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Written By ND

यात्रियों को लुभाते बुग्याल

यात्रियों को लुभाते बुग्याल -
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हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं पर छितराए तीर्थ स्थलों की यात्रा से पैदा थकान छूमंतर करने की क्षमता यहाँ फैले प्राकृतिक मनोरम दृश्यों में खूब है। फिर भी यदि आप तीर्थयात्रा को प्रकृति की यात्रा से भी जोड़ना चाहते हैं तो हिमालय पर स्थित विभिन्न बुग्यालों की यात्रा जरूर करें बल्कि वहाँ ठहरें। हिमालय पर स्थित सर्वाधिक सुंदर स्थलों में से एक इन बुग्यालों पर बिताए हर लम्हे आप जीवन भर याद करेंगे।

यकीन मानिए, चारधाम की यात्रा पर निकले हजारों तीर्थयात्री इन बुग्यालों की ओर रुख कर रहे हैं जिसके बारे में कहा जाता है कि कभी यहाँ देवताओं का वास था। पुराणों में वर्णित अनेक कथाओं में यहाँ रहने या कुछ पल बिताने या इस भूमि को किसी अन्य महत्वपूर्ण स्थलों की यात्रा के दौरान अपना मार्ग बनाने के जिक्र आए हैं।

आखिर ऐसा क्यों न हो? दुर्लभ वनस्पतियों और जंतुओं के इस क्षेत्र की ओर आज भी हजारो सैलानी खिंचे चले आते हैं। उनमें क्या देखें, क्या छोड़े की उत्कट दुविधा रहती है। माजातोली और छिपलाकोट बुग्याल तो दुर्लभ वनस्पतियों के भंडार ही माने गए हैं। लगभग 5000 मीटर की ऊँचाई पर सामान्य वनस्पतियाँ समाप्त होने लगती हैं इसे वृक्षरेखा कह लें।

वहीं लगभग 5400-5600 मीटर की ऊँचाई से हिमपात होना शुरू होने लगता है इसे हिमरेखा कह सकते हैं। इसी वृक्षरेखा और हिमरेखा के बीच के भूभाग में वनस्पतियों की अनेकानेक दुर्लभ प्रजातियाँ पाई जाती हैं। इनमें से कई रामबाण औषधियाँ भी हैं। नवंबर से मई तक बर्फ से ढके रहने वाले इन बुग्यालों में विपरीत परिस्थितियों में जीवित रहने वाले पौधे अपनी जीवटता का वरदान मनुष्य को भी औषधि के रूप में देते हैं।

ये वनस्पतियाँ बर्फ आच्छादित समय में अपनी जड़ों में अपनी ऊर्जा संचित करके रखती हैं। उत्तराखंड के बुग्यालों में 600 प्रजातियों की दुर्लभ वनस्पतियाँ पाई जाती हैं।

बहरहाल, उत्तराखंड के चारधाम यात्रा मार्ग से सटे अनेक बुग्याल श्रद्धालुओं को बरबस अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं। फूलों की घाटी बदरीनाथ और हेमकुंट साहिब की यात्रा मार्ग से लगभग लगी ही है। पंचकेदार, जिनमें केदारनाथ, कल्पनाथ, मदमहेश्वर, तुंगनाथ, रुद्रनाथ शामिल हैं, के घेरे में फूलों की दर्जनों घाटियाँ आती हैं। ऊखीमठ से चोपता, फिर तुंगनाथ अनसूया देवी तथा दूसरी ओर देवस्थली-वनस्थली सभी से फूलों से लदे बुग्याल हैं।

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रुद्रनाथ की ओर जाते हुए गोपेश्वर से 10 किलोमीटर दूर पंथार बुग्याल पित्तीधार और रुद्रनाथ के चारों ही ओर सिर्फ फूल ही फूल नजर आते हैं। यहाँ आ रहे सैलानी ब्रह्मा बुग्याल और वहीं से होते हुए मनपई बुग्याल की ओर जरूर जाते हैं। लगभग तीस किलोमीटर के इस मार्ग में तमाम भू भाग पत्थरों को भेद कर जीवित रहनेवाले गुगुलू, पोलीगोनम तथा लाइकेन शैवालों से ढके रहते हैं।

