महालक्ष्मी लघु पूजन विधि (संस्कृत भाषा)
मूल संस्कृत भाषा में लक्ष्मी का लघु पूजन स्वयं करें
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डॉ. मनस्वी श्रीविद्यालंकार(
अनुमानित समय- 30 मिनट)महालक्ष्मी पूजनकर्ता स्नान करके कोरे अथवा धुले हुए शुद्ध वस्त्र पहनें, माथे पर तिलक लगाएँ और शुभ मुहूर्त में पूजन शुरू करें। इस हेतु शुभ आसन पर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुँह करके पूजन करें।अपनी जानकारी हेतु पूजन शुरू करने के पूर्व प्रस्तुत पद्धति एक बार जरूर पढ़ लें।पवित्रकरण :बाएँ हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ की अनामिका से निम्न मंत्र बोलते हुए अपने ऊपर एवं पूजन सामग्री पर जल छिड़कें-ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः॥पुनः पुण्डरीकाक्षं, पुनः पुण्डरीकाक्षं, पुनः पुण्डरीकाक्षं।आसन :निम्न मंत्र से अपने आसन पर उपरोक्त तरह से जल छिड़कें-ॐ पृथ्वी त्वया घता लोका देवि त्वं विष्णुना घृतात्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु च आसनम्॥आचमन :दाहिने हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें- ॐ केशवाय नमः स्वाहा, ॐ नारायणाय नमः स्वाहा, ॐ माधवाय नमः स्वाहा।यह बोलकर हाथ धो लें-ॐ गोविन्दाय नमः हस्तं प्रक्षालयामि।दीपक :दीपक प्रज्वलित करें (एवं हाथ धोकर) दीपक पर पुष्प एवं कुंकु से पूजन करें-दीप देवि महादेवि शुभं भवतु मे सदा ।यावत्पूजा-समाप्तिः स्यातावत् प्रज्वल सुस्थिराः ॥(
पूजन कर प्रणाम करें)
स्वस्ति-वाचन :निम्न मंगल मंत्र बोलें-ॐ स्वस्ति न इंद्रो वद्धश्रवाः स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्ट्टनेमिः स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥(
नोट : पूजन शुरू करने के पूर्व पूजन की समस्त सामग्री व्यवस्थित रूप से पूजा-स्थल पर रख लें। श्री महालक्ष्मी की मूर्ति एवं श्री गणेशजी की मूर्ति एक लकड़ी के पाटे पर कोरा लाल वस्त्र बिछाकर उस पर स्थापित करें। गणेश एवं अंबिका की मूर्ति के अभाव में दो सुपारियों को धोकर, पृथक-पृथक नाड़ा बाँधकर कुंकु लगाकर गणेशजी के भाव से पाटे पर स्थापित करें व उसके दाहिनी ओर अंबिका के भाव से दूसरी सुपारी स्थापना हेतु रखें।)संकल्प :अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, अक्षत व द्रव्य लेकर श्री महालक्ष्मी आदि के पूजन का संकल्प करें-हरिॐ तत्सत् अद्यैत अस्य शुभ दीपावली बेलायांमम महालक्ष्मीप्रीत्यर्थम् यथासंभव द्रव्यैः यथाशक्ति उपचार द्वारामम् अस्मिन प्रचलित व्यापरे उत्तरोत्तर लाभार्थम्च दीपावली महोत्सवे गणेश, महालक्ष्मी,महासरस्वती, महाकाली, लेखनी कुबेरादि देवानांपूजनं च करिष्ये।(
जल छोड़ दें।)श्रीगणेश-अंबिका पूजनहाथ में अक्षत व पुष्प लेकर श्रीगणेश एवं अंबिका का ध्यान करें-श्री गणेश का ध्यान :गजाननं भूतगणादि सेवितं कपित्थ जम्बूफल चारुभक्षणम् ।उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पादपंकजम् ॥श्री अंबिका का ध्यान :नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः ।नमः प्रकृत्यै भद्रायै प्रणताः स्मताम् ॥श्रीगणेश अंबिकाभ्यां नमः, ध्यानं समर्पयामि ।(
श्री गणेश मूर्ति अथवा मूर्ति के रूप में सुपारी पर अक्षत चढ़ाएँ, नमस्कार करें।)अब भगवान गणेश-अंबिका का आह्वान, प्रतिष्ठा, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, पुनराचमन हेतु निम्न प्रक्रिया करें। इस हेतु अक्षत अर्पित करें व जल की आचमनी छोड़ें :-
