लाल किताब के बारे में बहुत भ्रम है। कुछ इसे अरब का ज्योतिष मानते हैं तो कुछ इसे हिमाचल की प्राचीन विद्या। कुछ विद्वानों का मानना है कि लाल किताब तो महज उपायों की किताब है। इसी तरह कुछ विद्वान इसे उलझी हुई रहस्यमय विद्या मानकर खारिज कर देते हैं। वर्तमान में इस विद्या के जानकार भी बहुत हो चले हैं लेकिन कम ही ऐसे ज्योतिष हैं जो इस विद्या को अच्छे से समझ पाएं हैं।
क्या यह हिमाचल की विद्या है? लाल किताब ज्योतिष की पारम्परिक प्राचीतम विद्या का ग्रंथ है। उक्त विद्या उत्तरांचल और हिमाचल क्षेत्र से हिमालय के सुदूर इलाके तक फैली थी। बाद में इसका प्रचलन पंजाब से अफगानिस्तान के इलाके तक फैल गया। उक्त विद्या के जानकार लोगों ने इसे पीढ़ी दर पीढ़ी सम्भाल कर रखा था। इस बारे में किवदंतियां हैं कि आकाश से आकाशवाणी होती थी कि ऐसा करो तो जीवन में खुशहाली होगी। बुरा करोगे तो तुम्हारे लिए सजा तैयार करके रख दी गई है। हमने तुम्हारा सब कुछ अगला-पिछला हिसाब करके रखा है। उक्त तरह की आकाशवाणी को लोग मुखाग्र याद करके पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाते थे। इस रहस्यमय विद्या को कुछ लोगों ने लिपिबद्ध कर लिया।
क्या लाल किताब अरुण संहिता है? : ऐसा कहने वाले लोग भी बहुत हैं जो लाल किताब को अरुण संहिता मानते हैं। उनके अनुसार अरुण संहिता के आधार पर ही रावण ने रावण संहिता लिखी थी। हालांकि इसमें कितनी सचाई है यह कोई नहीं जानता।
पराशर संहिता पर आधारित है लाल किताब ?: कुछ ज्योतिष विद्वानों का मानना है कि लाल किताब पराशर संहिता के काल नियम पर आधारित है। पराशर संहिता ही असल में ज्योतिष का एकमात्र सही ग्रंथ है।
क्या रूपचंद जोशी की लिखी है लाल किताब ?
लाल किताब जानकार लोगों के अनुसार पहली बार लाल किताब नाम से एक ग्रंथ 1939 में जालंधर निवासी पंडित रूपचंद जोशी ने इसे लिखा था। उन्होंने इसे 'लाल किताब के फरमान' नाम से लिखा था। प्रारंभ में इस किताब के कुल 383 पृष्ठ थे। चूंकि उस दौर में पंजाब में सरकारी भाषा ऊर्दू थी इस लिहाज से इसे उन्होंने ऊर्दू में ही लिखा था, जिसमें अरबी और फारसी के प्रचलित शब्द भी थे। उनके इस भाषा में लिखे होने के कारण इसे अरब की विद्या मान लिया गया जबकि ऐसा नहीं था। समाज में कई तरह के भ्रम स्वत: ही फैल जाते हैं। कहते हैं कि उन्होंने इसे प्राचीन पांडुलिपियों और पराशर संहिता के आधार पर लिखा था।
बाद में इस किताब का नया संस्करण 1940 में 156 पृष्ठों का प्रकाशित हुआ, जिसमें कुछ खास सूत्रों को ही शामिल किया गया माना जाता है। फिर 1941 में अगले-पिछले सारे सूत्रों को मिलाते हुए 428 पृष्ठों की किताब प्रकाशित की गई। इस तरह क्रमश: 1942 में 383 पृष्ठ और 1952 में 1171 पृष्ठों का संस्करण प्रकाशित हुआ। 1952 के संस्करण को अंतिम माना जाता है।
'लाल किताब के फरमान' नाम से जो भी किताबें बाजार में उपलब्ध हैं उनमें से ज्यादातर ऐसी किताबें हैं जो व्यावसायिक लाभ की दृष्टि से लिखी गई हैं, जिसमें प्रचलित फलित ज्योतिष और लाल किताब के सूत्रों को मिक्स कर दिया गया है जो कि प्राचीन विद्या के साथ किया गया अन्याय ही माना जाएगा। जिस ज्योतिष ने लाल किताब को जैसा समझा उसने वैसा लिखकर उसके उपाय लिख दिए जो कि कितने सही और कितने गलत हैं, यह तो वे ही जानते होंगे। अब जब कोई ज्योतिष लाल किताब के मर्म को जाने बगैर उसके उपाय बताने लगता है तो यह उसी तरह है कि डॉक्टर हुए बगैर कोई व्यक्ति गंभीर बीमारी का इलाज करने लगे।
प्राचीन ज्योतिष विद्या के सूत्र लाल किताब में जिस तरीके से संग्रहीत किए गए हैं, वे क्रमबद्ध नहीं हैं और उनकी भाषा अस्पष्ट है। मसलन जो पहला सूत्र प्रथम अध्याय में है तो उक्त सूत्र में कही गई स्थिति के उपाय को अंतिम अध्याय के किसी अन्य भाग में बताया गया है। उक्त बिखरे हुए सूत्र को भली-भांति समझकर उन पर शोध करके ही फिर कोई टिप्पणी करना उचित होगा।
लाल किताब के सूत्र का संबंध फलित ज्योतिष या ज्योतिष की आम प्रचलित धारणा से नहीं है। उक्त विद्या का संबंध काल नियम, सामुद्रिक, नाड़ी शास्त्र और हस्तरेखा जैसी विद्याओं से है। उक्त विद्या का संबंध वास्तुशास्त्र से भी माना गया है।
लाल किताब की सबसे बड़ी विशेषता ग्रहों के दुष्प्रभावों से बचने के लिए जातक को 'उपायों' का सहारा लेने का संदेश देना है। ये उपाय इतने सरल हैं कि कोई भी जातक इनका सुविधापूर्वक सहारा लेकर लाभ प्राप्त कर सकता है। उपाय करने से पूर्व यह जानना जरूर है कि समस्या क्या है। लाल किताब अनुसार किसी भी ग्रह-नक्षत्र का असर व्यक्ति के शरीर पर पड़ता है तो उस अनुसार उसके अच्छे या बुरे लक्षण शरीर पर नजर आते हैं। उक्त ग्रह के खराब या अच्छे होने के कारण व्यक्ति के शारीरिक ही नहीं, आसपास के वातावरण और वास्तु में भी परिवर्तन हो जाता है। उक्त सभी का अध्ययन करके ही उसके निदान के उपाय बताए जाते हैं।
विश्व के विभिन्न समाजों, विभिन्न जातियों और धर्मों की स्थानीय संस्कृति में किसी न किसी प्रकार के अनिष्ट निवारण के लिए प्राचीनकाल से 'टोटको' का सहारा लिया जाता रहा है। यह आज भी उसी रूप में जीवित है। उक्त कष्टों और टोटकों के बिखरे हूए सूत्रों के एक संग्रह से ही लाल किताब निर्मित हुई। यह टोटके या उपाय गंडा, ताबीज, झाड़-फूँक, मंत्र, तंत्र आदि तरह के टोटकों से भिन्न और सात्विकता होते हैं।