रुद्रनाथ से होते हुए सैलानी कल्पनाथ एवं मदमहेश्वर तक निकलते हैं। ब्रह्मा खर्क, गदेला, वंशनारायण से कल्पनाथ की लगभग 20 किलोमीटर लंबी यात्रा के दौरान भी लोगों को अनेक मनोरम घाटियाँ बांहें फैलाए नजर आती हैं। ब्रह्मा बुग्याल, मनपई, वैतरणी, पंचदयूली, पांडवसेरा से मदमहेश्वर की लगभग 40 किलोमीटर की यात्रा के दौरान अनेक घाटियाँ अपनी मखमली फूलदार चादर की खूबसूरती में सैलानियों को बांध रही हैं।

ग्वालदम तपोवन के यात्रा मार्ग पर रूपकुंड तथा सप्तकुंड जाते हुए औली वेदनी बुग्याल भी अपनी अनुपम छटा से लोगों को आकर्षित कर रहा है। जोशीमठ जहाँ से बदरीनाथ क्षेत्र की शुरुआत मानी जाती है, से आठ किलोमीटर दूर औली और गुरसों बुग्याल में भी अच्छे-खासे पर्यटक जुट रहे हैं।

जोशीमठ से नीति मार्ग में सुरेत, तोलमरा, हिमतोली, धरासी, भुजगारा होते हुए नंदादेवᅠबुग्याल पहुंचा जा सकता है। इसमें केवल दुर्लभ वनस्पतियाँ ही नहीं, वरन दुर्लभ जंतु भी मिलते हैं। इसी क्षेत्र में स्थित औली में तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर के शीतकालीन खेलों की योजना तक राज्य सरकार बना रही है। वहीं गंगोत्री व यमुनोत्री के मार्ग उत्तरकाशी में भी अनेक बुग्याल हैं जो इस क्षेत्र की प्रसिद्धि का कारण बने हैं।

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पंवाली कांठा में अप्रैल से लेकर सितंबर तक भैंस चराने वाले यायावर गुज्जर निवास करते हैं। ऐसे में यहाँ आने वाले ट्रैकर एवं यात्री इन्हीं गुज्जरों के डेरों में भी ठहरते हैं। यहाँ से हिमशिखरों की एक पूरी पंक्ति दिखती है। इनमें द्रौपदी का डांडा, जोगिन, नीलकंठ, बंदरपूंछ, मेरु, सुमेरु, स्फटिक, चौखंबा आदि प्रमुख हैं। इस बुग्याल के निचले भूभाग में दिखते मोरु, खिर्सू, देवदार और भोजवृक्ष आदि पेड़ों के सघन वन और फूलों की सैकड़ों प्रजाति यात्रियों में अद्भुत ऊर्जा भरती है। हिमपथी, मैना और कस्तूरीमृग यहाँ के दुर्लभ जीव हैं। यहाँ पास ही 'भट्या बुग्याल' स्कीइंग करने वालों का सर्वाधिक आकर्षक क्षेत्र है। पंवाली के उत्तर पश्चिम में क्यारी बुग्याल, पूरब में ताली बुग्याल तथा उत्तर में दर्जन भर अन्य खूबसूरत बुग्यालों की श्रृंखलाएं हैं।

पंचकेदार के तुंगनाथ मंदिर के दर्शनार्थ आ रहे तीर्थयात्रियों को यहाँ 3200 से 4200 मीटर की ऊँचाई पर फैले बुग्याल आकर्षित करते हैं। यहाँ पाए जाने वाले 200 प्रकार की दुर्लभ वनस्पतियों में मीठा विष, अतीस, वेनपसा, वज्रदंती, पाषाणभेद, चौरा, बूटकेशी, सरामांसी, कंडारा, विष कंडारा, चिरायता, लिचकुरा, हयाजती आदि महत्वपूर्ण औषधि प्रजातियाँ मिलती हैं।

