शुक्रवार, 26 अप्रैल 2024
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Written By गायत्री शर्मा

बा‍लिका वधू का जादू छाया

छोटी-सी उमर में परनाई दी रे ...

बा‍लिका वधू का जादू छाया -
अंधविश्वासों व कुरीतियों वाले इस देश में 'बाल विवाह' एक कुरीति के रूप में आज भी समाज को पिछड़ेपन का शिकार बना रहा है। राजस्थान के ग्रामीण अंचलों व आदिवासियों में आज भी माँ के गर्भ में ही पल रहे बच्चे या बच्ची का विवाह तय कर दिया जाता है और तीन से चार वर्ष की उम्र में माता-पिता की गोद में बैठाकर विवाह से अनभिज्ञ उन अबोध बच्चों के सात फेरे की रस्म पूरी कर दी जाती है।

कलर्स टी.वी. पर प्रसारित होने वाला धारावाहिक 'बालिका वधू' हमारे देश में बाल विवाह की भेंट चढ़ते कुछ ऐसे ही बच्चों की कहानी बयाँ करता है। यह धारावाहिक पूर्णतया राजस्थानी परिवारों व उनके रीति-रिवाजों जैसे घूँघट प्रथा, गौना प्रथा, तिरस्कृत विधवा का जीवन आदि का चित्रण करता है।

अपने तर्कों व सवालों से धारावाहिक में जान डालने वाली 'आनन्दी' व पुरानी रूढ़ीवादी मान्यताओं का वास्ता देने वाली 'दादी सा' इसके आकर्षण का प्रमुख केंद्र हैं। इस धारावाहिक की पूरी कहानी जगदीश, आनन्दी व दादी सा के इर्द-गिर्द घूमती नजर आती है।

बाल विवाह के रूप में समाज के एक कड़वे सच को बयाँ करने वाला 'बालिका वधू' आनन्दी व जगदीश के रूप में उन सभी मासूम बच्चों के वैवाहिक जीवन का पटाक्षेप करता है, जो अब तक विवाह का अर्थ ही नहीं जानते हैं परंतु परिवार व समाज के दबाव के कारण वे इस बंधन में बँध गए हैं।

'बालिका वधू' का टाइटल सांग 'छोटी-सी उमर में परनाई दी रे बाबो सा ....' को दर्शकों द्वारा खूब पसंद किया जा रहा है। आनन्दी व सुमित्रा के रूप में मानो उनकी सहानुभूतियाँ उमड़ रही हैं। ये पात्र अब उनके दिलो-दिमाग पर पूरी तरह छा गए हैं। आज हर कोई आनन्दी व जगदीश को जी-भर देखकर प्यार से गले लगाना चाहता है।

इस धारावाहिक में जहाँ दादी सा, भँवरी, बसंत आदि पुरानी मान्यताओं को अपना आधार मानकर उनकी दुहाई देते हैं तथा आधुनिक दौर में भी अपनी सोच व जीवनशैली नहीं बदलते हैं, वहीं आनन्दी, सुमित्रा, भैरव, सुगना, प्रताप, गहना आदि परिवर्तन की आँधी का सूत्रपात कर समाज को एक नई दिशा देने का प्रयास करते हैं।

सरकार की लाख कोशिशों व शिक्षा के व्यापक प्रचार-प्रसार के बावजूद आज कम उम्र में किए जाने वाले विवाह समाज की एक कड़वी हकीकत व बाल विवाह के दुष्परिणामों को उजागर कर रहे हैं। ऊँट के मुँह में जीरे की तरह ही सही ... परंतु अपनी बढ़ती लोकप्रियता के साथ-साथ यदि यह धारावाहिक बाल विवाह पर कुछ हद तक अंकुश भी लगाता है, तो यही इस धारावाहिक की सार्थकता व समाज के प्रति उत्तरदायित्व की पूर्ति होगी।