याद रहे कि काम शुरू ऐबक ने करवाया था और पूरा करवाया इल्तुतमिश ने, और १३८६ में मीनार को दुर्घटना के बाद दुरुस्त करवाया फिरोजशाह तुगलक ने। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि कुतुबुद्दीन ऐबक के नाम पर ही इस मीनार का नाम पड़ा जबकि कुछ बताते हैं कि बगदाद के संत कुतुबद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर इस मीनार का नाम कुतुबमीनार पड़ा। काकी बाद में भारत में आकर ही रहे।
इल्तुतमिश इन्हें बहुत मानता था। ७२.५ मीटर ऊँची यह मीनार यूनेस्को की विश्व धरोहर स्मारकों की सूची में भी शामिल है।