केदारनाथ तथा बदरीनाथ के निकट स्थित बुग्याल खूबसूरत और दुर्लभ वनस्पतियों से लकदक हैं। यहाँ आज भी 250 प्रकार की दुर्लभ प्रजातियाँ मिलती हैं। रुद्रनाथ में लगभग 3400 मीटर की ऊँचाई के बाद जंगल कमोवेश खत्म होने लगता है और पूरा क्षेत्र बुग्यालों में तब्दील दिखता है। यहाँ 150 से भी अधिक प्रकार की दुर्लभ वनस्पति प्रजातियाँ बहुतायत में पाई जाती हैं।

उत्तरकाशी मेᅠहर की दून घाटी की प्रसिद्धि भी सैलानियों को खूब रिझा रही है। यहाँ के बुग्याल से स्वर्गरोहिणी पर्वत पर आरोहण के लिए रास्ता जाता है। मान्यता है कि जीवन के अंत में द्रौपदी के साथ पांडव इसी पर्वत शिखर से स्वर्ग की ओर गए थे। इसी घाटी की रूपिन व सुपिन नदियाँ आगे जाकर टौंस नदी बन जाती हैं।

केदारखंड और मानसखंड के रूप में उत्तराखंड दो भागों में बंटा है। गंगा द्वार यानी हरिद्वार से लेकर महाहिमालय तक तथा तमसा के तट से लेकर बौद्धांचल या नंदा पर्वत (बधाण नंदादेवी) तक विस्तृत पचास योजन लंबा और तीस योजन चौड़ा क्षेत्र केदारखंड तो प्राचीन समय से साक्षात स्वर्गभूमि ही माना जाता है। कहते हैं कि इस पुनीत भूमि के दर्शन के लिए देवता भी उतावले रहते हैं। कहीं न कहीं यहाँ की खूबसूरती को लेकर ही ऐसी आस्था पैदा हुई हैं।

यह क्षेत्र प्राचीन काल से ही नैसर्गिक सौंदर्य एवं सांस्कृतिक परंपरा का वाहक रहा है। गंगा, यमुना, भागीरथी, अलकनंदा, मंदाकिनी, पिंडर, टोंस, धौली एवं भिलंगना आदि नदियों का उद्गम भी इसी क्षेत्र से होता है। इस क्षेत्र में हिमशैलों सहित तटों एवं नदी के संगमों पर चरक, व्यास, पाणिनि, भृगु, अगस्त्य और भारद्वाज जैसे ऋषियों ने जप-तप-योग साधना की थी और उनसे जुड़े विभिन्न आख्यान प्रचलित हुए।

महामुनि वेदव्यास ने हिमालय के इसी प्रदेश की एक निर्झरणी के तट पर तपोवन के समीप बैठकर महान ग्रंथों की रचना की थी। महाकवि कालीदास का भी तपस्थल यही था। जाहिर है, उन्होंने यहाँ की खूबसूरती पर रीझकर ही इसे स्वप्नपुरी बताया होगा। इस क्षेत्र के उत्तर में गंगा और दक्षिण में छोटी-बड़ी जल धाराएँ असंख्य जलस्रोत से निकलकर अंततः गंगा में समा जाती हैं और इसी भू भाग को मध्य से काटते हुए खूबसूरत यात्रा पथ श्री केदारनाथ, श्री बदरीनाथ, यमुनोत्री व गंगोत्री के लिए जाते हैं।

जाहिर है, तीर्थ की थकान उतारने में यहाँ स्थित झोपड़ियों और टेंटों में विश्राम अमृत की तरह काम करता है। खैर, चारधाम प्रदेश की घाटियों में 'सत्यं शिवम्‌ सुंदरम्‌' का बजता अनहद नाद सदा से लोगों को आकर्षित करता रहा है और आज भी कर रहा है। यहाँ बड़ी संख्या में ऐसे सैलानी मिल जाते हैं जो यहाँ पुराणों में वर्णित कथाओं के आधार पर विभिन्न मुनियों के तप स्थलों की मूल भूमि तलाशते हैं। उन स्थलों की पूजा की लालसा उनमें देखी जा रही है। इन क्षेत्रों में पसरे खूबसूरत बुग्याल मुख्य रूप से तीर्थयात्रियों व सामान्य सैलानियों सहित घुमक्कड़ प्रवृत्ति के यात्रियों को खासतौर से आकर्षित करते हैं।