अक्षत चढ़ाएँ :ॐ भूर्भुवः स्वः गणेश-अम्बिकाभ्यां नमःगणेश-अम्बिकाम् आवाहयामि, स्थापयामि, पूजयामि च ।पुनः अक्षत चढ़ाएँ :-ॐ भूर्भुवः स्वः गणेश-अम्बिकाभ्यां नमःप्रतिष्ठा पूर्वकम् आसनार्थे अक्षतान् समर्पयामि ।अब आचमनी से जल चढ़ाएँ :-ॐ भूर्भुवः स्वः गणेश-अम्बिकाभ्यां नमः ।एतानि पाद्य, अर्घ्य, आचमनीय, स्नानीय, पुनः आचमनीयानि समर्पयामि।शुद्धोदक स्नानं :शुद्ध जल से स्नान निम्न मंत्र बोलते हुए कराएँ-गंगा च यमुना चैव गोदावरी सरस्वती ।नर्मदा सिंधु कावेरी स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम ॥ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।(
शुद्ध जल से स्नान कराएँ।) अब आचमन हेतु जल दें-शुद्धोदकस्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि।वस्त्र एवं उपवस्त्र :निम्न मंत्र बोलकर वस्त्र व उपवस्त्र अर्पित करें :-शीतवातोष्णसंत्राणं लज्जायां रक्षणं परम् ।देहालंकरणं वस्त्रमतः शांति प्रयच्छ में ॥यस्या भावेन शास्त्रोक्तं कर्म किंचिन सिध्यति ।उपवस्त्रं प्रयच्छामि सर्वकर्मोपकारकम् ॥ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, वस्त्रं-उपवस्त्रं समर्पयामि ।(
श्री गणेश-अम्बिका को वस्त्र-उपवस्त्र समर्पित करें।)आचमन के लिए जल अर्पित करें :-वस्त्र उपवस्त्रान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ॥
नाना परिमल द्रव्य :अबीर, गुलाल इत्यादि अर्पित करें :-अबीरं च गुलालं च हरिद्रादिसमन्वितम् ।नाना परिमल द्रव्यं गृहाण परमेश्वरः ॥ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, नानापरिमलद्रव्याणि समर्पयामि ।(
अबीर, गुलाल, पुष्प इत्यादि अर्पित करें।)नैवेद्य :-मालापुए व अन्य मिष्ठान्न यथाशक्ति अर्पित करें :-शर्कराखंडखाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च ।आहारं भक्ष्य भोज्यं च नैवेद्यं प्रतिगृह्यताम् ॥ॐ भूर्भुवः स्वः गणेशाम्बिकाभ्यां नमः, नैवेद्यं निवेदयामि ॥इसके पश्चात जल छोड़ते हुए निम्न मंत्र बोलें :-ॐ प्राणाय स्वाहा ।ॐ अपानाय स्वाहा ।ॐ समानाय स्वाहा ।ॐ उदानाय स्वाहा ।ॐ व्यानाय स्वाहा ।नैवेद्यान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।(
नैवेद्य निवेदित करें व जल अर्पित करें।)('
अनया पूजया गणेशाम्बिके प्रीयेताम्' कहकर जल छोड़ दें।)नोट :- इसके पश्चात (1) षोडशमातृका पूजन (2) कलश पूजन तथा (3) नवग्रह पूजन किया जाता है। अथवा महालक्ष्मी पूजन करें।
महालक्ष्मी पूजन प्रारंभश्रीसूक्त की ऋचाओं के साथ विशिष्ट पूजनविशेष नोट :- श्रीसूक्त में लक्ष्मी की कृपा व अलक्ष्मी की अकृपा के लिए प्रार्थना है। अतः ध्यानपूर्वक मंत्र बोलें। आपकी सुविधा के लिए जहाँ अलक्ष्मी शब्द बोलना है वहाँ हमने संधि विच्छेद कर दिया है।ध्यान :या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षगम्भीरावर्तनाभिस्तनभरनमिता शुभ्रवस्त्रोत्तरीया ।या लक्ष्मीर्दिव्यरूपैर्मणिगणखचितैः स्नापिता हेमकुम्भैःसा नित्यं पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमांगल्ययुक्ता ॥ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् ।चंद्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥ॐ महालक्ष्म्यै नमः, ध्यानार्थे पुष्पाणि समर्पयामि ।(
पुष्प अर्पित करें।)आह्वान :सर्वलोकस्य जननीं सर्वसौख्यप्रदायिनीम् ।ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ॥ॐ महालक्ष्म्यै नमः, महालक्ष्मीमावाहयामि, आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामि ।(
