प्राचीनकाल में प्राप्त रत्नों का उल्लेख- प्राचीनकाल से ही रत्न अपने आकर्षक रंगों, प्रभाव, आभा तथा बहुमूल्यता के कारण मानव को प्रभावित करते आ रहे हैं। अग्नि पुराण, गरुड़ पुराण, देवी भागवत पुराण, महाभारत आदि अनेक ग्रंथों में रत्नों का विस्तृत वर्णन मिलता है। ऋग्वेद तथा अथर्ववेद में 7 रत्नों का उल्लेख है।
तुलसीदास ने रामायण के उत्तर कांड में अवध पुरी की शोभा का वर्णन करते हुए मूंगा, पन्ना, स्फटिक और हीरे आदि रत्नों का उल्लेख किया है। कौटिल्य ने भी अपने अर्थशास्त्र में रत्नों के गुण-दोषों का उल्लेख किया है। वराहमिहिर की बृहत्संहिता के रत्न परीक्षाध्याय में नवरत्नों का विस्तार से वर्णन किया गया है। ईसाई, जैन और बौद्ध धर्म की अनेक प्राचीन पुस्तकों में भी रत्नों के विषय में लिखा हुआ मिलता है।
रत्नों की उत्पत्ति- रत्नों की उत्पत्ति के विषय में अनेक पौराणिक मान्यताएं हैं। अग्निपुराण के अनुसार जब दधीचि ऋषि की अस्थियों से देवराज इंद्र का प्रसिद्ध अस्त्र वज्र बना था तो जो चूर्ण अवशेष पृथ्वी पर गिरा था, उनसे ही रत्नों की उत्पत्ति हुई थी।
गरुड़ पुराण के अनुसार बल नाम के दैत्य के शरीर से रत्नों की खानें बनीं। समुद्र मंथन के समय प्राप्त अमृत की कुछ बूंदें छलककर पृथ्वी पर गिरीं जिनसे रत्नों की उत्पत्ति हुई, ऐसी भी मान्यता है। मूल रूप से असली रत्नों की उत्पत्ति पहाड़ों, पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं से ही होती है।
रत्न केवल आभूषणों की शोभा में ही वृद्धि नहीं करते अपितु इनमें दैवीय शक्ति भी निहित रहती है, ऐसी मान्यता विश्वभर में पुरातन काल से चली आ रही है। महाभारत में स्यमन्तक मणि का वर्णन है जिसके प्रभाव से मणि के आसपास के क्षेत्र में सुख-समृद्धि, आरोग्यता तथा दैवीय कृपा रहती थी।
पश्चिमी देशों में बच्चों को अम्बर की माला इस विश्वास से पहनाई जाती है कि इससे उनके दांत बिना कष्ट के निकल आएंगे। यहूदी लोग कटैला रत्न भयानक स्वप्नों से बचने के लिए धारण करते हैं। प्राचीन रोम निवासी बच्चों के पालने में मूंगे के दाने लटका देते थे ताकि उन्हें अरिष्टों से भय न रहे। जेड रत्न को चीन में आरोग्यता देने वाला माना जाता है।
आधुनिक युग में रत्नों की व्याख्या कुछ इस प्रकार है कि- यदि आपकी शारीरिक व्याधियों (बीमारियों) को ठीक करने हेतु मेडिकल साइंस में दवा या कोई इन्स्ट्रुमेंट दिया जाता है, जैसे कि उदाहरण के लिए आपकी दृष्टि में दोष होने पर डॉक्टर उतने ही पॉवर का चश्मा बताते हैं जितने कि आपकी आंख कमजोर होती है और उस चश्मे को पहनते ही आपका दृष्टिदोष दूर हो जाता है।
