• Webdunia Deals
  1. खबर-संसार
  2. »
  3. समाचार
  4. »
  5. राष्ट्रीय
Written By भाषा
Last Updated :नई दिल्ली (भाषा) , बुधवार, 9 जुलाई 2014 (20:13 IST)

साँसों की कीमत पर सत्य का आग्रह

तरल पदार्थ पर जिंदा हैं इरोम शर्मिला चानू

इरोम शर्मीला चानू सत्याग्रह मणिपुर मितई परिवार
इरोम शर्मीला चानू का नाम लेते ही आठ वर्षों से अनशन कर रही एक छीजती काया, अंदर तक भेद देने वाली आँखें, विश्वास से दमकती शक्ल... जहाँ होठों के बीचोबीच गुजरती नाक में प्रवेश करती एक प्लास्टिक की पाइप... कुछ यही तस्वीर उभरती है, जो कभी-कभी अखबारों या पत्रिकाओं के पन्नों पर दिखती हैं।

मितई परिवार में जन्मी इरोम शर्मिला मणिपुर में लागू सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (एएफएसपीए) 1958 के खिलाफ नवंबर 2000 से सत्याग्रह कर रही हैं, जो उन्होंने मालोम में सशस्त्र बल द्वारा 10 लोगों की हत्या के बाद शुरू किया था।

करीब 23 लाख की आबादी वाले राज्य मणिपुर को 1980 से अशांत क्षेत्र घोषित किया गया है और एएफएसपीए लागू किया गया।
अधिनियम के तहत सेना को बल प्रयोग गोली मारने और बिना वारंट के किसी को भी संदेह के आधार पर गिरफ्तार करने का अधिकार दिया गया है। साथ ही बिना केंद्र सरकार की इजाजत के सेनाधिकारियों को किसी कानूनी प्रकिया के तहत नहीं लाया जा सकता।

अशांति के इस युग में गाँधीवादी अहिंसात्मक सत्याग्रह कर ही शर्मिला को नवंबर 2000 में भारतीय दंड संहिता की धारा 309 के तहत आत्महत्या के प्रयास के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया।

साल 2004 में एक मणिपुरी महिला थांगजांग मनोरमा देवी की हत्या के विरोध में एक सशक्त प्रदर्शन (निर्वस्त्र प्रदर्शन) में भाग लेने वाली इमा ज्ञानेश्वरी ने कहा उसकी शारीरिक हालत देखकर दुःख तो बहुत होता है, लेकिन 'ठीक है'... मणिपुर की बेटी है और वह अपने मकसद में कामयाब जरूर होगी।

मैं रोज भगवान से प्रार्थना करती हूँ। दिल्ली स्थित कवयित्री मीरा जौहरी द्वारा अँगरेजी में अनुवादित और अब तक अप्रकाशित कविता में शर्मिला भी कहती हैं अपने जीते जी उसे फेंकूँगी नहीं, संजोकर रखूँगी। ईश्वर का उपहार अपनी शक्ति और समझ।

विचाराधीन कैदी के तौर पर जवाहरलाल नेहरू अस्पताल की एक कोठरी में तरल पदार्थ पर जिंदा शर्मिला रोज चार घंटे योग करती हैं पढ़ती हैं और बहुत कुछ लिखती हैं।

उनके भाई इरोम सिंहजीत सिंह ने कहा मैंने सुना है डॉक्टर कह रहे हैं, उसकी हड्डियां भंगुर (ब्रिटल) हो गई हैं। कुछ अंग सही तरीके से काम नहीं कर रहे। बहुत तकलीफ होती है यह सब सुनकर। उनके सहयोगी बबलू लोयतोंगबाम ने कहा उसका विरोध मानवीय सहनशक्ति की सीमा के पार चला गया है।

सिंहजीत ने बताया शर्मिला की माँ उससे साल 2000 में गिरफ्तार होने के बाद से लेकर अब तक नहीं मिली हैं। उन्हें लगता है कि वह बर्दाश्त नहीं कर पाएँगी, उसे इस अवस्था में देखकर।