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Written By WD

क्या होती है महादशा-अन्तर्दशा

महादशा-अन्तर्दशा : प्रारंभिक परिचय

शुभ ग्रह
- भारती पंडित
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भारतीय ज्योतिष के अनुसार ग्रह 9 माने गए हैं और इन 9 ग्रहों को 12 राशियों में बाँटा गया है। सूर्य और चन्द्र के पास एक-एक राशि का स्वामित्व है, अन्य ग्रहों के पास दो- दो राशियों का स्वामित्व है। विंशोत्तरी गणना के अनुसार ज्योतिष में आदमी की कुल उम्र 120 वर्ष की मानी गई है और इन 120 वर्षों में आदमी के जीवन में सभी ग्रहों की महादशा पूर्ण हो जाती हैं।

महादशा शब्द का अर्थ है वह विशेष समय जिसमें कोई ग्रह अपनी प्रबलतम अवस्था में होता है और कुंडली में अपनी स्थिति के अनुसार शुभ-अशुभ फल देता है। ग्रहों की महादशा का समय निम्नानुसार है।

सूर्य- 6 वर्ष,
चन्द्र-10 वर्ष,
मंगल- 7 वर्ष,
राहू- 18 वर्ष,
गुरु- 16 वर्ष,
शनि- 19 वर्ष,
बुध- 17वर्ष,
केतु- 7 वर्ष,
शुक्र- 20 वर्ष।

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इन वर्षों में मुख्य ग्रहों की महादशा में अन्य ग्रहों को भी भ्रमण का समय दिया जाता है जिसे अन्तर्दशा कहा जाता है। इस समय में मुख्य ग्रह के साथ अन्तर्दशा स्वामी के भी प्रभाव फल का अनुभव होता है। जिस ग्रह की महादशा होगी, उसमे उसी ग्रह की अन्तर्दशा पहले आएगी, फिर ऊपर दिए गए क्रम से अन्य ग्रह भ्रमण करेंगे।

ग्रहों की अन्तर्दशा का समय एफेमेरिज से निकाला जा सकता है। अधिक सूक्ष्म गणना के लिए अन्तर्दशा में उन्ही ग्रहों की प्रत्यंतर दशा भी निकली जाती है, जो इसी क्रम से चलती है। इससे अच्छी-बुरी घटनाओं के ठीक समय का आकलन किया जा सकता है।

विशेष :
सामान्य रूप से 6, 8,12 स्थान में गए ग्रहों की दशा अच्छी नहीं होती। इसी तरह इन भावों के स्वामी की दशा भी कष्ट देती है।
किसी ग्रह की महादशा में उसके शत्रु ग्रह की, पाप ग्रह की और नीचस्थ ग्रह की अन्तर्दशा अशुभ होती है। शुभ ग्रह में शुभ ग्रह की अन्तर्दशा अच्छा फल देती है।

जो ग्रह 1, 4, 5, 7, 9 वें भावों में गए हो उनकी दशा अच्छा फल देती है। स्वग्रही, मूल त्रिकोणी या उच्च के ग्रह की दशा शुभ होती है, नीच, पाप प्रभावी या अस्त ग्रह की दशा भाव फल का नाश करती है। शनि, राहू आदि ग्रह अपनी दशा की बजाय मित्र ग्रहों की दशा में अधिक अच्छा फल देते है।