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दोहे
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गोपालदास "नीरज" (1)
मौसम कैसा भी रहे कैसी चले बयारबड़ा कठिन है भूलना पहला-पहला प्यार(2)
भारत माँ के नयन दो हिन्दू-मुस्लिम जाननहीं एक के बिना हो दूजे की पहचान(3)
बिना दबाए रस न दे ज्यों नींबू और आमदबे बिना पूरे न हों त्यों सरकारी काम(4)
अमरीका में मिल गया जब से उन्हें प्रवेशउनको भाता है नहीं अपना भारत देश(5)
जब तक कुर्सी जमें खालू और दु:खरामतब तक भ्रष्टाचार को कैसे मिले विराम(6)
पहले चारा चर गए अब खाऍँगे देशकुर्सी पर डाकू जमें धर नेता का भेष(7)
कवियों की और चोर की गति है एक समानदिल की चोरी कवि करे लूटे चोर मकान(8)
गो मैं हूँ मँझधार में आज बिना पतवारलेकिन कितनों को किया मैंने सागर पार(9)
जब हो चारों ही तरफ घोर घना अँधियारऐसे में खद्योत भी पाते हैं सत्कार(10)
जिनको जाना था यहाँ पढ़ने को स्कूलजूतों पर पालिश करें वे भविष्य के फूल(11)
भूखा पेट न जानता क्या है धर्म-अधर्मबेच देय संतान तक, भूख न जाने शर्म(12)
दोहा वर है और है कविता वधू कुलीनजब इसकी भाँवर पड़ी जन्मे अर्थ नवीन(13)
गागर में सागर भरे मुँदरी में नवरत्नअगर न ये दोहा करे, है सब व्यर्थ प्रयत्न(14)
जहाँ मरण जिसका लिखा वो बानक बन आएमृत्यु नहीं जाए कहीं, व्यक्ति वहाँ खुद जाए(15)
टी.वी. ने हम पर किया यूँ छुप-छुप कर वारसंस्कृति सब घायल हुई बिना तीर-तलवार(16)
दूरभाष का देश में जब से हुआ प्रचारतब से घर आते नहीं चिट्ठी, पत्री, तार(17)
आँखों का पानी मरा हम सबका यूँ आजसूख गए जल स्रोत सब इतनी आई लाज(18)
करें मिलावट फिर न क्यों व्यापारी व्यापारजब कि मिलावट से बने रोज़ यहाँ सरकार(19)
रुके नहीं कोई यहाँ नामी हो कि अनामकोई जाए सुबह को कोई जाए शाम(20)
ज्ञानी हो फिर भी न कर दुर्जन संग निवाससर्प सर्प है, भले ही मणि हो उसके पास(21)
अद्भुत इस गणतंत्र के अद्भुत हैं षड़यंत्रसंत पड़े हैं जेल में, डाकू फिरें स्वतंत्र(22)
राजनीति के खेल ये समझ सका है कौनबहरों को भी बँट रहे अब मोबाइल फोन(23)
राजनीति शतरंज है, विजय यहाँ वो पाएजब राजा फँसता दिखे पैदल दे पिटवाए(24)
भक्तों में कोई नहीं बड़ा सूर से नामउसने आँखों के बिना देख लिए घनश्याम(25)
चील, बाज़ और गिद्ध अब घेरे हैं आकाशकोयल, मैना, शुकों का पिंजड़ा है अधिवास(26)
सेक्युलर होने का उन्हें जब से चढ़ा जुनूनपानी लगता है उन्हें हर हिन्दू का खून(27)
हिन्दी, हिन्दू, हिन्द ही है इसकी पहचानइसीलिए इस देश को कहते हिन्दुस्तान(28)
रहा चिकित्साशास्त्र जो जनसेवा का कर्मआज डॉक्टरों ने उसे बना दिया बेशर्म(29)
दूध पिलाए हाथ जो डसे उसे भी साँपदुष्ट न त्यागे दुष्टता कुछ भी कर लें आप(30)
तोड़ो, मसलो या कि तुम उस पर डालो धूलबदले में लेकिन तुम्हें खुशबू ही दे फूल(31)
पूजा के सम पूज्य है जो भी हो व्यवसायउसमें ऐसे रमो ज्यों जल में दूध समाय(32)
हम कितना जीवित रहे, इसका नहीं महत्वहम कैसे जीवित रहे, यही तत्व अमरत्व(33)
जीने को हमको मिले यद्यपि दिन दो-चारजिएँ मगर हम इस तरह हर दिन बनें हजार(34)
सेज है सूनी सजन बिन, फूलों के बिन बाग़घर सूना बच्चों बिना, सेंदुर बिना सुहाग(35)
यदि यूँ ही हावी रहा इक समुदाय विशेषनिश्चित होगा एक दिन खण्ड-खण्ड ये देश(36)
बन्दर चूके डाल को, और आषाढ़ किसानदोनों के ही लिए है ये गति मरण समान(37)
चिडि़या है बिन पंख की कहते जिसको आयुइससे ज्यादा तेज़ तो चले न कोई वायु(38)
बुरे दिनों में कर नहीं कभी किसी से आसपरछाई भी साथ दे, जब तक रहे प्रकाश(39)
यदि तुम पियो शराब तो इतना रखना यादइस शराब ने हैं किए, कितने घर बर्बाद(40)
जब कम हो घर में जगह हो कम ही सामानउचित नहीं है जोड़ना तब ज्यादा मेहमान(41)
रहे शाम से सुबह तक मय का नशा ख़ुमारलेकिन धन का तो नशा कभी न उतरे यार(42)
जीवन पीछे को नहीं आगे बढ़ता नित्यनहीं पुरातन से कभी सजे नया साहित्य(43)
रामराज्य में इस कदर फैली लूटम-लूटदाम बुराई के बढ़े, सच्चाई पर छूट(44)
स्नेह, शान्ति, सुख, सदा ही करते वहाँ निवासनिष्ठा जिस घर माँ बने, पिता बने विश्वास(45)
जीवन का रस्ता पथिक सीधा सरल न जानबहुत बार होते ग़लत मंज़िल के अनुमान(46)
किया जाए नेता यहाँ, अच्छा वही शुमारसच कहकर जो झूठ को देता गले उतार(47)
जब से वो बरगद गिरा, बिछड़ी उसकी छाँवलगता एक अनाथ-सा सबका सब वो गाँव(48)
अपना देश महान है, इसका क्या है अर्थआरक्षण हैं चार के, मगर एक है बर्थ(49)
दीपक तो जलता यहाँ सिर्फ एक ही बारदिल लेकिन वो चीज़ है जले हज़ारों बार(50)
काग़ज़ की एक नाव पर मैं हूँ आज सवारऔर इसी से है मुझे करना सागर पार