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- संग तुम जो मेरे हो
संग तुम जो मेरे हो
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लक्ष्मी नारायण खरेमुझे पता है, चलने से पहलेरास्ते बड़े वीरान हैंकुछ दूरी के हैं ये मेलेफिर पूरा सुनसान है।कदम हैं फिर भी बढ़ते जातेअनजानी सी राहों मेंगिरते हैं पर थम जातेअरमानों की बाहों में।बटोरते देखेंगे तिनके हमकोहोगी जलन बेगानों कोआशियाँ बनने से पहले ही देगें खबर तूफानों को।संभव नहीं अब लौटना चाहेंतूफानों के घेरे होंपर्वत से भी राह बना लूँगा।संग तुम जो मेरे हो।