आह्वान के लिए पुष्प अर्पित करें।)आसन :तप्तकांचनवर्णाभं मुक्तामणिविराजितम् ।अमलं कमलं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम् ॥ॐ अश्र्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम् ।श्रियं देवीमुप ह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥ॐ महालक्ष्म्यै नमः, आसनं समर्पयामि ।(
पुष्प अर्पित करें।)पाद्य :गंगादितीर्थसम्भूतं गन्धपुष्पादिभिर्युतम् ।पाद्यं ददाम्यहं देवि गृहाणाशु नमोऽस्तु ते ॥ॐ कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥ॐ महालक्ष्म्यै नमः, पादयोः पाद्यं समर्पयामि ।(
पाद्य अर्पित करें।)
अर्घ्य :अष्टगन्धसमायुक्तं स्वर्णपात्रप्रपूरितम् ।अर्घ्यं गृहाणमद्यतं महालक्ष्मी नमोऽस्तु ते ॥ॐ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् ।तां पद्यनीमीं शरणं प्रपद्ये-अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥ॐ महालक्ष्म्यै नमः, हस्तयोरर्घ्यं समर्पयामि ।(
चन्दन मिश्रित जल अर्घ्यपात्र से देवी के हाथों में दें।)स्नान :मन्दाकिन्याः समानीतैर्हेमाम्भोरुहवासितैः ।स्नानं कुरुष्व देवेशि सलिलैश्च सुगन्धिभिः ॥ॐ महालक्ष्म्यै नमः, स्नानं समर्पयामि ।(
स्नानीय जल अर्पित करें।)स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि ।('
ॐ महालक्ष्म्यै नमः' बोलकर आचमन हेतु जल दें।)पंचामृत स्नान :(
दूध, दही, घी शकर एवं शहद मिलाकर पंचामृत बनाएँ व निम्न मंत्र से स्नान कराएँ।)पयो दधि घृतं चैव मधुशर्करयान्वितम् ।पंचामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥ॐ पंच नद्यः सरस्वतीमपि यन्ति सस्त्रोतसः ।सरवस्ती तु पंञ्चधा सो देशेऽभवत्-सरित् ॥ॐ महालक्ष्म्यै नमः, पंचामृतस्नानं समर्पयामि, पंचामृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।(
पंचामृत स्नान व जल से स्नान कराएँ।)शुद्धोदक स्नान :मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम् ।तदिदं कल्पितं तुभ्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥ॐ महालक्ष्म्यै नमः, शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।(
गंगाजल अथवा शुद्ध जल से स्नान कराएँ।)आचमन :पश्चात 'ॐ महालक्ष्म्यै नमः' से आचमन कराएँ।
वस्त्र :दिव्याम्बरं नूतनं हि क्षौमं त्वतिमनोहरम् ।दीयमानं मया देवि गृहाण जगदम्बिके ॥ॐ उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥ॐ महालक्ष्म्यै नमः, वस्त्रं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि ।(
वस्त्र अर्पित करें, आचमनीय जल दें।)यज्ञोपवीत :ॐ तस्मादअकूवा अजायंत ये के चोभयादतः ।गावोह यज्ञिरे तस्मात्तस्माज्जाता अजावयः ॥ॐ यज्ञोपवितं परमं वस्त्रं प्रजापतयेः त्सहजं पुरस्तात ॥आयुष्यम अग्रयं प्रतिमुञ्च शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तुतेजः ।ॐ महालक्ष्म्यै नमः ।यज्ञोपवितं समर्पयामि ।गन्ध :श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम् ।विलेपनं सुरश्रेष्ठे चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्युपुष्टां करीषिणीम् ।ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥ॐ महालक्ष्म्यै नमः, गन्धं समर्पयामि ।(
केसर मिश्रित चन्दन अर्पित करें।)अक्षत :अक्षताश्च सुरश्रेष्ठे कुंकुमाक्ताः सुशोभिताः ।मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरि ॥ॐ महालक्ष्म्यै नमः, अक्षतान् समर्पयामि ।(
