शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2025
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Written By Author पं. सुरेन्द्र बिल्लौरे

कुंडली में राहु की दृष्टि एवं फल

कुंडली में राहु की दृष्टि एवं फल -
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पिछले लेख में आपने देखा राहु अलग-अलग भाव में स्थित रहने पर जातक को क्या शुभ-अशुभ फल देता है। आगे आप देखें राहु की दृष्टि का शुभ-अशुभ फल। राहु अलग-अलग भाव में जब पूर्ण दृष्टि से देखता है तो जातक को क्या फल देता है जानिये -

प्रथम भाव में दृष्टि - राहु जब पूर्ण दृष्टि से प्रथम भाव को देखता है तो जातक को शारीरिक रोगी, वात विकारी, उग्र स्वभाव वाला एवं उद्योग से अलग करता है, इसी के साथ अधार्मिक प्रवृत्ति का एवं रिक्त चित्त वाला बनाता है।

द्वितीय भाव : राहु जब पूर्ण दृष्टि से द्वितीय भाव को देखता है तो जातक का धननाश, चंचल प्रवृत्ति के साथ परिवार से सुखहीन बना देता है।

तृतीय भाव : राहु पूर्ण दृष्टि से तीसरे भाव को देखता हो तो पराक्रमी बनाता है परंतु पुरुषार्थी एवं संतानहीन बनाता है।

चतुर्थ भाव : राहु पूर्ण दृष्टि से चौथे भाव को देखता हो तो उदर रोगी, मलिन बनाता है, इसी के साथ उदास एवं साधारण सुख देता है।

पंचम भाव : राहु पूर्ण दृष्टि से पाँचवें भाव को देखता हो तो भाग्यशाली, धनी एवं व्यवहार कुशल बनाता है। साथ ही संतान सुख देता है।

षष्ठम भाव : राहु पूर्ण दृष्टि से षष्ठम भाव को देखता हो तो पराक्रमी और बलवान बनाता है। शत्रुनाशक, व्यय करने वाला एवं नेत्र पीड़ा वाला होता है।

सप्तम भाव : राहु पूर्ण दृष्टि से सप्तम भाव को देखता हो तो धनवान बनाता है। इसी के साथ विषयी कामी और नीच संगति करने वाला होता है।


अष्टम भाव : राहु पूर्ण दृष्टि से अष्टम भाव को देखता है तो जातक को पराधीन बनाता है। इसी के साथ धननाशक, कंठ में रोग एवं नीच कर्म करने वाला बनाता है। परिवार से अलग रहता है।

नवम भाव : राहु पूर्ण दृष्टि से नवम भाव को देखता है तो ऐश्वर्यवान, भोगी, पराक्रमी एवं संततिवान बनाता है परंतु बड़े भाई के सुख से वंचित कर देता है।

दशम भाव : राहु पूर्ण दृष्टि से दशम भाव को देखता है तो राज सम्मान एवं उद्योग वाला बनाता है परंतु मातृहीन एवं पिता को कष्ट पहुँचाता है।

एकादश भाव : राहु पूर्ण दृष्टि से ग्यारहवें भाव को देखता है तो अल्प लाभ देता है साथ ही संतति कष्ट के साथ नीच कर्म में रत रहता है।

द्वादश भाव : राहु पूर्ण दृष्टि से द्वादश भाव को देखता है तो शत्रुनाशक, कुमार्गी एवं गलत जगह धन खर्च करने वाला एवं दरिद्र बनाता है।

विशेष : राहु कुंडली में लग्न स्थान पर कर्क अथवा वृश्चिक राशि का हो तो जातक सिद्धि सामर्थ्य प्राप्त कर अपनी शक्ति लोगों के सामने प्रदर्शन करता रहता है। ऐसे जातक का उद्देश्य सिर्फ ख्‍याति प्राप्त करना होता है परंतु राहु धनु अथवा मीन राशि पर हो तो पिशाच वृत्ति उत्पन्न करता है।

राहु यदि शुभ स्थिति में हो अथवा शुभ प्रभाव दे रहा हो तो जातक जीवन में किसी जुआरी, शराबी या अपराध करने वाले के संपर्क में रहने पर भी शुद्ध एवं सात्विक प्रवृत्ति का रहता है।