सत्ताइसवां रोजा : रहमत बरस रही हैं माहे मुबारक में
आज सत्ताईसवां रोजा है। कल छब्बीसवां रोजा और शबे-क़द्र की तलाश (सत्ताईसवीं रात) साथ-साथ थे। यहाँ यह बात जानना जरूरी है कि छब्बीसवां रोजा जिस दिन होगा, उसी शाम गुरुबे-आफ़ताब के बाद (सूर्यास्त के पश्चात) सत्ताईसवीं रात शुरू हो जाएगी, जिसमें अक्सर शबे कद्र की तलाश की जाती है। यह उन ताक रातों में से एक है, जिनमें शबे कद्र को तलाश किया जाता है। ताक रातों में 21वीं, 23वीं, 25वीं, 27वीं और 29वीं रात को कहते हैं, जिनमें इबादत कर बन्दे शबे कद्र को ढूंढते हैं। शबे कद्र हजारों लाखों रातों से अफज़ल रात है और अगर कोई बंदा यह राज इबादत में गुज़ार दे तो उसे हज़ारों लाखों रातों की इबादत का सवाब मिलता है। रवेयत है कि शबे कद्र की रात को फरिश्तों के सरदार जिब्रिल अमीन खुद ज़मीन पर आकर उन लोगों से मुसाफा करते हैं जो इस मुबारक रात में इबादत करते हैं। शबे कद्र का जिक्र कुरआन में आया है और लयलतुल कद्र की फज़ीलत कुआन ने बयान की है।