कुंकुमाक्त अक्षत चढ़ाएँ।)पुष्पमाला :माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो ।मयानीतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥ॐ मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।पशूनां रूपमन्नास्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥ॐ महालक्ष्म्यै नमः, पुष्पं पुष्पमालां च समर्पयामि ।(
लाल कमल के पुष्प तथा पुष्पमालाओं से अलंकृत करें।)
धूप :वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यः सुमनोहरः ।आघ्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥ॐ कर्र्दमेन प्रजा भूता मयि संभव कर्दम ।श्रियं वासय में कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥ॐ महालक्ष्म्यै नमः, धूपमाघ्रापयामि ।(
धूप आघ्रापित करें।)दीप :कार्पास वर्तिसंयुक्तं घृतयुक्तं मनोहरम् ।तमो नाशकरं दीपं गृहाण परमेश्वरि ॥ॐ आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस में गृहे ।नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥ॐ महालक्ष्म्यै नमः, दीपं दर्शयामि ।(
दीपक दिखाकर हाथ धो लें।)नैवेद्य :(
मालपुए सहित पंचमिष्ठान्ना व सूखे मेवे।)नैवेद्यं गृह्यतां देवि भक्ष्यभोज्य समन्वितम् ।षड्रसैन्वितं दिव्यं लक्ष्िम देवि नमोऽस्तु ते ॥ॐ आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिंगलां पद्ममालिनीम् ॥चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥ॐ महालक्ष्म्यै नमः, नैवेद्यं निवेदयामि ।बीच में जल छोड़ते हुए निम्न मंत्र बोलें :- ॐ प्राणाय स्वाहा । ॐ अपानाय स्वाहा । ॐ समानाय स्वाहा । ॐ उदानाय स्वाहा । ॐ व्यानाय स्वाहा ।मध्ये पानीयम्, उत्तरापोशनार्र्थं हस्तप्रक्षालनार्थं मुखप्रक्षालनार्थं च जलं समर्पयामि ।(
नैवेद्य निवेदित कर पुनः हस्तप्रक्षालन के लिए जल अर्पित करें।)आचमन :शीतलं निर्मलं तोयं कर्पूरण सुवासितम् ।आचम्यतां जलं ह्येतत् प्रसीद परमेश्वरि ॥ॐ महालक्ष्म्यै नमः, आचमनीयं जलं समर्पयामि ।(
आचमन के लिए जल दें।)दक्षिणा :हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः ।अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ मे ॥ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम् ॥ॐ महालक्ष्म्यै नमः, दक्षिणां समर्पयामि ।(
दक्षिणा चढ़ाएँ।)
आरती :चक्षुर्दं सर्वलोकानां तिमिरस्य निवारणम् ।आर्तिक्यं कल्पितं भक्तया गृहाण परमेश्वरि ॥ॐ महालक्ष्म्यै नमः, नीराजनं समर्पयामि ।(
जल छोड़ें व हाथ धोएँ।)समर्पण :'
कृतेनानेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मीदेवी प्रीतताम्, न मम' ।(
हाथ में जल लेकर छोड़ दें।)देहली, दवात, बही-खाता, तिजोरी व दीपावली (दीपमालिका) पूजनदेहली पूजन :अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान व घर के मुख्य प्रवेश द्वार पर 'ॐ श्रीगणेशाय नमः' लिखें साथ ही 'स्वस्तिक चिन्ह', 'शुभ-लाभ' आदि मांगलिक एवं कल्याणकारी शब्द सिन्दूर अथवा केसर से लिखें। इसके पश्चात निम्न मंत्र बोलकर 'ॐ देहलीविनायकाय नमः' गन्ध, पुष्प, अक्षत से पूजन करें।दवात (श्री महाकाली) पूजन :काली स्याहीयुक्त दवात को भगवती महालक्ष्मी के सामने पुष्प तथा अक्षत पर रखें, सिन्दूर से स्वस्तिक बना दें तथा नाड़ा लपेट दें। निम्न मंत्र बोलकर 'ॐ श्रीमहाकाल्यै नमः' गन्ध, पुष्प, अक्षत, धूप, दीप न नैवेद्य से दवात में भगवती महाकाली का पूजन करें। इस प्रकार प्रार्थनापूर्वक उन्हें प्रणाम करें-कालिके! त्वं जगन्मातः मसिरूपेण वर्तसे ।उत्पन्नाा त्वं च लोकानां व्यवहारप्रसिद्धये ॥या कालिका रोगहरा सुवन्द्या भक्तैः समस्तैर्व्यवहराद क्षैः ।जनैर्जनानां भयहारिणी च सा लोकमाता मम सौख्यदास्तु ॥(
