकार आसिया बीबी के पाकिस्तान छोड़कर जाने से रोकने के लिए कानूनी प्रक्रिया शुरू करेगी। इसके साथ ही सरकार इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ रिव्यू पिटीशन का भी विरोध नहीं करेगी।
इस डील में गिरफ़्तार किए गए प्रदर्शनकारियों को रिहा किया जाना और प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ बल प्रयोग की जाँच कराया जाना शामिल है। इसके बदले में टीएलपी अपने समर्थकों से विरोध प्रदर्शन ख़त्म करके शांति से अपने-अपने घर जाने की अपील कर रही है। सरकार ने इससे पहले ये ऐलान किया था कि आसिया बीबी को इस हफ़्ते रिहा कर दिया जाएगा।
आसिया बीबी के वक़ील सैफुल ने बीबीसी को बताया है कि आसिया बीबी को उनकी सुरक्षा के लिए एक पश्चिमी देश जाने की जरूरत है और कई देशों ने उन्हें शरण देने की पेशकश भी की है।
आसिया बीबी के ख़िलाफ़ क्या था मामला?
आसिया बीबी के ऊपर एक मुस्लिम महिला के साथ बातचीत के दौरान पैग़ंबर मोहम्मद के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी करने का आरोप था। हालांकि पैग़ंबर मोहम्मद के अपमान के आरोप का आसिया बीबी पुरजोर खंडन करती रही हैं। पाकिस्तान में ईशनिंदा एक बहुत संवेदनशील विषय रहा है। आलोचकों का कहना है कि इस क़ानून का ग़लत इस्तेमाल कर अक्सर अल्पसंख्यकों को फंसाया जाता है।
ये पूरा मामला 14 जून, 2009 का है जब एक दिन आसिया नूरीन अपने घर के पास फालसे के बगीचे में दूसरी महिलाओं के साथ काम करने पहुँची तो वहाँ उनका झगड़ा साथ काम करने वाली महिलाओं के साथ हुआ। आसिया ने अपनी किताब में इस घटना को सिलसिलेवार ढंग से बयां किया है।
अंग्रेजी वेबसाइट न्यूयॉर्क पोस्ट में छपे इस किताब के हिस्से में आसिया लिखती हैं कि "मैं आसिया बीबी हूँ जिसे प्यास लगने की वजह से मौत की सज़ा दी गई है। मैं जेल में हूँ क्योंकि मैंने उसी कप से पानी पिया जिससे मुस्लिम महिलाएं पानी पीती थीं। क्योंकि एक ईसाई महिला के हाथ से दिया हुआ पानी पीना मेरे साथ काम करने वाली महिलाओं के मुताबिक़ ग़लत है।"
14 जून की घटना के बारे में बताते हुए आसिया लिखती हैं कि "मुझे आज भी 14 जून, 2009 की तारीख याद है। इस तारीख़ से जुड़ी हर चीज़ याद है। मैं उस दिन फालसा बटोरने के लिए गई थी। मैं झाड़ियों से निकलकर पास ही में बने हुए एक कुएं के पास पहुंची और कुएं में बाल्टी डालकर पानी निकाल लिया।"
"इसके बाद मैंने कुएं पर रखे हुए एक गिलास को बाल्टी में डालकर पानी पिया। लेकिन जब मैंने एक महिला को देखा जिसकी हालत मेरी जैसी थी तो मैंने उसे भी पानी निकालकर दिया। तभी एक महिला ने चिल्लाकर कहा कि ये पानी मत पियो क्योंकि 'ये हराम है' क्योंकि एक ईसाई महिला ने इसे अशुद्ध कर दिया है।"
आसिया लिखती हैं, "मैंने इसके जवाब में कहा कि मुझे लगता है कि ईसा मसीह इस काम को पैग़ंबर मोहम्मद से अलग नज़र से देखेंगे। इसके बाद उन्होंने कहा कि तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई, पैग़ंबर मोहम्मद के बारे में कुछ बोलने की। मुझे ये भी कहा गया कि अगर तुम इस पाप से मुक्ति चाहती हो तो तुम्हें इस्लाम स्वीकार करना होगा।"
पाकिस्तान में इस्लाम को राष्ट्रीय धर्म का दर्जा मिला हुआ है जो कि वहां की कानूनी प्रक्रिया में समाहित है। ईशनिंदा क़ानून को आम समाज का भी पुरज़ोर समर्थन मिला हुआ है।
कट्टरपंथी राजनेताओं ने भी अक्सर अपने लिए समर्थन जुटाने की ख़ातिर ईशनिंदा करने वालों को कड़ी से कड़ी सज़ा दिए जाने का समर्थन किया है। हालांकि, आलोचकों का कहना है कि इस क़ानून का इस्तेमाल अक्सर निजी बदलों को लेने में किया जाता है जिनमें काफ़ी कमजोर सबूतों के आधार पर किसी व्यक्ति को दोषी ठहरा दिया जाता है। इस कानून के तहत दोषी ठहराए जाने वाले लोगों में मुस्लिम समाज़ और अहमदी समुदाय के सदस्य शामिल हैं।
लेकिन 1991 के बाद से ईसाई समुदाय के कई लोग इस कानून के तहत दोषी ठहराए गए हैं। जबकि पाकिस्तान की जनसंख्या में ईसाई समुदाय सिर्फ़ 1.6 फीसदी है। बीते कुछ सालों में ईसाई समुदाय को इसका शिकार बनाया गया है। ख़बरों के मुताबिक़, साल 1990 के बाद से अब तक लगभग 65 लोगों को ईशनिंदा के मामले में जान से मारा जा चुका है।