अलग तेलंगाना राज्य की माँग पर भारत सरकार को झुका लेने वाले 55 वर्षीय के चंद्रशेखर राव ने अपने दोस्तों और दुश्मनों को भी यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि वे उन्हें हल्के में न लें।
तेलंगाना के मेंडक जिले से आने वाले और वेलमा समुदाय से ताल्लुक रखने वाले चंद्रशेखर राव के लिए यह नया नहीं है कि उन्होंने अपनी नाटकीय गतिविधियों से जानकारों को भी चकित कर दिया हो।
1970 के दशक के आखिर में उन्होंने अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था। 1980 के दशक में वे एनटी रामाराव की नवगठित पार्टी तेलुगूदेशम में शामिल हुए।
चंद्रशेखर राव ने अपने राजनीतिक करियर में कई उतार-चढ़ाव देखे। राजनीति के अच्छे खिलाड़ी समझे जाने वाले केसीआर एक अच्छे रणनीतिकार, चिंतक और वक्ता भी हैं।
उन्हें चार भाषाएँ भी आती हैं। उनमें और चंद्रबाबू नायडू में उस समय दरार आ गई जब 1999 के विधानसभा चुनाव के बाद चंद्रबाबू नायडू ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया। आखिरकार वर्ष 2001 में उन्होंने उप सभापति का पद छोड़ा और अलग तेलंगाना राज्य के लिए आंदोलन शुरू किया। उन्होंने आरोप लगाया कि आंध्र के नेताओं ने हमेशा ही तेलंगाना के साथ सौतेला व्यवहार किया है।
राजनीतिक पार्टी : बाद में उन्होंने अपने आंदोलन को मजबूती देने के लिए उन्होंने नई राजनीतिक पार्टी शुरू की, जिसका नाम रखा तेलंगाना राष्ट्र समिति।
पहली बार उनकी पार्टी ने वर्ष 2004 के चुनावों में हिस्सा लिया और पार्टी ने कांग्रेस के साथ तालमेल किया। विधानसभा नें टीआरएस को 26 सीटें मिली और लोकसभा में पाँच सीटों पर उसके उम्मीदवार विजयी रहे।
लेकिन अलग तेलंगाना राज्य के मुद्दे पर केसीआर केंद्र और राज्य दोनों सरकारों से अलग हो गए। पिछले लोकसभा में उन्होंने करीमनगर लोकसभा सीट दो बार छोड़ी और दोनों बार बड़े अंतर से जीते, लेकिन उनकी पार्टी का राजनीतिक भविष्य डगमग ही रहा।
वर्ष 2009 के चुनाव में चंद्रशेखर राव ने तेलुगूदेशम से समझौता किया। लेकिन इस बार उन्हें विधानसभा की सिर्फ 10 और लोकसभा में सिर्फ दो सीटें ही मिल पाईं।
कई लोगों का मानना है कि प्रतिकूल परिस्थितियों को एक मौके में बदलने के अपने दमखम की बदौलत ही चंद्रशेखर राव ने तेलंगाना की माँग को लेकर आमरण अनशन करने की सोची-समझी रणनीति बनाई। इससे पहले अपनी खुद की पार्टी में पकड़ मजबूत करने के लिए भी चंद्रशेखर राव ये हथकंडा अपना चुके हैं।
रणनीति : चुनाव में पार्टी की हार की जिम्मेदारी स्वीकार करते हुए केसीआर ने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीपा दे दिया था। लेकिन उनकी पार्टी ने उन्हें पद पर लौटने को मजबूर किया।
इसी तरह इस बार भी उन्होंने आमरण अनशन शुरू करके फिर से अपने को उच्च नैतिक वाले व्यक्ति के रूप में स्थापित किया। कई लोग ये भी मानते हैं कि एक तरह से वे मशहूर फिल्म गाइड के राजू गाइड के चरित्र का अनुकरण करते नजर आते हैं। इस फिल्म में राजू गाइड की भूमिका देवानंद ने की थी।
राजू गाइड अपनी गुनाह की जिंदगी छोड़ संन्यासी बन जाता है और फिर सूखे से प्रभावित गाँव में बारिश के लिए अनशन करता है। बारिश की पहली बूँद के साथ ही उसकी मौत हो जाती है।
लेकिन वास्तविक जिंदगी में ये हीरो अपनी जीत देखने के लिए बच गया है और शायद आने वाले समय में वो अपना समृद्ध राजनीतिक भविष्य का भी मजा लेगा।