पुष्प अर्पित कर प्रणाम करें।)लेखनी पूजन :लेखनी (कलम) पर नाड़ा बाँधकर सामने की ओर रखें। निम्न मंत्र बोलकर पूजन करें :-लेखनी निर्मिता पूर्वं ब्रह्मणा परमेष्ठिना ।लोकानां च हितार्थाय तस्मात्तां पूजयाम्यहम् ॥'
ॐ लेखनीस्थायै देव्यै नमः'गंध, पुष्प, पूजन कर इस प्रकार प्रार्थना करें :-शास्त्राणां व्यवहाराणां विद्यानामाप्नुयाद्यतः ।अतस्त्वां पूजयिष्यामि मम हस्ते स्थिरा भव ॥बही-खाता ( सरस्वती) पूजन :बही-खातों पर स्वस्तिक बनाएँ व बसना पर स्वस्तिक चिह्न बनाकर उस पर रखें एवं एक थैली के ऊपर रोली या केसरयुक्त चंदन से स्वस्तिक चिन्ह बनाएँ तथा थैली में पाँच हल्दी की गाँठें, धनिया, कमलगट्टा, अक्षत, दूर्वा व द्रव्य रखकर, उसमें सरस्वती का ध्यान करें।या कुन्देन्दुतुषारहार धवला या शुभ्रवस्त्रावृता ।या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्यासना ॥या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिर्देवेः सदा वन्दिता ।सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥ध्यान बोलकर प्रणाम करें। निम्न मंत्र द्वारा सरस्वती का गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य द्वारा पूजन करें :-'
ॐ वीणापुस्तक धारिण्यै श्री सरस्वत्यै नमः'
तिजोरी (कुबेर) पूजन :तिजोरी पर स्वस्तिक बनाएँ एवं निधिपति कुबेर का निम्न वाक्य बोलकर आह्वान करें :-आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपां कुरु ।कोशं वर्द्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्र्वर ॥आह्वान के पश्चात निम्न मंत्र द्वारा 'ॐ कुबेराय नमः' कुबेर का गन्ध, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य आदि सेपूजन कर प्रार्थना करें :-धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च ।भगवन् त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिसम्पदः ॥इसके पश्चात पूर्व में महालक्ष्मी के साथ पूजित थैली (हल्दी, धनिया, कमलगट्टा, द्रव्य, दूर्वादि से युक्त) तिजोरी में रखकर कुबेर एवं महालक्ष्मी को प्रणाम करें।तुला-पूजन :व्यापारिक प्रतिष्ठान में उपयोग आने वाले तराजू (तुला) पर स्वस्तिक बनाकर उस पर नाड़ा लपेटें व नाड़े से लपेटे तुलाधिष्ठातृदेवता का ध्यान निम्न प्रकार से करें :-नमस्ते सर्वदेवानां शक्तित्वे सत्यमाश्रिता ।साक्षीभूता जगद्धात्री निर्मिता विश्वयोनिना ॥ध्यान के पश्चात निम्न मंत्र द्वारा 'ॐ तुलाधिष्ठातृदेवतायै नमः' तुला का गंध, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन कर प्रणाम करें।दीपमालिका (दीपक) पूजन :ऐक थाली में ग्यारह, इक्कीस या उससे अधिक या कम (यथाशक्ति) दीपक प्रज्वलित कर उन्हें महालक्ष्मी के सामने की ओर रखकर उस दीपमालिका की इस प्रकार प्रार्थना करें :-त्वं ज्योतिस्त्वं रविश्चन्द्रो विद्युदग्निश्च तारकाः ।सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपावल्यै नमो नमः ॥प्रार्थना के पश्चात निम्न मंत्र 'ॐ दीपावल्यै नमः' द्वारा दीप माला का गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करें।इसके पश्चात अपने अनुसार गन्ना, सीताफल सिंघाड़े, साल की धानी इत्यादि पदार्थ अर्पित करें। साल की धानी गणेश, अम्बिका, महालक्ष्मी तथा अन्य देवी-देवताओं को भी अर्पित करें। अंत में इन सभी दीपकों द्वारा घर या व्यापारिक प्रतिष्ठान को सजाएँ। इसके पश्चात दीपक और कपूर से श्री महालक्ष्मी की महाआरती करें।