ठीक इसी प्रकार आपके जन्मकालीन ग्रह के कमजोर होने पर यदि जानकार astrologer ठीक उतने ही पॉवर का रत्न धारण करा दे जितने पॉवर की उस ग्रह को आवश्यकता है, तो उस रत्न के धारण करने पर आपकी उन समस्याओं का समाधान होने लगता है जिसकी जिम्मेदारी प्रकृति ने आपके जीवन में उस ग्रह को दे रखी थी। लेकिन कभी भी नीच और मरकेश ग्रहों का रत्न धारण करने की सलाह नहीं दी जाती है।
वैसे तो रत्नों की संख्या बहुत है, पर उनमें 84 रत्नों को ही महत्व दिया गया है। इनमें भी प्रतिष्ठित 9 को रत्न और शेष को उपरत्न की संज्ञा दी गई है।
नवरत्न : 1. माणिक्य, 2. नीलम, 3. हीरा, 4. पुखराज, 5. पन्ना, 6. मूंगा, 7. मोती, 8. गोमेद, 9. लहसुनिया।
उपरत्न : 10 लालड़ी, 11. फिरोजा, 12. एमनी, 13. जबरजदद, 14. ओपल, 15. तुरमली, 16. नरम, 17. सुनैला, 18. कटैला, 19. संग-सितारा, 20. सफेद बिल्लोर, 21. गोदंती, 22. तामड़ा, 23. लुधिआ, 24. मरियम, 25. मकनातीस, 26. सिंदूरिया, 27. नीली, 28. धुनेला, 29. बैरूंज, 30. मरगज, 31. पित्तोनिया, 32. बांसी, 33. दुरवेजफ, 34. सुलेमानी, 35. आलेमानी, 36. जजे मानी, 37. सिवार, 38. तुरसावा, 39. अहवा, 40. आबरी, 41. लाजवर्त, 42. कुदरत, 43. चिट्टी, 44. संग-सन, 45. लारू, 46. मारवार, 47. दाने-फिरंग, 48. कसौटी, 49. दारचना, 50. हकीक, 51. हालन, 52. सीजरी, 53. मुबेनज्फ, 54. कहरुवा, 55. झना, 56. संग बसरी, 57. दांतला, 58. मकड़ा, 59. संगीया, 60. गुदड़ी, 61. कामला, 62. सिफरी, 63. हरीद, 64. हवास, 65. सींगली, 66. डेड़ी, 67. स्फटिक, 68. गौरी, 69. सीया, 70. सीमाक, 71. मूसा, 72. पनघन, 73. अम्लीय, 74. डूर, 75. लिलियर, 76. खारा, 77. पारा-जहर, 78. सेलखड़ी, 79. जहर मोहरा, 80. रवात, 81. सोना माखी, 82. हजरते ऊद, 83. सुरमा, 84. पारस।
उपरोक्त उपरत्नों में से कुछ उपरत्न ही आजकल प्रचलित हैं। किस ग्रह का कौन-सा रत्न है, उसे कब और किस प्रकार धारण करना चाहिए, रत्नों और उपरत्नों की और क्या विशेषताएं हैं, किस रोग में किस रत्न को धारण करने से लाभ होगा? इत्यादि की सलाह आपको एक्सपर्ट से जरूर लेनी चाहिए।
रत्नों की शक्ति- रत्नों में अद्भूत शक्ति होती है। रत्न अगर किसी के भाग्य को आसमान पर पहुंचा सकता है, तो किसी को आसमान से जमीन पर लाने की क्षमता भी रखता है। रत्न के विपरीत प्रभाव से बचने के लिए सही प्रकार से जांच करवाकर ही रत्न धारण करना चाहिए।
ग्रहों की स्थिति के अनुसार रत्न धारण करना चाहिए। रत्न धारण करते समय ग्रहों की दशा एवं अंतरदशा का भी ख्याल रखना चाहिए। रत्न पहनते समय मात्रा का ख्याल रखना आवश्यक होता है। अगर मात्रा सही नहीं हो तो फल प्राप्ति में विलंब होता है। सिद्धि के लिए किसी ज्ञानी की मदद भी ली जा सकती है। शनि और राहु के रत्न कुंडली के सूक्ष्म निरीक्षण के बाद ही पहनना चाहिए अन्यथा इनसे भयंकर नुकसान भी हो सकता है।
- आचार्य राजेश कुमार