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दानिश अलीगढ़ी की ग़ज़लें
1.
क़दम क़दम पे ग़मों ने जिसे संभाला है उसे तुम्हारी नवाज़िश ने मार डाला है हर एक शब के लिए सुबह का उजाला है वो शख़्स जिसको ग़म-ए-ज़िन्दगी ने पाला है किसी के जिस्म की ख़ुशबू से दिल मोअत्तर है किसी की याद मेरे ज़ेह्न का उजाला है ख़ुशी ये है कि मुलाक़ात होने वाली है ये रंज है कि वो मिलकर बिछड़ने वाला हैकिसी के पाँव के छालों को किसने देखा है ज़माना राह में काँटे बिछाने वाला है वो लोग मुझसे उसूलों की बात करते थेजिन्होंने अपने उसूलों को बेच डाला है बुरा न मानिए दानिश कि आप अपने हैं ये कहके उसने मुझे बज़्म से निकाला है 2.
दिल की बरबादी में कुछ उनकी अदा शामिल है और कुछ मेरी वफ़ाओं की सज़ा शामिल है नग़मग़ी ऎसे लुटाती हुई गुज़री है सबा जैसे उसमें तेरी पायल की सदा शामिल है ज़ख़्म कुछ और हरे और हरे होते हैंतेरी यादों में भी पूरब की हवा शामिल है है मेरा दोस्त कि वो दोस्त नुमा दुश्मन है अब वफ़ा में भी तो ज़ालिम की जफ़ा होती है उनको शोहरत की जो मेराज मिली है दानिश इसमें अपना भी तो कुछ ख़ून-ए-वफ़ा शामिल है