आधार कार्ड यानी धोखे का आधार
- सचिन कुमार जैन
आधार यानी विशेष पहचान के आधार को समझिए। लोगों को पहचान देने के नाम शुरू हुआ प्रयास महज 3 साल में ही लोगों के लिए विकास से बहिष्कार और योजनाओं से बेदखली का कारण बनने लगा। इसका मकसद सरकार के गरीबों पर किए जाने वाले खर्च को कम करना बन गया है और दूसरा मकसद है समुदाय को नकद धन देना ताकि वे बाज़ार को फायदे रोशन करें। जनवरी 2009 में विशेष पहचान प्राधिकरण की स्थापना हुई और जुलाई 2009 में श्री नंदन निलेकणी को इसका प्रमुख बना दिया गया। इसके दो मकसद थे-एक यह कि लोगों के पास एक स्थाई पहचान पत्र नहीं है, वह दिया जाएगा और दूसरा इसे योजनाओं से जोड़ा जाएगा, ताकि यदि एक व्यक्ति एक बार से ज्यादा किसी योजना का लाभ ले रहा है या नकली हितग्राही बनाए गए हैं, तो उन्हें पहचाना जा सके। यह पहचान पत्र या क्रमांक देने के लिए हर व्यक्ति को अपनी आंखों की पुतलियों और सभी उंगलियों के निशान देने होंगे। इस प्राधिकरण ने यह हमेशा कहा कि आधार पंजीयन अनिवार्य नहीं है पर अन्य विभाग अपनी योजनाओं का लाभ देने के लिए इसे एक शर्त के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं। हुआ भी यही। राष्ट्रीय रोज़गार गारंटी क़ानून के तहत खाते खोलने के लिए इसे अनिवार्य कर दिया गया। पेट्रोलियम मंत्रालय गैस सेवा के तहत आधार क्रमांक की मांग करना शुरू कर चुका है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना में भी इसका प्रावधान है। सस्ता राशन लेने के लिए भी इसे अनिवार्य बनाया जा रहा है। हमारे प्रधानमंत्री ने वर्ष 2010 में नेशनल आइडेंटीफिकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया विधेयक राज्यसभा में पेश किया, इसमें यह भी नहीं बताया गया था कि वे किस हैसियत से यह विधेयक पेश कर रहे हैं। इस विधेयक को वित्त विभाग की संसद की स्थाई समिति ने खारिज ही कर दिया पर प्राधिकरण को कोई फर्क नहीं पड़ा। वर्ष 2009-10 में इसके लिए 120 करोड़ रूपए के बजट का प्रावधान था, जो 20010-11 में बढ़ कर 1900 करोड़ कर दिया गया। दिसंबर 2012 तक प्राधिकरण 2300.56 करोड़ रूपए खर्च कर चुका था। जानीमानी क़ानून विशेषज्ञ प्रोफ़ेसर उषा रामनाथन कहती हैं कि बिना विभाग वाले और बिना किसी कानूनी प्रावधान के चल रहे इस प्राधिकारण और काम पर 45 हज़ार से डेढ़ लाख करोड़ रूपए तक खर्च होने का अनुमान है। हम सब जानते हैं कि बैंक में खाता खोलते समय हम अपना फोटो भी लगाते हैं, हस्ताक्षर भी करते हैं और जरूरत पड़ने पर अंगूठे का निशान लगाते हैं। यानी हम जैविकीय पहचान चिन्ह बैंक को उपलब्ध करवाते ही हैं। महत्वपूर्ण यह है कि इन चिन्हों का उपयोग केवल स्थानीय स्तर पर केवल बैंकिंग व्यवहार के लिए ही होता है; इसके विपरीत आधार पंजीयन के लिए आंखों की पुतली और सभी उंगलियों के निशान इसलिए लिए जा रहे हैं ताकि हर व्यक्ति एक किस्म की सरकारी निगरानी में आ सके। किसी भी तरह के नकद हस्तांतरण को आधार यानी विशेष पहचान पंजीयन को जरूरी शर्त के रूप में लागू नहीं किया जाना चाहिए। उल्लेखनीय है कि विशेष पहचान प्राधिकरण ने स्वयं यह घोषित किया है कि आधार पंजीयन अनिवार्य नहीं बल्कि स्वैच्छिक है। संसद की स्थाई समिति ने भी विशेष पहचान क्रमांक और प्राधिकरण पर लाए गए विधेयक को पूरी तरह से खारिज कर दिया है परन्तु फिर भी भारत सरकार इसे योजनाओं का लाभ लेने के लिए एक अनिवार्य शर्त के रूप में लागू कर रही है।