उसके बाद उन्होंने ब्राह्मण को पांच रत्न और एक घोड़ा देते हुए कहा- 'मेरी ओर से राजा विक्रमादित्य को यह उपहार दे देना।' ब्राह्मण घोड़ा और रत्न लेकर वापस चल पड़ा। उसको पैदल चलता देख वह घोड़ा मनुष्य की बोली में उससे बोला कि इस लंबे सफ़र के लिए वह उसकी पीठ पर सवार क्यों नहीं हो जाता।
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